मौर्य साम्राज्य का पतन यूं कहें कि अशोक के शासनकाल से ही प्रारंभ हुआ तो गलत ना होगा। अशोक की बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा ब्राह्मण धर्म के कट्टर अनुयायियों को रास नहीं रही होगी। उन्होंने अशोक के पश्चात आने वाले मगध सम्राटों को असहयोग प्रस्तुत किया होगा। अशोक की अहिंसात्मक नीति ने सेना पर भी एक बड़ा प्रभाव डाला।राजकोष का अत्यधिक धन सार्वजनिक हित में प्रयोग होने लगा। शिलालेख, स्तंभों का निर्माण यह सब राज्य की सुरक्षा के अतिरेक राजकोष पर भार था। अशोक के शासनकाल के पश्चात उसके उत्तराधिकारी इतनी भी योग्य ना थे, कि वह मगध के इतने विशाल साम्राज्य को छिन्न-भिन्न होने से बचा सकें। साम्राज्य की इतनी विशालता, अशोक के उत्तराधिकारियों की केंद्रीय शासन में निर्बलता ने प्रांतपतियों में स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयत्न के भाव को जन्म दिया। अशोक के पश्चात साम्राज्य का विस्तार कम हो जाने के कारण राजकोष राज्य की आय पर गहरा धक्का लगा। इतना ही नहीं अर्थशास्त्र में प्रमाण मिलता है कि मौर्य काल में करों की अधिकता थी।
यह सब प्रजा में असंतोष का कारण बन रही थी। अशोक के उत्तराधिकारिओं प्रांतपतियों और अन्य अधिकारियों के द्वारा प्रजा पर किए अत्याचारों ने प्रजा को शासन के विरोध में लाकर खड़ा कर दिया। अशोक के पश्चात तो मौर्य शासन की राज्यसभा में आंतरिक गुटबंदी, आंतरिक कलह ने जन्म ले लिया। स्वयं मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ को अपने ही सेनापति के द्वारा उसकी हत्या कराने की राजनीतिक षड्यंत्र की सूचना हुई। यह कारण मौर्य वंश को भीतर से निर्बल करते गए।
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