उत्तराखंड में कांग्रेस की ताकत एक बार फिर से गणेश गोदियाल के साथ महसूस हो रही है। हालांकि ताकत का एहसास गणेश गोदियाल के नेतृत्व में इससे पूर्व के विधानसभा चुनाव के दौरान भी महसूस की गयी थी, और लोकसभा चुनाव के समय पर इसी प्रकार से कांग्रेस का एक जोरदार पक्ष समर्थक नजर आ रहा था। किंतु यह वोटो में तब्दील नहीं हो सका, इसके पीछे क्या कारण है वह एक लंबी चर्चा है। कम से कम लोकसभा चुनाव में गढ़वाल सीट से जरूर मुकाबला अनुमान किया जा रहा था।
प्रदेश में कई मुद्दों ने और उन मुद्दों पर संबंधित वर्ग के आंदोलन ने राजनीति तेज की है, सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। और इन आंदोलन को विपक्ष ने जन समर्थन हासिल करने की एक दवा के तौर पर उपयोग भी किया है। जो कांग्रेस के हाथों से छटकता रहा। जैसे उपनल कर्मियों को लेकर नए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का यह बयान कि हम सरकार में आते ही आपका नियमितीकरण तुरंत प्रभाव से करेंगे। उधर गैरसैंण राजधानी को लेकर भी कांग्रेस का रुख बिल्कुल साफ नजर आया है, की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी हमने बनाई और पूर्ण राजधानी भी हम ही बनाएंगे। इस तरह से कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की उसे सबसे प्रभावी मुद्दे को अपने पक्ष में करती नजर आई है।
हाल में राज्य भर के पर्वतीय क्षेत्रों में वन्य जीव और मानव संघर्ष की घटनाएं गंभीर होती जा रही हैं। इन घटनाओं ने बड़े मुद्दे को जन्म दिया कांग्रेस का एक जबरदस्त प्रदर्शन नए अध्यक्ष गणेश गोदियाल के नेतृत्व में देहरादून में देखा गया। कांग्रेस आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए इस प्रकार से तैयार दिख रही है, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरने का प्रयास किया है, और कोशिश यह भी है कि राज्य में कांग्रेस की छवि राष्ट्रीय छवि से जोड़कर ना देखी जाए। गणेश गोदियाल को नेतृत्व देना इस दिशा में एक प्रयास है, देखना होगा क्या इन सब प्रयासों से कांग्रेस अपने पारंपरिक वोटर के अलावा नए वोटरों को अपने पक्ष में तैयार कर पाती है या नहीं। या यह भी मात्र सड़कों की भीड़ बनकर रह जाएगी।।

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