मंगलवार, 4 जुलाई 2023

पुर्तगालियों का भारत आगमन और गतिविधियां

बार्थोलोम्यो डियाज 1487 में केप ऑफ गुड होप अफ्रीका के दक्षिणी छोर तक पहुंचता है। 1488 में यह वापस लिस्बन पुर्तगाल लौट जाता है। ठीक लगभग 10 वर्ष बाद पुर्तगाल का एक और जहाजी बेड़ा वास्कोडिगामा के नेतृत्व में भारत की खोज को 1497 में पुर्तगाल से प्रस्थान करता है। यह केप ऑफ गुड होप तक पहुंचता है। अब्दुल मनीक नाम के व्यापारी की सहायता पाकर यह भारत की दिशा में हिंद महासागर से बढने लगा, और भारत के मालाबार तट पर कालीकट नामक स्थान पर आ पहुंचा। यहां का शासक जमोरिन था, जिसे शामुरी भी कहा जाता है। वास्कोडिगामा अच्छे लाभ के साथ पुर्तगाल लौटा।


1500 में एक और पुर्तगाली जहाज बेड़ा पेट्रो अलवारेज के नेतृत्व में भारत आया यह तेरह जहाजों का बेड़ा था। अब पुर्तगालियों की नीति अरब का वर्चस्व हिंद महासागर के क्षेत्र में तोड़ने की थी। और भारत के साथ स्वतंत्र व्यापार स्थापना की, 1503 में वास्कोडिगामा फिर भारत आया। कोचीन में पुर्तगालियों की पहली व्यापारिक कोठी स्थापित की गई। 1505 से 1509 तक के लिए भारत ने पुर्तगाल का पहला गवर्नर फ्रांसिस्को डी अल्मीडा आता है। अल्मीडा की नीति “ब्लू वाटर पॉलिसी” नाम से जानी जाती है। इस नीति के अंतर्गत इनका पहला उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करना था।
1509 में पुर्तगाल का नया गवर्नर जिसे भारत में पुर्तगाली शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। अल्फांसो डी अल्बुकर्क भारत आता है। उसने “विवाह नीति” का अनुसरण किया, और अपने लोगों की संख्या में वृद्धि का प्रयास किया, अपने लोगों की भारत में मजबूती का प्रयास किया।


1510 में पुर्तगालियों ने बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से गोवा छीन लिया। यह गोवा 1961 में पुर्तगालियों से आजाद हो सका। 1511 में पुर्तगालियों ने मलक्का पर अधिकार कर लिया और 1515 में हरमूज पर अपना अधिकार कर लिया जो फारस की खाड़ी में एक अहम स्थान जहां से वे व्यापार नियंत्रित कर सकते थे। वास्कोडिगामा 1524 में भारत आया था 1527 में उसकी कोचीग में मृत्यु हो गई।
1529 में एक नया पुर्तगाली गवर्नर नीनो डी कुन्हा भारत आया। 1530 में इसने अपना मुख्यालय कोचीन से विस्थापित कर गोवा ले आया। 1535 में दीव पर और 1559 में दमन पर अधिकार किया गया। 1542 में प्रसिद्ध ईसाई धर्मगुरु सेंट जेवियर भारत आए तब भारत में पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा था। पुर्तगालियों ने हिंद महासागर में कॉटेज व्यवस्था को प्रचलित किया यह एक परमिट था। जिसे पुर्तगालियों द्वारा दिया जाता था, हिंद महासागर में जिसके पास यह काॅर्टेज होता, पुर्तगाली उसे सुरक्षा देते। जिनके पास यह नहीं होता, उनके जहाज लूट लिए जाते। हिंद महासागर में पुर्तगाली नौसेना का नियंत्रण रहता।
पुर्तगालियों ने भारत में तटीय क्षेत्रों में अपनी कोठियां स्थापित की कोचीन, कन्नौर, गोवा, दमन, दीव, सालसेट। पूर्वी तट पर हुगली, मद्रास और भारत से अलग अन्य क्षेत्र जैसे मलक्का, हरमुज में पुर्तगाली नियंत्रण या कोठियां स्थापित की गई।
पुर्तगालियों का भारत में योगदान जैसे 1556 में गोवा में पहला प्रिंटिंग प्रेस उन्हीं के द्वारा स्थापित किया गया। तंबाकू, गन्ना, आलू आदि पुर्तगाली भारत लाए। गोथीक शैली के भवन निर्माण भारत में पुर्तगालियों द्वारा प्रसारित किए गए। गोवा के चर्च इसके उदाहरण हैं।
इनके पतन के कुछ कारण ऐसे हुए कि भारत में इनका उद्देश्य धर्म प्रसार भी था। ईसाई धर्म को सर्वोच्च मानते थे, इससे भारतीय सामाजिक व्यवस्था में गहराई से ढल ना सके। भारत में डचों फ्रांसीसीयों और अन्य देशों के आगमन ने पुर्तगाल को कमजोर किया तथा स्पेन का पुर्तगाल पर वर्चस्व।
 

रविवार, 7 मई 2023

रिश्ता | Amitabh bachchan an Akashy kumar

        रिश्ता

चार लोगों के चक्रव्यूह में फंस कर हजारों लोग काम करते हैं। 

जब विजय कपूर शहर के नामी बिजनेसमैन अपने पुत्र अजय को समझाता है। वह चाहता है, कि उसका पुत्र एक बड़ा बिजनेसमैन केवल अपने पिता के बदौलत ना बन जाए बल्कि जमीन से लगातार अपने प्रयासों से एक सफल व्यक्ति बनकर पिता की कुर्सी हासिल करे। अजय अपने ही पिता की कंपनी में मजदूरों के काम से आरंभ करता है। मजदूरों का एक यूनियन लीडर जो काम तो करता नहीं अपने दो-तीन करीबियों के साथ बैठकर जुआ खेलता अन्य मजदूरों को अपनी सेवा पर रखता। यह बात अजय को जमी नहीं। वह उससे भिड़ गया, यह कहते कि वह विजय कपूर का बेटा है, और तुम उसकी मिल में काम की बजाय जुआ खेलते हो।

यूनियन लीडर उसे अपने अंडर एक मजदूर कहकर पुकारता है और उसकी बात नहीं सुनता।  अजय उस पर हाथ उठाता है, यूनियन लीडर मजदूरों की हड़ताल करवा देता है। विजय कपूर को यह बात मालूम हुई तो वह अजय को यूनियन लीडर से सबके सामने माफी मांगने को कहता है। अजय बेहद संवेदनशील, स्वाभिमानी और सैद्धांतिक व्यक्ति झुकना कभी नहीं चाहेगा क्योंकि वह सही था।

अपने पिता की आज्ञा पर यूनियन लीडर से माफी मांग लेता है उसकी आत्मा में ग्लानी का एक भाव यूं भर जाता है, कि रह-रहकर उमड़ता है। उसके पिता ने इस मामले का कारण अजय के अनुभव की कमी बताया। उसे बताया कि मिल मजदूरों, मैनेजमेंट और मालिक के आपसी तालमेल से चल रही है। रही बात मजदूरों की यदि तुम्हें मालूम है कैसे भेड़ों के बड़े समूह को नियंत्रण में रखने के लिए चार कुत्तों को रखा जाता है।

“यहां चार लोगों के चक्रव्यू में हजारों मजदूर काम करते हैं”

फिल्म “रिश्ता” से प्रेरित

बुधवार, 3 मई 2023

यूरोपियों का भारत आगमन | कारण और प्रयास

यूरोपियों का भारत आगमन

पूर्व से ही भारत के साथ स्थल और जलमार्ग दोनों से व्यापार हो रहा था। भारत से यूरोप जाने के लिए आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्की से होकर पहुंचा जाता और जलमार्ग से अरब सागर से फारस की खाड़ी या लाल सागर से प्रवेश मिलता हुआ आगे भूमध्य सागर के साथ लगे देशों जैसे इटली और ग्रीस आदि में पहुंचा जाता।

 यूरोप का रोमन साम्राज्य दो भागों में विभाजित एक पश्चिम का पश्चिम रोमन साम्राज्य जिसकी राजधानी रोम और पूरब का पूर्वी रोमन साम्राज्य किसकी राजधानी कॉन्सटेन्टिनोपल थी। इस पूर्वी रोमन साम्राज्य को बैजंतिया साम्राज्य भी कहा जाता था। अरबी लोगों ने बैजन्तिया साम्राज्य की राजधानी कॉन्सटेन्टिनोपल कहा।

तुर्की में उस्मानिया साम्राज्य का उदय हुआ, और 1453 में बैजन्तिया साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर अब कुस्तुनतुनिया उस्मानिया साम्राज्य में मिल गया। जोकि बैजन्तिया साम्राज्य की राजधानी थी।

कुस्तुनतुनिया का आधुनिक नाम इस्तांबुल है। यह टर्की का हिस्सा है, यह यूरोप महाद्वीप में है, जबकि टर्की शेष पूरा एशिया महाद्वीप में स्थित है। यह कुस्तुनतुनिया या आधुनिक इस्तांबुल यूरोप जाने के मार्ग में अहम था। क्योंकि यहां उस्मानिया साम्राज्य का विस्तार हो गया, उस्मानिया के अधिकार में व्यापार पर बड़े करारोपण हुए इससे वस्तुएं महंगी भी हुई। उस्मानिया साम्राज्य के इस अधिपत्य ने भी यूरोपियों को नया मार्ग ढूंढने के लिए प्रेरित किया। 

पूर्व से ही अरब और ईरान के लोग भारत से व्यापार कर यूरोप के देशों तक पहुंचाते थे। इससे उन्हें भी भारत में सीधे व्यापार की लालसा होती।

यूरोप ठंडा क्षेत्र होने के कारण वे मांस का भी काफी प्रयोग करते हैं। उसको सुरक्षित रखने के लिए भी उन्हें मसालों की आवश्यकता होती जो उन्हें भारत से प्राप्त होते थे। 

भारत की खोज के लिए यूरोपियों के लिए एक अहम कारण यूरोप में पुनर्जागरण भी था। यूरोप में प्राचीन साहित्य जो मानव पर केंद्रित था, यदि वह कर्म करेगा तो प्राप्त कर सकेगा। तर्क इत्यादि का समावेश था। मध्यकाल में ईश्वर केंद्रित समाज का निर्माण हो गया। सब कुछ ईश्वर की कृपा पर आश्रित है, मान लिया गया। जब कुस्तुनतुनिया को उस्मानिया साम्राज्य में विलीन कर दिया गया, तो बैजन्तिया साम्राज्य के विद्धान अपने प्राचीन साहित्य को भी अपने साथ ले गए। प्रिंटिंग प्रेस की सहायता से उसका प्रसार किया गया। तर्कशक्ति और वैज्ञानिक दृष्टि का विकास हुआ वे सोचने लगे, कि ईश्वर की शक्ति सर्वोच्च है तो बैजन्तिया या जैसे साम्राज्य का अंत कैसे हुआ। यूरोप में पुनर्जागरण हुआ, नवीन ज्ञान की लौ जली। खोज और अविष्कारों का दौरा आया। उनमें जिज्ञासा बढ़ने लगी, और यही जिज्ञासा उन्हें विशाल समुद्र में ले आई।

उन अभियानों को जान लेते हैं, जो यूरोप के देशों ने भारत की खोज के लिए भेजे और उनके प्रयास-

स्पेन ने कोलंबस के नेतृत्व में एक अभियान भेजा जो पश्चिम दिशा में चले जाने से अमेरिका की ओर बढ़ गया और इसलिए हम पढ़ते हैं, 1492 में कोलंबस ने अमेरिका की खोज की।

पुर्तगाल का प्रिंस हेनरी को द नेविगेटर कहा गया। क्योंकि समुद्री खोजों के प्रति उसकी जिज्ञासा और प्रयासों से कुछ हासिल भी हुआ। प्रिंस हेनरी के संरक्षण में अफ्रीका महाद्वीप के पश्चिम तट की ओर कई अभियान भेजे जाते रहे, और अफ्रीका के पश्चिम तट का एक मानचित्र भी तैयार किया गया।

1487 में एक बड़ी सफलता पुर्तगालियों को मिली यह बार्थोलोम्यो डियाज के नेतृत्व में एक जहाजी अभियान का अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणतम हिस्से तक पहुंचना था। इस स्थान को केप ऑफ गुड होप कहा गया, आशा अंतरीप।

हालांकि बार्थोलोम्यो डियाज ने इसे केप ऑफ स्टोर्म कहा। वह 1488 में लिस्बन पुर्तगाल वापस लौट गया। लगभग 10 वर्षों के बाद 1497 में पुर्तगाली एक अन्य जहाजी बेड़ा वास्कोडिगामा के नेतृत्व में भारत की खोज के लिए निकलता है। केप ऑफ गुड होप से आगे हिंद महासागर में बढ़ने के लिए उसे अब्दुल मनीक नाम का एक व्यापारी जो पूर्व से अरब के व्यापारियों के साथ रहा था, पथ प्रदर्शन के रूप में मिलता है। एक दिशा में चल वे हिंद महासागर से भारत के दक्षिण तटीय क्षेत्र में मालाबार तट तक पहुंचता है। जहां वह पहुंचता है, वह कालीकट था। वर्तमान में से कोझीकोड कहा जाता है। वास्कोडिगामा 1498 में यहां पहुंचा तब कालीकट का शासक जमोरिन था। इसे शामुरी भी कहा गया है।

वास्कोडिगामा अपने सब खर्चों के बाद लगभग 60 गुना मुनाफे के साथ पुर्तगाल पहुंचता है। यह उनकी बड़ी सफलता थी, और अन्य के लिए आकर्षण।

1500 में पेड्रो अल्वारेज एक अभियान का नेतृत्व कर भारत आया इस पुर्तगाली अभियान और आने वाले अभियानों में अब पुर्तगाल की नीति हिंद महासागर में अरब का वर्चस्व तोड़ने की थी। उन्होंनें अरबों पर हमले किए, उनके जहाजों पर हमले किए। 1502 में वास्कोडिगामा फिर भारत आया था पुर्तगालियों ने ब्रिटिश के आने तक लगभग 150 सालों तक अपनी शक्ति भारत में स्थापित रखी।

सोमवार, 6 मार्च 2023

कांग्रेस विपक्ष को एक कर सकेगी | चुनाव 2024

कांग्रेस :चुनाव 2024

एक तरफ कांग्रेस अपनी साख बचाने को देश भर में भारत जोड़ो जात्रा से मिशन राहुल को साधने पर लगी है। साथ ही भारत जोड़ो यात्रा आम जनमानस से संवाद स्थापित करने में भी अहम है। और यह राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को जरूर लाभ पहुंचाएगी। किंतु फिर भी 24 का चुनाव ऐसा तो नहीं संभव की कॉन्ग्रेस इकलौती चलकर विजय हासिल कर ले। उसे भाजपा के विपक्षी दलों को एकत्रित करना होगा। लेकिन समस्या यह है, कि विपक्ष क्या वे सभी कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे। इसके संबंध में कई बिखराव युक्त टिप्पणियां आना आरंभ हो गया है। इसके चलते ऐसे समीकरण बनते नजर नहीं आ रहे हैं।

  देखिए यह तो साफ है, कि विपक्षी दलों का एकजुट होना आवश्यक है। अन्यथा भाजपा को अलग-अलग चलकर पराजय तक ले जाएं, यह तो उतना सरल नहीं। कांग्रेस पिछले कई चुनावों के परिणामों में अपने नेतृत्व की अहम स्थिति को भाजपा के विपक्ष के कई बड़े दलों की दृष्टि में खोई हुई प्रतीत होती है। हां भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने कुछ छलांग जरूर लगाई है। किंतु सूचना यह भी आती रही की इस यात्रा में ही कई कांग्रेस के समर्थक दलों ने सीधी भूमिका के स्थान पर शुभकामना भेजना ही ठीक समझा।

ऐसे में सवाल यह है, कि क्या वे राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते अथवा वे कांग्रेस को ही विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व नहीं देना चाहते। यदि विपक्षी दलों का यह मानना है, तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा संकट है। किंतु कांग्रेस ऐसा क्यों मानेगी, वह देश की सबसे पुरानी पार्टी है, और आज भी भाजपा के सामने विपक्ष का अहम चेहरा कांग्रेस ही दे रही है।

 इन सब सवालों में प्रमाण सामने हैं, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने यह कह दिया, कि कांग्रेस को इस बार लोकसभा चुनाव में 200 ही के लगभग सीटों पर लड़ना चाहिए, बाकी उसे क्षेत्रीय दलों पर और अन्य पार्टियों पर विश्वास करना चाहिए। यह सलाह शायद भाजपा को हराने के लिए परिस्थिति अनुरूप ठीक लग रहा हो। लेकिन यह कांग्रेस के लिए अपनी बड़ी विरासत छोड़ना है। कांग्रेस का सीमित होना है। उन सबमें जो एक सवाल हमेशा वही बना रहता है, विपक्ष का नेता कौन?

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी के नाते विपक्ष के गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली है। किंतु यह किन शर्तों पर हो सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यदि वह हो जाता है, ऐसे में विपक्षी गठबंधन नेतृत्व के सर्वसम्मत चेहरे के बिना यह पूर्व की भांति ही गठबंधन होगा। ऐसे में जहां सामने मोदी जी हैं जिनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता ही विपक्षी दलों के लिए भारी पड़ जायेगी।।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

कांग्रेस के कदम | Loksabha चुनाव 2024

कांग्रेस के कदम

राहुल गांधी से ही कांग्रेस पार्टी के हर स्तर पर चुनाव कर आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की बात करते रहें हैं। यह परिवारवाद के उस बड़े सवाल का जिसे लगातार भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया जाता रहा है, का परिणाम है। नागालैंड में प्रचार रैली में मोदी जी ने परिवारवाद के हवाले से पुनः कांग्रेस को घेरा। ऐसे में कांग्रेस इन सवालों के निदान में पूरा जोर लगा रही है।

कांग्रेस पार्टी के अहम निर्णय लेने वाली कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या कुछ बढ़ाई गई। अब 30 सदस्य कार्यसमिति में होंगे। इसमें महिलाओं, एससी, एसटी, युवाओं आदि को आरक्षण भी दिया गया है। किंतु जब यह तय किया गया कि कांग्रेस पार्टी कि निर्णय लेने वाली अहम कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मलिकार्जुन खरगे जी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, को यह अधिकार होगा कि वह सदस्यों को नामित करें, ऐसे में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के सवालों के निवारण अभियान से जो वह आंतरिक हर स्तर पर चुनाव के माध्यम से दर्शाना चाहती थी, से पीछे हट गई। ऐसे में राहुल गांधी और गांधी परिवार का कोई सदस्य संचालन समिति की बैठक में शामिल नहीं हुआ, जहां कार्यसमिति के सदस्यों को नामित किया जाना था। मतलब साफ है, कि कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ताओं में यह दर्शना चाहती है, कि गांधी परिवार के हस्तक्षेप से इतर अब मलिकार्जुन खरगे जी ही कांग्रेस के सभी फैसले लेंगे।
कार्यसमिति के सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नहीं चुने जाने का फैसला जितना विपरीत है, उतना ही यह न करने के पीछे दिया गया कारण एक तरह से सही भी है। कारण दिया गया, कि इस समय चुनाव से कांग्रेस में आंतरिक विभाजन हो जाएगा। कांग्रेस की अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए यह फैसला ठीक हो सकता है। किंतु आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापना की कांग्रेस की पहल इस के कारण से पीछे हो गई है।
लोकतंत्र में चुनाव एक अहम प्रक्रिया है। इस से निर्मित व्यवस्था सर्वसम्मति की व्यवस्था मानी गई है।

दरअसल कांग्रेस पूर्व से ही अपने दिल के शासनकाल में उपजे घोटालों, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, कुशासन जैसे आरोपों के घेरे में है। उसे इससे पार पाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें भारत जोड़ो यात्रा बड़ा कदम है। जिसका उद्देश्य आम जनमानस तक पहुंच बनाना था।
संवाद ही लोकतंत्र में पार्टियों का मूल हथियार है। जिसका संवाद आम जनमानस से जितना बेहतर होगा वह पार्टी उतनी ऊंचाई हासिल कर लेगी। कांग्रेस ने यात्रा से यही करने का प्रयास किया है। इससे जरूर लाभ होगा। किंतु चुनाव में आगामी वर्ष कांग्रेस को कितना लाभ इससे मिलेगा यह देखने का विषय है। क्योंकि तर्क यह भी है, की यात्रा की भीड़ उत्साहित करने वाली हो सकती है, किंतु यह चुनावी रैलियों की भीड़ के जैसे भी हो सकती है, जिन्हें पार्टी के वोटर होना पक्का नहीं कहा जा सकता।।

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण | विशेष लेख

             रूस-यूक्रेन युद्ध

एक वर्ष हो चुका है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है। कोरोना से उभरने के बाद कुछ गति जो विकास कार्यों की ओर अपेक्षित थी रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस गाड़ी का टायर पंचर कर दिया।
बात साफ है, वैश्वीकरण के युग में आप दुनिया के किसी राष्ट्र में हो रही हलचल से बिना प्रभावित हुए बचकर नहीं निकल सकते। हमारे देश में जो मांगे पैदा होती हैं, उनकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात होता है, और विदेशों की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए भारत उन्हें वस्तुएं निर्यात करता है। अतः हम संपूर्ण विश्व से परस्पर जुड़े हैं।
इस वर्ष भारत को जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने इसीलिए ही कहा, कि कोई तीसरी दुनिया नहीं है हम सब एक नाव पर सवार है।
यह कहने का तात्पर्य ही था कि हम सब की संपूर्ण दुनिया में तमाम राष्ट्रों की समस्याएं एक समान ही हैं। इसका प्रमाण दिया है, कोरोना महामारी ने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के समय दुनिया का हर राष्ट्र आज महंगाई, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट आदि समस्याओं का सामना करने को मजबूर है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष होने के साथ अब तक शांति के कोई प्रयास साकार होते नहीं दिखते।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत, चीन, पाकिस्तान के साथ लगभग 30 से अधिक देशों ने वोट नहीं दिए, और अपनी स्थिति को बरकरार रखा। इसका यही कारण रहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जो प्रस्ताव रखा गया, उसमें रूस के पक्ष में कोई बात नहीं थी, अर्थात रूस जिन कारणों से युद्ध में है, उन विषयों को प्रस्ताव में कोई स्थान नहीं दिया गया। ऐसे में यह प्रस्ताव रूस की सैनिक अभियान को निरर्थक साबित करता है। क्योंकि प्रस्ताव में रूस जिन कारणों से युद्ध में है, अथवा रूस की महत्वकांक्षी का स्थान नहीं है, इस कारण से इस प्रस्ताव को रूस और उसके समर्थक राष्ट्र स्वीकृति क्यों देंगे। वहीं भारत, चीन, पाकिस्तान आदि राष्ट्र इस पर वोटिंग ना करना ही ठीक समझते रहेंगें। इस प्रकार यह प्रस्ताव केवल एक प्रयास ही रह जाएगा।
भारत का पक्ष शांति स्थापित हो इसी और है। इसका प्रमाण है, जब मोदी जी ने रूसी राष्ट्रपति से कहा था, कि यह युद्ध का समय नहीं है। किंतु साथ ही भारत का अपने पारंपरिक मित्र से दोस्ती बनाए रखने का भी प्रश्न है। किंतु भारत की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निष्पक्षता और स्पष्टवादिता ने यूक्रेन को निराश नहीं किया है। भारत ने इसीलिए वोटिंग में प्रतिभाग नहीं किया। इससे यह तो साफ होता है, कि भारत रूस के सैनिक अभियान कि साथ नहीं है। किंतु वहीं भारत ने यूक्रेन के पक्ष में भी मत नहीं दिया है।
चीनी भी रूस के सैनिक अभियान पर कुछ नहीं कहा है। हां अमेरिका और यूरोपियन राष्ट्रों द्वारा यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराए जाने की निंदा की और इसी को यूक्रेन में युद्ध जारी रहने का कारण बताया।

अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को 2 अरब डॉलर के हथियार उपलब्ध करवाने की घोषणा की है। इस प्रकार के निरंतर समर्थन के चलते यूक्रेन युद्ध के मोर्चे से पीछे नहीं हटने वाला है, और सामने रूस अपने दृढ़ हठ पर अड़ा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष हो जाने पर दुनिया के अनेक देशों ने रूस के सैनिक अभियान के विरोध में प्रदर्शन किए। जर्मनी में एक खूनी रंग का केक बनाकर उस पर मानव खोपड़ी रखकर प्रदर्शन किया गया। रूसी दूतावास के सामने एक जर्जर टैंक को रखा गया, और रूस की दुनिया में कमजोर स्थिति को दर्शाया गया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी यूक्रेन में हुए हमलों से गई जानों के लिए 2 मिनट का मौन धारण किया। ब्रिटेन के सम्राट जेम्स तृतीय ने भी अपनी संवेदना प्रकट की। अन्य कई और स्थानों पर भी प्रदर्शन की खबरें रही।।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

राजपरिवारों की कन्याओं के विवाह | विशेष लेख


प्राचीन समय से ही राज परिवारों ने और शासकों ने अपनी कन्याओं के विवाह से अपने साम्राज्य को स्थापित करने की नीति का अनुसरण किया। कन्या को श्रेष्ठ पक्ष को सौंपकर विवाह संबंध स्थापना से उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हर्यक वंश का शासक बिम्बिसार ने विवाह नीति का अनुसरण किया। उसकी तीन रानियां थी।
पहली महाकौशल देवी जो कौशल प्रदेश की राजकुमारी थी, और प्रसनजीत जो अति प्रसिद्ध राजा हुआ, कि बहन थी। से विवाह किया और उसे दहेज में काशी प्राप्त हुआ।
उसकी दूसरी रानी लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी। इन्हीं से बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु का जन्म हुआ। लिच्छवी बेहद मजबूत गणराज्य हुआ करता था। और इससे बिंबिसार को अवश्य बल और राजनीतिक वर्चस्व हासिल हुआ होगा।
उसकी तीसरी रानी मद्र की राजकुमारी क्षेमा थी।

आज से 2300 साल पहले जब चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्युकस को परास्त किया, तो उसने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया। और भी संधि के अनुसार कार्य किए गए। किंतु यह भी राजनीतिक क्रियाकलाप के फल स्वरुप ही हो सका। अतः यह विवाह भी राजनीतिक रूप से प्रेरित था।

भारत ही नहीं विदेशों में भी यह चलन रहा। जुलियस सीजर की कथा में और अन्य कई चलचित्रों में भी दिखाया जाता है, कि राज परिवार किस प्रकार अपनी पुत्री धन का प्रयोग अपनी सत्ता को कायम रखने या और ऊंचा उठाने में करते रहे थे। जुलियस सीजर को ही दिखाया गया है, कि वह कैसे अपनी पुत्री का विवाह अपनी ही उम्र के अपने मित्र से कर देता है। बदले में वह अपने मित्र से सेना की टुकड़ी हासिल कर लेता है, फिर अपनी विजय यात्रा के लिए निकल पड़ता है, जिससे वह रोम में अथाह प्रसिद्धि हासिल करता है, और रोम के लोगों के लिए अत्यधिक धन लूट कर लाता है। यह सब इसलिए कि वह अपनी पुत्री का अपने मित्र से विवाह कर देता है। और बदले में सैनिक टुकड़ी पाता है।

गुप्त काल में चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छिवियों की राजकुमारी से विवाह कर दिया। जिसका नाम कुमारदेवी था। लिच्छवी गणराज्य की शक्ति पर ही वह अपना गुप्त साम्राज्य स्थापित कर पाता है, यह वर्णन आता है।

आधुनिक भारत के इतिहास में पुर्तगाली गवर्नर अलबुकर्क ने विवाह संबंध नीति को प्रयोग कर अपने साम्राज्य को स्थापित करने का प्रयास किया। क्योंकि भारत में हिंदू धर्म में विधवा औरतों का विवाह वर्जित था, उसने उन्हें अपने पुर्तगाली ईसाइयों से विवाह कर लेने को कहा, और पुर्तगाली बस्ती स्थापित करने का प्रयास करता रहा।

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