सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

ICC-CT 2025 भारत-पाकिस्तान | शुभमन ने विराट की राह पकड़ ली है

आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का 2025 भारत-पाकिस्तान का यह मैच बहुत कुछ बता रहा है। शुभमन गिल ने विराट की छाया ढूंढ ली है। अब करना यह है, उसे छोड़ना नहीं है, यही रास्ता है। 

आज का मैच शुभमन हर भार को खूबसूरती से बहन करते दिखे। भारत का क्रिकेट इन हाथों में खूबसूरत और उज्जवल लगता है ।


जब शुभमन, रोहित के साथ मैदान पर आए वह हमेशा की तरह किसी कार्यभार से मुक्त प्रतीत हो रहे थे। हां रोहित और विराट जैसे खिलाड़ी कुछ भार महसूस करते हैं, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि उपलब्धियां जितनी बड़ी हासिल की हैं, उनसे जनता की अपेक्षाएं उतनी ही बड़ी हो गई हैं। शुभमन शांत और एक विद्यार्थी जैसा प्रतीत होता है। और यह सच भी है, विराट और रोहित जैसे दुनिया के क्रिकेट में लोहा मनवा चुके खिलाड़ियों के बीच वे मैदान पर विद्यार्थी ही हैं। बात गौर कि यह है कि उनमें यह विद्यार्थी पना झलकता है। और यह शुभमन को खास बनाता है। 

बात पहले से ही होती रही है कि विराट की राह शुभमन ने पकड़ ली है। हालांकि राह लंबी है, और उसमें हर दिन उन्हें नीरश मेहनत से होकर जाना है। विराट का कहना कि एक दिन मैदान पर चमकने के लिए पहले का हर दिन वह नीरश मेहनत।


आज शुभमन की एक-एक प्रहार बिल्कुल सटीक और केंद्रित था। शुभमन, भारतीय क्रिकेट का भविष्य उज्जवल है इसका प्रदर्शन दे रहे हैं, और सामने किंग कोहली उन्हें शिखर की ऊंचाई बता रहे हैं।।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

तो ये हैं दिल्ली के नए मुख्यमंत्री | New CM Delhi | Delhi Election


दिल्ली में मुख्यमंत्री कौन होगा? यह सवाल अभी बना है, चर्चाएं अब भी जारी हैं। निश्चित रूप से बीजेपी इस चयन के माध्यम से पूरे देश में एक संदेश देने की कोशिश करेगी।

27 साल बाद बीजेपी दिल्ली में वापसी कर रही है। 70 विधानसभा सीटों में 48 पर भाजपा ने जीत हासिल की शेष 22 आम आदमी पार्टी को जीत मिली और कांग्रेस यथावत स्थिति पर रही। ऐसे में भाजपा संगठन में भी खुशी की लहर है। साथ ही दिल्ली की जनता के आशा और अपेक्षाएं बड़ी हैं। एक तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, दूसरी ओर मोदी जी की सरकार है, जनता की अपेक्षाओं पर खडा उतरने के लिए भाजपा संगठन की तरफ से एक योग्य और क्षमतावान व्यक्ति को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया जाना है, साथ ही ऐसे व्यक्ति का चयन करना है जिससे पूरे देश में एक संदेश जा सके।

दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में एक खास बात यह भी देखने को मिली कि भाजपा ने चुनाव के समय किसी चेहरे पर मोहर नहीं लगाई थी, बिना चेहरे के दिल्ली का चुनाव लड़ा और जीत भी गई। यही बात जब इंडिया गठबंधन के लिए पिछले लोकसभा चुनाव में उनके द्वारा इस तरह से लड़ा जा रहा था। जब उनसे पूछा जाता था, कि यदि गठबंधन जीता तो प्रधानमंत्री कौन होगा। क्योंकि इस संबंध में कोई संतोषजनक जवाब ना दे सके, तो हार के बाद इसे भी एक कारण माना गया। लेकिन बीजेपी ने यह बात सिद्ध कर दी कि हम बिना चेहरे के लड़ेंगे भी और जीतेंगे भी।


दिल्ली नेतृत्व के लिए भाजपा संगठन के सामने कई विकल्प बताए जा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल जी को हराने वाले प्रवेश वर्मा जी, रेखा गुप्ता जी, पवन शर्मा जी, सतीश उपाध्याय जी, शिखा राय जी इन नाम की चर्चा सर्वाधिक है। हालांकि बीजेपी का एक पैटर्न रहा है, उत्तराखंड हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ हो बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के चयन में सभी राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाया है। यहां भी कुछ ऐसा हो सकता है। हालांकि बीजेपी के विकल्पों में महिलाओं के नाम भी शामिल हैं। निश्चित रूप से उन पर भी विश्वास जताया जा सकता है, महिला सम्मान की जो बात होती है। देश की जनता के सामने बीजेपी इस चयन से उस बात को प्रमाणित कर सकती है। साथ ही पिछड़ों और दलित को आगे लाकर नेतृत्व देकर देश में एक बड़ा संदेश जाएगा। देश के राजनीति में यह बड़ा सवाल है, राहुल गांधी जी ने भाजपा संगठन पर आरोप लगाया कि मोदी जी दलितों को प्रतिनिधित्व देने की बात तो करते हैं लेकिन उन्हें शक्ति से दूर रखते हैं। एक अच्छा मौका है, जहां बीजेपी इस तरह के सवालों का जवाब दे सकती है। हालांकि इस समय भाजपा संगठन की भीतरी बातों को समझ कर दिल्ली की जनता की अपेक्षा को देखते हुए संगठन के सदस्यों से वार्ता के बाद जिस किसी तरह बढ़ लेकिन उनके मस्तिष्क में यह बातें जरूर होंगी।।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी ने किसके खिलाफ मोर्चा खोला है?

श्रीनगर किताब कौथिक आयोजित ना होना या जो खबर है, कि उसे होने से रोका गया। इस घटना ने बहुत से सवालों को पैदा किया है, बात यह है कि श्रीनगर में किताब कौथिक आयोजित होना था। इस कौथिक को करवाने वाली उस टीम में सदस्य कहें, हेम पंत जी ने अपनी बात को रखा। वह कहते हैं, कि इस आयोजन को पॉलिटिकल दृष्टि से देखा जा रहा है। जबकि ऐसा कुछ है नहीं। हम पहाड़ों के दूरस्थ गांव में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं, उसे स्थापित करना चाहते हैं। हमारे राज्य के ऐतिहासिक, पौराणिक क्षेत्र का ज्ञान लोगों को करवाना चाहते हैं। यही हमारा उद्देश्य है 12 सफल आयोजन करवाने के बाद 13 वें आयोजन में इस प्रकार की रुकावट को वे खेदपूर्ण बताते हैं।


दूसरी तरफ छात्र संघ है। छात्र संघ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि हमें इस बात की सूचना जब मिली की कॉलेज परिसर में किताब कौशिक का आयोजन होगा और इसमें कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाएंगे। हमने लाइब्रेरी में जो तमाम छात्र पढ़ने आते हैं उनसे बात की तो उनकी सहमति पर क्योंकि उनकी परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके चलते छात्र हित में हमने इस किताब कौथिक के कार्यक्रम को इस वक्त स्थगित करने या पोस्टपोंड करने की बात रखी।

इस विषय पर जब नरेंद्र सिंह नेगी जी ने बात को उठाया तो मुद्दा व्यापक हो गया। अब एक तरफ तो हेम पंत जी और उनका वह साथी वर्ग जो किताब कौथिक का आयोजन करवाता है, अपने विशुद्ध उद्देश्य के साथ हैं। लेकिन बात अब पॉलिटिकल हाथों में जा चुकी है। यहां से आरोप लगने शुरू होते हैं। 


इस घटना ने कुछ सवाल जरूर पैदा किए हैं हेम पंत जी बताते हैं कि उन्होंने रामलीला मैदान में भी किताब कौथिक करवाने के लिए तैयारी की लेकिन वहां पर भी कुछ इसी प्रकार का विवाद पैदा हुआ। जिस वजह से अब उन्हें इसे पूरी तरह से स्थगित करना पड़ रहा है, ऐसे में सवाल बड़ा है। सरकार तक तो मालूम नहीं लेकिन क्षेत्र के विधायक जी इस विषय पर बात रखें तो बेहतर होगा। हालांकि बाद में यह मुद्दा पॉलिटिकल हाथों में गया, लेकिन मूल रूप से यह शिक्षा प्रेमियों, पुस्तक प्रेमियों और बुद्धिजीवियों का मुद्दा है।।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

केजरीवाल की हार से राहुल गांधी की जीत हुई है।


दिल्ली चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस की भविष्य को लेकर स्थिति को साफ कर दिया है। कांग्रेस ने देश भर में गठबंधन के नेताओं को और पार्टियों को एक संदेश दिया है। यदि गठबंधन के मूल्यों को और शर्तों को चुनौती दोगे, तो कांग्रेस भी इसमें केंद्र बिंदु में रहकर अपनी जमीन को सौंपती नहीं रहेगी। बल्कि दमदार अंदाज में चुनाव लड़कर दिल्ली की तरह ही अन्य जगहों पर भी चुनाव लड़ेगी।

आम आदमी पार्टी की हार हो जाने से राहुल गांधी जी का गठबंधन में स्तर पुनर्स्थापित हुआ है। कारण यही है कि अब तक अरविंद केजरीवाल जी दिल्ली में सरकार बनाकर एक ऐसे नेता बने हुए थे, जो मोदी जी के सामने अपराजिता हैं। जिन्हें हराया नहीं गया है, विशेष कर मोदी जी के सामने।

वह एक विजेता नेता की छवि के तौर पर गठबंधन के उन तमाम नेताओं में शीर्ष पर थे। अब विषय यह था, कि राहुल गांधी जी की एक हारमान नेता की छवि के तौर पर जो स्थिति गठबंधन में थी, वह केजरीवाल जी के होने से गठबंधन के अन्य नेताओं में शीर्ष होने की स्वीकार्यता हासिल नहीं कर पा रही थी। राहुल गांधी जी को गठबंधन के शीर्ष नेता के तौर पर जो स्वीकार्यता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पा रही थी। क्योंकि केजरीवाल जी एक ऐसे विकल्प के तौर पर थे, जो मोदी जी के सामने हारे ही नहीं है, हर बार अपनी पार्टी को जीत दिलाते हैं। लेकिन यहां जब केजरीवाल जी की हार हुई और यह छवि टूट गई अब राहुल गांधी जी ने अपने स्तर को पुनःस्थापित कर लिया है। अब बात बराबरी की है, गठबंधन में अब यह मामला बराबरी का है, और यहां पर अन्य देश की तमाम गठबंधन की पार्टियों के लिए भी एक संदेश हो जाता है।


देश भर में गठबंधन की वह पार्टियों और नेता चाहे वे अखिलेश यादव हों, ममता बनर्जी हों तेजस्वी यादव हों या महाराष्ट्र के शरद पवार हों कांग्रेस से अपनी बात मनवा कर गठबंधन की शर्तों में और गठबंधन की एकता के लिए कांग्रेस के मूल्यों को कम कर चुनाव लड़ने जैसी बात कांग्रेस के लिए एक चुनौती का विषय था। लेकिन यहां से कांग्रेस ने एक सीधा संदेश दिया है, कि अगर गठबंधन का साथ नहीं दोगे तो हम दिल्ली में केजरीवाल जी के खिलाफ जिस प्रकार दमदार अंदाज में लड़े ठीक उसी प्रकार आपके राज्य में भी आपके समीकरण बिगाड़ सकते हैं। यहां निश्चित रूप से अन्य पार्टियों को जो गठबंधन में है कांग्रेस को लेकर शीर्ष नेता को लेकर राहुल गांधी जी के प्रति स्वीकार्यता दर्शानी होगी और कांग्रेस को अहमियत देनी होगी।।

सोमवार, 2 सितंबर 2024

2 Oct 1994 | रामपुर तिराहा कांड

फोटो स्त्रोत- https://images.app.goo.gl/LozKsV6fNdyRVqai8

सन 2003 में लेखक निर्माता अनुज जोशी जी के निर्देशन में एक फिल्म “तेरी सौ” बनाई गई जो कि उत्तरांचल अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन पर आधारित है। फिल्म में सक्षम जुयाल और पूजा रावत मुख्य पात्र नाम क्रम से मानव और मानसी हैं। जो डीएवी कॉलेज देहरादून के छात्र होते हैं। मानव उत्तराखंड आंदोलन में सेलाकुई के शहीद 15 वर्षीय सत्येंद्र चौहान के चचेरे बड़े भाई की भूमिका में होते हैं। 

डीएवी कॉलेज देहरादून तब छात्र एकता में उत्तराखंड आंदोलनकारियों का गढ़ हुआ करता था। डीएवी पीजी कॉलेज के छात्र दबंग माने जाते थे। हालांकि मानव और उसके साथियों का गांधीवादी विचार और शांतिपूर्ण ढंग से राज्य आंदोलन को आगे बढ़ाने वाला दिखाया गया है। मदन डुकलान जी के लिखे गीतों ने फिल्म को अधिक खूबसूरत बना दिया। फिल्म के गीत “मेरी जन्मभूमि मेरो पहाड़”,  “ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरी गांव के”,  “गढ़वाली अंताक्षरी”,  “तेरी सौं”, धार मा सी जून मुखड़ी च तेरी”,  “सौं उठोला कठ्ठा होला चला दिल्ली जोंला गढ कुमों द्वी हाथ बोटी हक अपड़ो ल्योला”,  “हक का बाना ह्वे गीं शहीद हमरा लाल देखी ल्या”,  “आंदी जांदी सांस छै तू  मेरा ज्यूणा की आश छै तू”।

जुयाल इस फिल्म में डीएवी छात्र के रूप में काफी रोचक पात्र है। उसका हर लब्ज गढ़वाली बोली और टोन में है। उसकी एक प्रेमिका भी है। मानव को जो लड़की पसंद होगी, वह पहले तो गढ़वाली बोल सकने वाली हो, गांव में रह सके, कॉलेज की पढ़ी लिखी, और घास भी काट सके।

मानव गांधीवादी विचारों को अनुसरण करने वाला छात्र हैं, वह आतंकवाद पर कहता है, कि हथियार उठाने वाला कैसा बुद्धिजीवी वह तो देशद्रोही है।

1 और 2 सितंबर 1994 के वे दिन जब खटीमा और मसूरी में आंदोलनकारियों के प्रदर्शन को गोलियों से शांत करने की कोशिश की गई, शहीदों के रक्त ने ऐसा मानो कि पूरे उत्तराखंड को बलिदान हो सकने का बल दे दिया हो। सारे उत्तराखंड में हड़ताल प्रदर्शन स्कूलों से कॉलेजों तक संस्थान बंद कर सड़कों पर भीड़ जमा होने का दौर था। अब आंदोलनकारी राज्य की आवाज दिल्ली तक प्रखर करने को स्वयं वहां पहुंचकर प्रदर्शन की योजना में थे। दिन तय किया गया। छात्रों ने भीड़ जुटाने का जिम्मा अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग गुटों में सौंप दिया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण कि आंदोलन हर बूढ़े, बच्चे, जवान, पुरुष हो या महिला की मजबूत भागीदारी लिए था।

30 सितंबर 1994 को मेरठ मंडल के कमिश्नर साहब ने हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और मेरठ के जिलाधिकारियों को दिल्ली जाने वाली बसों की चेकिंग के निर्देश दिए। 2 अक्टूबर को पर्वतीय शक्ति ने दिल्ली में प्रदर्शन की दिनांक तय की थी। कमिश्नर का निर्देश था, कि जितना हो सके बसों से आंदोलनकारियों को मना कर वापस रवाना किया जाए। जो अधिक जिद पर अड़े रहे तो उन्हें जाने दिया

जाए। किंतु इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्देश जो रिकॉर्ड दर्ज है, मेरठ रेंज के डीआईजी बुआ सिंह जिन्होंने हरिद्वार मुजफ्फरनगर सहारनपुर पुलिस अधीक्षकों को किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों को रोकने गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए। 

वह आदेश यूं कहें कि उस दिवस को उत्तराखंड के संपूर्ण इतिहास में काला कर देते हैं। पुलिस को उस समय पर गढवाल से आने वाले बसों और उनमें सवार आंदोलनकारियों पर विशेष ध्यान था। विशेषकर देहरादून से निकले आंदोलनकारियों पर रोक पुलिस की पहली कोशिश थी। क्योंकि देहरादून आंदोलनकारियों का केंद्र हो चुका था।

गढ़वाल से दिल्ली जाने के लिए मार्ग हरिद्वार से सहारनपुर होकर था, और वही कुमाऊं से जाने वाला मार्ग बिजनौर और बरेली से होकर था। पुलिस और प्रशासन का मुख्य ध्यान गढवाल वालों को काबू करना था। उस दिन परेड ग्राउंड में बसों की बड़ी संख्या और उनमें लोगों की हजारों की संख्या में ऐसे जमावड़ा लग गया था, कि जैसे सारे उत्तराखंड का मानव जीवन वहीं आकर रुक गया हो।

चमोली और उत्तरकाशी से बस ठीक समय पर निकल गई थी। किंतु देहरादून से दिल्ली उतना दूर नहीं यह सोचकर देहरादून से बसें शाम को रवाना होती हैं। जब तक कि चमोली और उत्तरकाशी की बसें हरिद्वार पार कर मुजफ्फरनगर की ओर निकल चुकी थी।

बहादराबाद और मोहन पुलिस चौकी पर आंदोलनकारियों को रोक की अड़चन झेलनी पड़ी। ऋषिकेश-हरिद्वार दिल्ली मार्ग पर बहादराबाद पुलिस चौकी के रोक ने डेढ-दो किलोमीटर की लाइन में बसों को जमा कर दिया। एक भारी पुलिस बल के बावजूद आंदोलनकारियों का विशाल जत्था रोक पाना नामुमकिन था। रास्ता खोल दिया गया, और आंदोलनकारी अपनी राह पर पर चल पड़े।

देहरादून-दिल्ली मार्ग पर मोहन पुलिस चौकी पर से कुछ बसों का वापस भेजा जा चुका था, किंतु वह भी पीछे से आ रहे जत्थे के साथ हो लिए। पचास से अधिक बसें और उनमें सवार तीन हजार से अधिक आंदोलनकारी जिसमें डीएवी के छात्रों का बड़ा समूह, अन्य आंदोलनकारियों का समूह दिल्ली को रवाना हुआ था। बैरियर तोड़ दिए गए और पुलिस की मौजूदगी को नाकाम कर दिया गया।


पुलिस ने मोहन और हरिद्वार से निकल चुके आंदोलनकारियों को नारसन में रोकने का पुख्ता इंतजाम कर लिया। किंतु नारसन में हरिद्वार और देहरादून दोनों मार्गों से पहुंचे आंदोलनकारियों का विशाल जत्था जमा हो गया, लगभग डेढ़ सौ से अधिक बसों मैं हजारों आंदोलनकारी और जमा कर दिया, पुलिस ने आगे की बसों के शीशे तोड़ दिए, आंदोलनकारी छात्रों से अभद्रता पर पुलिस पर पथराव प्रारंभ हो गया, वहीं कुछ अज्ञातों ने खड़ी बसों और ट्रकों को आग लगा दी, वह यूपी पुलिस के ही जवान थे। छात्रों और अन्य आंदोलनकारियों ने लगभग 200 पुलिस सिपाहियों पर पथराव किया, और उन्हें वहां से दौड़ा कर भागने को मजबूर कर दिया। पुलिस को काफिला रोक पाना संभव नहीं था।

काफिला आगे बढ़ता रहा, किंतु अगले ही नाके पर फिर पुलिस की कोशिश जो आंदोलनकारियों को कैसे भी कम से कम संख्या में प्रदर्शन तक पहुंचाने की थी, को लेकर इंतजाम किया गया। जिसमें रोक लगाई गई, और कहा गया कि इतनी बसें एक साथ नहीं जा सकती।  चार चार कर बसें आगे निकलेंगी। चमोली की बसें पहले मुजफ्फर के पहले के तिराहे पर जा पहुंची। यह तिराहा उत्तराखंड को अहिंसा दिवस पर राजनीति और प्रशासन का सबसे घृणित चेहरा दिखाने वाला था।

तिराहे पर पहले पहुंची बसों में पुलिस ने घुसकर भीतर बैठे पुरुषों जिन में भूतपूर्व सैनिक और अन्य आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसानी प्रारंभ कर दी। बड़े पुलिस बल के चलते आंदोलनकारियों ने जाकर गन्ने के खेतों में शरण ली। बसों में शेष बची महिलाओं और युवतीयों जिन्हें सुनसान जगह पर ले जाकर अभद्रता की गई, उनके कपड़े फाड़ दिए गए। यह रात के अंधेरे में कितना निरंकुश और बर्बर है, जहां पुलिस की पोशाक में मानव तो नहीं है।


पीछे की बसों को अब रोक पाना मुश्किल हो रहा था, जब वह रामपुर तिराहे पर आ पहुंचे तो तीन सौ बसों का विशाल जमावड़ा वहां जनसैलाब ले आया। रात्रि का चौथा पहर था। अंधेरा बहुत था।

तेरी सौं फिल्म दिखाती है, कि जब मानव और उसके साथियों की बस रुक जाती है, तो मानव बस की छत में चढ़कर आगे जाम का कारण देखने की कोशिश करता है, तो मालूम चलता है कि आगे बहुत सारे छात्र आंदोलनकारी पथराव कर रहे हैं। मानव अपने साथियों के साथ उन लोगों तक पहुंचता है, और एक को चिल्लाकर कहता है,  “तुम पथराव क्यों कर रहे हो तुम पागल हो गए हो क्या”  तब वह छात्र जवाब देता है,  “हां मैं पागल हो गया हूं क्योंकि पुलिस हमारी पर्वतीय महिलाओं को उठाकर ले गई है”। मानव को इस बात पर विश्वास नहीं होता है।

क्योंकि रात के अंधेरे में आंदोलनकारियों को सारी घटना के विषय में कुछ समझ नहीं आता है। कुछ को घटना मालूम ही नहीं हो पाती है। किंतु सुबह हुई और घायल हुए आंदोलनकारी अब मिलने लगे रात को हुई घटना अब आग की तरह सभी आंदोलनकारियों में फैलने लगी। महिलाओं और युवतियों को जिनके साथ अभद्रता हुई जिनके कपड़े फाड़ दिए गए स्थानीय लोगों ने उन्हें वस्त्र दिए जो सुबह सब कुछ जान कर मदद करते हैं।

यह सब जानकर छात्रों का बड़ा जत्था अब पुलिस पर टूट पड़ा। साढे छः बजे का समय और छात्रों पर आंसू गैस के गोले दागे जाने लगे। आंदोलनकारी धैर्य खो चुके थे। लगभग छः बजकर पचास मिनट पर वहां बिना चेतावनी गोलियां चलनी आरंभ हो गई। पहाड़ी लोगों के लिए लोकतंत्र का यही न्याय था, जिसके चलते उनके साथ दागी गई बंदूक की गोलियों से पेश आया गया। उस फायरिंग ने राजेश लखेरा, रविंद्र रावत, गिरीश भत्री, बलवंत सिंह, सूर्य प्रकाश तपड़ियाल  की जान ले ली, घायल अशोक कौशिक जिन्हें चंडीगढ़ पीजीआई में भर्ती कराया गया, उनका वहीं देहांत हो गया। बंदूक से निकलती बेजान गोलियां और लाठियां पीड़ा का एहसास कर रही हैं, किंतु उन्हें थामे मानव के सेवकों के हाथ नहीं कांपे। वहीं विकास नगर की बस में 15 साल के सेलाकुई के सत्येंद्र चौहान भी थे, जब पुलिस और आंदोलनकारियों के टकराव में झुककर पत्थर उठा रहे थे, तभी पुलिस की गोली विकास नगर के ही विजय पाल सिंह रावत के पैर को भेदती हुए सीधे जाकर सतेंद्र के सिर पर लगी। वे शहीद हो गए। यह कितना भावुक कर देने वाला है।

यह दहशत की काली रात के बाद की सुबह थी। अहिंसा का दिन। जिन औरतों की आबरू पर हाथ डाला गया और जिन हाथों का यह घिनौना कृत्य था, उनके विरोध में उठे स्वरों को हमेशा के लिए दबा दिया गया। फिल्म में दिखाया गया है, कि जब मानव सुबह अपने साथियों से अपने भाई के विषय में पूछता है। वह उसे बताते हैं, कि मैंने उसे देखा है, और वह अपने गांव के लोगों के साथ ही है। किंतु मानसी का कोई पता नहीं।

इस घटना के दौरान आंदोलनकारी अपने घायल साथियों को रुड़की के अस्पताल के लिए रवाना कर रहे थे। हजारों लोग जख्मी हो गए। जब रुड़की में घायलों की बड़ी संख्या पहुंचने लगी। और यह देख कर रुड़की के स्थानीय पर्वतीय लोगों ने पुलिस थाने पर धावा बोल दिया। पुलिस थाना छोड़कर भागने लगी। चश्मदीद कहते हैं, कि घायलों की बड़ी संख्या वहां अस्पताल में दर्द से कराह रही थी, स्थानीय पर्वतीय गढ़वाली कुमाऊनी महिलाएं उनके घावों को सहला रहीं थी।

जब रुड़की के अस्पतालों में बड़ी भीड़ जमा होने लगी, तो एसडीएम श्रीवास्तव ने यह आदेश दिया कि लोगों को हटाया जाए, और एक और निरंकुश हुकुम जो कि उन पर लाठीचार्ज तक कर देने का था, कितनी अमानवीय को प्रस्तुत करता है। वहां खड़े एक गढ़वाल राइफल के जवान जो छुट्टी पर घर थे, ने यह सुना उन्होंने अपनी बेल्ट उतारकर एसडीएम श्रीवास्तव की वहीं जमकर पिटाई कर दी, और कहते रहे कि तुम लोगों ने हमारी जान मसूरी, खटीमा और रामपुर तिराहे पर ली है, अब अस्पताल में भी हमारी जान लोगे। एसडीएम श्रीवास्तव मदद के लिए चिल्लाता रहा। किंतु पुलिस के किसी एक सिपाही की इतनी हिम्मत ना हो सकी, की वह कदम आगे बढ़ाए।


राजनेता और प्रशासन एक ओर था, आंदोलनकारी पहाड़ियों को मानव भी नहीं समझा गया। थानाध्यक्ष चपार राजवीर सिंह और थानाध्यक्ष पुरकाजी दाताराम ने डॉक्टर प्रीतम सिंह से मिलकर ऑपरेशन के दौरान घायल सिपाहियों में छर्रे भीतर लगावा दिए। ताकि आंदोलनकारियों पर आरोप लगाया जा सके, कि उन्होंने गोलियां दागी है। राजनेताओं का एक कर्तव्य जवाबदेही उनसे क्या नहीं करवाती यहां स्पष्ट है।

इस घटना ने आंदोलनकारियों को वही जमा कर दिया, तिराहे पर हजारों आंदोलनकारी धरने पर बैठ गए। बीस हजार से अधिक गढ़वाली लोग वहां उपस्थित थे। वह सुबह से भूखे प्यासे किंतु आसपास के लोगों ने मदद की घायल लोगों और आंदोलनकारियों के लिए कई ट्रैक्टर भरकर भोजन उपलब्ध करवाया। देहरादून तक जैसे खबर पहुंची, पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे उत्तराखंड में आग लगाकर और पुलिस का विरोध प्रारंभ हो गया। 3 अक्टूबर 1994 का दिन देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, श्रीनगर, उखीमठ, गोपेश्वर, देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, में कर्फ्यू का ऐलान था। किंतु यह मात्र ऐलान तक सीमित था, सड़कों पर आंदोलनकारियों कि कोई रोक नहीं थी। पुलिस नदारद थी। जब पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर देने का सारे उत्तराखंड में जैसे मुहिम चल पड़ी, तो पुलिस ने कई जगहों पर गोलियां चलाई। फायरिंग में शहादत रामपुर तिराहे तक सिमट नहीं गई थी। बल्कि देहरादून में फायरिंग से राजेश रावत और दीपक वालिया शहीद हो गए। कोटद्वार में पृथ्वी सिंह बिष्ट और राकेश देवरानी शहादत को प्राप्त हुए नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट शहीद हो गए। यह शहादत केवल उत्तराखंडयों के भविष्य के लिए थी, क्योंकि लोकतंत्र और प्रशासन तो दुश्मन होकर गोलियां दाग रहा था।


मुलायम सिंह प्रशासन का तो यह तक बयान था, कि रात सुनसान जगह महिला बाहर होगी, तो रेप होगा। 2006 में बुआ सिंह को उत्तर प्रदेश का पुलिस महानिदेशक बनाया गया, और उत्तराखंड जैसे सब कुछ भूल गया। ऐसा प्रतीत होता है, कि उत्तराखंड हमें भेंट में मिला हो, हमें यह तय करना था, कि उत्तराखंड शहादत का फल है, और उस शहादत के कारक कैसे जीवन में उपलब्धियां हासिल किए, कैसे सामान्य जीवन जिये। उस शहादत का अंजाम सब कुछ भूलना तो नहीं।

तत्कालीन मुख्यमंत्री के इस बयान का भी तेरी सो फिल्म में जिक्र है, कि मैं उनकी चिंता क्यों करूं, उन्होंने मुझे दिया ही क्या है, सिर्फ एक विधायक।

मानव अपने भाई की शहादत के बाद अपने मूल विचार से डगमगा जाता है। जब उसका साथी पत्रकार बडोला उससे पूछता है, कि मानव यह हथियार तुम्हें किसने दिए, वह कौन था, क्या तुम उसे जानते हो। मानव जवाब में ना कहता है। तो बडोला उसे कहता है, कि वह हथियार तुम्हें देशद्रोही ने दिए हैं, और हमारा रास्ता हथियार नहीं है। तब मानव कहता है, देश, लोकतंत्र सब छलावा है। बडोला अब मानव का साथ छोड़ देता है। क्योंकि वह आज भी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर विश्वास रखता है।

फिल्म का एकमात्र फाइट सीन जब मानव एक पुलिस कर्मचारी जम्बू सिंह को अपने साथियों के साथ मिलकर पीटता है। मानव के स्थितियों के साथ बदले विचारों को दर्शाता है।

जब मानव को प्रोफ़ेसर पाठक अपने यहां बुलाते हैं, उससे उसकी योजना के विषय में जानने के लिए, तो प्रोफेसरों उसे समझाते हैं, उससे सवाल करते हैं, कि तुम्हें इस काम के लिए एक बड़ा ग्रुप जोड़ना होगा, तुम पचास, साठ लोग जोड़ोगे किंतु इकसठवें के विषय में तुम्हारी क्या राय है, क्या तुम मुझे वचन दे सकते हो, कि वह इकसठवां आदमी तुम्हारे दिए हथियार का दुरुपयोग नहीं करेगा, निर्दोष का शोषण नहीं करेगा, अबला की इज्जत नहीं लूटेगा। डाकुओं का ग्रुप गिरोह तुम्हारे एसोसिएशन के नाम पर किसी को फिरौती के लिए नहीं उठाएगा। यदि तुम मुझे वचन दे सकते हो, तो हां मैं प्रोफेसर पाठक तुम्हारे साथ सबसे पहले हथियार उठा लूंगा। 

मानसी भी मानव को उसके बदले हुए विचार को लेकर समझाती है। वह उसे भी औरों की तरह एक ऐसा पुरुष बताती है, जो सोचता है, कि महिलाओं पर हुए जुल्म का बदला सिर्फ पुरुष ले सकता है, वह उसे पुरुष प्रधान समाज का एक तत्व बताती है।

आखिर में मानव सत्याग्रह मार्ग पर होता है। वह हथियार उठाता है, किंतु वार नहीं कर पाता। उसे एहसास होता है। कि हथियार से लड़ी लड़ाई कभी खत्म नहीं होती। मेरी एक गोली दागना कल मेरे समाज में उनकी दस गोलियां दागना लेकर आएगी।।

बुधवार, 15 नवंबर 2023

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ | विशेष लेख

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ

भारतीय क्रिकेट टीम वानखेड़े स्टेडियम की ओर रवाना हो रही है। हर चेहरा कितना मशहूर है, और खुश भी। वह सब कितने शानदार और सुंदर हैं। लेकिन उन्हीं चेहरों के पीछे जिम्मेदारियां का कितना भार है, अगर उनमें कोई उस भार को महसूस करने लगा हो तो अवश्य ही वह छुपाते छुपाते भी ना छुपा सकेगा।

संपूर्ण भारत क्रिकेट का विशाल स्टेडियम है। तमाम विषयों में रुचि रखने वाले भारतीय, क्रिकेट के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं। इसका प्रमाण है, दुनिया के किसी मैदान में क्रिकेट के लिए, भारतीय टीम के समर्थन के लिए भारतीयों की संख्या। यह हमेशा से गौर करने वाली है।

हर भारतीय खिलाड़ी उस संख्या का सीधा भरवाहक है। वह हर खिलाड़ी जो क्रिकेट के लिए मशहूर है, जो भारतीय टीम का हिस्सा है, उसका स्वप्न है यह एक मैच खेलना, इस मैच में जीत की वजह बनना। नये खिलाड़ियों के लिए तो बड़ी चुनौती है और बाकी जो चेहरा जितना मशहूर उतनी आशाओं का वाहक।

मैं उन्हीं चेहरों को पढ़ने का प्रयास कर रहा हूं, जिन्हें भारत के लिए आज मैदान पर उतरना है। लेकिन आप वहां केवल सहजता और वैल कम्फर्ट पाएंगे, और यही है जो उन्हें भारतीय टीम का हिस्सा बनाता है। वह हर खिलाड़ी हमेशा की तरह है, क्योंकि वह जिन रास्तों को पार कर यहां पहुंचे हैं, वहां वे उन सब भावों को छोड़ आए हैं। इसलिए एक सामान्य व्यक्ति की तरह इस मैच की अहमियत उनके मैदान पर प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेगी, और ना ही उनके चेहरे के भावों को।

यह हार्ड प्रेशर नॉकआउट मैच आपको प्रभावित नहीं करता। आप हमेशा की तरह ही खेलना चाहते हैं। मैदान पर उतरने के बाद तुरंत ही रोहित शर्मा के दो चौकों ने साफ कर दिया कि हम जहां हैं वह क्रिकेट की सर्वोत्तम स्थित है, और हम तैयार हैं…

अमोल पालेकर | फिल्म अपने पराये से

अमोल पालेकर


सादगी और केवल सादगी असल में अमोल पालेकर ने यही तो पेश किया है। अपनी लगभग हर फिल्म एक आदर्श गुणी पुरुष की भांति ही दिखे हैं। इन्हें नेक्स्ट डुअर पर्सन कहा गया। क्योंकि इनकी आवाज और अभिनय ने हर दूसरे व्यक्ति को अपने आप से मिलाया।


एक मृदंग को बजाते हुए अमोल जाने कब बड़े हो गए, यह वे खुद भी नहीं जान पाए। लेकिन वे इन सब बातों की सुध नहीं लेते। आज से 30 साल पहले एक अच्छे मध्यम वर्गीय परिवार में दो भाइयों के बाद उनका जन्म हुआ था, बहुत सुंदर मृदंग बजाते हैं अमोल। प्रातः होने के साथ उनकी ताल छिड़ जाती है। घर के सभी बच्चे दौड़कर चाचा की ओर बढ़ते हैं, और अमोल एक सुंदर भजन गाते हैं। उनकी भाभी पूजा करती हुई और साथ ही अमोल के भजन।

यूं तो अमोल का विवाह भी हो गया है, और वह एक खुशमिजाज और बेफिक्र व्यक्ति हैं। लेकिन यहां बेफिक्री उसकी पत्नी के लिए असहज है। हालांकि वह बहुत समझदार और शील स्त्री है, घर की लगभग सभी जिम्मेदारियां उसी के हाथों में हैं। लेकिन साथ ही वह एक स्वाभिमानी स्त्री है, और केवल इस बात से चिंतित है, कि उसका पति अमोल किसी काम को गंभीरता से नहीं लेता। यही है कि वह कुछ भी कमा कर घर नहीं लाता। इससे घर का खर्चा बड़े दो भाइयों की ही कमाई पर है। अमोल की पत्नी घर के खर्चे में योगदान न होने के चलते जिठानियों के साथ कई बार असहज महसूस करती है। कई बातें उसे चुभती हैं, और वह जो बेहद स्वाभिमानी है, यह भाव उसे चिंतित करता है।

लेकिन वह अमोल को कुछ बोल भी नहीं पाती। हां बार-बार समझाने का प्रयास करती है, अपना दुख व्यक्त करती है। लेकिन कभी क्रोध नहीं जताती, इसलिए क्योंकि अमोल एक कोमल हृदय व्यक्ति है। काम नहीं करता यह सबसे बड़ा दोस है अन्य तो उसमें कई ऐसे गुण हैं जो बेहद दुर्लभ हैं। उसका सादा व्यक्तित्व और उसी से सधी आवाज सीधे मन में प्रवेश कर जाती है। वह एक सरल पुरुष है, बस वह किसी काम को कमाई का जरिया बना ले तो उसकी पत्नी हर प्रकार से अपने आप को सहज महसूस करे।।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏