शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

पुरोला विधायक राजकुमार जी | उत्तराखंड सियासत | भाजपा कैसे बनाएगी आंकड़े दुरुस्त

उत्तराखंड सियासत-

 मुख्यमंत्री जी की कई योजनाओं की घोषणा में अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन, स्फूर्ति का परिचय और रोजगार पर पहल का पिछले 4 साल की गणित को धुंधला करने का पुरजोर प्रयत्न है। 

वही 1 सप्ताह के भीतर भीतर जिन विधायकों ने भाजपा पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। पहले यमुनोत्री के विधायक प्रीतम सिंह पंवार जी का भाजपा में हित टटोलते दामन थामना और अब पुरोला विधायक राजकुमार जी की दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करना भाजपा की चुनावी रणनीति को साफ कर रहा है।

भाजपा के द्वार खुले हैं। उत्तराखंड में नाखुश विधायक पूर्व में कुछ का स्थानांतरण कांग्रेस पार्टी ने 2016 में देखा है। हालांकि उनको अब तक भाजपा में भी अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं हो पाई है। यह माननीय हरक सिंह रावत जी ने एक टीवी इंटरव्यू में स्पष्ट कर दिया है। हरक सिंह रावत जी का कहना है, कि उन्होंने 2016 में बगावत मंत्री बनने के लिए नहीं की थी, बल्कि वे तो मुख्यमंत्री होने के लिए बागी हुए थे।

भाजपा सरकार के निर्माण के लिए नेताओं का और मुख्यधारा के सबल नेताओं का दल परिवर्तन कर भाजपा का दामन थामना एक मुख्य कारक रहा है। और इस समय भी भाजपा रणनीति का मुख्य बिंदु वही है, और इसे सफल बनाती है, उत्तराखंड में नेताओं की प्रवृत्ति।

उत्तराखंड में अक्सर नेताओं का है, कि कहां जाएं जो खूब पाएं, नहीं तो जो पूर्व से है उसे तो बचा पाए।

निर्दलीय विधायक यमुनोत्री प्रीतम सिंह पंवार जी का अपना जनप्रियता का आयाम मोदी लहर में उनकी निर्दलीय जीत से प्रस्तुत होता है। वे अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। वहीं पुरोला विधायक राजकुमार जी का बीजेपी के पक्ष में हो जाना भाजपा की नीति को और विधायक द्वारा लगाई अनुमानित विजय लहर के झोंक को दर्शाता है।


पुरोला विधायक राजकुमार जी-

वर्तमान पुरोला विधायक राजकुमार जी का राजनीतिक जीवन दल, निर्दल, जीत, हार सभी पखवाड़ो से होकर इस बिंदु पर पहुंचा है। वर्ष 2002 में वे भाजपा प्रदेश सचिव रहे। वर्ष 2007 के चुनाव में वह विधायक पद के लिए सहसपुर विधानसभा से लड़े और जीत हासिल की। 2012 के चुनाव में अपने पसंद की विधानसभा सीट पुरोला से टिकट हासिल न कर पाने के चलते निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हांलांकि वे जीत हासिल न कर सके। किन्तु यह कर वे भाजपा से बागी जरुर हो गए। वर्ष 2017 में वे कांग्रेस पार्टी की ओर से पुरोला सीट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की।

खबरों में यह भी मुख्य रूप से रहा, कि पुरोला के विधायक राजकुमार जी अपने कार्यकर्ता कांग्रेसियों से ठीक तालमेल बिठा पाने में असफल है, और यह असफलता इतनी प्रबल है, कि हाल ही में की गई एक कांग्रेस कार्यकर्ता मीटिंग में उन्हें टिकट न देने तक की अपील की गई। उनके विरोध में कांग्रेस कार्यक्रमों के बैठकों में स्वर उठते रहे हैं। स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी ने कहा कि विधायक राजकुमार हमारी कमजोर कड़ी थे, जो वक्त से पहले टूट गए हैं।

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

अफगानी फैसले | तालिबान afganistan latest

छात्राओं के लिए शिक्षा की शर्तें-

विश्वविद्यालय में लड़कियों के पढने पर कई शर्तें तय कर दी गई हैं, जैसे अब कक्षा में लड़का लड़की एक साथ उपस्थित नहीं होंगे, सभी छात्रों वाली एक साथ चलने वाली कक्षाओं का चलन खत्म होगा। लड़कियों के लिए अलग क्लासरूम तय होगी। इसके अतिरिक्त उन्हें इस्लामी वस्त्र में आना अनिवार्य होगा। यह तालिबान शिक्षा मंत्री अब्दुल बाकी हक्कानी का एक टीवी इंटरव्यू में कहना है।
1996 की तालिबान से कुछ बदलाव इस बार तो रहा है तब तो महिलाओं को शिक्षा और अन्य किसी भी सामाजिक सरोकार से शामिल होने पर पूर्ण पाबंदी थी। वहां उस पर कुछ परिवर्तन कर उसे ऐसा कर दिया गया है। हालांकि तालिबानी सरकार में तो महिलाओं को इस बार भी नहीं लिया है। हाल ही के एक तालिबानी नेता के बयान में यह था, की तालिबान कैबिनेट को महिलाओं की कोई आवश्यकता नहीं है। आतः महिलाओं के प्रति अपनी दृष्टि को तालिबानी स्पष्ट कर चुका है। संगीत और अन्य कला पर सख्त रोक की खबरें हैं। यह भी तय किया जाएगा कि लड़कियों को पढ़ाने का काम शिक्षिकाएं ही करें।
सरिया कानून के लिए शपथ दिलाई गई-
 
खबरों में यह भी है, कि तालिबानी झंडे को लिए 300 युवतियों को सरिया कानून की शपथ कराई गई वह बुर्के में उपस्थित हुई। यह काबुल यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। जिसमें नेताओं ने शरिया कानून पर व्याख्यान दी
वहीं छात्रों ने अपने भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त की है। जहां सरकार ने सभी छात्रों की एक साथ चल रही शिक्षा को गलत ठहरा दिया है। इसमें छात्र आने वाली शिक्षा पद्धति और शिक्षा संदेश पर भी चिंतित होंगे। आखिर वह शिक्षा में क्या ग्रहण करेंगे। शिक्षा मंत्री का कहना है, कि वह 20 वर्ष तो पीछे नहीं जाएंगे मगर जो है, उसमें देश को हम ठीक सुधार में लाएंगे।
इन सब में तालिबान ने छात्रों को यह कहकर भी आकर्षण में लाने का प्रयत्न किया कि वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का कार्यक्रम भी प्रारंभ कर रहे हैं। किंतु तालिबान विचारधारा में अपने छात्रों को विदेश भेजने में यह ढूंढ रहे होंगे, कि शिक्षा किन देशों में सरिया पर आधारित है। किन देशों की शिक्षा शरिया कानून का उल्लंघन करना नहीं सिखाती, वहीं वे छात्रों को अध्ययन के लिए अनुमति देंगे ऐसा संभव है।
तालिबान आम नागरिकों का संघर्ष जारी-
 
तालिबान के अफगान को अधिकार मिले रहने के पश्चात से ही महिलाओं ने मोर्चा छोड़ा नहीं है, यह भी दृश्य में है, कि कई शहरों में महिलाओं ने तालिबान के खिलाफ मोर्चे को जारी रखा है। यह भी खबरों में है, कि उन पर उत्पीड़न कर बर्बरता से उनके प्रदर्शन को दमन करने में तालिबान पुरजोर कोशिश से लगा है।
दूसरी और अफगान भूख से भी तड़प रहा है। कहीं घर का सामान तक सड़कों पर उतार कर बेचने का सिलसिला दृश्य में आया है। लोग परिवार का पेट पालने के लिए घर का सामान बेच रहे हैं। उनका कहना है कि बैंकों में जमा पूंजी प्राप्त नहीं हो पा रही है। एटीएम में पैसों की सुविधा नहीं रही है, ऐसे में वह क्या खाएं, और सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था इतनी चरमरा गई गई है, कि संघर्ष के दौर में काम धंधा और कमाई की राह का पतन हो चुका है। वह लोग सड़कों पर अपना घर का एक-एक सामान बेचने को बैठे हैं।
यूएन तालिबान पर-
यूएन ने तालिबान पर टिप्पणी की, कि वह मानव अधिकार की रक्षा नहीं करता है। वह छात्राओं को घरों में रखा जाए ऐसी व्यवस्था की पूर्ण रूप से तैयारी कर रहा है। ऐसा गठजोड़ कर रहा है, कि युवतियों को कैद कर दिया जाए। वहीं यह भी कहा गया, कि तालिबान पुराने अफगान सैनिकों को ढूंढ कर हत्या कर रहा है, इस पर तालिबान को संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकार के नियमों के बाहर कदम रखने वाला दर्शाया और उपरोक्त टिप्पणी दी।
वही यूएन ने कहा कि इस वर्ष अफगान की इस आपात स्थिति में उन्हें $600000000 की आवश्यकता होगी दुनिया भर के दानदाताओं से इस पर अपील भी की है, किंतु यह बेहद जटिल समस्या है, लोकतंत्र सरकार को समाप्त करने वाले तालिबान को कई राष्ट्र सहयोग देने को तैयार नहीं है। किंतु विषय अफगान कि भूखे जनमानस का है, यही यूएन की चिंता है। सभी राष्ट्र विश्व के बड़े दानदाता तालिबान को मौका नहीं देना चाहते हैं, हां वे अफगान के आम जनमानस की भूख को जरूर मिटाना चाहते हैं।

रविवार, 12 सितंबर 2021

उत्तराखंड विधायक प्रीतम सिंह पंवार | उत्तराखंड राजनीति

 उत्तराखंड समाचार-

 किसानआंदोलन के चलते उत्तराखंड में भी आने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के विरोध में प्रदर्शनकारी किसानों ने राज्य में भी भाजपा सरकार के विरोध में आवाज ऊंची कर दी है। यह स्वर मुजफ्फरनगर में हाल ही में आयोजित संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायत में देखने को मिले।

उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी-

वहीं नई दिल्ली से उत्तराखंड सहित अन्य पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए गठित टीमों को घोषित कर दिया गया है। उत्तराखंड की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी जी को सौंपी गई है। वह उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी होंगे।

उत्तराखंड राजनीति में विधायक प्रीतम सिंह पंवार-

 उत्तराखंड की राजनीति में श्री प्रीतम सिंह पंवार वर्तमान धनोल्टी के निर्दलीय विधायक भाजपा में शामिल होकर दिल्ली के एक कार्यक्रम में उन्हें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई। पंवार ने भाजपा को राज्य के श्रेष्ठ पार्टी बताया। विधायक प्रीतम सिंह पंवार की राजनीतिक क्षमता का अनुमान इस प्रकार लगाया जा सकता है, कि वे 2017 विधानसभा चुनाव में तब जीत दर्ज कीए हैं, जब जिले में कुल 6 विधानसभा सीटों में से 5 पर भाजपा ने अपना तीव्र मोदी लहर से वर्चस्व स्थापित किया।

किंतु मोदी लहर के चलते भी धनोल्टी से निर्दलीय प्रत्याशी रहे श्री प्रीतम सिंह पंवार ने इस सीट पर जीत दर्ज की, और विपक्षी प्रतिद्वंदी रहे पूर्व राज्य मंत्री नारायण सिंह राणा जी को हराकर अपना परिचय दिया।

प्रीतम सिंह पंवार के राजनीतिक कैरियर के विषय में जाने तो 2002 में उत्तराखंड राज्य निर्माण के पश्चात वे यमुनोत्री से उत्तराखंड क्रांति दल पार्टी से विधायक रहे। तो 2007  तक वे इस सीट पर चुनाव हार गए। 2012 में उन्होने चुनाव में जीत हासिल की, किंतु अब की बार निर्दलीय विधायक रहे, और कांग्रेस की सरकार में वह बतौर कैबिनेट मंत्री भी रहे। श्री प्रीतम सिंह पंवार 2017 में अब तक की अपनी विधानसभा सीट रही यमुनोत्री को छोड़कर धनोल्टी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में रहे, और जीत दर्ज की।
यही कारण है कि भाजपा भी उनके अपने पाले में आ जाने के पश्चात राज्य में उनके चलते अपना हित साधने की निगाह रखती है।
श्री प्रीतम सिंह पंवार को अपनी सामर्थ्य और क्षमता का प्रदर्शन के लिए एक फलीभूत पार्टी की आवश्यकता थी, वह भाजपा ने उन्हें अपने पाले में लाकर पूरी कर दी।

शनिवार, 11 सितंबर 2021

अफगान घटनाचक्र latest | afganistan crisis | 11 sep 2021

 अफगान घटनाक्रम आज तक

हाल ही की खबर है, कि पाकिस्तान एक वर्चुअल मीटिंग में अफगानिस्तान की हाली स्थितियों पर बैठक करेगा। जिसने अफगान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री उपस्थित होंगे। जिन देशों के विदेश मंत्रियों ने इस बैठक में उपस्थित होना है, चीन, ईरान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान हैं। इस बैठक में अफगान की ताजा स्थिति और आने वाले समय में चुनौतियों और उससे उबरने के लिए समाधान पर चर्चा होगी।


वही 15 अगस्त को काबुल को कब्जा लेने के बाद तालिबानियों ने अंतरिम सरकार घोषित की, 33 सदस्यों की कैबिनेट बनाई गई। वहीं पंजशीर के संघर्ष के दौरान अफगान पूर्व उपराष्ट्रपति अम्रुल्लाह सालेह के भाई को पकड़ लिया गया था। खबर है कि उनकी हत्या कर दी गई। यह खबर भी अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर रही। वहीं यह भी खबर है, कि अफगान पूर्व उपराष्ट्रपति अम्रुल्लाह साले ने प्लायन कर लिया है, और वह तजाकिस्तान पहुंच चुके हैं। किंतु इस खबर को झूठलाया भी जा रहा है। कि उन्होंने देश छोड़ दिया है।


वहीं दूसरी ओर अफगान से प्लायन करने वालों में अधिकतर संख्या महिलाओं की देखी जा रही है। जो सफल हो सके हैं, वह अफगान कि हालिया स्थिति पर अपने निर्णय को ठीक ही कहेंगे। एक महिला ने कहा कि तालिबान राज में वह 20 वर्ष पीछे हो गई है, उनकी पहचान अब बुर्के में छिप जाएगी। इस तथ्य को सत्य साबित कर रहा तालिबान के प्रवक्ता सैयद जैखराउल्लाहा हाशिम ने कहा कि महिलाएं मंत्री पद नहीं संभाल सकती हैं। काबुल में जो महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं उनकी आवाज सारे अफगान की महिलाओं की आवाज नहीं है। कैबिनेट को महिलाओं की जरूरत नहीं है।

अफगान पर भारत-

यूएन में भारतीय राजदूत पीएस तिरुमूर्ति ने बयान दिया कि तालिबान को यह सुनिश्चित करना है, कि उसकी जमीन को आतंकवाद के प्रसार के लिए प्रयोग न किया जाए। पाक में पल रहे आतंकी संगठन लश्कर और जैश अफगान की जमीन को आतंक के प्रसार के लिए प्रयोग में ना ले सकें। ठीक यही बयान भारत में एनएसए चीफ अजीत डोभाल जी ने भी दिया की अफगान की  जमीन का प्रयोग आतंक प्रसार के लिए हो सकता है।

वहीं तालिबान का पुनः उजागर होना सत्ता में होना पहले से ही भारत के लिए चिंता का विषय है। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने ऑस्ट्रेलिया शिक्षा मंत्री से हाल ही में की वार्ता में कहा कि तालिबान का उदय भारत के लिए शिक्षा में चिंता का सबसे बड़ा विषय है।

यूएनडीपी

इन सभी बयानो से इतर यदि संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे (यूएनडीपी) की माने तो अफगानिस्तान संकट में है। और वह गरीबी की तीव्र चोटी पर खड़ा है। यदि अर्थव्यवस्था को सुधारने  में ध्यान ना दिया जाए, तो तय है कि अफगान अगले साल के मध्य तक गरीबी दर में 98 फीसद हासिल कर लेगा। तालिबान के कब्जे से पहले तक 20 वर्षों में जो भी अर्थव्यवस्था का ढांचा तैयार हो सका था। वह बेहतर स्थिति में नहीं है। वह डगमगा गया है, और आगे के लिए यह अफगानिस्तान में सबसे बड़ी भीतरी चुनौती है।

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी | Uttrakhand new Governer | Lt. Gen. Gurmeet singh ji

 उत्तराखंड के नए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह-

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी उत्तराखंड राज्य के नए राज्यपाल का पद ग्रहण करेंगे। यह तकरीबन तय है, कि आने वाले तारीख 15 सितंबर को वे शपथ लेंगे। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान उत्तराखंड के नए राज्यपाल को उनके पद ग्रहण और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।

उत्तराखंड कि अब तक रह चुके राज्यपाल-

उत्तराखंड के राज्यपालों का आज तक का क्रम जाने तो उत्तराखंड के पहले राज्यपाल 9 नवंबर 2000 को सुरजीत बरनाला जी हुए। जो 7 जनवरी 2003 तक इस पद पर रहे इन के पश्चात सुदर्शन अग्रवाल जी 8 जनवरी 2003 से 28 अक्टूबर 2007 तक तत्पश्चात श्री बीएल जोशी जी  29 अक्टूबर 2007 से 5 अगस्त 2009 तक पश्चात मार्गेट अल्वा जी 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तत्पश्चात अजीत कुरैशी जी 15 मई 2012 से 7 जनवरी 2015 तक पश्चात कृष्णकांत पॉल जी 8 जनवरी 2015 से 25 अगस्त 2018 तक पश्चात बेबी रानी मौर्य जी 26 अगस्त 2018 से 8 सितंबर 2021 तक पद पर रहे।

बेबी रानी मौर्य जी-

उत्तराखंड राज्यपाल पद पर अब तक दो महिला राज्यपाल हुई है। जिनमें बेबी रानी मौर्य जी दूसरी हैं, बेबी रानी मौर्य जी  आगरा से हैं। वे आगरा की महापौर रह चुकी है खबरों में यह भी है कि हो सकता है कि बेबी रानी मौर्य जी को उत्तर प्रदेश आने वाले विधानसभा चुनाव में सक्रिय राजनीति में उतारा जाए। उनका आगरा में महापौर के दौर से ही अच्छा प्रभाव है। बीते 26 अगस्त को उनके उत्तराखंड राज्यपाल के पद पर 3 साल पूरे हुए। इसी दरमियान उनका इस्तीफा जिसे राष्ट्रपति जी द्वारा स्वीकार कर लिया गया। पहले खबरों नहीं होता कि हिमाचल राज्य के राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आलेंकर जी को उत्तराखंड राज्य की नए राज्यपाल के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी जाएगी किंतु अब उत्तराखंड के नए राज्यपाल के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी के नाम को स्पष्ट कर दिया गया है

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी-

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी टीवी डिबेट में डिफेंस एक्सपर्ट के तौर पर दिखते रहे हैं वे डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, कॉर्प्स कमांडर (श्रीनगर) सेना में अपनी सेवा के दौरान रहे। लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी को चीन मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। 2016 में सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए हैं। वे उत्तराखंड के नए राज्यपाल होंगे।

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

शहीद मनदीप सिंह नेगी | भारतीय सेना शौर्य और बलिदान | विशेष लेख

भावपूर्ण श्रद्धांजलि
 शहीद मनदीप सिंह नेगी
 गांव बुरासी, ब्लॉक- पाबौ, 
पौड़ गढ़वाल उत्तराखंड

2017 में गढ़वाल राइफल सेना में भर्ती भारत के लाल जवान मनदीप सिंह नेगी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

   यह तो मालूम है। कि मृत्यु का समय हममें कोई तय नहीं करता, ना कोई जानता है। यह अज्ञात है। किंतु जब कारवां आसमानी हो, जीवन लय में हो, तो मृत्यु के विषय में कोई क्यों सोचे।

   जिसके हर कदम राष्ट्र को समर्पित हैं, जीत राष्ट्र को समर्पित है, जुबान जोशीले नारों से राष्ट्र को बयां करती हो, और यह  भक्ति भाव जब उसे सरहद पर मजबूती से खड़ा करती है, तब उनके शरीर पर आई एक कोई खरोंच केवल उसकी ना रहे। उसकी थकान, उसकी भूख, उसकी प्यास राष्ट्र के 130 करोड़ लोगों में बंट  जाए।

   उसकी राष्ट्रभक्ति उसका समर्पण का भाव उसे इतनी शक्ति दे कि उसका साहस कभी फीका ना पड़े। इस राष्ट्र के संपूर्ण यश में उसका योगदान अगणनीय है, वह उस यश की किरणों का स्रोत है। वह इस राष्ट्र का सूरज है।

   उसकी राष्ट्रभक्ति का भाव तो पूरी दुनिया में पूजनीय है। वह भक्ति इतनी प्रबल है, कि प्राणों का संकट भी उसे अडिग रखे है।

   वह हर आंसू जो आज फूट पड़ा है, हर चेहरा जो मायूस है। मन निराश है, यह क्या है, यह वह तपस्या है, यह उस इंतजार की तपस्या है, वह आंसू, वह मायूसी, वह निराशा बलिदान को बयां कर रही है।
और इस तपस्या से हांसिले जिंदगी क्या है, जो है वह इस दुनिया के सुखों से ऊपर है। और इस संसार के किसी अन्य तप का फल नहीं है।

   यह दुनिया का सबसे बड़ा शोक है। मां भारती की रक्षा हमारा धर्म है। और यह धर्म सदियों से निभाया जा रहा है। बस वह सदैव इस धर्म को निभाते बलिदान हुए ने जो छोड़ा है, यह दुख, आंसू, निराशा, इन्हें सहने की शक्ति दे।

   भारत का तिरंगा सबसे ऊंचा लहरा रहा है यह गगन चूम रहा है। यह उस बलिदान का परिणाम है, वह हर पीढ़ी का बलिदान समेटे हैं, वह युगों तक लहराता रहेगा, और हमारी जुबान पर युगों तक उनके बलिदान के गीत रहेंगे।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

Boxer Jaideep Rawat | Step which made him

Boxer Jaideep Rawat

मुझे नहीं मालूम था, कि हमारे यहां से भी कोई लड़का मुक्केबाजी में खुद को आंकता होगा। अपना भविष्य एक मुक्केबाज होने में देखता होगा। तब जब वह इस खेल को जिसमें अपने करियर बनाने के लिए पहली दफा चयन प्रक्रिया में खड़ा था, मुझे तब यह मालूम नहीं था कि वह एक दिन इस खेल से दुनिया के सामने एक चेहरा प्रस्तुत होगा।

   हम क्रिकेट खेल से चयन की आश में थे, और आप भी। यदि आप जयदीप के निवास क्षेत्र से होते तो आप भी क्रिकेट खेल में ही स्वयं को चयनित होने की लाइन में रखते। किंतु जयदीप ने ऐसा नहीं किया, उसने मुक्केबाजी को चुना। मुझे नहीं मालूम यह कैसे हुआ। एक पहाड़ी लड़का जो हम सब के साथ पल-बड़ा हो रहा हो, एक परिवेश, एक विद्यालय, एक से लोग, किंतु कैरियर के संबंध में जब खेल जहन में आया तो जिस खेल को चुना वह मुक्केबाजी। जयदीप जिस क्षेत्र से आते हैं, मैं निश्चित हूं यह कहने में, जयदीप ने यह खेल पहले कभी नहीं खेला था। हां टेलीविजन सुविधाओं के चलते देखा जरूर होगा।

   दरअसल बात है 2014-15 की बैच की भर्ती के लिए महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज देहरादून में आठवीं और नौवीं कक्षा में छात्रों के लिए चयन प्रक्रिया घोषित की जो प्रतिवर्ष होता रहा है। आज भी निरंतर है। मैं उस दिन को उसी दिन में जा कर लिख रहा हूं। आप उस दिन में होकर के पढ़ें।

पौड़ी कंडोलिया का मैदान है। बहुत धूप है। तकरीबन सौ लड़के तो होगें जो महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में भर्ती के इच्छुक हैं। सर्वाधिक बेहतरी जिन छात्रों मैं है, वह मुख्य बाजार पौड़ी के छात्र हैं। किंतु उनमें भी किसी का खेल चयन मुक्केबाजी तो नहीं है।

   सर्वाधिक छात्रों ने फुटबॉल की ओर अपना रुझान दर्शाया, और दूसरे नंबर पर जिस खेल के लिए चयनित होने की इच्छा कंडोलिया मैदान में छात्रों में रही, वह क्रिकेट है।
खेल चयन में वॉलीबॉल, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, एथलीट का भी विकल्प है। किंतु विशेष संख्या में छात्रों की वहां उन खेलों में रुचि नहीं है। और आप को सबसे रोचक बात मैं बताऊं, फुटबॉल जिसमें सर्वाधिक छात्रों ने चयन होने में रुचि दिखाई, एक भी खिलाड़ी चयनित नहीं हुआ। जबकि उनमें भी अच्छे प्लेयर हैं।
खैर यह वृत्तान्त जयदीप रावत को केंद्र में रख कर लिख रहा हूं। उस दिन हुई खेल चयन के लिए प्रक्रियाओं में सभी ने अपना खेल दिखाया इन सब में दो लड़के अपना खेल दिखाने के बाद आते हैं, उनमें से एक जयदीप है, दोनों बताते हैं कि हमारा चयन हो गया है, और हमें देहरादून बुलाया है, एक और चयन प्रक्रिया जो हमारी वहां होनी है, उन दोनों का खेल बॉक्सिंग है।
क्योंकि जयदीप हमारे क्षेत्र से है, तो स्वाभाविक तौर से हम दोनों एक दूसरे का हाल जानने को रुके। मुझे आज भी याद है, उसने कहा “मुझे तो यह स्टेप करवाया है”। वह साथ खड़े दूसरे मुक्केबाजी में चयनित हो चुके लड़के को बॉक्सिंग से संबंधित वही फुटवर्क करके दिखाता है, जो उसे चयन के दौरान करना पड़ा। जहां तक मेरी जानकारी में है, बॉक्सिंग खेल में कंडोलिया में दो ही छात्रों ने रुचि दिखाई थी, और वे दोनों चयनित हुए।आज वह समय उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हो रहा है। वह अपनी लगन और मेहनत से उस खेल में महारथी हो
रहा है। पूरे भारत देश का मान बढ़ाता है, और दुनिया में बॉक्सिंग का एक चेहरा हो गया है।
मुझे लगा कि इससे स्वर्णिम अवसर क्या होगा, इस लेख को सार्वजनिक होने का जब, वह पल जब जयदीप ने मुक्केबाजी की ओर पहला कदम बढ़ाया था, फल दे रहा हो।

   यह केवल जयदीप की सफलता का बखान नहीं है, बल्कि यह वे शब्द हैं, जो उन्हें जो इन शब्दों पर विचरण कर रहे हैं, यह बयां करेंगे कि कैसे एक कदम जीवन को किस ओर ले जाता है, वह कौन सा कदम है।

   सर्वाधिक महत्वपूर्ण जयदीप भारतीय सेना के जवान हैं। राष्ट्र के प्रति समर्पण के भाव का इससे महान और क्या परिचय हो सकता है। और अपनी मेहनत और लगन से राष्ट्र का गौरव हो जाना एक अलग अनुभूति है। यदि जयदीप यह मौका पाए हैं, यह सौभाग्य है।

   मुझे याद है, घर लौटते वक्त जयदीप के पिताजी मेरे पिताजी से इस विषय पर कह रहे थे कि “वह स्पोर्ट्स कॉलेज निकल तो गया है, किंतु खर्चा बहुत हुआ है, वहां हॉस्टल में होने रहने खाने के लिए वह हर सामान को जुटा रहे हैं।
यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है, जो जयदीप को इस दिशा में लाया है। जयदीप के पिता का वह साहस अपने पुत्र पर पूर्ण विश्वास और पूंजी का अधिकांश भाग उसकी बेहतरी के लिए लगाना, यह आज के युग में विरला संयोग होगा कि पुत्र उस विश्वास को निभा सके। यह मेहनत और भाग्य का बेहतरीन संयोग है।
   मूल निवास पैठाणी, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के जयदीप रावत अब लोगों में चैंपियन मुक्केबाज जयदीप रावत हो चुके हैं। मध्यम वर्ग का परिवार जिसमें जयदीप अपने पिताजी की उनके पुत्र के भविष्य के प्रति एक अलग सोच का नतीजा है, कि वह आज मुक्केबाज जयदीप हुए हैं। उनकी मेहनत के समांतर इसी लय में उन्हें सफलताएं मिलती रहें, भविष्य के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।

   यह लेख जयदीप का जयघोष मात्र नहीं है, बल्कि यह लेख पाठकों में भी अपना अगला कदम तय करने की प्रेरणा बन सकेगा।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏