समाजवाद की चरमता साम्यवाद है। या ऐसा कह सकते हैं, कि समाजवाद के विचार को जब अधिक विकसित किया गया तो साम्यवाद विचार का जन्म हुआ, और जो कि मार्क्सवाद है। जब समाजवादी विचार लोकप्रिय होने लगा तो इस विचार को चरमता तक पहुंचाने के लिए साम्यवादी विचार का जन्म हुआ।
यदि ऐसा कहा जाए, कि जहां समाजवाद में समाज में संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण की बात की गई है, और व्यक्तिवाद का विरोध किया गया है। तो साम्यवाद कुछ अन्य मूल्यों को समाज के लोगों के लिए होने की पैरवी करता है। हालांकि साम्यवाद भी समाजवाद की भांति पूर्ण तो परिभाषित नहीं किया जा सकता। जैसे समाजवाद को पूंजीवाद के स्वरूप और परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार का हो सकता है और अलग-अलग ढंग से परिभाषित और प्रयोग किया गया है।
मार्क्स तथा एंगेल्स द्वारा साम्यवाद विचार को जन्म दिया गया। “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र” जिसे वैज्ञानिक कम्यूनिज्म का मूल कहा जाता है। इसी में मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचार की विवेचना की गई है। इसे कॉल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था।
जहां समाजवाद व्यक्तिवाद का विरोध संसाधनों का समाज में समान वितरण की पैरवी करता है। वही साम्यवाद लोगों के लिए कुछ अन्य मूल्यों की प्राप्ति का भी सिद्धांत रखता है। जैसे स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय सबको प्राप्त हो, समाज वर्ग विहीन होगा केवल मानवता एकमात्र जाति हो। इसीलिए साम्यवाद समाजवाद की चरम अवस्था को व्यक्त करता है।
जहां समाजवाद में व्यक्ति के कर्तव्य व अधिकार का वितरण~>
“प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार और प्रत्येक को अपनी कार्य के अनुसार”
वहीं साम्यवाद में~>
“प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार और प्रत्येक को आवश्यकतानुसार” सिद्धांत को लागू किया जाता है।
साम्यवाद के सिद्धांत निजी संपत्ति होने को पूर्ण विरोध व संपत्ति की समाप्ति की पैरवी करता है। भारत में समाजवाद का स्वरूप इस समाजवाद और साम्यवाद से अलग है, जिसमें पूंजीवाद या निजीवाद को पूर्ण निषेध किया गया है। भारत के समाजवाद को जो समाजवाद का विशेष स्वरुप है, लोकतांत्रिक समाजवाद कहा जाता है।।