
1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना से पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती आचार्य केशव चंद्र सेन से मुलाकात करते हैं। आचार्य केशव चंद्र सेन व्यक्ति जिनके ब्रह्म समाज में प्रवेश से ब्रह्म समाज का विस्तार द्रुत गति से होने लगा। इन्हीं के नेतृत्व में ब्रह्म समाज की अनेक स्थानों पर जैसे मुंबई, मद्रास, उत्तर प्रदेश में शाखाएं खुल गई। महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व इन्हीं के हाथों में था। 1857 में जब वे ब्रह्म समाज के सदस्य बने, और उसके बाद 1859 में उन्हें आचार्य पद पर नियुक्त कर दिया गया। इनकी सोच प्रगतिवादी रही। इससे विचारधारा में अंतर आ गया।
कोलकाता मेडिकल कॉलेज में भाषण के बाद जिसका शीर्षक “जीसस क्राइस्ट: यूरोप तथा इंडिया” के बाद जो धारणा बनी कि इनका झुकाव ईसाई धर्म की ओर है।
ऐसा ही पूर्व में जब 1820 में ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने एक पुस्तक “प्रिसेप्स आफ जीसेस” अर्थात “ईशा के नीति वचन” लिखी। इससे लोगों को लगा कि राजा राम मोहन राय ईसाई धर्म अपनाने वाले हैं। किंतु ऐसा नहीं था, वह सभी धर्मों की अच्छी बातों के समर्थक थे।
लेकिन आचार्य केशव चंद्र सेन की विचारों से महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के विचारों का टकराव होने लगा। ब्रह्म समाज पाश्चात्य का समर्थन तो जरूर करता था। किंतु वेदों को महत्व देना प्रमुख था। इस विचारधारा के टकराव में ब्रह्म समाज दो भागों में टूट गया। आचार्य केशव चंद्र सेन 1866 में भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना करते हैं। देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज “आदि ब्रह्म समाज” कहलाया। 1864 में आचार्य केशव चंद्र सेन की ही प्रेरणा पर मद्रास में के०श्री० धरालु नायडू ने वेद समाज की स्थापना की। 1867 में उन्हीं की प्रेरणा पर महाराष्ट्र में आत्माराम पांडुरंग द्वारा प्रार्थना समाज की स्थापना की गई। इस समय तक आचार्य केशव चंद्र सेन ब्रह्म समाज से अलग हो गए थे। 1866 में ही वह आचार्य पद से मुक्त हो गए थे। और वे अब भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना कर चुके थे।
1878 तक आते आचार्य केशव चंद्र सेन से उन्हीं के बनाए भारतवर्षीय ब्रह्म समाज के सदस्यों का मतभेद हो जाता है। क्योंकि आचार्य केशव चंद्र सेन अपनी 13 साल की पुत्री का विवाह कूचबिहार के राजा से कर देते हैं। और इसे ईश्वर की इच्छा बताते हैं। वही ब्रह्म समाज पहले से ही और साथ ही भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज भी बाल विवाह का विरोधी रहा था। और इससे कुछ पूर्व 1872 में ही आचार्य केशव चंद्र सेन के प्रयास से ही “ब्रह्म मैरिज एक्ट” अथवा “सिविल मैरिज एक्ट” आया। जिसमें विवाह के लिए लड़कियों की आयु 14 वर्ष और पुरुषों की आयु 18 वर्ष तय की गई थी।
इस विवाह के संबंध में मतभेद से शिवनाथ शास्त्री आदि के नेतृत्व में साधारण ब्रह्म समाज प्रकाश में आया।
1872 में जब स्वामी दयानंद सरस्वती अपने विचारों का प्रकाश बिखेरने के लिए मंच तलाश रहे थे। तो वह आचार्य केशव चंद्र सेन से मुलाकात करते हैं। इस समय तक आचार्य केशव चंद्र सेन भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना कर समाज सुधार में लगे थे। स्वामी दयानंद सरस्वती और आचार्य केशव चंद्र सेन के विचार मेल नहीं खाते हैं। आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज की विचारधारा के संबंध में हम पूर्व के लेख 【 स्वामी विवेकानंद पर ब्रह्म समाज और गुरु रामकृष्ण का प्रभाव 】 में भी कुछ चर्चा कर चुके हैं। आचार्य केशव चंद्र सेन इस मुलाकात में संस्कृत के प्रकांड ज्ञानी स्वामी दयानंद सरस्वती को हिंदी भाषा की सलाह देते हैं। और इन्हीं की सलाह पर स्वामी दयानंद सरस्वती अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” का हिंदी में प्रकाशन करते हैं।।