गांधीजी की राजनीतिक सक्रियता के चलते हम कभी उनके व्यक्तिगत जीवन की ओर की दृष्टि नहीं डालते हैं। और यह आज भी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय नेताओं का व्यक्तिगत जीवन जैसे शून्य हो गया हो।
गांधीजी ने भारत में किसी व्यक्ति की लोकप्रियता का सबसे ऊंचा आयाम उस जमाने में हासिल किया। तब कोई इंटरनेट का जमाना तो नहीं था। घर घर जाकर आवाज पहुंचाई जाती थी। उस जमाने में गांधी जी भारत के हर व्यक्ति की समूची शक्ति का प्रतीक बन गये। भारत में लोकप्रियता का वास्तविक अर्थ गांधीजी ने दुनिया को बताया जहां प्रेम करने वाले भी भारतीय थे,और प्रेम पाने वाला भी भारतीय, यही नहीं पूरी दुनिया जिनका सम्मान करती थी। जिनकी एक आवाज पर करोड़ों भरतीय ने सड़कों पर लाठियां खाना स्वीकार किया। ऐसा समर्थन युक्त आवाज का नेता अब तक नहीं जन्मा था।
अंग्रेज तो हिंसा चाहते थे, वह चाहते थे, कि भारत के लोग की तरफ से यह हो, और उसके बाद वे दमन का क्रूर चक्र चलाएं। जिसमें दुनिया को दर्शाया जाए की अपराधियों को सजा दी गई है, और भारतीय आम लोगों को दमन और सजा के एक भयानक चक्र की मिसाल देकर आंदोलन से दूर रखा जाए। जिससे भारतीय, अंग्रेजों के सर्वोच्च शक्ति होने और अपनी गुलामी की सोच से ही न उभर सकें। 1857 की क्रांति में यही किया गया था। भले तब भारतीयों की परिस्थितियां और उद्देश्य अलग थे। लेकिन अंग्रेजों की नीति तब भी यही थी।
ब्रिटिश दमन करते तो कैसे? भारतीय तो लाठियां खा रहे थे। जवाब तो वे दे ही नहीं रहे थे। गांधीजी के सत्याग्रह के तरीके में अंग्रेजों का सहयोग मत करो (असहयोग आंदोलन) और उनकी आज्ञा को मत मानो किंतु विनम्रता के साथ (सविनय अवज्ञा आंदोलन ) ने ब्रिटिश को बड़े स्तर पर उनकी क्रूर दमनकारी नीति के प्रयोग का अवसर ही नहीं दिया। इसी कारण सबसे अहम आम जनमानस सड़कों पर आंदोलन से जुड़ पाया, और अंग्रेजों को चुनौती दे सकने की सोच हर व्यक्ति में विकसित होने लगी। साथ ही गांधीजी के तरीके ने जिस तरह ब्रिटिशों की अत्याचारी नीतियों को दुनिया के सामने लाकर रख दिया। यह महत्वपूर्ण है।
भारत के लिए सब कुछ लुटा देने वाले महान क्रांतिकारियों और गांधी जी की नीति में यह एक अंतर था, कि गांधीजी जैसे लोकप्रिय अहिंसावादी व्यक्ति जो ब्रिटिशों के खिलाफ मुखर रहे। फिर भी ब्रिटिश उन्हें समाप्त करना तो दूर जेल की सजा के अलावा कोई नुकसान नहीं पहुचा सकते थे। गांधी जी की लोकप्रियता और दुनिया की राजनीति में स्तर ही इतना ऊंचा हो गया था कि ऐसा करना जनता में महान कांति के उदय का कारण बन सकता था। साथ ही दुनिया में ब्रिटेन की प्रतिष्ठा पर सबसे बड़ा धक्का लगता। और सबसे अहम कि गांधीजी के कार्य में हिंसा थी ही नहीं। इस स्थिति में अंग्रेज उनका कुछ ना कर सके। अंग्रेजों की स्थिति ऐसी थी, कि वे मर भी ना सके, और जी भी ना सके।
ब्रिटिशों की दमनात्मक आत्मा पर भारतीयों की सहनशीलता से बार बार बार वार किया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद कहा गया कि भारतीयों को आजादी मिल गई है, क्योंकि भारत में ब्रिटिश हुकूमत जो अत्याचार है, को भारतीयों ने सहन कर लिया है, और अपना सिर भी नहीं झुकाया।
गांधी जी की भारत की विभाजन के संदर्भ में भूमिका पर सवाल होते रहे हैं। जिन्ना पहले ही यह तय कर चुके थे। कि मुस्लिमों के लिए पृथक राष्ट्र बनाया जाएगा। उनका यह हठ था। जब गांधी जी ने अली जिन्ना से कहा कि वह भारत के प्रधानमंत्री पद स्वयं और अहम पदों पर मुस्लिम नेताओं को स्थान दें। तो गांधी जी को बताया गया, कि यह संभव नहीं, क्योंकि नेहरू व अन्य नेता तो मान जाएंगे। किंतु भारत के लोग जो सड़कों पर पहले ही मजहब के नाम पर लड़ रहे हैं, यह स्वीकार नहीं करेंगे।
अली जिन्ना तो पहले ही भारत का विभाजन या सिविल वॉर की घोषणा कर चुके थे। वहां मुस्लिम लीग द्वारा घोषित 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के बाद से सड़कें युद्ध भूमि बन गई थी। कत्लेआम का दौर था।
इस स्थिति में प्रशासन की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी। किंतु वह शून्य हो चुकी थी। क्योंकि अब अंग्रेज अधिकारी दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। वे तो वापसी की तैयारी में थे। और अपने देश लौट रहे थे।
उस समय के तमाम घटना के तत्काल दर्शी लिखते हैं। कि सड़कें हथियार सहित गुंडों से भरी थी। किंतु प्रशासन का कोई हस्तक्षेप नहीं था। इन सब स्थितियों में भारत ने विभाजन की महान त्रास्दी देखी।
जब तक लड़ाई ब्रिटिशों से थी। गांधी सबसे आगे दौड़ते रहे। लेकिन जैसे-जैसे अपने ही देश में फूट पड़ गई, और विभाजन की मांग उठने लगी, गांधीजी सबसे पीछे छूट गए। वहां से अली जिन्ना, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि क्रांतिकारी विचार युक्त नेताओं की राजनीति हावी हो गई।
आज के क्रांतिकारी युग में तीव्र उन्नति की इच्छा में युग को क्रांतिकारी कहा जाता है। वहीं गांधीजी के कार्य में सभी को संतुष्ट कर आगे बढ़ने का प्रयास था। जिसमें बिना किसी को कष्ट दिए हक के लिए संघर्ष हो, और उन्नति भी हो। किंतु आज का युग बदला है, क्रांतिकारी विचारों और तीव्र उन्नति का महत्व है, और इसलिए शायद इस युग में गांधी कुछ अप्रासंगिक हो गये हैं।।