सोमवार, 25 अप्रैल 2022

खबरों में 25 apr 2022 | राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय

खबरों में खास-

सीबीएसई ने इतिहास और राजनीतिक विज्ञान के अपने पाठ्यक्रम से कक्षा ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए कुछ बदलाव किए हैं। गुटनिरपेक्ष आंदोलन, शीत युद्ध पर अध्याय, मुगल दरबारों के इतिहास व औद्योगिक क्रांति से संबंधित अध्याय हटाए गए हैं। इसी तरह कक्षा दसवीं के पाठ्यक्रम में भी कुछ बदलाव किया गया है। इसका तर्क दिया गया कि परिवर्तन पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाए जाने का हिस्सा है। और एनसीईआरटी के द्वारा दिए सिफारिशों के अधीन है, दसवीं के पाठ्यक्रम से खाद्य सुरक्षा से संबंधित अध्याय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव से हटाया गया है। इसके अतिरिक्त भी कुछ बदलावों को लाया गया है।

देश विदेश-

● भारत और अमेरिका के संबंधों पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने कहा, कि यूक्रेन युद्ध के बाद वे दोनों देशों के संबंधों में अवसरों के और खिड़कियां खुलते हुए देख रही हैं। सीतारमण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की वार्षिक बैठकों में हिस्सा लेने के लिए वाशिंगटन गई थी।
● वहीं सीनियर एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में भारतीय पहलवान और ओलंपिक पदक विजेता रवी दहिया ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। जबकि पहलवान बजरंग और गौरव बलियान को रजत पदक प्राप्त हुआ है।

● जहां रूस ने यूक्रेन पर अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए शक्ति का लगातार प्रदर्शन जारी रखा है। उस पर विश्व के राजनीतिक मंच लगभग इस विषय पर सीधा सामना करने को तैयार नहीं, ऐसा प्रतीत होता है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री का यह कहना कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करने का मतलब मगरमच्छ से बात करना है। एक तरफ उनका यह तर्क और वही अगली और वे भारत से युद्ध के रुके जाने की किसी भी किस्म की पहल को स्वागतमय बताते हैं। किंतु वह पहल कौन करे और कैसे? यह सवाल बना हुआ है। उधर यूक्रेन कि स्थितियों में खबर है की कीव में 1084 शब मिले हैं। जिनमें अधिकतर मशीन गन से मारे गए हैं।

● इन्हीं स्थितियों में एक बार फिर इजराइल से खबर जहां पिछले सप्ताह जुम्मे के दिन हुई घटना को वर्ष 2021 में पवित्र रमजान के महीने इजराइली सैनिकों द्वारा अल अक्सा मस्जिद में व आसपास के इलाकों में हुई कार्यवाही जैसा ही देखा जा सकता है। अल अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद मुस्लिम समुदाय तीसरा पवित्र स्थान मानता है। इन हमलों पर ईरानी राष्ट्रपति अब्राहिम रैसी ने इजरायल को गंभीर परिणाम भुगतने की हिदायत दी है। वही उग्र पंथी संगठन हमास ने भी नाकेबंदी मजबूत कर इजराइल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। यह अशांति की स्थितियां पैदा कर सकता है।।

रविवार, 24 अप्रैल 2022

गुप्त शासकों की विवाह सम्बन्ध नीती

गुप्त वंश के राजाओं में विदेश नीति को लेकर विवाह संबंध का अहम स्थान है। उन्होंने इसका उपयोग अपने राज्य के विस्तार और शासन के विस्तृत क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण संबंधों को कायम रखने के लिए किया। इस प्रकार के सन्धियों में गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त प्रथम जिसने लिच्छिवियों  की कन्या राजकुमारी कुमार देवी से विवाह कर लिया। इससे उसे आर्यव्रत में मान और गौरव प्राप्त हुआ। समुद्रगुप्त स्वयं को “लिच्छवी दौहित्र” अपने अभिलेखों में कहता है। अर्थात लिच्छिवियों की पुत्री का पुत्र और इस प्रकार अपनी मातृ संबंध को अपना गौरव दर्शाने का प्रयत्न करता है।

 अर्थात वैवाहिक संबंध का परिणाम प्रभावपूर्ण था। 

यह भी बताया गया है। कि चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्रगुप्त ने शकों और अन्य राजवंशों के शासकों से उनकी कन्याओं को उपहार स्वरूप ग्रहण किया था। इस तरह से निकटवर्ती राज्यों  से संबंधों को अधिक मैत्रीपूर्ण बनाया गया। 

ठीक इसी प्रकार चंद्रगुप्त द्वितीय ने एक नागकन्या राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह कर अपना प्रभाव बढ़ाया। उससे उनकी एक पुत्री का जन्म हुआ। उसका नाम प्रभावती गुप्ता था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने बड़ी समझदारी से अपनी पुत्री का विवाह वाकाटक राजा रुद्र सिंह द्वितीय से कर दिया और उससे एक मैत्री का और सहयोग संबंध स्थापित कर दिया। वाकाटकों से उसे लाभ हुआ। क्योंकि वाकाटक जिस भौगोलिक स्थिति में थे, वह गुजरात और सौराष्ट्र के पश्चिम क्षत्रपों के आक्रमण की दशा में उनकी सेवा या तिरस्कार का स्थान हो सकता था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री वाकाटक शासक को सौंप यह सब अपने पक्ष में कर लिया। क्योंकि रूद्र सेन द्वितीय का काल छोटा रहा और उसकी मृत्यु के बाद उसके दो अव्यस्क पुत्र दिवाकर सेन और प्रवरसेन द्वितीय की संरक्षिका के रूप में गद्दी पर मुख्य रूप से शासन प्रभावती गुप्ता ने किया। उसने 390 से 410 ईसवी तक इसी रूप में शासन किया। यह चंद्रगुप्त द्वितीय के लिए एक अहम समय बन गया। जब उसने पश्चिम क्षत्रपों को प्रास्त कर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला दिया।

 विवाह संबंध गुप्तों की नीति का अहम अंग रहा। जो इतिहास के प्रश्नों में उनके सफल शासन का कारण प्रतीत होता है।

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

लिच्छवी गणराज्य का संपूर्ण इतिहास | प्राचीन भारत

आम्रपाली वही कन्या है, जिसे नगरवधू कहा गया। शाक्यमुनि बुद्ध के साथ उसकी एक कथा हम सब सुनते हैं। वह लिच्छवियों में थी। जब महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ, तो लिच्छवियों ने भी दीपमाला जलाई। कहते हैं कि जैन धर्म उनका राज धर्म बन गया था। बताया गया है कि वह लिच्छिवी ही गणराज्य था, जिनकी राजकुमारी कुमार देवी से गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त प्रथम के विवाह के कारण ही चौथी सदी ईस्वी में गुप्त वंश को मान और गौरव प्राप्त हुआ। 

 एक टीवी धारावाहिक आता था, चाणक्य उसमें गणराज्य मैंने सुना था। कि प्राचीन काल में गणराज्य थे। लिच्छिवी उन्हीं प्राचीन गणराज्यों में एक था। लिच्छवी गणराज्य का उदय लगभग 700 ईसा०पूर्व माना गया है। इनका राज्य वैशाली में था।

हर्यक वंश लगभग छठी सदी ईसा पूर्व प्रकाश में आया। बिम्बिसार का पुत्र आजातशत्रु जिसकी मां लिच्छिवियों में से थी, अपने पिता का वध कर शासन हासिल करता है। और लिच्छिवियों के अंत का संकल्प करता है। इसके दो कारण बताए जाते हैं।

   गंगा के पास के एक बंदरगाह जिस के आधे भाग पर आजातशत्रु और आधे भाग पर लिच्छिवियों का अधिकार था। उसके समीप ही एक हीरे की खान थी। जिस पर भी आधा-आधा का समझौता था। किंतु लिच्छिवियों ने यह पूरे हीरे ले लिए, और आजातशत्रु  अप्रसन्न हो गया। उसने उन्हें दंड देने का प्रण किया। किंतु उनकी बड़ी संख्या को देखकर वह ऐसा ना कर सका।

एक अन्य कारण में कहते हैं, कि आम्रपाली नाम की एक लिच्छिवी कन्या वैशाली में रहती थी। लिच्छिवियों का कानून था, कि जो सर्व सुंदरी हो उसे विवाह की अनुमति नहीं, और वह समस्त जनता के आनंद के लिए सुरक्षित रहेगी। इससे आम्रपाली नगरवधू हो गई। जब बिंम्बिसार ने उसके विषय में सुना, तो वह वैशाली गया। और वह आम्रपाली के यहां 7 दिन ठहरा। जबकि लिच्छिवियों से उसका वैर था। कहते हैं, कि आम्रपाली का पुत्र हुआ। जिसे बिंदुसार के पास भेज दिया गया। क्योंकि वह निडर अपने पिता के पास पहुंचा, इसलिए उसका नाम अभय हुआ।

 विद्वानों का मत है, कि यह विवाह संबंध लिच्छिवियोंऔर बिंम्बिसार के मध्य युद्ध की समाप्ति पर हो पाया। अभय में लिच्छिवियों का रक्त था। अजातशत्रु ने इसलिए भी लिच्छिवियों के अंत का प्रण किया, क्योंकि यदि लिच्छिवी अभय जिससे वे बहुत प्रेम करते थे, का साथ देने का निर्णय करते तो, आजातशत्रु कभी गद्दी हासिल नहीं कर पाता।

इसलिए लिच्छिवियों के अंत के लिए अजातशत्रु ने वषक्र को बुद्ध के पास राय के लिए भेजा। बुद्ध ने कहा कि किन्हीं भी अन्य उपायों से लिच्छिवियों को ऊपर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। या तो उन्हें उपहार देकर संतुष्ट किया जाए, या प्राण रक्षक संघ को समाप्त करना आवश्यक है।

अजातशत्रु ने षड्यंत्र किया यह प्रसिद्ध किया गया, की आजाद शत्रु और मंत्री वषक्र में झगड़ा हो गया है। वषक्र ने लिच्छिवियों के यहां प्रवेश पा लिया, उन्होंने उसका स्वागत किया। उसने उन्हें अपने प्रशासनिक क्षमता से प्रभावित किया, और वे उसकी बातें मानने लगे। अपना श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर लेने के बाद वषक्र ने उनमें असंतोष पैदा करना आरंभ किया। उनमें फूट पैदा होने लगी। अब सभी लिच्छिवी एकत्र होकर कार्य करने को तैयार न थे। इस काम में वषक्र को केवल तीन वर्ष लगे। अजातशत्रु ने आक्रमण का आदेश दिया। कहते हैं, कि खुले फाटकों ने उसके आक्रमण का स्वागत किया। जब संकट की घंटी बजी तो लिच्छिवियों  ने कहा “धनी और वीर एकत्र हो जाएं हम तो भिखारी और ग्वाले हैं”

लिच्छिवियों ने आजातशत्रु को अधिराज्य व भेंट देना स्वीकार किया। यह माना गया, कि उन्हें आंतरिक स्वायत्ता बनाए रखने की अनुमति दी गई होगी। मगध साहित्य में भी उनका उल्लेख है। मौर्यौं के बाद भारत की बड़ी शक्तियों में यवन, शुंग, कण्व, सातवाहन, शक कुषाणों के बाद गुप्तों के महान उदय से ठीक पहले भारत आर्यव्रत प्रदेश छोटे-छोटे राज्यों में बंट चुका था। जिन्हें समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य में विलीन कर दिया था। उस समय पर ही लिच्छिवियों का पुन:उदय देखा गया है। कहा गया कि, चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छिवियों की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया, और यही कारण से गुप्त वंश को गौरव व मान हासिल हुआ।

  कौमदीहोत्सव में बताया गया, कि चंद्रसेन मगध के राजा सुंदर वर्मा का दत्तक पुत्र था। चंद्रसेन ने सुंदर वर्मा से राजगद्दी छीन ली। लिच्छिवियों ने उसकी सहायता की थी। क्योंकि उसने लिच्छिवियों की राजकुमारी से विवाह कर लिया था। किंतु सुंदर वर्मा का एक पुत्र था, कल्याण वर्मा जिसके लिए मंत्रियों, गवर्नरों ने विद्रोह का षड्यंत्र किया। जिससे सीमा प्रदेशों में बढते विद्रोह को दबाने को चंद्रसेन को पाटलिपुत्र छोड़नी पड़ी। यह षड्यंत्र कल्याण वर्मा को गद्दी पर बैठाने को था। कल्याण वर्मा ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष में कौमदीमहोत्सव, जो नाटक की कथावस्तु था, का आयोजन किया।

 इस नाटक में लेखक ने लिच्छिवियों को मलेच्छ कहा है। यह सुझाव दिया गया कि यह चंद्रसेन ही चंद्रगुप्त प्रथम है। इसका आधार यह है, कि चंद्रगुप्त प्रथम की विवाह लिच्छिवियों की पुत्री से था, और लिच्छिवियों ने उसकी मदद की थी, और नाटक में भी ठीक यही घटना चंद्रसेन के साथ हुई। किंतु चंद्रसेन को राजगद्दी के पदच्युत कर दिया गया। जबकि चंद्रगुप्त के साथ संभवत: ऐसा नहीं था। या हुआ हो। किन्तु उसके बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त गुप्तों का यशस्वी राजा हुआ। इस पर स्पष्ट कुछ नहीं कहा जा सकता। किंतु यह तो स्पष्ट है, कि गुप्तों के राजा चंद्रगुप्त प्रथम का लिच्छिवियों के कन्या से विवाह था। क्योंकि समुद्रगुप्त ने अपने अभिलेखों में स्वयं को “लिच्छिवी दौहित्र” अर्थात लिच्छिवियों की पुत्री का पुत्र कहा है।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

आज तक जीवित सामाजिक दशा का प्राचीन बीज | diwakar

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

जाने कितने लोग इस सामाजिक व्यवस्था में जीत थे, और जीते रहे। आज भी वे उसका अनुसरण करते हैं। डॉक्टर अंबेडकर ने समाज की व्यवस्था को चुनौती दी। 

समाज में उन्हें सर्वाधिक गिरी स्थिति में माना गया। उस समुदाय के प्रति तिरस्कार का भाव था। यह आज तक हमारे समाज की व्यवस्था का हिस्सा है। मनु ने शूद्रों को अन्य तीन वर्णों की सेवा का आदेश दिया था। उन्होंने साफ किया कि यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके लिए कठोर दंड का विधान है। किंतु प्राचीन वैदिक काल में जब वर्ण व्यवस्था का उदय ऋग्वेद से हुआ, तो ऐसा नहीं था। कहा जाता है, कि तब कार्य के आधार पर वर्ण निर्धारण होता था।

 ब्राह्मण और क्षत्रिय तो अपने कार्यों के आधार पर दूसरे वर्ण के भी पहचाने गए। इसके कई उदाहरण दिए जाते हैं। परशुराम ब्राह्मण थे किन्तु उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। द्रोणाचार्य एक क्षत्रिय कुल के थे, किंतु उन्होंने ब्राह्मण धर्म का पालन किया। राजा जनक क्षत्रिय होकर भी वेदों के महान ज्ञाता थे। क्षत्रिय और ब्राह्मणों में विवाह संबंध होते थे।

 शूद्रों के विषय में कहते हैं कि ब्राह्मण और क्षत्रिय को शूद्र कन्या से विवाह कर सकते थे, किंतु शूद्र ऐसा नहीं कर सकते थे। यह प्रारंभिक समय में था, हालांकि बाद में नियम और कठोर हुए जिससे ऐसा करने की अनुमति किसी को नहीं थी।

ब्राह्मण और क्षत्रिय तो राज्य के दो पहिए थे। प्रतीत होता है कि एक सीधा प्रशासक था, तो दूसरा मुख्य सलाहकार। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं, कि यदि राजा जो क्षत्रिय होते थे। समाज पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते थे, तो उसके लिए उन्हें समाज में अपने कठोर तप और कठिन जीवन और ज्ञान के कारण सम्मानित और देव तुल्य पूजनीय ब्राह्मणों के सहयोग से सहायता मिलती थी। इससे समाज में शासन प्रबंधन की व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती थी। वही राज दरबार में भी ब्राह्मण ऊंचे पदों पर होते थे, और राजकाज में मुख्य भूमिका निभाते थे। ब्राह्मणों का आम जनमानस पर खास प्रभाव रहता था, लोगों में उनका सम्मान था। उनका कार्य था, जनता की शांति समृद्धि के लिए यज्ञ करना, भविष्यवाणी करना, शिक्षा का प्रसार करना आदि। वे स्वयं आजीवन धर्म का कठोर पालन करते थे। क्षत्रिय का कार्य राज्य की रक्षा था। वैश्य व्यापारी वर्ग था। उनका अपना संगठन ठीक स्थिति में था।

 वैदिक युग में शूद्रों को जन्म के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जाता था। कोई व्यक्ति अपने कार्य के आधार पर शूद्र कहा जाता था। किंतु समय के साथ वर्ण व्यवस्था में जटिलता आ गई, और जन्म के आधार पर उनका निर्धारण होने लगा। इस दशा में शूद्रों का समाज में जो अब एक जाति बन गई सबसे निचला स्थान हुआ। इस व्यवस्था में बुद्ध के जन्म के पश्चात क्रांति आई। महात्मा बुद्ध के धर्म ने समाज को नयी रहा मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रदान की। बुद्ध के धर्म ने वैदिक सामाजिक व्यवस्था जो अब तक जटिल हो गई थी, और एक वर्ग को जन्म के साथ ही निम्न जाति की पहचान दे रही थी, पर सीधा वार किया। बौद्ध धर्म के तीव्र उन्नति का सबसे बड़ा कारण भी यही था, कि बुद्ध ने बिना भेदभाव के हर व्यक्ति के लिए मोक्ष के द्वार खोल दिए। इस धर्म ने समाज के निम्न वर्ग या वंचित वर्ग को ईश्वर की प्राप्ति के लिए एक राह प्रकाशित की, और इसी कारण तथा भगवान बुध के प्रभावशाली व्यक्तित्व से बड़ी संख्या में जनमानस बौद्ध धर्म अपनाने लगा। बौद्ध और जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा, और इस अहिंसावादी धर्म की तमाम बातों ने प्राचीन वैदिक धर्म को अपने आप में परिवर्तन के लिए प्रेरित किया। समाज का बड़ा भाग बुद्ध के धर्म का अनुयाई बना। वैदिक व्यवस्था में शिथिलता आने लगी।

मौर्य काल में राज्य का प्रबंध काफी सशक्त था, मौर्योत्तर कहीं-कहीं ऐसा पढ़ने को आता है, कि राज्य का प्रबंध बहुत सशक्त ना होने से शूद्रों को काफी स्वतंत्रता हासिल हुई, जिससे वे स्वतंत्र उन्नति कर सके। यहां मौर्योत्तर काल में स्त्रियों की स्थिति को मौर्य काल की अपेक्षा अधिक गिरा हुआ बताया गया है। इसमें एक तथ्य कि मौर्य काल में स्त्री को तलाक की अनुमति थी, किंतु मनु इसके पक्ष में ना थे, इससे यह कहा जा सकता है कि मौर्योत्तर काल में स्त्रियों को तलाक की अनुमति नहीं थी, जबकि पुरुष हमेशा से ऐसा कर सकता था। यह विदित है कि, मनु ने अपना ग्रंथ लगभग डेढ़ सौ ईसा पूर्व लिखा, जो शुंगों के काल से अनुसरण में रहा।

 मौर्यों के अंत तक बौद्ध धर्म खूब उन्नति प्राप्त करता रहा। क्योंकि मौर्यों ने इसे संरक्षण दिया। किंतु मौर्योत्तर काल में शुंगों के साथ ही  बौद्ध धर्म की उन्नति पर अंकुश लगता है। क्योंकि वे ब्राह्मण राजा थे और उन्होंने ब्राह्मण धर्म के पुनर्जागरण का कार्य किया। समाज में अब वर्ण व्यवस्था अधिक जटिल हो चुकी थी। यह व्यवस्था भारतीय समाज में एक अहम कड़ी रही। जिसकी छाप आज तक स्पष्ट होती है। किन्तु समय के साथ शिक्षा के प्रसार ने समाज में इस व्यवस्था को कुप्रथा कहा। बाबासाहेब और उनकी तरह समाज सुधारक नेताओं ने अपने तर्कों से समाज को एक नई राह दी। और बाबासाहेब आधुनिक मनु की संज्ञा हासिल करते हैं।।

जलियांवाला बाग 13 अप्रैल 1919 | लेख

उस बाग के मध्य में एक कुआं था। जाने कितने ही लोग उसमें कूद गए। वो दिन था 13 अप्रैल 1919 और अमृतसर का जलियांवाला बाग।

जनरल रेगनॉल्ट डायर को इस हत्याकांड का सबसे बड़ा आरोपी माना गया, और यह ब्रिटिशों ने भी स्वीकार किया। किन्तु बदले में उसे सिर्फ भारत में अपने पद से रिजाइन करना था, और ब्रिटेन लौटने का आदेश दिया गया। उसका कहना था, कि वह अपनी ड्यूटी निभा रहा था। यदि वह गोलियां नहीं चलाने का आदेश नहीं देता तो संभवत वह भीड़ उसके सैनिक टुकड़ी पर हमला कर देती।

जब दस-पन्द्रह हजार के उस विशाल भीड़ पर गोलियां चलनी आरंभ हुई, तो खुद साथ खड़े अंग्रेजी अफसर के चेहरे के भाव बिखर गए। किंतु वह बताते हैं, कि डायर खुद दौड़कर उस जगह गोलीबारी का संकेत करते जहां भीड़ अधिक थी। लोग बाग की ऊंची दीवारों को लांघने की कोशिश करते।  बाग की भीड़ जैसे जमींदोज हो गई। वहां कहीं कहीं तो गोली का निशान बने घायलों और शवों के ढेर लगने लगे। कुछ लोग तो भीड़ के भगदड़ में वही दबकर अपने प्राण खो दिए।

   वहां 4 वर्ष का एक बच्चा जो अपने दादा जी के साथ गया था, आज बताते हैं, कि गोलियों के आदेश के बाद उनके दादाजी उन्हें सैनिकों से दूर दीवार की ओर लेकर  गए और दीवार से फेंक कर दूसरी तरफ पहुंचा दिया। उनका कंधा वहां टूट गया, और वह दृश्य वह कभी ना भूल सके। 

  वहां मरने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगाते हैं, तो हजारों की संख्या बताई जाती हैं। हालांकि भारतीय ब्रिटिश सरकार ने उसमें सवा तीन सौ लोगों की मृत्यु को दर्शाया।

बताते हैं, कि कई घायल लोग तो अपने घर लौट कर मृत्यु को प्राप्त हुए। तब ऐसा माहौल तैयार हो गया, कि जलियांवाला बाग में उस दिन गए तमाम लोग सरकार के सीधे निशाने पर हैं। इससे लोग यह नहीं बताते कि उनके संबंधी उनके परिवार के कोई वहां जिलियांवाला बाग में उपस्थित थे, या मारे गए हैं।

वह घटना भारत को सीधे तौर से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कर गई। महान क्रांतिकारियों ने इस घटना के बाद जन्म लिया। किंतु उन निर्दोषों को जो बर्बरता का शिकार हुए उनकी महान शहादत के लिए भारत का आज, आज भी उन्हें याद करता है। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

उपन्यास देवदास पर्दे पर | शहंशाह कुंदन लाल सहगल

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगाली उपन्यास देवदास को आज के समय में उतना ही जीवंत और लोकप्रिय रखने में जितना कि वह 1920s  के दशक में रहा होगा, पर्दे पर अभिनय का योगदान रहा है। उन पृष्ठों के किरदारों देवदास, पार्वती, चंद्रमुखी, को क्रमश: शाहरुख, ऐश्वर्या और माधुरी के चेहरों ने हरकतें दी, यूं जैसे जीवित कर दिया हो।

   विमल रॉय के निर्देशन में यह उपन्यास पूर्व में भी फिल्म का रूप ले चुका था। जहां दिलीप साहब देवदास की भूमिका में थे, और सुचित्रा सेन और विजयंतीमाला मुख्य अदाकारा थी। यह फिल्म 1955 में प्रकाशित की गई थी।

  किंतु देवदास पर बनी पहली फिल्म 1936 में प्रकाशित हुई थी। जिसमें के० एल० सहगल साहब, देवदास की मुख्य भूमिका में थे। साथी मुख्य अदाकारा जमुना और राजकुमारी जी थे। यूं कहें कि देवदास का पर्दे पर होने का पथ इन्होंने ही प्रशस्त किया था।

   कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा जगत के पहले सुपरस्टार कहे जाते हैं। अभिनय के साथ में गायकी में बचपन से ही अपनी जन्मभूमि जम्मू में मशहूर थे। उनके पिता जम्मू में तहसीलदार थे वहां महाराजा प्रताप शासक थे। बचपन में सहगल ने एक बार जब राजा के दरबार में हो रहे सभा में मीरा का एक भजन गया, तो उन्हें बड़ी प्रशंसा मिली। वहां से सारे जम्मू में उनकी लोकप्रियता हो गई। रामलीला में मां सीता का अभिनय के लिए आमंत्रण मिलने लगे। जब वे मां सीता का अभिनय करते अपने गीतों और अभिनय से मां सीता का इतना जीवंत रूप सामने ले आते कि दर्शक रो ही पड़ते।
उनका गायन के प्रति लगाव और समर्पण का भाव उन्हें अभिनय के संसार में अनेक बाधाओं के बावजूद ले आया।

   "पूरणभगत" नाम की फिल्म में उनके गाए भजनों ने पूरे देश के हर घर को उनकी आवाज से वाकिफ कर दिया। बहुत से जानकार मानते हैं, कि बीसवीं सदी में मिर्जा गालिब के इतने लोकप्रिय होने का कारण सुर सम्राट सहगल थे। क्योंकि सहगल ने मिर्जा गालिब के बनाए गजलों को अपनी आवाज में अमर कर दिया।
"यहूदी की लड़की" फिल्म में सहगल साहब ने गालिब की ग़ज़ल गायी, जहां वे प्रिंस मार्कस की भूमिका में थे। यह फिल्म जर्मन तानाशाह हिटलर के यहूदियों पर अत्याचार की कहानी को दर्शाती है।

   उनके बाद के लगभग सभी गायक उनके गायन शैली और गायकी को सुनकर प्रभावित रहे हैं। लता जी, रफी साहब, किशोर कुमार जी, मुकेश जी आदि उन्हें अपना गुरु मानते हैं। जब गायक मुकेश जी ने गीत गाया “दिल जलता है तो जलने दो” लोगों ने यही सोचा कि यह सहगल गा रहे हैं। मुकेश जी ने इतनी खूबसूरती से सहगल साहब को अपनी आवाज में उतारा था।

   आज भारतीय सिनेमा जगत किस मुकाम पर है। किंतु कभी यह सड़क पर कुछ लड़कों की टोली के साथ एक ही शॉट में पूरी फिल्म रिकॉर्ड कर रहा था। वह आधार रख रहा था, आज सिनेमा के अपार सौहरत और शोर का।
लेकिन तब सब मूक था।।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

पत्र व्यवहार पर एक संस्मरण लेख

आज एक पत्र हाथ लगा। मेरे चाचा जी की एक पुरानी डायरी के पन्नों के बीच अभी भी ठीक से सुरक्षित है। पत्र 1998 का है।

    पत्र के विषय में कुछ बातें मुझे याद आती है और कुछ पता हैं। पहली बात तो मेरे दादाजी के संबंध में है, वह बताते हैं। कि उनकी नौकरी के लिए यही कोई 1960-70 के दशक में उन्हें एक परीक्षा देनी पड़ी। जिसमें उन्हें दो सवाल हल करने थे। पहला तो गणित पर आधारित था, और दूसरा पत्र लेखन से संबंधित था। 

   लोग खूब दिल से चिट्ठी लिखते थे। तब कई महीनों और सालों तक भी बात नहीं हो पाती थी। आज तो किसी से जब चाहो बात हो सकती है। ऐसे में ज्यादातर बातों में दम नहीं रह जाता। क्योंकि रोज तो बात होती है। करने को बातें कम पड़ जाती हैं। लेकिन तब ऐसा नहीं था। कभी तो ऐसा भी होता, कि दोस्त की शादी आज है, और संदेशा एक महीने बाद मिलता। क्योंकि डाकिया का बहुत काम था। सब कुछ पैदल था। दूर-दूर गांव तक पैदल जाना होता था, और भी कई प्रकार की समस्याएं हो सकतीं हैं।

  खबरें रेडियो से मिल जाती थी। छुट्टी पर आए सैनिकों के आदेश भी रेडियो पर जारी होते थे। ऐसा ही एक दृश्य “तेरी सौं” गढ़वाली फिल्म का मुझे याद है। जब मानव के पिता को युद्ध की जानकारी मिलती है, और छुट्टी रद्द होने का आदेश की सूचना रेडियो से मिलती है। लेकिन सैनिक अपने परिवार जनों से पत्र व्यवहार में ही बात कर सकते थे। “संदेशे आते हैं” जैसा गीत उस समय को सामने रखता है। चिट्ठी नाम से एक गढ़वाली गीत “ना चिट्ठी आई तेरी ना रेबार कैमा” मुझे याद आता है, जो चक्रचाल फिल्म में फिल्माया गया था।

   10वीं और 12वीं में बोर्ड परीक्षा में एक सवाल पत्र लेखन का रहता ही है। यह पत्र लेखन की विधा का और उसके महत्व को आधुनिक संचार के माध्यमों में जाहिर करता है। भारतीय इतिहास और उसमें आधुनिक भारत का इतिहास गहराई से समझने में तत्कालीन शासक और अन्य व्यक्तियों के पत्र व्यवहार का संग्रह भी खास भूमिका निभाता है। 

   छोटे में जब हम स्कूल में पत्र लेखन से इतने थे। तो हमें वह पत्र सेवा में श्रीमान से आपका आज्ञाकारी शिष्य तक शब्द के बाद शब्द वैसा ही याद था। पत्र प्रधानाचार्य महोदय को लिखना होता था, कि मुझे बुखार आ गया है, और मैं स्कूल नहीं आ सकता हूं। तब घर में यदि शादी भी हो, तो हम बुखार के ही नाम से प्रधानाचार्य को छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र लिखते थे। फिर धीरे-धीरे सीखे की बुखार की जगह पर जुकाम भी हो सकता है।

   मैंने जो पहली चिट्ठी लिखी डाकबक्से में डाल दी। पता नहीं किसी ने उसे देखा भी होगा या नहीं। वह अमर उजाला जिला मुख्यालय के लिए थी। तब मुझे पेंटिंग का बहुत शौक लग गया था। मैं तीसरी या चौथी कक्षा में रहा हूंगा। अमर उजाला तब एक सप्ताह में शुक्रवार के दिन एक खास पेज लिखता था। जिसमें बच्चों को उनकी पेंटिंग्स और नाम-पता के साथ छपता था। पहली बार जब मैं डाकखाना मास्टर को वह पत्र दिया। तब या तो कोई शुल्क नहीं लिया, या पांच रुपये लिए थे। मुझे ठीक से याद नहीं पर 5 से ज्यादा रुपए नहीं लिए थे।

  अगली बार से तो स्कूल के और भी पेंटिंग के उस्ताद मिलकर हम अपनी पेंटिंग अमर उजाला मुख्यालय पते पर भेजते थे। फिर एक बार अमर उजाला ने मेरी पेंटिंग को शामिल किया था।।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏