शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

भारत में समाजवाद | कांग्रेस vs भाजपा

भारत में समाजवाद

समाजवाद किसी भी राष्ट्र का अपने नागरिकों के लिए अंतिम लक्ष्य है। जिसका तात्पर्य नागरिकों में समानता लाने से है। समाजवाद को आप इस आलेख [ समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद में समझ सकते हैं।

मोटे तौर पर समाजवाद वंचितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का सिद्धांत है। भारत में समाजवाद की दिशा में कई कार्य आजादी के बाद से ही आरंभ किए गए जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जमींदार प्रथा के अंत के लिए कानून, भूमि सुधार कानून जिसमें जो जमीन के बड़े भाग जमीदारों ने अपने कब्जे में किए थे। वह बड़ी जमीन के भाग उनकी संपत्ति हो गई थी, जिसके चलते जो अन्य लोग थे, वे जमीदारों के यहां केवल मजदूर के रूप में कार्य करते थे और इससे बेगारी, मजदूरी और भीषण गरीबी, असमानता और अन्याय की संभावना बनी रहती थी। 

आजादी के बाद सबसे पहले यही कार्य किया गया। उन जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई, और जमीदारी प्रथा का भी अंत कर दिया गया। यह समाजवादी विचार के अंतर्गत किया गया कार्य है। जहां संसाधन को समाज के हर व्यक्ति में बराबर बांट दिया गया और जमीदार वर्ग की इतिहास में उस बड़े जमीन के भाग को हासिल करने के लिए की गई मेहनत मशक्कत को महत्व नहीं दिया गया तथा संसाधनों का समाजीकरण कर दिया गया।

यह कदम सरकार के समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हैं, ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि समाज में सभी तबके के लोग गरीब, अमीर, मध्यम के लिए एक सरकार जो सबकी है, स्थापित है। वह सरकार कृषि की सारी जमीन को जो जमीदार के एकाधिकार में थी, उसे छीन लेती है और किसानों में बराबर बांट देती हैं, यह समाजवाद है। 

 समाजवादी विचार का मुख्य उद्देश्य यह भी है, कि राज्य के संपूर्ण संसाधनों पर या तो सीधे जनता का नियंत्रण हो, या राज्य की सरकार का, किंतु पूंजीवाद का पूर्ण विरोध किया गया है।

कांग्रेस के शासन से ही भारत में समाजवाद के साथ-साथ पूंजीवाद भी पनपता रहा है। निजी क्षेत्रों में पूंजीपतियों ने बड़े-बड़े व्यापार को स्थापित किया है। इसलिए भारत के समाजवाद को विशिष्ट स्वरूप का कहा गया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण की समाजवाद को पूंजीवाद के विपरीत देखा गया है।

  हो सकता है, कि कांग्रेस का अधिक झुकाव था, कि देश की तमाम संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण किया जाए और पूजीपतियों को हावी ना होने दिया जाए। अथवा सरकार संस्थाओं को अपने हाथ में रखे, और तब जनता को एक समान रूप से उसका लाभ मिलता रहे, एक समान नीतियों के अंतर्गत जो कि सरकार तय करेगी। और इसलिए कांग्रेस की ओर से भाजपा की वर्तमान सरकार पर लगातार आरोप लगाए जाते हैं, कि भाजपा ने देश में तमाम सरकारी संस्थाओं का जैसे रेलवे, संचार, एयर सर्विस आदि का प्राइवेटाइजेशन कर दिया है। अथवा प्राइवेट व्यापारियों को सौंप दिया है और यह निजीकरण है क्योंकि संस्थाओं के राष्ट्रीयकरण या सरकारीकरण की अपेक्षा संस्थाओं का प्राइवेटाइजेशन और पूंजीवाद अधिक बढ़ता दिख रहा है। जिससे समाजवादी विचार को खतरा है।

यह सत्य है, कि पूंजीवाद में खतरा होता है, कहीं पूजीपतियों का एकाधिकार ना हो जाए और वे मनमानी करने लगेंगे। लेकिन पूंजीवाद आजादी के बाद से कांग्रेस के काल में भी पनपता रहा है क्योंकि कांग्रेस सरकार भी पूंजीवाद के महत्व को समझती थी। और विश्वास करती थी कि समाजवाद कि यूरोपीय सिद्धांत के साथ चलकर पूंजीवाद को पूर्णता समाप्त करने के बजाए पूंजीपतियों और सरकार के सामन्जस्य से तीव्र विकास के चलते समाजवाद को अधिक तीव्रता से हासिल किया जा सकता है।

आप इसे ऐसे समझे की निजीकरण ने एक प्रकार से समाजवाद की ओर भी प्रयास किया है। हमें स्वीकार करना होगा, कि निजी व्यापार में कार्य सरकारी व्यवस्था की अपेक्षा अधिक तीव्रता से होता है। इससे यदि किसी पूंजीपति व्यापारी ने जो संचार के क्षेत्र में कंपनी का मालिक है, ने सरकारी संचार की कंपनियों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से और देश के दूरस्थ क्षेत्रों को संचार से जोड़ पाने में सफलता हासिल की है। जहां सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत संचार सेवा आज तक पहुंच ही नहीं सकी थी। क्योंकि पूंजीपति ने बाजार में प्रतिस्पर्धा के चलते अधिक मेहनत से कार्य किया और दूर-दूर तक संचार व्यवस्था स्थापित की यह भी समाजवाद की दिशा में एक कदम है। जहां शहर के लोग जो संचार तथा इंटरनेट की सुविधा का उपभोग करते हैं, लेकिन दूर विषम परिस्थितियों युक्त गांव के लोग इस सुविधा का उपभोग नहीं कर सकते। सरकारी व्यवस्थाओं के अंतर्गत अब तक उन गांव में संचार व्यवस्था नहीं पहुंच सकी थी। अब वहां संचार व्यवस्था की सुविधा है, इस वजह से गांव और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोग और शहरों में रहने वाले लोगों को संचार के मामले में समान सुविधा मिल रही है। अर्थात समानता आई है, और समानता लाने का विचार ही समाजवाद है। इस प्रसंग में समाजवाद पूंजीपतियों के द्वारा लाया गया, इसलिए यह कहा जा सकता है, की सरकार पूंजीपतियों के सहयोग से विकास के कार्यो को तो तीव्र कर ही सकती है, साथ ही समाजवाद की दिशा में भी आगे बढ़ सकती है।

यह मानना होगा, कि पूंजीपतियों के हाथ में विकास की गति तीव्र हो जाती है। बजाय सरकारी व्यवस्थाओं में हो रही विकास की गति से। इसीलिए आज युवाओं से स्टार्टअप और अपने इनिशिएटिव को आगे बढ़ाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।

 किंतु साथ ही सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए, कि पूंजीपतियों की मनमानी आरम्भ ना हो जाए, और ख्याल रखना होगा, कि कहीं समाज में ऐसा भी वर्ग हो जिसका जीवन स्तर इतना निम्न है। तथा आय इतनी कम है, कि वह किसी भी सेवा का लाभ नहीं उठा पा रहा है।।

पूंजीवाद के चरम पर होने के नुकसान हम अगले आलेख में देखेंगे….

साम्यवाद का विचार | मार्क्सवाद


समाजवाद की चरमता साम्यवाद है। या ऐसा कह सकते हैं, कि समाजवाद के विचार को जब अधिक विकसित किया गया तो साम्यवाद विचार का जन्म हुआ, और जो कि मार्क्सवाद है। जब समाजवादी विचार लोकप्रिय होने लगा तो इस विचार को चरमता तक पहुंचाने के लिए साम्यवादी विचार का जन्म हुआ।

 यदि ऐसा कहा जाए, कि जहां समाजवाद में समाज में संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण की बात की गई है, और व्यक्तिवाद का विरोध किया गया है। तो साम्यवाद कुछ अन्य मूल्यों को समाज के लोगों के लिए होने की पैरवी करता है। हालांकि साम्यवाद भी समाजवाद की भांति पूर्ण तो परिभाषित नहीं किया जा सकता। जैसे समाजवाद को पूंजीवाद के स्वरूप और परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार का हो सकता है और अलग-अलग ढंग से परिभाषित और प्रयोग किया गया है। 

मार्क्स तथा एंगेल्स  द्वारा साम्यवाद विचार को जन्म दिया गया। “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र” जिसे वैज्ञानिक कम्यूनिज्म का मूल कहा जाता है। इसी में मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचार की विवेचना की गई है। इसे कॉल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था।

जहां समाजवाद व्यक्तिवाद का विरोध संसाधनों का समाज में समान वितरण की पैरवी करता है। वही साम्यवाद लोगों के लिए कुछ अन्य मूल्यों की प्राप्ति का भी सिद्धांत रखता है। जैसे स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय सबको प्राप्त हो, समाज वर्ग विहीन होगा केवल मानवता एकमात्र जाति हो। इसीलिए साम्यवाद समाजवाद की चरम अवस्था को व्यक्त करता है।

जहां समाजवाद में व्यक्ति के कर्तव्य व अधिकार का वितरण~>

“प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार और प्रत्येक को अपनी कार्य के अनुसार” 

वहीं साम्यवाद में~>

“प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार और प्रत्येक को आवश्यकतानुसार” सिद्धांत को लागू किया जाता है।

साम्यवाद के सिद्धांत निजी संपत्ति होने को पूर्ण विरोध व संपत्ति की समाप्ति की पैरवी करता है। भारत में समाजवाद का स्वरूप इस समाजवाद और साम्यवाद से अलग है, जिसमें पूंजीवाद या निजीवाद को पूर्ण निषेध किया गया है। भारत के समाजवाद को जो समाजवाद का विशेष स्वरुप है, लोकतांत्रिक समाजवाद कहा जाता है।।

समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद

समाजवाद समाज में समानता के लक्ष्य का सिद्धांत है। इसे पूर्ण रूप से परिभाषित तो नहीं लेकिन समाजवाद मजदूर वर्ग को अपना आधार मानकर समाज में बराबरी के लिए एक संघर्ष का आंदोलन रहा है। क्योंकि समाजवाद मजदूर वर्ग को वंचित वर्ग मानता है। समाजवाद का अंतिम लक्ष्य समाज को वर्ग रहित करना है। इसलिए मार्क्स ने कहा “दुनिया के मजदूर एक हो जाओ”

समाजवाद की राजनीतिक विचारधारा 19वीं सदी में यूरोप के देशों में विशेषकर इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में लोकप्रिय होने लगी। समाजवाद दरअसल वहां के समाज और उन देशों में औद्योगिकरण की तेज विकास गति का परिणाम था। पूंजीपतियों के जन्म ने समाज में अन्य वर्गों को बहुत नीचे गिरा दिया और उनमें समाजवाद का विचार लोकप्रिय हो गया।

समाज जो पूर्व से व्यक्तिवाद पर चल रहा था। अर्थात हर व्यक्ति अपने उत्थान के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्राप्त कर सकता है, और आगे बढ़ता है। किंतु औद्योगिकीकरण के बाद यह बड़े अंतर का कारण हो गया। समाज में एक वर्ग पूंजीपतियों का बहुत ऊंचा तैयार हो गया तथा एक अन्य वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाया या वंचित वर्ग। 

समाजवादियों ने मजदूर वर्ग को वंचित वर्ग कहा और उनसे अपील की कि वे एक हो जाएं।

यूं भी कह सकते हैं, कि उन्नीसवीं सदी के आरंभ में समाजवादी वह विचारधारा है, जो व्यक्तिवाद का विरोध करते और दुनिया के या राज्य के सभी संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण होना चाहिए ऐसा मानते। 

समाजवादी पूंजीवाद के विरोधी हैं। समाजवादी सिद्धांत का एक मुख्य विरोध है, कि वह समाज में निजी संपत्ति और उसके आधार पर उस व्यक्ति को प्राप्त अधिकारों का विरोध करते हैं। वे चाहते हैं, कि राज्य की संपूर्ण धन संपत्ति का स्वामित्व और उसका विवरण या तो सीधे समाज के हाथों में रहे या राज्य के हाथों में।।

साम्यवादी विचारधारा ही मार्क्सवाद कहलाती है। कार्ल मार्क्स एक समाजवादी विचारक थे। साम्यवाद को इस आलेख में जाने… साम्यवाद का विचार | मार्क्सवाद

लोकतांत्रिक समाजवाद | भारत में समाजवाद का स्वरूप

समाजवाद

लोकतांत्रिक समाजवाद वह विचार है। जिसमें समाजवादी विचार का अनुसरण तो है ही, किंतु साथ ही पूंजीवादी विचार को भी स्थान प्राप्त है। अर्थात समाज में धनवान वर्ग को भी स्थान दिया गया है। जबकि समाजवाद इसका विरोध करता है। उसका अंतिम लक्ष्य समाज को वर्ग रहित बनाना है जहां सभी बराबर हो।

लेकिन भारत में समाजवाद का स्वरूप यही है। जहां पूंजीपतियों को उन्नति का अवसर प्राप्त है। और सरकार भी अपनी संस्थाओं को जिन पर उसका नियंत्रण है, आगे बढ़ाती है। और यह सरकार और पूंजीपतियों के प्रयास से और कार्यों में उनके सामन्जस्य से प्राप्त समाजवाद की धारणा पर विश्वास करता है।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा जिसे मिनी कॉन्स्टिट्यूशन कहा जाता है, समाजवाद शब्द जोड़ा गया था। भारत का समाजवाद सदैव विशेष स्वरुप को लिए रहा। जहां भारत में समाजवादी विचार के तहत वंचित वर्ग को महत्व दिया गया। वहीं पूंजीवादी वर्ग को भी उनकी उन्नति से वंचित नहीं किया गया। वंचित को बराबरी तक लाने के प्रयास आरंभ हुए किंतु यह पूंजीपतियों का विनाश कर ऐसा नहीं किया गया, बल्कि दोनों को स्वतंत्र रूप से बढ़ने के अवसर उपलब्ध किए गए। वहीं वंचित वर्ग को विशेष तौर से आगे बढ़ाने के लिए प्रयास आरंभ हुए जैसे आरक्षण आदि अनेक सरकारी योजनाएं जिनका उद्देश्य वंचित वर्ग को बराबरी तक लाना होता है।

समाजवाद और साम्यवाद की धारणा जब अपनी सर्वोच्चता पर थी तो विचार था, कि सभी मजदूर वंचित वर्ग एक हो जाओ और पूंजीपतियों का अंत कर दो और सारा धन संपत्ति सब में बराबर बांट दो।

किंतु भारत में पूंजी पतियों की उन्नति को भी समाजवाद लाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा गया।

1982 में बी०एस० नाकारा केस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में समाजवाद के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए टिप्पणी की कि समाजवाद~>

“पालने से लेकर कब्र तक सुरक्षा प्रदान करना” है।

 इस समाजवाद को प्राप्त करने के लिए तीन बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित किया गया~>

● आय की असमानता को कम किया जाए।

● जीवन स्तर के असमानता को दूर किया जाए। 

● मजदूर, शोषित वर्ग, वंचितों का कल्याण।

 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस निर्णय में नहीं कहा गया, कि संसाधनों का समाजीकरण या उन्हें बांट दिया जाए। अर्थात पूंजीवाद की संभावना है। और भारत के समाजवाद में पूंजीवाद का उन्नयन होता रहा। इस प्रकार भारत का समाजवाद विशिष्ट स्वरूप लिए है।।

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

धैर्य की उपयोगिता Aug 1965 | Shantikunj Haridwar

   कोई भी काम करने में धैर्य की नितांत आवश्यकता है। जो धैर्यवान है, वह कर्म करने से पहले उसके शुभ अशुभ परिणाम पर विचार कर सकता है। उसको सफल बनाने के लिए मार्ग निर्धारित कर सकता है। अपने कर्म के सत्-असत एवं उपयोगिता-अनुपयोगिता पर सोच सकता है। इसके विपरीत जो अधैर्यवान है, आवेश अथवा उद्वेगपूर्ण है, वह ना तो कर्म की इन आवश्यक भूमिकाओं पर विचार कर सकता है और न दक्षता प्राप्त कर सकता है। वह तो अस्त-व्यस्त क्रियाकलाप की तरह एक निरर्थक श्रम ही होता है।

    अधैर्य मनुष्य का बहुत बड़ा दुर्गुण है। अधीर व्यक्ति में अपेक्षित गंभीरता का अभाव ही रहता है, जिससे वह चपलता के कारण समाज में उपहास, उपेक्षा और निंदा का पात्र बनता है। अधिक व्यक्ति के मन बुद्धि स्थिर नहीं रहते। वह न किसी विषय में ठीक से सोच सकता है और ना कर्तव्य का निर्णय कर सकता है। अधैर्यवान व्यक्ति अदक्षता, अस्त-व्यस्तता, अनिर्णयात्मकता एवं अक्षमता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल होकर दुख भोगता है इसके विपरीत जो धैर्यवान है, वह जिस कार्य को पकड़ता है, उसे पूर्ण मनोयोग, विवेक, बुद्धि और समग्र शक्ति लगाकर पूरा किए बिना नहीं रहता। धैर्यवान व्यक्ति कर्म करके उसके फल की प्रतीक्षा में व्यग्र नहीं होता, बल्कि फलाशक्ति से रहित होकर कार्य किया करता है।।

-अखंड ज्योति द्वारा 

24 अगस्त 1965

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2

इससे पूर्व  ( गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन part -1 ) में हम जान चुके हैं। अब आगे…

इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला।
कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है।

शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ऋषियों के नाम पर और विद्वानों के नाम पर भवन बनाए गए हैं। और ध्येय वाक्यों और विद्धानों की कही बातों को जगह जगह पर उकेरा गया है।

शांतिकुंज -संस्कारशाला

संस्कारशाला से आगे बढ़ते हैं। संस्कारशाला नाम से जो धर्मशाला का भी एक बड़ा हॉल है। जहां बड़ी संख्या में लोग आप पाएंगे। इसी संस्कारशाला में लोगों के शादी विवाह के कार्यक्रम भी संपन्न होते हैं। बड़ी संख्या में जोड़ें यहां विवाह को वैदिक परंपरा विधि विधान से बड़े सामान्य ढंग से संपन्न करवाते हैं। पंडित, मंत्रों का उच्चारण मंच से ही करते हैं, और सामने बैठे कई जोड़े का विवाह एक साथ संपन्न होता है। यह विवाह वैदिक विधान से संपन्न करवाते हैं। यह धूमधाम से विवाह के लिए आपको जगह नहीं देते हैं।

चित्र में -शांतिकुंज में विवाह

वहां के पुरोहितों की यह निष्ठा ही है, कि वह जिस प्रकार विवाह के अर्थ को और विवाह के लिए हर विधि विधान जो वे कर रहे हैं। उनके संदर्भ में स्पष्ट करते हुए समझाते जाते हैं। पति-पत्नी के धर्म की व्याख्या करते हैं। विवाह के अर्थ को स्पष्ट करते हैं।

संस्कारशाला के इस दीवार पर आप लिखा पढ़ सकते हैं। कि
|| वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ||
हम पुरोहित राष्ट्र को जागृत एवं जीवंत बनाए रखेंग

संस्कारशाला से आगे नचिकेता भवन जो एक बड़ी बिल्डिंग है। यहां भी बहुत से कपड़े बिल्डिंग के हर मंजिल में बाहर रेलिंग पर सूख रहे हैं। लगता है, यहां भी यात्री आदि या शांतिकुंज के विद्यार्थी, ब्राह्मण या स्वयंसेवी रहते होंगे। शायद कुछ लोग यहां के स्थाई रहने वाले भी हैं। वह भी इन भवनों में उपलब्ध कमरों में रहते होंगे।
नचिकेता भवन के मुख्य द्वार पर ही नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्र की सूचना का भी एक बोर्ड लगा है। तात्पर्य है, कि यहां दैनिक रूप से कार्यक्रम होते ही रहते हैं। शान्तिकुन्ज के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है।

जगह जगह पर मार्ग के दोनों ओर तख्तियों पर मानव के लिये लिखे आलेखों द्वारा सीख दी जा रही हैं। ऐसा ही एक नचिकेता भवन के बाहर अखंड ज्योति द्वारा 1965 अगस्त 24 का लिखा आलेख “धैर्य की उपयोगिता” धैर्यवान होने की सीख देता है।।

आगे अगले खंड में शीघ्र….

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -1

चित्र में- शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा

शांतिकुंज से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम याद आ जाता है। आपने इनका नाम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जो गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के सौजन्य से करवाई जाती है, के कारण जरूर सुना होगा। पूरे देश में इनकी शाखाएं और कई कार्यकर्ता होते हैं। और यह परीक्षा उन्हीं के द्वारा पूरे देश में संचालित होती है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा की किताब जो हर छात्र को विद्यालय स्तर तक और सभी अन्य स्तरों पर होने वाली इस परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। विद्यालय स्तर से अन्य सभी स्तरों पर विजेताओं को प्रथम द्वितीय और तृतीय स्तर के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। उद्देश्य एक ही है, भारतीय प्राचीन संस्कृति के ज्ञान से नई पीढ़ी को अवगत करवाना।

चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे प्रवेश के लिए एक द्वार

शांतिकुंज एक आश्रम एक धर्मशाला जहां कई लोग निशुल्क रुकते हैं, हरिद्वार में यह धार्मिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में यहां इस आलेख से पता चलता है कि-

चित्र में- गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में

  “शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की तपोभूमि है। यहां 1926 से प्रज्वलित अखंड ज्योति, हर व्यक्ति के लिए उपयोगी युग ऋषि की लिखी 3200 पुस्तकें, गायत्री माता मंदिर, देवात्मा हिमालय मंदिर, ऋषियुग्म के समाधि स्थल दर्शनीय एवं आस्था के केंद्र हैं। करोड़ों साधकों द्वारा किए गए गायत्री मंत्र, जप, अनुष्ठान, यज्ञ संस्कार और यहां चलने वाले प्रशिक्षण शिविर इसे ऊर्जावान बनाते हैं। जाति लिंग भाषा प्रांत धर्म संप्रदाय आदि के भेदभाव के बिना मानव मात्र के लिए कल्याणकारी सर्वमान्य व विज्ञानसम्मत अध्यात्म चेतना का विश्वव्यापी विस्तार युग तीर्थ शांतिकुंज का प्रमुख अभियान है। शांतिकुंज का संकल्प है-

मानव में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण”


चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे एक भवन

शांतिकुंज का परिसर एक वैदिक समाज का परिवेश तैयार करता दिखता है। शानदार उपयोगी वृक्ष वाटिका मुख्य मार्ग के दोनों ओर कम मात्रा में किंतु अलग-अलग प्रकार के होने से आकर्षण का भाग है। बहुत से लोग यहां निशुल्क रुके हुए हैं। यह धर्मशाला के रूप में भी है। कई लोग जो प्रतीत होता है, कि यहां के स्थाई हो गए हैं। लोगों ने अपने वस्त्र यहां मुख्य मार्ग के दोनों और सुखाने को धूप पर रखे हैं। जो एक बड़ा हॉल है, वही धर्मशाला है। जहां लोग अपने अपने सामान के साथ कोई जगह देख कर लेटे हैं, या बैठे हैं। कुछ लोग अंदाजा है, कि स्थाई रूप से यहां रह रहे होंगे, या कुछ लंबे समय से यहां होंगें। शायद वही लोग हैं, जो परिसर में चार पांच मंजिला भवनों में कमरे पाए हुए हैं।

चित्र में- शांतिकुंज द्वारा संचालित अन्य संसथान

परिसर काफी बड़ा है, धर्मशाला के अलावा बाकी अधिकतर क्षेत्र शांत ही है। शांतिकुंज के परिसर में ही लगभग मध्य में एक कैंटीन को भी जगह दी गई है। यहां लोग जो दैनिक रूप से श्रद्धालु या यात्री देखने आते होंगे वह कुछ फास्ट फूड खा लेते होंगे।

आगे गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2 में…

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏