शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

केशव चंद्र सेन | स्वामी दयानंद सरस्वती से मुलाकात

केशव चंद्र सेन

1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना से पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती आचार्य केशव चंद्र सेन से मुलाकात करते हैं। आचार्य केशव चंद्र सेन व्यक्ति जिनके ब्रह्म समाज में प्रवेश से ब्रह्म समाज का विस्तार द्रुत गति से होने लगा। इन्हीं के नेतृत्व में ब्रह्म समाज की अनेक स्थानों पर जैसे मुंबई, मद्रास, उत्तर प्रदेश में शाखाएं खुल गई। महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व इन्हीं के हाथों में था। 1857 में जब वे ब्रह्म समाज के सदस्य बने, और उसके बाद 1859 में उन्हें आचार्य पद पर नियुक्त कर दिया गया। इनकी सोच प्रगतिवादी रही। इससे विचारधारा में अंतर आ गया।

कोलकाता मेडिकल कॉलेज में भाषण के बाद जिसका शीर्षक “जीसस क्राइस्ट: यूरोप तथा इंडिया” के बाद जो धारणा बनी कि इनका झुकाव ईसाई धर्म की ओर है।
ऐसा ही पूर्व में जब 1820 में ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने एक पुस्तक “प्रिसेप्स आफ जीसेस” अर्थात “ईशा के नीति वचन” लिखी। इससे लोगों को लगा कि राजा राम मोहन राय ईसाई धर्म अपनाने वाले हैं। किंतु ऐसा नहीं था, वह सभी धर्मों की अच्छी बातों के समर्थक थे।

  लेकिन आचार्य केशव चंद्र सेन की विचारों से महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के विचारों का टकराव होने लगा। ब्रह्म समाज पाश्चात्य का समर्थन तो जरूर करता था। किंतु वेदों को महत्व देना प्रमुख था। इस विचारधारा के टकराव में ब्रह्म समाज दो भागों में टूट गया। आचार्य केशव चंद्र सेन 1866 में भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना करते हैं। देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म  समाज “आदि ब्रह्म समाज” कहलाया। 1864 में आचार्य केशव चंद्र सेन की ही प्रेरणा पर मद्रास में के०श्री० धरालु नायडू ने वेद समाज की स्थापना की। 1867 में उन्हीं की प्रेरणा पर महाराष्ट्र में आत्माराम पांडुरंग द्वारा प्रार्थना समाज की स्थापना की गई। इस समय तक आचार्य केशव चंद्र सेन ब्रह्म समाज से अलग हो गए थे। 1866 में ही वह आचार्य पद से मुक्त हो गए थे। और वे अब भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना कर चुके थे।

1878 तक आते आचार्य केशव चंद्र सेन से उन्हीं के बनाए भारतवर्षीय ब्रह्म समाज के सदस्यों का मतभेद हो जाता है। क्योंकि आचार्य केशव चंद्र सेन अपनी 13 साल की पुत्री का विवाह कूचबिहार के राजा से कर देते हैं। और इसे ईश्वर की इच्छा बताते हैं। वही ब्रह्म समाज पहले से ही और साथ ही भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज भी बाल विवाह का विरोधी रहा था। और इससे कुछ पूर्व 1872 में ही आचार्य केशव चंद्र सेन के प्रयास से ही “ब्रह्म मैरिज एक्ट” अथवा “सिविल मैरिज एक्ट” आया। जिसमें विवाह के लिए लड़कियों की आयु 14 वर्ष और पुरुषों की आयु 18 वर्ष तय की गई थी।
इस विवाह के संबंध में मतभेद से शिवनाथ शास्त्री आदि के नेतृत्व में साधारण ब्रह्म समाज प्रकाश में आया।

1872 में जब स्वामी दयानंद सरस्वती अपने विचारों का प्रकाश बिखेरने के लिए मंच तलाश रहे थे। तो वह आचार्य केशव चंद्र सेन से मुलाकात करते हैं। इस समय तक आचार्य केशव चंद्र सेन भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना कर समाज सुधार में लगे थे। स्वामी दयानंद सरस्वती और आचार्य केशव चंद्र सेन के विचार मेल नहीं खाते हैं। आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज की विचारधारा के संबंध में हम पूर्व के लेख 【 स्वामी विवेकानंद पर ब्रह्म समाज और गुरु रामकृष्ण का प्रभाव 】 में भी कुछ चर्चा कर चुके हैं।  आचार्य केशव चंद्र सेन इस मुलाकात में संस्कृत के प्रकांड ज्ञानी स्वामी दयानंद सरस्वती को हिंदी भाषा की सलाह देते हैं। और इन्हीं की सलाह पर स्वामी दयानंद सरस्वती अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” का हिंदी में प्रकाशन करते हैं।।

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

जूलियस सीज़र | प्रकरण 2 | पोम्पी और सीजर में दूरी

जूलियस सीज़र

रोम की राजनीति में तीन बातें उस समय तक, जिसमें एक राज परिवार की औरतों द्वारा पुरुषों पर वर्चस्व रखना, या पीछे से शासन में हस्तक्षेप रखना, और कहीं तो राज परिवार में औरत ही राजनीति में मुख्य भूमिका में होती थीं। वही दूसरा, की राज परिवार अपने पुत्र पुत्रियों का प्रयोग अपनी राजनीति जमाने में भी करते थे। अपनी पुत्री का विवाह किसी व्यक्ति से कर जो वर्चस्व शाली प्रतीत होता है। या राजनीति में जो स्थान मजबूत रखता है। और तीसरी बात, अहम अंधविश्वास और जादू टोना तथा बलि देकर अपनी कामना के लिए अपनी देवी से प्रार्थना करना। आगे हम जानेंगे कैसे ब्रूटस जब मारा जाता है, तब उसकी मां शाप देते हुए अपनी आत्महत्या कर देती है।

उधर पोम्पी मैग्नेस और जूलियस सीज़र में दूरियां बढ़ रही हैं। पिछले प्रकरण में हमने जान लिया था, कि पोम्पी मैग्नेस जो रोम में शांति बनाए रखे है, लगभग 8 वर्षों से जिन वर्षों में जूलियस सीज़र यूरोप के तमाम देशों में अपनी सेना के साथ विजय का पताका फहरा रहा था। दरअसल इस विजय अभियान का अहम कारण 390 ईसा पूर्व में गॉल द्वारा रोम शहर पर हुए आक्रमण और उसे लूट लेने से जन्मा था। इस अपमान का बदला लेने गॉल पर रोम ने आक्रमण किया।

  गॉल शब्द रोमन का ही उस क्षेत्र को दिया गया था। वर्तमान में इस क्षेत्र में फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड का कुछ भाग, स्विट्जरलैंड, जर्मनी का कुछ भाग और इटली का वर्तमान का कुछ भाग इसमें आता था।

पोम्पी मेग्नस को यह मालूम था, कि सीजर बहुत धनवान हो चुका है। और शक्तिशाली भी उसके पास अनेक सैनिक हैं। और कई शत्रु देशों के पकड़े सैनिक, औरत, बच्चे सभी दासो के रूप में रोम के बाजारों में बेचे जाते थे। वही रोम की जनता जब जुलियस सीजर के विजय की खबर सुनती, तो वह अपने विजेता प्रतिनिधि जुलियस सीजर को शक्तिशाली और अपने अपमान का बदला लेने वाला मानती और अपना रक्षक मानने लगती है। जुलियस सीजर रोम की जनता में भी अपने विजय अभियान की सफलता की वजह से अधिक लोकप्रिय होता जाता है। वही जब सैनिकों की कोई टुकड़ी युद्ध क्षेत्र से रोम लौटती तो वह बहुमूल्य वस्तुएं, धातुएं अपने साथ लाते। लूटा हुआ खजाना लोगों में गलियों में से वे बांटते हुए निकलते। सिक्कों की बौछारें की जाती, और रोम में उन्हें हीरो की तरह देखा जाता। एक सैनिक बेड़ा भी इतना धनवान होकर लौटता की पोम्पी मैग्नेस को उनकी शक्ति अपने पद और समृद्धि से अधिक लगने लगी। किंतु उसे जो रोके हुए था। वह जुलियस सीजर की दोस्ती। किंतु यह अधिक समय तक उसे रोक न सकी, क्योंकि सीनेट में कई सदस्य जो अब अनुमान लगा रहे थे, कि जूलियस सीज़र अपने आप को तानाशाह घोषित कर देगा, और गणतंत्र को समाप्त कर देगा। वह पोम्पी मैग्नेस को गणतंत्र की रक्षा के लिए नेतृत्व करने को उकसाते हैं। और वे इसमें सफल भी हो जाते हैं।

अब दो नाम, जिस प्रकार मार्क एंटोनी जुलियस सीजर का करीबी व्यक्ति था, और विश्वसनीय भी था। वह जुलियस सीजर की हत्या होने तक सीजर के ही पक्ष में रहा। वही ब्रूटस जो एक सैद्धांतिक व्यक्ति है, और वह काफी जवान लड़का है। जो गणतंत्र का पक्षधर है। और उसी अनुमान में है, कि जुलियस सीजर गणतंत्र को समाप्त कर देगा। और अपने आप को तानाशाह घोषित करेगा। इसलिए वह पोम्पी मेग्नेस की गणतंत्र की रक्षक सेना का अंग बनता है। वह स्वयं भी राज परिवार से है।

स्वामी विवेकानंद पर ब्रह्म समाज और गुरु रामकृष्ण का प्रभाव

स्वामी विवेकानंद

द न्यूयॉर्क हेराल्ड में तब छपा था, कि स्वामी विवेकानंद धर्म सम्मेलन में पहुंचे प्रतिनिधियों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। और जिस धरती से स्वामी विवेकानंद जैसे विचारक दार्शनिक आते हैं, यदि हम वहां अन्य धर्म के प्रचारक भेजते हैं, तो यह मूर्खता है।
   यह सब 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन के बाद छापा गया था। इन्हीं भाषणों के साथ स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध हो गए। स्वामी विवेकानंद पूर्व में जिन्हें नरेंद्र नाम से जाना जाता था। ब्रह्म समाज के द्वारा स्थापित प्रेसीडेंसी कॉलेज के विद्यार्थी रहे, ब्रह्म समाज द्वारा इसकी स्थापना हिंदू कॉलेज के रूप में की गई थी। 2010 में इसे प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

   ब्रह्म समाज के संदर्भ में जिसे 1828 राजा राममोहन राय द्वारा गठित किया गया था। और उनके बाद यह महर्षि द्वारिका नाथ टैगोर और देवेंद्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के नेतृत्व में रहा। हालांकि देवेंद्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के विचारों में टकराव रहा, और वे बंट भी गए।
  किंतु प्रेसिडेंसी कॉलेज की स्थापना कोलकाता में 1817 में ही हो गई थी। जबकि राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना ही नहीं की थी। लेकिन राजा राम मोहन राय द्वारा ही इस कॉलेज की स्थापना की गई। और ब्रह्म समाज की विचारधारा राजा राममोहन राय के ही विचार थे। अतः प्रेसीडेंसी कॉलेज उनके विचारों से प्रभावित था। तब इसका नाम हिंदू कॉलेज था। 1855 में इसका नाम प्रेसिडेंसी कॉलेज हो गया। अब क्योंकि ब्राह्म समाज पाश्चात्य शिक्षा अथवा अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन करता था। साथ ही मूर्ति पूजा का, धर्म में फैले आडंबर और अंधविश्वास का विरोध करता था। और सामान्य सी बात है, कि प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र पर ब्रह्म समाज के विचारों का प्रभाव था।
लेकिन यदि कहा जाए, कि क्या विवेकानंद मूर्ति पूजा का समर्थन करते थे, तो जवाब हां होगा।

इसका सबसे अहम कारण था। गुरु रामकृष्ण परमहंस का काली पुजारी होना। रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। वे हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म के ज्ञाता थे। उनके सानिध्य में स्वामी विवेकानंद को अपने मन में उपजे तमाम सवालों का जवाब मिला। जो कि उन्हें अपनी शिक्षा के द्वारा प्राप्त नहीं हो सके। गुरु रामकृष्ण परमहंस द्वारा प्राप्त ज्ञान का मूल था,  “मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है” और इसी तत्व को आत्मसात कर स्वामी विवेकानंद ने दुनिया में हिंदू धर्म का परचम लहराया। इसी कारण रामकृष्ण मिशन की विचारधारा में मानव सेवा भाव था। उनका मानना था कि मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है और वे मानव में ही ईश्वर देखते हैं। इस तरह ब्रह्म समाज साथ ही उसी की एक शाखा प्रार्थना समाज, दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में स्थापित आर्य समाज के बाद स्वामी विवेकानंद मानव सेवा के मूल भाव के साथ एक नए विचार में रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हैं।

क्योंकि आर्य समाज और ब्रह्म समाज में मूल अंतर था। कि ब्रह्म समाज में वेदों की शिक्षा के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का भी समर्थन था। किंतु आर्य समाज का मानना था। कि यदि भारत को आगे बढ़ना है, तो मूल, वेदों की ओर लौटना होगा।
वहीं रामकृष्ण मिशन मानव सेवा के एक नए विचार के साथ कार्य करता है।

बुधवार, 28 सितंबर 2022

अंग्रेजों की प्रशासन की नीति | ईस्ट इंडिया कंपनी

अंग्रेजों की प्रशासन की नीति

कंपनी का निवेदन ब्रिटिश संसद तक पहुंच चुका था। वह ऋण चाहते थे, क्योंकि कंपनी घाटे में चल रही थी। तब के ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने अपने स्तर से जांच कमेटी बिठाई और मालूम हुआ कि कंपनी के दिवालियापन के पीछे भ्रष्टाचार का हाथ है। 1773 में कंपनी पर लगाम के लिए रेगुलेटिंग एक्ट लाया गया। और अनेकों उपबंधों में एक अब कंपनी के कर्मचारी भारतीयों से उपहार नहीं ले सकेंगे, साथ ही निजी व्यापार पर भी प्रतिबंध कर दिया गया। क्योंकि कंपनी के कर्मचारी स्वयं ही लाभ के लिए अपने निजी व्यापार को ही वरीयता देते थे। कंपनी के लाभ हानि को नहीं। इस समय जब उपहार, निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया, तो प्रशासकों को संतुष्ट और खुश रखने की नीति को समझिए उसी समय कंपनी के कर्मचारियों के वेतन में भी वृद्धि की गई। प्रशासनिक कर्मचारियों से सत्ता की मांग होती है, कि वे ईमानदार और निष्ठा कायम रखें। यह तभी हो सकता है, जब प्रशासनिक कर्मचारी स्वयं संतुष्ट हों। अन्यथा वह भ्रष्टाचार की ओर मुड़ता है। सत्ता यह ख्याल रखती है। और भरसक प्रयत्न करती है, कि प्रशासन में उसके कर्मचारियों को बेहतर जीवन दिया जाए। अन्यथा सर्वाधिक योग्य वर्ग समाज का क्यों प्रशासन में सेवा देने को जाएगा।

1786 में कार्नवालिस भारत आया, एक एक्ट के साथ। और कुछ नई शक्तियों के साथ आता है। वही जब वह भारत आया तो उसने कर्मचारियों का वेतन में अच्छी वृद्धि कर दी। और यही था, कि 1793 में ब्रिटिश संसद से आया चार्टर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन को भारतीय राजस्व से ही दिया जाए ऐसा प्रावधान किया। कार्नवालिस ने ऐसा इसलिए किया कि उसको लगता होगा, कि कर्मचारी अपने देश से दूर, अपने परिवार से दूर हैं, निजी व्यापार से भी लाभ नहीं उठा सकते उस पर भी प्रतिबंध है, इसलिए वेतन बढ़ा कर उनका आंतरिक आक्रोश दफन किया जा सकता है। ऐसा करना कर्मचारियों को कंपनी के प्रति निष्ठावान बनाता है।

कोई भी राष्ट्र अपने प्रशासकों को इसी प्रकार प्रशासनिक सेवा में सेवा के प्रति निष्ठावान बनाए रखता है।

1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद जब ब्रिटिशों को बंगाल का क्षेत्र जिसमें बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे, प्राप्त हुआ। उन्होंने व्यवस्था स्थापित कि उन्हें मात्र अपना स्वार्थ जिसमें कंपनी को सर्वाधिक लाभ हासिल करना था। लॉर्ड क्लाइव ने द्वैध शासन स्थापित किया। कंपनी ने राजस्व वसूलने का अधिकार लिया, और नाममात्र का बंगाल के शासक को राज्य के अन्य सभी प्रबंधन के मामले सौंप दिये अर्थात सारे उत्तरदायी मामले पर जहां जनता को जवाब देना था, बंगाल के शासक को सामने रखा और स्वयं मात्र राजस्व का लाभ उठाया। और राजस्व वसूली के लिए आप जानेंगे, तो उन्होंने स्वयं को व्यवस्था में नहीं आने दिया बल्कि राजा सिताब राय और मोहम्मद रजा खां की सहायता से अथवा उन्हें ही राजस्व वसूली के कार्य के लिए नियुक्त किया।
   मोहल्ले में लोग सार्वजनिक कूड़ा उठाने वाली गाड़ी को किराए देने के संदर्भ में आक्रोश में थे, लेकिन जो व्यक्ति कूड़े की गाड़ी की उस व्यवस्था का मालिक है, वह अपने ही क्षेत्र का था। और जब वह गाड़ी से उतरा तो जैसे वहीं समस्या का समाधान हो गया। और लोगों का आक्रोश शांत हो गया।

राजस्व को वसूलने के संदर्भ में अंग्रेजों की भी कुछ यही प्रशासन की नीति थी।

सोमवार, 26 सितंबर 2022

जुलियस सीजर | रोमन साम्राज्य | प्रकरण- 1

जुलियस सीजर- रोमन साम्राज्य



दो नाम आप बिल्कुल कंठस्थ कर लें जुलियस सीजर और ऑक्टेविन। एक जो जिससे हम आरंभ करेंगे और दूसरा जिस तक हम पहुंचेंगे। जुलियस सीजर एक गंभीर स्वभाव का आदमी है। बड़ी सैनिक नेतृत्व की क्षमता रखने वाला और अपनी सैनिक कुशलता के कारण ही सैनिकों का उस पर विश्वास भी अटूट है। वहां रोम में उसका मित्र पोम्पी मैग्नेस, जुलियस सीजर की ही तरह खूब लोकप्रिय और रोम सीनेट में ऊंचा स्थान रखता है। सीनेट का तात्पर्य संसद से है। वह एक गणराज्य था, रोमन गणराज्य।

 यह वह समय था, कि रोम यूरोप के तमाम इलाकों को जीतता जा रहा था। वहीं कुछ अफ्रीका के भागों पर भी वह अपना वर्चस्व हासिल करने में सफल रहा। किंतु वह स्वयं रोम पर शासन न कर सका। वहां बड़ी अव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता ने जन्म लिया। ऑक्टेविन वह है जो यह सब देख रहा है और समझ रहा है।

जुलियस सीजर और पोम्पी मैग्नेस जो साथ थे तो गणतंत्र में स्थिरता थी, किंतु यह भी था, कि संसद की प्रक्रिया जिसे पोम्पी मैग्नेस संभाल रहा था। उसी समय सैनिक कार्यवाही कर यूरोप के बड़े भाग पर विजय का पताका लहराने जुलियस सीजर के नेतृत्व में सेना लड़ रही थी। शक्ति का यही विभाजन जुलियस सीजर और पोम्पी मैग्नेस के मध्य बड़ी दूरी ला देता है। क्योंकि सेना जिस पर जुलियस सीजर अपना पूरा नियंत्रण रखे है, वहीं सीनेट अथवा संसद के तमाम प्रतिनिधियों में अधिक प्रभावशाली और अधिक प्रतिनिधियों का पोम्पी मैग्नेस को समर्थन था। हालांकि सीनेट के तमाम प्रतिनिधि सीधे रुप में जूलियस सीजर का विरोध नहीं करते, क्योंकि वह जुलियस सीजर का सामर्थ्य समझते हैं। वही पोम्पी मैग्नेस भी जब तक कि सीजर रोम से बाहर युद्ध क्षेत्र में था, लंबे समय तक सीनेट के प्रतिनिधियों का अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से जनता का विश्वास सीजर पर बनाए रखने का प्रयास करता है। क्योंकि वह सीजर का गहरा मित्र है। लेकिन फिर भी सीजर और पोम्पी मैग्नेस के मध्य खाई बनती गई। जिन वर्षों में सीजर यूरोप के तमाम इलाकों पर विजय पा रहा था, वह सेना का नेतृत्व कर रहा था। तब रोम में शांति व्यवस्था पोम्पी मैग्नेस ही बनाए रखा था। लेकिन दो अलग-अलग कार्यो ने इन दो समान रूप से लोकप्रिय व्यक्तियों की समृद्धि और शक्तियों में अंतर पैदा कर दिया। और यहीं से रोम में राजनीतिक अस्थिरता का बीज पड़ गया।

दरअसल पोम्पी मैग्नस है भी एक बूढा व्यक्ति। वहीं जुलियस सीजर की उम्र अपेक्षाकृत कम है, बहुत अधिक जवान तो नहीं, किंतु बूढ़ा भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन 50 के करीब ही होगा। रोम की राजनीतिक अस्थिरता, ओक्टेविन का मार्ग प्रशस्त होना, शानदार और रोचक सफर है।  यह राजनीति के वे पृष्ठ हैं, जिनमें लिखी बातों को, हर घटना को पढ़ने के साथ समझते जाना होगा, जैसे एक गाय घास चरने के बाद पाचन के लिए जुगाली करती रहती है।।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏