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जब पहली बार- EIC Vs भारत की केंद्रीय शक्ति

EIC Vs भारत की केंद्रीय शक्ति जॉब चार्नाक वह व्यक्ति था, जो औरंगजेब से सुलह करता है। वह अंग्रेजों का प्रतिनिधि था। 1680 में औरंगजेब ने जजिया कर लगाया था। वह कर जिसमें गैर मुस्लिमों पर 1.5% कर लगाया गया था। इस कर कि प्रथा में भारत में हिंदू समुदाय के अलावा यूरोपियों के प्रवेश से भारत में एक अन्य समुदाय अथवा ईसाई समुदाय को भी परेशान किया। इसी समय में बंगाल में जहां अंग्रेजों ने भी 1680 तक हुगली, कासिम बाजार आदि क्षेत्रों में अपनी कंपनियां स्थापित कर ली थी। वह अपने आप के कार्यों को सुरक्षित होने के लिए के लिए किले बना देते थे, और यही उनका बंगाल में भी अगला प्रयास रहा होगा। जैसे उन्होंने मद्रास में किया था, या जैसा अन्य यूरोपियों ने जैसे डचों ने पुलिकट में गोलड्रिया किला बनाया हुआ था। बंगाल में कंपनी के द्वारा कई स्थानों पर मुगल सैनिकों से झड़प की गई, उनके ठिकानों पर लूटपाट की गई, जो अब तक केंद्रीय मुगल बादशाह से सीधे किसी यूरोपीय व्यापारिक संस्था का भारत में भिड़ना था। जिसने अंग्रेजो की ओर से इस झड़प का मुख्य प्रतिनिधित्व किया, उसका नाम जॉन चाइल्ड आता है।  औरंगजेब ने 1686 म...

भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1

भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1 भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1 बताता है- “India that is Bharat shall be a union of state.” अर्थात “इंडिया जो कि भारत राज्यों का संघ होगा” भारतीय संविधान का पहला अनुच्छेद मूल रूप से दो बातें स्पष्ट करता है। एक राष्ट्र का नाम और दूसरा राष्ट्र का स्वरूप। राष्ट्र के नाम के रूप में इंडिया और भारत कहा गया है। यह ध्यान रखने योग्य विषय है, कि इंडिया का अर्थ भारत नहीं है। अर्थात इंडिया अंग्रेजी शब्द और भारत उसका हिंदी अनुवाद हो ऐसा नहीं है, बल्कि इंडिया और भारत दो अलग-अलग नाम है। इंडिया का हिंदी और अंग्रेजी दोनों इंडिया ही है। और भारत का हिंदी और अंग्रेजी दोनों भारत ही है। अर्थात इस अनुच्छेद के माध्यम से हम संविधान में राष्ट्र के लोगों द्वारा अपनाए गए दो नाम इंडिया और भारत जानते हैं। साथ ही यह अनुच्छेद राष्ट्र के स्वरूप को भी दर्शाता है, कि भारत राज्यों का संघ होगा। अर्थात भारत राज्यों का एक संघ है, जहां संघ द्वारा राज्यों को शक्तियां दी गई है। इसे आप विशिष्टता से पढ़ें और ध्यान में रखें कि भारत में संघ द्वारा राज्यों को शक्तियां दी गई। भारत विनाशी राज्यों का अवि...

Union of state & Federation of state में अंतर?

भारत के संविधान का मूल लेखन अनुच्छेद -1 में “राज्यों के संघ” को अंग्रेजी में “Union of state” लिखता है। “Federation of state” नहीं। जबकि अमेरिका दुनिया का सबसे पहला लिखित संविधान अमेरिका को “Federation of state” बताता है। “फेडरेशन” और “यूनियन” इन दोनों में जिन का हिंदी अनुवाद “संघ” ही है में अंतर भारत और अमेरिका के संघ में अंतर से स्पष्ट किया जा सकता है। अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद 13 राज्यों ने मिलकर एक संघ का निर्माण किया। यहां राज्यों ने संघ का निर्माण किया है। अर्थात 13 राज्य आपस में संगठित हुए और अपनी कुछ शक्तियां सौंपकर एक संघ का निर्माण किया जो अमेरिका हुआ। आप अमेरिका के राज्यों की स्वायत्ता से अनुमान कर सकते हैं, क्योंकि वहां पर दोहरी नागरिकता होती है, अर्थात हर राज्य की अलग नागरिकता होती है, और देश की नागरिकता तो होती ही है। साथ ही वहां हर राज्य अपने अपने झंडे रखता है, इत्यादि। अमेरिका संघ को शक्ति नहीं है, कि वह राज्यों का विनाश या पुनर्गठन कर सके। इसलिए अमेरिका को “अविनाशी राज्यो...

ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापार नहीं किया?

ईस्ट इंडिया कंपनी: VICTORIA MEMORIAL 1600 में महारानी एलिजाबेथ की आज्ञा पत्र के साथ अंग्रेजों का भारत आगमन होता है। इनकी आरंभ में जो नीती थी वह अब तक के यूरोपीय व्यापारियों की अपेक्षा कुछ अलग थी। अब तक पुर्तगाली और डचों का भारत में प्रवेश हो चुका था। पुर्तगालियों ने 1498 में ही भारत में प्रवेश कर लिया था और अपनी एक व्यापारी कंपनी “एस्तादो द इंडिया” के नाम से भारत से व्यापार के लिए स्थापित कर ली थी। वही डचों का भी 1595-96 में भारत में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में विशेष इंडोनेशिया में प्रवेश हुआ। डचों का हस्तक्षेप इंडोनेशिया के द्वीपों में आरंभ हो गया था। उन्होंने युद्ध नीति अपनाई और डचों ने पुर्तगालियों से इंडोनेशिया में 1602 में वाण्टम जीत लिया। उसके बाद 1605 में अम्बयाना, 1613 में जकार्ता, 1641 में मलक्का पर अधिकार किया। भारत में उन्होंने 1605 में मसूलीपट्टनम में अपनी कोठी बनाई जो आंध्रप्रदेश के तट पर था। डचों का भारत आगमन तो 1695-96 में ही हो गया था। लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी “Veerengde Oost Indische Compagnie” (VOC) या डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1602 में की थी। यह भी ...

भारत में समाजवाद | कांग्रेस vs भाजपा

भारत में समाजवाद समाजवाद किसी भी राष्ट्र का अपने नागरिकों के लिए अंतिम लक्ष्य है। जिसका तात्पर्य नागरिकों में समानता लाने से है। समाजवाद को आप इस आलेख [ समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद   ]  में समझ सकते हैं। मोटे तौर पर समाजवाद वंचितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का सिद्धांत है। भारत में समाजवाद की दिशा में कई कार्य आजादी के बाद से ही आरंभ किए गए जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जमींदार प्रथा के अंत के लिए कानून, भूमि सुधार कानून जिसमें जो जमीन के बड़े भाग जमीदारों ने अपने कब्जे में किए थे। वह बड़ी जमीन के भाग उनकी संपत्ति हो गई थी, जिसके चलते जो अन्य लोग थे, वे जमीदारों के यहां केवल मजदूर के रूप में कार्य करते थे और इससे बेगारी, मजदूरी और भीषण गरीबी, असमानता और अन्याय की संभावना बनी रहती थी।  आजादी के बाद सबसे पहले यही कार्य किया गया। उन जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई, और जमीदारी प्रथा का भी अंत कर दिया गया। यह समाजवादी विचार के अंतर्गत किया गया कार्य है। जहां संसाधन को समाज के हर व्यक्ति में बराबर बांट दिया गया और जमीदार वर्ग...

साम्यवाद का विचार | मार्क्सवाद

समाजवाद की चरमता साम्यवाद है। या ऐसा कह सकते हैं, कि समाजवाद के विचार को जब अधिक विकसित किया गया तो साम्यवाद विचार का जन्म हुआ, और जो कि मार्क्सवाद है। जब समाजवादी विचार लोकप्रिय होने लगा तो इस विचार को चरमता तक पहुंचाने के लिए साम्यवादी विचार का जन्म हुआ।  यदि ऐसा कहा जाए, कि जहां समाजवाद में समाज में संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण की बात की गई है, और व्यक्तिवाद का विरोध किया गया है। तो साम्यवाद कुछ अन्य मूल्यों को समाज के लोगों के लिए होने की पैरवी करता है। हालांकि साम्यवाद भी समाजवाद की भांति पूर्ण तो परिभाषित नहीं किया जा सकता। जैसे समाजवाद को पूंजीवाद के स्वरूप और परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार का हो सकता है और अलग-अलग ढंग से परिभाषित और प्रयोग किया गया है।  मार्क्स तथा एंगेल्स  द्वारा साम्यवाद विचार को जन्म दिया गया। “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र” जिसे वैज्ञानिक कम्यूनिज्म का मूल कहा जाता है। इसी में मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचार की विवेचना की गई है। इसे कॉल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था। जहां समाजवाद व्यक्तिवाद का विरोध ...

समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद

समाजवाद समाज में समानता के लक्ष्य का सिद्धांत है। इसे पूर्ण रूप से परिभाषित तो नहीं लेकिन समाजवाद मजदूर वर्ग को अपना आधार मानकर समाज में बराबरी के लिए एक संघर्ष का आंदोलन रहा है। क्योंकि समाजवाद मजदूर वर्ग को वंचित वर्ग मानता है। समाजवाद का अंतिम लक्ष्य समाज को वर्ग रहित करना है। इसलिए मार्क्स ने कहा “दुनिया के मजदूर एक हो जाओ” समाजवाद की राजनीतिक विचारधारा 19वीं सदी में यूरोप के देशों में विशेषकर इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में लोकप्रिय होने लगी। समाजवाद दरअसल वहां के समाज और उन देशों में औद्योगिकरण की तेज विकास गति का परिणाम था। पूंजीपतियों के जन्म ने समाज में अन्य वर्गों को बहुत नीचे गिरा दिया और उनमें समाजवाद का विचार लोकप्रिय हो गया। समाज जो पूर्व से व्यक्तिवाद पर चल रहा था। अर्थात हर व्यक्ति अपने उत्थान के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्राप्त कर सकता है, और आगे बढ़ता है। किंतु औद्योगिकीकरण के बाद यह बड़े अंतर का कारण हो गया। समाज में एक वर्ग पूंजीपतियों का बहुत ऊंचा तैयार हो गया तथा एक अन्य वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाया या वंचित वर्ग।  समाजवादियों ने मजदूर वर्ग को वं...