बुधवार, 28 सितंबर 2022

अंग्रेजों की प्रशासन की नीति | ईस्ट इंडिया कंपनी

अंग्रेजों की प्रशासन की नीति

कंपनी का निवेदन ब्रिटिश संसद तक पहुंच चुका था। वह ऋण चाहते थे, क्योंकि कंपनी घाटे में चल रही थी। तब के ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने अपने स्तर से जांच कमेटी बिठाई और मालूम हुआ कि कंपनी के दिवालियापन के पीछे भ्रष्टाचार का हाथ है। 1773 में कंपनी पर लगाम के लिए रेगुलेटिंग एक्ट लाया गया। और अनेकों उपबंधों में एक अब कंपनी के कर्मचारी भारतीयों से उपहार नहीं ले सकेंगे, साथ ही निजी व्यापार पर भी प्रतिबंध कर दिया गया। क्योंकि कंपनी के कर्मचारी स्वयं ही लाभ के लिए अपने निजी व्यापार को ही वरीयता देते थे। कंपनी के लाभ हानि को नहीं। इस समय जब उपहार, निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया, तो प्रशासकों को संतुष्ट और खुश रखने की नीति को समझिए उसी समय कंपनी के कर्मचारियों के वेतन में भी वृद्धि की गई। प्रशासनिक कर्मचारियों से सत्ता की मांग होती है, कि वे ईमानदार और निष्ठा कायम रखें। यह तभी हो सकता है, जब प्रशासनिक कर्मचारी स्वयं संतुष्ट हों। अन्यथा वह भ्रष्टाचार की ओर मुड़ता है। सत्ता यह ख्याल रखती है। और भरसक प्रयत्न करती है, कि प्रशासन में उसके कर्मचारियों को बेहतर जीवन दिया जाए। अन्यथा सर्वाधिक योग्य वर्ग समाज का क्यों प्रशासन में सेवा देने को जाएगा।

1786 में कार्नवालिस भारत आया, एक एक्ट के साथ। और कुछ नई शक्तियों के साथ आता है। वही जब वह भारत आया तो उसने कर्मचारियों का वेतन में अच्छी वृद्धि कर दी। और यही था, कि 1793 में ब्रिटिश संसद से आया चार्टर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन को भारतीय राजस्व से ही दिया जाए ऐसा प्रावधान किया। कार्नवालिस ने ऐसा इसलिए किया कि उसको लगता होगा, कि कर्मचारी अपने देश से दूर, अपने परिवार से दूर हैं, निजी व्यापार से भी लाभ नहीं उठा सकते उस पर भी प्रतिबंध है, इसलिए वेतन बढ़ा कर उनका आंतरिक आक्रोश दफन किया जा सकता है। ऐसा करना कर्मचारियों को कंपनी के प्रति निष्ठावान बनाता है।

कोई भी राष्ट्र अपने प्रशासकों को इसी प्रकार प्रशासनिक सेवा में सेवा के प्रति निष्ठावान बनाए रखता है।

1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद जब ब्रिटिशों को बंगाल का क्षेत्र जिसमें बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे, प्राप्त हुआ। उन्होंने व्यवस्था स्थापित कि उन्हें मात्र अपना स्वार्थ जिसमें कंपनी को सर्वाधिक लाभ हासिल करना था। लॉर्ड क्लाइव ने द्वैध शासन स्थापित किया। कंपनी ने राजस्व वसूलने का अधिकार लिया, और नाममात्र का बंगाल के शासक को राज्य के अन्य सभी प्रबंधन के मामले सौंप दिये अर्थात सारे उत्तरदायी मामले पर जहां जनता को जवाब देना था, बंगाल के शासक को सामने रखा और स्वयं मात्र राजस्व का लाभ उठाया। और राजस्व वसूली के लिए आप जानेंगे, तो उन्होंने स्वयं को व्यवस्था में नहीं आने दिया बल्कि राजा सिताब राय और मोहम्मद रजा खां की सहायता से अथवा उन्हें ही राजस्व वसूली के कार्य के लिए नियुक्त किया।
   मोहल्ले में लोग सार्वजनिक कूड़ा उठाने वाली गाड़ी को किराए देने के संदर्भ में आक्रोश में थे, लेकिन जो व्यक्ति कूड़े की गाड़ी की उस व्यवस्था का मालिक है, वह अपने ही क्षेत्र का था। और जब वह गाड़ी से उतरा तो जैसे वहीं समस्या का समाधान हो गया। और लोगों का आक्रोश शांत हो गया।

राजस्व को वसूलने के संदर्भ में अंग्रेजों की भी कुछ यही प्रशासन की नीति थी।

सोमवार, 26 सितंबर 2022

जुलियस सीजर | रोमन साम्राज्य | प्रकरण- 1

जुलियस सीजर- रोमन साम्राज्य



दो नाम आप बिल्कुल कंठस्थ कर लें जुलियस सीजर और ऑक्टेविन। एक जो जिससे हम आरंभ करेंगे और दूसरा जिस तक हम पहुंचेंगे। जुलियस सीजर एक गंभीर स्वभाव का आदमी है। बड़ी सैनिक नेतृत्व की क्षमता रखने वाला और अपनी सैनिक कुशलता के कारण ही सैनिकों का उस पर विश्वास भी अटूट है। वहां रोम में उसका मित्र पोम्पी मैग्नेस, जुलियस सीजर की ही तरह खूब लोकप्रिय और रोम सीनेट में ऊंचा स्थान रखता है। सीनेट का तात्पर्य संसद से है। वह एक गणराज्य था, रोमन गणराज्य।

 यह वह समय था, कि रोम यूरोप के तमाम इलाकों को जीतता जा रहा था। वहीं कुछ अफ्रीका के भागों पर भी वह अपना वर्चस्व हासिल करने में सफल रहा। किंतु वह स्वयं रोम पर शासन न कर सका। वहां बड़ी अव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता ने जन्म लिया। ऑक्टेविन वह है जो यह सब देख रहा है और समझ रहा है।

जुलियस सीजर और पोम्पी मैग्नेस जो साथ थे तो गणतंत्र में स्थिरता थी, किंतु यह भी था, कि संसद की प्रक्रिया जिसे पोम्पी मैग्नेस संभाल रहा था। उसी समय सैनिक कार्यवाही कर यूरोप के बड़े भाग पर विजय का पताका लहराने जुलियस सीजर के नेतृत्व में सेना लड़ रही थी। शक्ति का यही विभाजन जुलियस सीजर और पोम्पी मैग्नेस के मध्य बड़ी दूरी ला देता है। क्योंकि सेना जिस पर जुलियस सीजर अपना पूरा नियंत्रण रखे है, वहीं सीनेट अथवा संसद के तमाम प्रतिनिधियों में अधिक प्रभावशाली और अधिक प्रतिनिधियों का पोम्पी मैग्नेस को समर्थन था। हालांकि सीनेट के तमाम प्रतिनिधि सीधे रुप में जूलियस सीजर का विरोध नहीं करते, क्योंकि वह जुलियस सीजर का सामर्थ्य समझते हैं। वही पोम्पी मैग्नेस भी जब तक कि सीजर रोम से बाहर युद्ध क्षेत्र में था, लंबे समय तक सीनेट के प्रतिनिधियों का अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से जनता का विश्वास सीजर पर बनाए रखने का प्रयास करता है। क्योंकि वह सीजर का गहरा मित्र है। लेकिन फिर भी सीजर और पोम्पी मैग्नेस के मध्य खाई बनती गई। जिन वर्षों में सीजर यूरोप के तमाम इलाकों पर विजय पा रहा था, वह सेना का नेतृत्व कर रहा था। तब रोम में शांति व्यवस्था पोम्पी मैग्नेस ही बनाए रखा था। लेकिन दो अलग-अलग कार्यो ने इन दो समान रूप से लोकप्रिय व्यक्तियों की समृद्धि और शक्तियों में अंतर पैदा कर दिया। और यहीं से रोम में राजनीतिक अस्थिरता का बीज पड़ गया।

दरअसल पोम्पी मैग्नस है भी एक बूढा व्यक्ति। वहीं जुलियस सीजर की उम्र अपेक्षाकृत कम है, बहुत अधिक जवान तो नहीं, किंतु बूढ़ा भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन 50 के करीब ही होगा। रोम की राजनीतिक अस्थिरता, ओक्टेविन का मार्ग प्रशस्त होना, शानदार और रोचक सफर है।  यह राजनीति के वे पृष्ठ हैं, जिनमें लिखी बातों को, हर घटना को पढ़ने के साथ समझते जाना होगा, जैसे एक गाय घास चरने के बाद पाचन के लिए जुगाली करती रहती है।।

मंगलवार, 5 जुलाई 2022

हिमालयी क्षेत्रों में होने वाले भूस्खलन और भूकंप का कारण क्या है?




भूस्खलन के कारणों में हम अपक्षय और अपरदन, गुरुत्वाकर्षण कारक, जलवायु कारक के साथ-साथ प्लेट विवर्तनिकी से इसे जानेंगे ]

 अपक्षय और अपरदन की प्रक्रिया के कारण चट्टानों में होने के कारण भूस्खलन की घटना संभावित होती है। इन चट्टानों में अधिक वर्षा होने के पश्चात जब धूप पड़ती है। तो वह सुख कर नीचे की ओर खिसकने लगते हैं और यह भूस्खलन के रूप में आपदा है।

बड़ी-बड़ी चट्टानों में गुरुत्वाकर्षण के कारण भी भूस्खलन की घटना संभावित होती है। ऊंची चट्टानों पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण चट्टानों में भूस्खलन की घटना होती है।

किसी प्रदेश की जलवायु भी उस प्रदेश में हुए भूस्खलन के लिए उत्तरदाई होती है। यदि कोई प्रदेश की जलवायु अधिक वर्षायुक्त है, तो उस प्रदेश में भूस्खलन संभावित है। इसके अतिरिक्त वनों का कटाव भूकंप की घटना आदि भी भूस्खलन को जन्म देते हैं।

उत्तर भारत में विशेषकर हिमालई क्षेत्रों में होने वाली आपदाओं के संबंध में प्लेट विवर्तनिक महत्वपूर्ण है। भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट से टकराने के कारण ही हिमालय पर्वत का जन्म हुआ है। जहां यह दोनों प्लेटें टकराती हैं, वह अभिसरित सीमा का एक प्रकार है।

[ नोट- पृथ्वी के अनेक प्लेटों में दो प्लेटें आपस में जहां मिलती हैं, वहां पर अपसरित सीमा अभिसरण सीमा और रूपांतर सीमा बनती हैं। अपसरण सीमा जब प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में पीछे हटते हैं। तो मध्य के खाली स्थान में नई पर्पटी का निर्माण होता है, क्योंकि नई पर्पटी का जन्म होता है इसलिए इसे अपसरण सीमा के साथ रचनात्मक सीमा भी कहते हैं।

जब दो प्लेटों के मिलने के स्थान पर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंस जाती है, तो इसे अभिसरण सीमा कहते हैं। क्योंकि यहां प्लेट का विनाश हुआ है इसलिए इसे विनाशात्मक किनारा भी कहते हैं।

रूपांतर सीमा दो प्लेटों के मिलने के स्थान पर जब ना तो नयी पर्पटी का निर्माण होता है और ना ही पर्पटी का विनाश होता है, इसे इसे रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण यह है कि सीमा पर प्लेट एक दूसरे के साथ साथ क्षैतिज दिशा में दिशा में सरक जाती हैं ]

भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मिलने के स्थान पर अभिसरण सीमा या विनाशात्मक किनारे का जन्म होता है, इन प्लेटों के टकराव से ही हिमालय का जन्म हुआ है। और क्योंकि यह दो प्लेटों के मिलने की सीमा है, इसलिए यह भूगर्भिक हलचलों से उत्पन्न घटनाओं के लिए संवेदनशील क्षेत्र है। साथ ही भारतीय प्लेट अब भी यूरेशियन प्लेट को निरन्तर धक्का दे रही है। और यह भूगर्भिक हलचलों को जन्म देता है। परिणाम में आपदाएं जन्म लेते हैं। हिमालय क्षेत्रों की बजाए दक्षिण के क्षेत्रों को भूगर्भिक दृष्टि से अधिक स्थिर माना जाता है।

शनिवार, 2 जुलाई 2022

प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति की विवेकानुसार निर्णय लेने की शक्ति

प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति की वयक्तिक विवेक स्वतंत्रता की चर्चा करें?

प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति की विवेकानुसार निर्णय

【 नोट- राष्ट्रपति की व्यक्तिक विवेक स्वतंत्रता का तात्पर्य है कि राष्ट्रपति के द्वारा व्यक्तिगत विवेक के आधार पर निर्णय लेना 】

प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संबंध में संविधान का अनुच्छेद 75 कहता है। कि राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति होगी। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री के निर्वाचन की कोई विशेष प्रक्रिया नहीं दी गई है।

सामान्य परंपरा के अनुसार लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है। किंतु प्रधानमंत्री के निर्वाचन के संबंध में दो परिस्थितियां जहां राष्ट्रपति की व्यक्तिक विवेक स्वतंत्रता कार्य करती है।

पहली परिस्थिति में जब संसद में कोई भी दल बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है। इस दशा में राष्ट्रपति अपनी व्यक्तिक विवेक स्वतंत्रता का प्रयोग करता है, और बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। वह 1 माह के भीतर उसे संसद में बहुमत अथवा विश्वास मत हासिल करने के लिए कहता है।

1980 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को नियुक्त करने और प्रधानमंत्री के संसद में बहुमत सिद्ध करने के संदर्भ में में कहा था। कि संविधान में यह आवश्यक नहीं है, कि एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नियुक्त होने से पूर्व ही लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करे, बल्कि प्रक्रिया बताई गई कि राष्ट्रपति को पहले प्रधानमंत्री को नियुक्त करना चाहिए, और उसके पश्चात निश्चित समय सीमा में प्रधानमंत्री को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना चाहिए।

दूसरी परिस्थिति में जब पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाए। इस दशा में यदि सत्ताधारी दल के द्वारा प्रधानमंत्री का कोई स्पष्ट नेता निर्धारित न किया जा सका हो। राष्ट्रपति अपने व्यक्तिगत निर्णय के आधार पर प्रधानमंत्री नियुक्त करता है किंतु यदि सत्ताधारी दल प्रधानमंत्री की मृत्यु के पश्चात एक नया नेता चुनता है, तो राष्ट्रपति को उसी नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा।

1979 में पहली बार राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने प्रधानमंत्री के निर्वाचन में अपनी व्यक्तिगत विवेक का प्रयोग किया था। जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व की जनता दल की सरकार का पतन हो गया तो राष्ट्रपति के द्वारा गठबंधन के नेता और जो तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

जब 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। तब तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपने व्यक्तिक निर्णय के आधार पर से राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, और इसके बाद कॉन्ग्रेस दल ने संसद में राजीव गांधी को अपना नेता स्वीकार किया। इससे पूर्व में भी इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न हुई जब प्रधानमंत्री का पद पर रहते ही अक्स्मात निधन हो गया ।

1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ही निधन हुआ। तब राष्ट्रपति ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में एक अस्थाई व्यवस्था अपनाई 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए निधन हुआ तब भी अस्थाई व्यवस्था के तौर पर कार्यवाहक प्रधानमंत्री को नियुक्त किया गया। 1964 और 1966 में दोनों ही समय कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर गुलजारी लाल नंदा को कार्यभार सौंपा गया।।

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मंत्रिपरिषद से अलग राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा कीजिए?

मंत्रिपरिषद से अलग राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा कीजिए?

मंत्रिपरिषद से अलग राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा कीजिए?

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति की स्थिति भारत की संसदीय व्यवस्था में नाममात्र के कार्यपालिका प्रधान की है। कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान प्रधानमंत्री होता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, की राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है। किंतु कार्यकारी नहीं। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, किंतु उस पर शासन नहीं करता। राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है। जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है।
राष्ट्रपति की शक्तियों के संदर्भ में अनुच्छेद 53 और अनुच्छेद 74 जो इस प्रकार हैं-
अनुच्छेद 53 के अनुरूप “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। वह इसका प्रयोग स्वयं व अपने अधीनस्थ अधिकारियों के सहयोग से करेगा”

यहां  प्रयुक्त “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी” का तात्पर्य राष्ट्रपति के संघ की कार्यपालिका की औपचारिक रूप से प्रधानता से है।

अनुच्छेद 74 के अनुरूप- “राष्ट्रपति की सलाह व सहायता के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद होगी और वह अपने कार्य व कर्तव्य का उनकी सलाह पर निर्वहन करेगा”
इस अनुच्छेद के अंतर्गत दर्शाई गई प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद ही राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित करते हैं।

संसद के द्वारा पारित कोई विधायक जब राष्ट्रपति के पास पहुंचता है, तो अनुच्छेद111 के अंतर्गत राष्ट्रपति को उस पर वीटो शक्ति प्राप्त होती है। किन्तु वास्तव में इस संदर्भ में भी राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से सलाह जरूर लेता है। ठीक इसी तरह अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को प्राप्त क्षमादान की शक्ति के संदर्भ में भी व्यावहारिक तौर से राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह जरूर लेता है।

किंतु मंत्रिपरिषद से अलग राष्ट्रपति की शक्ति के विषय में हम दो घटनाओं को देखेंगे।
1997 में जब राष्ट्रपति के० आर० नारायण ने मंत्रिमंडल के द्वारा दी गई सलाह कि उत्तर प्रदेश में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। तो राष्ट्रपति ने इस मामले को मंत्रिमंडल में पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। जिसके बाद मंत्रिमंडल ने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया, और उस समय की उत्तर प्रदेश में बी०जे०पी० शासित मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कि सरकार बच गई।


1998 में मंत्रिमंडल ने पुनः राष्ट्रपति के०आर० नारायण को बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की इस बार भी राष्ट्रपति ने मामले को मंत्रिमंडल की पुनर्विचार के लिए वापस लौटा दिया। कुछ महीने पश्चात कैबिनेट ने पुनः यही सलाह राष्ट्रपति को दी। जिसके बाद 1999 में बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

इन दोनों घटनाओं से आप राष्ट्रपति को मंत्री परिषद द्वारा दी जाने वाली सलाह के संदर्भ में राष्ट्रपति की पुनर्विचार के लिए मामले को वापस मंत्रिमंडल के पास भेजने की शक्ति से अवगत हुए हैं। ध्यान दें कि यह घटनाएं मंत्रीपरिषद् के द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह के संदर्भ में है। यह संसद के द्वारा पारित किए गए विधेयक के संदर्भ में राष्ट्रपति की शक्तियों से अलग है।
[ नोट- राष्ट्रपति को संसद के द्वारा पारित किए गए विधेयक के संदर्भ में उस विधेयक को स्वीकृति कर कानून बनाने, उस विधेयक को रोककर रखने, पुनर्विचार के लिए वापस भेजने के अधिकार प्राप्त हैं। जिन्हें वीटो शक्ति कहा जाता है ]

राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के द्वारा दी गई सलाह के संदर्भ में राष्ट्रपति जिस शक्ति से उस मामले को एक बार पुनर्विचार के लिए मंत्री परिषद को वापस भेजता है। यह शक्ति 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 और 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 में दी गई है।

1976 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व की सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में कहा की राष्ट्रपति पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी होगी।
अर्थात राष्ट्रपति को मंत्री परिषद के द्वारा दी गई सलाह को मानना ही होगा। वह पुनर्विचार के लिए मंत्रिपरिषद को मामले को वापस नहीं भेज सकता।

1978 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद उसने 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 में कहा कि राष्ट्रपति को अधिकार है, कि वह सामान्यतः अथवा अन्यथा मंत्रिमंडल को सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। हालांकि पुनर्विचार की बाद यदि मंत्रिमंडल वहीं सलाह राष्ट्रपति को पुनः देता है। तब राष्ट्रपति उस सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।

गुरुवार, 12 मई 2022

उत्तराखंड समाचार दैनिक | 12 may 2022

मुख्य समाचार-

◆ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने सचिवालय में अधिकारियों से बैठक की। जिसमें उन्होंने गुड गवर्नेंस के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए कुछ बातें कहीं। उन्होंने कहा की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक भी गुड गवर्नेंस का लाभ पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा की प्रशासनिक अधिकारी आमजन से मिलने का अपना समय तय करें। बहुउद्देशीय शिविरों का नियमित आयोजन किया जाए। और उनकी प्रचार-प्रसार भरपूर ढंग से किया जाए। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी अंतिम व्यक्ति तक पहुंच कर उसकी समस्याओं का निदान करें। {उत्तराखंड समाचार दैनिक | 12 may 2022}

उत्तराखंड राजनीति-

◆ वहीं बात करें चंपावत सीट पर होने वाले उपचुनाव की, तो बीते दिन बुधवार को कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी जी ने अपना नामांकन करा दिया है। 9 मई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने चंपावत उपचुनाव के लिए अपना नामांकन कराया था। निर्मला गहतोड़ी जी के नामांकन के दौरान कांग्रेस के कई नेता उपस्थित रहे। वहीं पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल भी इस दौरान वहां उपस्थित रहे। बैठक के दौरान पार्टी नेताओं ने कहा की खटीमा सीट से हार कर आए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी को चंपावत विधानसभा सीट की जनता मुंहतोड़ जवाब देगी।  {उत्तराखंड समाचार दैनिक | 12 may 2022}

◆ वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत जी और प्रीतम सिंह जी के निर्मला गहतोड़ी जी के नामांकन में उपस्थित ना होने के चलते भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपना पूर्वानुमान है, कि उनकी स्थिति चंपावत उपचुनाव में क्या रहने वाली है। इसीलिए मुख्य नेताओं ने इससे दूरी बनाए रखी है। दूसरी ओर हरीश रावत जी ने निर्मला गहतोड़ी जी की प्रशंसा की है। और कहा कि वह एक ऐसी विदुषी महिला है। जिन्होंने अपने गृहस्थ जीवन और सामाजिक जीवन दोनों में सामन्जस्य बैठा कर यह मुकाम हासिल किया है। कि आज पार्टी ने उन्हें चंपावत उपचुनाव के लिए बड़ी जिम्मेदारी दी है। उन्होंने साथ ही कहा कि निर्मला गहतोड़ी की जीत ही उत्तराखंड में लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत होगी। {उत्तराखंड समाचार दैनिक | 12 may 2022}

◆ चार धाम यात्रा के इस सीजन में इनकी व्यवस्थाओं को लेकर केदारनाथ और बद्रीनाथ की व्यवस्थाओं के संबंध में क्रमशः कैबिनेट मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल जी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। वही चार धाम यात्रा के दौरान लोगों की हुई मृत्यु पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने कहा की यात्रियों को एसडीआरएफ एस्कॉर्ट और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। क्योंकि यात्रियों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। इस वजह से दर्शन के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ रहा है। इससे बुजुर्ग और अस्वस्थ लोगों को समस्या हो रही है। इसके लिए एसडीआरएफ टीम को अपने संरक्षण में उन्हें दर्शन करवाने चाहिए। उन्होंने कहा अपनी सरकार के दौरान उन्होंने यह सुविधा उपलब्ध करवाई थी।। {उत्तराखंड समाचार दैनिक | 12 may 2022}

राष्ट्रीय समाचार दैनिक | 11 may 2022

मुख्य समाचार-

◆ गुवाहाटी असम में एक रैली में पहुंचे अमित शाह जी ने जनसभा को संबोधित किया। जहां उन्होंने असम में हेमंत सोरेन विश्वा जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के पहली वर्षगांठ पर शिरकत की। जिसमें उन्होंने असम के सरकार की प्रशंसा की। घुसपैठ के संबंध में खुलकर कहते हुए उन्होने कहा की असम की सरकार द्वारा उन्हें पूर्ण सहयोग प्राप्त हो रहा है। किंतु पश्चिम बंगाल की सरकार द्वारा घुसपैठ नियंत्रण में उन्हें सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है। जहां उन्होंने कहा कि असम के सरकार इस मुद्दे पर केंद्र के साथ मिलकर लड़ रही है। और इस वजह से असम में घुसपैठ में उल्लेखनीय कमी आई है। वही बंगाल की सरकार से केंद्र को घुसपैठ से सख्ती से निपटने के लिए भरपूर सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है। वहीं पश्चिम बंगाल के सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने गृह मंत्री अमित शाह के इस दावे को सफेद झूठ कह कर नकार दिया है। {राष्ट्रीय समाचार दैनिक | 11 may 2022}

◆ “पंडित शिवकुमार शर्मा जी के निधन से हमारे सांस्कृतिक जगत को क्षति हुई है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर संतूर को प्रसिद्ध बनाया। उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उनके साथ हुई बातचीत मुझे याद है। उनके परिजनों और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदना। ओम शांति”

   यह शब्द माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के महान संगीतकार पंडित शिवकुमार शर्मा जी के निधन पर व्यक्त किए गए। जिनका हार्ट अटैक की वजह से 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। 13 जनवरी 1938 को जन्मे पंडित शिवकुमार शर्मा जी भारत के जाने-माने शास्त्रीय संगीतकारों में और साथ ही संतूर को विश्व भर में प्रसिद्ध दिलाने वाले महान व्यक्तित्व रहे। उनका जन्म जम्मू में हुआ था। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। ऐसा कहा जाता है, कि पंडित शिवकुमार शर्मा जी ही वे पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने संतूर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत का जादू बिखेरा। {राष्ट्रीय समाचार दैनिक | 11 may 2022}

◆ देशभर में बीते 24 घंटों में नए कोरोना मामलों की संख्या 2288 रही। वही उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 19637 रह गई है। दिल्ली में सर्वाधिक मामले 1128 बीते 24 घंटों में प्राप्त हुआ है। साथ ही बीते 24 घंटे में दिल्ली में कोरोना से एक मौत दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है, कि बीते 24 घंटे में उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 766 की कमी आई है। वही देश में मरीजों के ठीक होने की दर 98.74 है। {राष्ट्रीय समाचार दैनिक | 11 may 2022}

◆ वही खबर उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के दौरान अब तक 23 लोगों की मृत्यु हो गई। हालांकि इनमें ज्यादातर लोग हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज इत्यादि बीमारियों से ग्रसित थे। किंतु प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे गंभीरता से लिया है। और राज्य से इस संबंध में रिपोर्ट तलब की है। स्वास्थ्य महकमा मृत्यु के कारणों की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है। वही जल्दी-जल्दी में बैठक कर व्यवस्थाओं की समीक्षा की गई। साथ ही एडवाइजरी भी जारी की गई। {राष्ट्रीय समाचार दैनिक | 11 may 2022}

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏