बुधवार, 15 नवंबर 2023

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ | विशेष लेख

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ

भारतीय क्रिकेट टीम वानखेड़े स्टेडियम की ओर रवाना हो रही है। हर चेहरा कितना मशहूर है, और खुश भी। वह सब कितने शानदार और सुंदर हैं। लेकिन उन्हीं चेहरों के पीछे जिम्मेदारियां का कितना भार है, अगर उनमें कोई उस भार को महसूस करने लगा हो तो अवश्य ही वह छुपाते छुपाते भी ना छुपा सकेगा।

संपूर्ण भारत क्रिकेट का विशाल स्टेडियम है। तमाम विषयों में रुचि रखने वाले भारतीय, क्रिकेट के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं। इसका प्रमाण है, दुनिया के किसी मैदान में क्रिकेट के लिए, भारतीय टीम के समर्थन के लिए भारतीयों की संख्या। यह हमेशा से गौर करने वाली है।

हर भारतीय खिलाड़ी उस संख्या का सीधा भरवाहक है। वह हर खिलाड़ी जो क्रिकेट के लिए मशहूर है, जो भारतीय टीम का हिस्सा है, उसका स्वप्न है यह एक मैच खेलना, इस मैच में जीत की वजह बनना। नये खिलाड़ियों के लिए तो बड़ी चुनौती है और बाकी जो चेहरा जितना मशहूर उतनी आशाओं का वाहक।

मैं उन्हीं चेहरों को पढ़ने का प्रयास कर रहा हूं, जिन्हें भारत के लिए आज मैदान पर उतरना है। लेकिन आप वहां केवल सहजता और वैल कम्फर्ट पाएंगे, और यही है जो उन्हें भारतीय टीम का हिस्सा बनाता है। वह हर खिलाड़ी हमेशा की तरह है, क्योंकि वह जिन रास्तों को पार कर यहां पहुंचे हैं, वहां वे उन सब भावों को छोड़ आए हैं। इसलिए एक सामान्य व्यक्ति की तरह इस मैच की अहमियत उनके मैदान पर प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेगी, और ना ही उनके चेहरे के भावों को।

यह हार्ड प्रेशर नॉकआउट मैच आपको प्रभावित नहीं करता। आप हमेशा की तरह ही खेलना चाहते हैं। मैदान पर उतरने के बाद तुरंत ही रोहित शर्मा के दो चौकों ने साफ कर दिया कि हम जहां हैं वह क्रिकेट की सर्वोत्तम स्थित है, और हम तैयार हैं…

अमोल पालेकर | फिल्म अपने पराये से

अमोल पालेकर


सादगी और केवल सादगी असल में अमोल पालेकर ने यही तो पेश किया है। अपनी लगभग हर फिल्म एक आदर्श गुणी पुरुष की भांति ही दिखे हैं। इन्हें नेक्स्ट डुअर पर्सन कहा गया। क्योंकि इनकी आवाज और अभिनय ने हर दूसरे व्यक्ति को अपने आप से मिलाया।


एक मृदंग को बजाते हुए अमोल जाने कब बड़े हो गए, यह वे खुद भी नहीं जान पाए। लेकिन वे इन सब बातों की सुध नहीं लेते। आज से 30 साल पहले एक अच्छे मध्यम वर्गीय परिवार में दो भाइयों के बाद उनका जन्म हुआ था, बहुत सुंदर मृदंग बजाते हैं अमोल। प्रातः होने के साथ उनकी ताल छिड़ जाती है। घर के सभी बच्चे दौड़कर चाचा की ओर बढ़ते हैं, और अमोल एक सुंदर भजन गाते हैं। उनकी भाभी पूजा करती हुई और साथ ही अमोल के भजन।

यूं तो अमोल का विवाह भी हो गया है, और वह एक खुशमिजाज और बेफिक्र व्यक्ति हैं। लेकिन यहां बेफिक्री उसकी पत्नी के लिए असहज है। हालांकि वह बहुत समझदार और शील स्त्री है, घर की लगभग सभी जिम्मेदारियां उसी के हाथों में हैं। लेकिन साथ ही वह एक स्वाभिमानी स्त्री है, और केवल इस बात से चिंतित है, कि उसका पति अमोल किसी काम को गंभीरता से नहीं लेता। यही है कि वह कुछ भी कमा कर घर नहीं लाता। इससे घर का खर्चा बड़े दो भाइयों की ही कमाई पर है। अमोल की पत्नी घर के खर्चे में योगदान न होने के चलते जिठानियों के साथ कई बार असहज महसूस करती है। कई बातें उसे चुभती हैं, और वह जो बेहद स्वाभिमानी है, यह भाव उसे चिंतित करता है।

लेकिन वह अमोल को कुछ बोल भी नहीं पाती। हां बार-बार समझाने का प्रयास करती है, अपना दुख व्यक्त करती है। लेकिन कभी क्रोध नहीं जताती, इसलिए क्योंकि अमोल एक कोमल हृदय व्यक्ति है। काम नहीं करता यह सबसे बड़ा दोस है अन्य तो उसमें कई ऐसे गुण हैं जो बेहद दुर्लभ हैं। उसका सादा व्यक्तित्व और उसी से सधी आवाज सीधे मन में प्रवेश कर जाती है। वह एक सरल पुरुष है, बस वह किसी काम को कमाई का जरिया बना ले तो उसकी पत्नी हर प्रकार से अपने आप को सहज महसूस करे।।

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

महेंद्र सिंह धोनी | भारतीय क्रिकेट का सितारा

रेलवे प्लेटफार्म की बेंच पर बैठा युवा इंतजार कर रहा है। वह जीवन की सफलता के लिए प्रकाश चाहता है, जो उसकी राह प्रसस्त करे। वह असमंजस में है, कि वह अपनी रेलवे की नौकरी त्याग दे या नहीं।
वहां परिवार बड़ी आश बांधे है, की पुत्र रेलवे में नौकरी पा गया है भविष्य सुरक्षित है। लेकिन महेंद्र इतने में संतुष्ट नहीं है, क्योंकि वह जीवन भर अब तक क्रिकेट के लिए समर्पित रहा है। वह एक श्रेष्ठ खिलाड़ी है। लेकिन योग बनते नहीं दिखे कि वह भारत के लिए खेले।

यहां इस बेंच पर बैठा महेंद्र इसी के मध्य उलझा है, कि वह किस तरफ बढ़े। एक ओर तो वह रेलवे की नौकरी कर सकता है। वहीं दूसरी ओर क्रिकेट उसे बुला रहा है। वह आगे बढ़ना चाहता है। एक और उसके परिवार की आशाएं और खुशियां हैं, जो कहीं तो पूरी हो गई है, जबकि वह रेलवे में सरकारी नौकरी कर रहा है। लेकिन दूसरी ओर उसका मन स्थिर नहीं है।

आती ट्रेन को देख वह स्पष्ट होता गया और भी अधिक कि उसे किस राह पर चलना है। रेलवे की नौकरी के बाद वह रोज खेलता तो है, लेकिन यह उसे कहीं लेकर नहीं जा रहा, वे खिलाड़ी जो रणजी में उसके साथ खेले उनमें कई आज भारतीय क्रिकेट के सितारे हो गए हैं।
ट्रेन उसकी तरफ बढ़ रही है, ट्रेन की हेडलाइट उसके लिए क्रिकेट स्टेडियम के लाइट्स की तरह बनती चली गई। ट्रेन का शोर उसके नाम के शोर में तब्दील हो गया, जैसे कि वह भारतीय टीम के लिए क्रिकेट के मैदान पर उतर रहा हो एक महान पारी के लिए और वह दौड़कर ट्रेन को पकड़ लेता है। और चल पड़ता है, अपनी नौकरी को हमेशा के लिए छोड़कर जरूर अपने परिवार की उन खुशियों को तोड़कर लेकिन वह आगे निकलना चाहता है।
भारतीय क्रिकेट के लिए उसे बहुत करना है। उससे सब का पसंदीदा खिलाड़ी कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी बनना है, और वह बना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट कप्तानों में एक श्री महेंद्र सिंह धोनी।।

शनिवार, 11 नवंबर 2023

हजारों असफलताओं की सफलता | एडिसन

थॉमस अल्वा एडिसन
थॉमस अल्वा एडिसन एक बहुत ही चर्चित नाम। वे केवल वैज्ञानिक जगत में बड़े आविष्कारों के लिए नहीं जाने जाते, बल्कि उनका जीवन एक प्रेरक कहानी के तौर पर भी पेश किया जाता है। इसका श्रेय उनकी माता को भी जाता है, कि एडिसन एक बेहद जिज्ञासु और लग्नशील व्यक्तित्व को प्राप्त करते हैं।

स्कूल के समय पर एडिसन बेहद एकांत प्रिय छात्र थे, साथ ही वह जिज्ञासु प्रकृति के थे, तो अपने गुरुजनों से बिल्कुल अटपटे सवाल करते। इन सब सवालों के जवाब तो दिए भी जा सकते थे, और शायद नहीं भी। लेकिन शिक्षकों द्वारा उनकी इस उत्सुकता को बढ़ावा न दिया जा सका। उनकी माता को विद्यालय बुलाया गया और एडिशन के शिक्षकों के साथ व्यवहार की शिकायत की गई। तब तक एडिशन छोटा बालक था।

अगले कुछ ही दिनों में एडिशन एक पत्र के साथ घर लौटा, मां को वह पत्र लाकर सौंप दिया कि स्कूल से प्राप्त हुआ है, एडिशन तब तक पूरा पढ़ना भी नहीं जानते थे, तो मां से उस पत्र में लिखा हुआ जानना चाहते थे।

  उस पत्र को पढ मां की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने एडिसन को बताया कि इस पत्र में लिखा है, कि हमारे स्कूल में एडिसन एक बेहद बुद्धिमान छात्र है। वह एक जीनियस है। किंतु हमारे विद्यालय में एडिसन को पढ़ाने के लिए उतने ही जीनियस शिक्षकों की आवश्यकता है, जिनका यहां अभाव है, इसलिए एडिसन इस विद्यालय में नहीं पढ़ सकता है।

हालांकि यह सब जो एडिसन की मां ने एडिसन को बताया, झूठ था।

लेकिन यहां एडिसन का मनोबल जरूर बढ़ता है। उसे दिशा मिलती है। वह घर में ही कई प्रयासों को आरंभ करता है। छोटे-छोटे आविष्कारों के लिए लगातार कोशिशें। एक समय के बाद एडिशन रुपए कमाने के लिए अखबार बेचने का काम करते हैं, और वहीं से केवल 14 साल की उम्र में ही अपना प्रिंटिंग प्रेस तक स्थापित करते हैं।

आगे उनकी मेहनती, जिज्ञासु और लग्नशील प्रकृति उन्हें आविष्कारों की दुनिया में ले आई। यूं तो उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ो आविष्कार किये, लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध आविष्कार बिजली का बल्ब है। जो 1879 में उनके द्वारा बनाया गया। हालांकि यह एक विवादपस्त विषय रहा, कि उनसे पहले ही यह बल्ब वह वूवकूंतक और मअंदे ने बना लिया था। हां उन्होंने पेटेंट नहीं करवाया था। लेकिन यह बल्ब कुछ ही घंटे जलता था। वहीं एडिसन का बल्ब लगभग 10 घंटे जलने में सक्षम था। वह बल्ब वास्तव में बड़ा प्रकाशमय था। उतना ही जितना की एडिसन के प्रयास थे। कहा गया कि इस बल्ब के आविष्कार में एडिसन ने हजार प्रयास किये, और तब यह प्रकाश मिला।

इन सफलताओं के बाद एडिसन पूरी दुनिया के चर्चित नामों में शामिल थे। एक दिन अलमारी में उन्हें वह पत्र मिला जो स्कूल से वे लाए थे, उन्होंने पढ़ा तो उस पर लिखा था, कि एडिशन को विद्यालय के शिक्षकों के साथ व्यवहार के चलते स्कूल से निकाल दिया गया है।

एडिसन उन लोगों में हैं जो नामी कॉलेजों से डिग्री तो हासिल न कर सके, लेकिन उनके नाम पर कई किताबें कॉलेज में पढ़ी जाती हैं।।

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

संस्कृतियों का उदय | विशेष लेख

दुनिया एक गति के साथ है। यह केवल धरती का घूमना सूरज के चारों ओर चक्कर लगाना मात्रा नहीं है, बल्कि धरती से बाहर उस ब्रह्मांड की गति, वहां हर कारण जो अपना चक्र पूरा कर रहा है। साथ ही धरती के भीतर हर प्राणी हर वस्तु और पदार्थ अपना समय बिता रहे हैं। यह सब एक चक्र में है और एक गति से प्रेरित हैं।

यह पदार्थ प्राणियों के संबंध में है। क्या यह मानव सभ्यताओं और संस्कृतियों के लिए भी सत्य है, कि वह भी एक चक्र में है, और एक चक्र पूरा कर लेने के बाद उनका काल भी समाप्त हो जाएगा।

हजारों साल पुरानी कोई सभ्यता यदि आज भी प्रासंगिक है, तो यह वह दूरदृष्टि है जो तब हजारों साल पहले आने वाले हजारों सालों के लिए स्थापित की गई, और लोग तब से आज तक उसका निष्ठावान अनुसरण करते हैं। दुनिया की गति के साथ या इस बीते समय के साथ स्थितियां और जीवन जीने के लिए साधन और विकल्प भी बदल रहे हैं।

यह बात तो स्वीकार करनी होगी, की सभ्यताएं तभी पनपती हैं जब मानव अपने लिए मूलभूत आवश्यकता के संसाधन जुटा पा रहा हो। भूखे और प्यासे व्यक्ति के लिए अन्न जल का मिल जाना ही सबसे बड़ी बात है, हर भोजन की तलाश में भटकते संसार के किसी भी अन्य प्राणी की ही भांति।

इस प्रकार सभ्यता पनपने के लिए आवश्यक है, कि वह प्राणी मूलभूत आवश्यकता के साधनों को प्राप्त कर पा रहा हो, अन्यथा भोजन के लिए द्वारा द्वारा भटकते किसी जानवर की जाति में क्यों सभ्यता नहीं पनप जाती। 

दरअसल आरंभिक विषय किसी भी प्राणी जाति के लिए जीवन जीने के लिए साधन जुटाने का ही है। यही सवाल है जो जन्म के बाद किसी प्राणी को गति देता है।

आज जहां हम हैं, मानव जाति जो अनेक सांस्कृतिक भूमिकाओं में बंटी हुई है। लड़ाई इस प्रकार भी है कि सभी एक ही संस्कृति को सर्वोच्च मान लें, उसे स्वीकार करें। इस प्रकार तो यह बड़ी लड़ाई है, और संभव दिखती नहीं।

लेकिन कौन संस्कृति है, जो अपने आपको जीवित रख सकेगी। एक तो वह जो सबसे अधिक दूरदृष्टि को दर्शा रही है, और दूसरी जो समय के साथ स्वयं को अनुकूलित कर रही हैं।।

सोमवार, 6 नवंबर 2023

अब सचिन कहो या विराट! विशेष लेख

विराट कोहली ने क्रिकेट के मैदान पर उपलब्धियों के सबसे ऊंचे पायदान को छू लिया है। जिन्होंने उस पायदान को स्थापित किया था, वह भी भारतीय और आज फिर उसे दोहराया है वह भी भारतीय।

विराट कोहली ने अपने वनडे इंटरनेशनल करियर में 49वां शतक लगाया है। और यह सचिन तेंदुलकर के ही बराबर है। अब विराट कोहली इस कीर्तिमान को छू चुके हैं। तो वह सचिन तेंदुलकर के समकक्ष हो गए हैं, यह बात होनी स्वाभाविक है।

यह तो है, कि आधुनिक दौर के क्रिकेट में विराट कोहली ने एक स्तर स्थापित किया है, जिसे महान कहा जा सकता है। वह कीर्तिमान जो बीते समय में सचिन तेंदुलकर द्वारा स्थापित किए गए हैं, वे भावी भविष्य के लिए केवल महान कीर्तिमान नहीं, केवल प्रेरणा नहीं बल्कि आज यदि कोई उस कीर्तिमान को छूता है, उससे आगे बढ़ता है तो यह हमारी उन्नति का प्रतीक है। यह हमारे बढ़ते रहने का प्रतीक है। इसलिए कहते हैं कि रिकॉर्ड बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए। क्योंकि हम भविष्य को उन्नति की ओर बढ़ता हुआ चाहते हैं, और ऐसा ही होता है।

लेकिन यह तो है, कि इस कीर्तिमान को हासिल कर लेने से विराट कोहली ग्रेट विराट कोहली कहे जाने के और योग्य हो गए हैं। तो अब उस सवाल कि सचिन के समकक्ष हैं विराट कोहली?

इस सवाल को कैसे जवाब दिया जाए जिससे महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और उनके तमाम प्रशंसको तथा विराट कोहली और उनके प्रशंसकों जो की एक समान भी हैं तथा विचारों के उन तमाम पहलुओं जो इससे संबंधित है, के साथ न्याय हो सके।

यह भारत का सौभाग्य है कि क्रिकेट के दो महान सितारे हमारे हैं, और वे हमारे साथ हैं। लगभग एक ही दौर में इन दो महान उपलब्धियां ने हमें चर्चा की ओर और करीब लाया है।

सन् 2012 में सचिन तेंदुलकर ने अपना 100वां शतक लगाकर दुनिया के लिए क्रिकेट जगत में महानता का स्तर स्थापित किया। इस समय तक विराट कोहली भी भारतीय क्रिकेट टीम में अपने लगभग चार वर्ष पूरे कर चुके थे। जब सचिन तेंदुलकर फलक पर थे, तब विराट कोहली अपना आधार बना रहे थे। यहां शुरुआत और मुकाम साथ थे। यहां एक रोल मॉडल बना और विराट कोहली ने उन्हें गहराई से जाना और बहुत लग्नशील होकर उनका अनुसरण किया। इसी का नतीजा सामने है, आज उनके लिए कोई रिकॉर्ड कठिन नहीं है। वे मैदान पर उतरते हैं, कि आज जिस मुकाम पर वे हैं वहां नए रिकॉर्ड बनते चले जाते हैं।

आप यह भी कह सकते हैं, कि विराट कोहली के लिए मुकाम सचिन तेंदुलकर ने स्थापित किया था। हालांकि यह सब उनकी काबिलियत उनके धैर्य और समर्पण का फल है, जो भारत को विराट कोहली में सचिन तेंदुलकर का रूप दिखा है। और यह सचिन तेंदुलकर का महान खेल रहा है, की हर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की तुलना उनसे होगी, क्योंकि वह वे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सबसे पहले आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक मुकाम स्थापित किया।

जो उस उपलब्धि को हासिल करेगा, वह स्वत: ही महान होगा। किंतु ऐसा कितनी ही बार भविष्य में होता रहे, आप इस बात को स्वीकार करेंगे, कि वह कभी सचिन तेंदुलकर के समकक्ष नहीं होगा।।

रविवार, 5 नवंबर 2023

अब सर्वश्रेष्ठ विराट कोहली कहो।

केवल खिलाड़ियों के साथ विराट कोहली मैदान पर नहीं खेल रहे हैं। वे वहीं से दर्शकों में मैदान की ऊर्जा भर रहे हैं। यह उनका एक अलग अंदाज दर्शाता है। और यही है जो विशाल संख्या में चाहने वालों को देता है। यही जो उन्हें सबसे अलग बनाता है।

यह वह दौर है, जहां विराट कोहली अपने सर्वश्रेष्ठ पर हैं। किसी भी स्थिति में मजबूत और विश्वस्त। विराट आज अपने जन्मदिन पर सर सचिन तेंदुलकर के एक और विराट रिकॉर्ड को अपने नाम कर चुके हैं। वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट में 49 बार सौ रनों की पारी। यह कैसा है, पहले तो आप अपने कठिन परिश्रम से भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनते हैं, जो अपने आप में एक महान सफलता है। लेकिन उसके बाद भी आप ठहर नहीं जाते, आप लगातार आगे बढ़ाने को उत्सुक हैं। आपमें प्यास है, और आप पूरी तरह से उसके लिए समर्पित हैं। आप लगातार नए प्रयोग करते हैं, और उनसे सीखते हैं। तब जाकर एक विराट “विराट कोहली” सामने आते हैं। जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि आज मैदान पर आए हैं तो जाने क्या रिकॉर्ड बनाने को।

वह एक महान बल्लेबाज हैं, और इस बात को उन्होंने साबित किया है। क्रिकेट के इतिहास में महानता के उन आयामों पर कदम रखकर आज वे क्रिकेट जगत का ऐसा सितारा बन गए हैं। जिसकी रोशनी सतत है, और वह आने वाली कई पीढ़ियों को सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट की परिभाषा बताएगी।

हैप्पी बर्थडे विराट “विराट कोहली”।

शनिवार, 4 नवंबर 2023

बनास के धावक | अंकित कुमार राष्ट्रीय गोल्ड मेडलिस्ट


  अंकित कुमार आजकल लोगों ने खूब सुना और देखा। देखते ही देखते पैठाणी घाटी का चर्चित चेहरा बन गया। हालांकि जो उन्होंने कर दिखाया है, वह इससे कई बड़ा है। गोवा में चल रहे राष्ट्रीय खेलों में पौड़ी गढ़वाल निवासी अंकित कुमार ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। उन्होंने 10 किलोमीटर दौड़ को 29 मिनट और 51 सेकंड में पूरा कर यह पदक अपने नाम किया।


बात यह है कि अंकित कुमार अपने निकटवर्ती गांव बनास के हैं और यह स्थानीय लोगों के लिए रेखांकित करने वाली बात है, हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।

  यदि स्थानीय बातचीत के संदर्भ में विचार पेश करें। मेरा इस लेख को लिखने का मुख्य कारण क्षेत्रीय विषयों को अहमियत देना और क्षेत्रीय उपलब्धियां को क्षेत्र के लोगों से अधिक से अधिक जोड़ने का प्रयास करने के साथ यह भी है की साथी युवाओं से मैंने कई बार सुना है “बनास के धावक”

शायद आपने भी सुना हो। जो लोग इस बात को पूर्व से जानते हैं और स्वीकार करते हैं, वे अंकित कुमार की इस उपलब्धि के बाद सीधे इसी बात का स्मरण करेंगे “बनास के धावक”

बनास गांव के युवा तेज दौड़ते हैं। यह उपलब्धि फौजी के लिए दौड़ लगाते युवाओं के बीच हुई प्रतिस्पर्धा के कारण ही सामने आई होगी। अब तक मैं सर्वाधिक जो नाम सुना हूं वह मुकेश हैं। बनास गांव के मुकेश। 

उनका नाम भी तब अधिक सामने आया था, जब पहले कभी यहां हुई एक दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आकर उन्होंने इनाम में एक स्कूटी हासिल की थी। यह प्रेरक जीत थी। इससे कई युवा अपने आप में छुपी प्रतिभा को ढूंढने के लिए आगे आते हैं। इससे बात युवाओ में एक बार फिर हुई, बनास के धावक होते हैं। तभी से यह बात मुझे स्थानीय खेलकूद के संदर्भ में याद आती है, और आज बड़े स्तर पर अपने आप को सबसे तेज साबित कर आए हैं बनास के धावक, अंकित कुमार।

मैं इस लेख को मित्रवत भाव में लिख रहा हूं स्थानीय लोगों के लिए यह अधिक महत्व का है। वे इसे अधिक गहराई से समझ सकेंगे। इन बातों को वह शायद पूर्व से ही सहमति भी देते हो।

  यह अंकित कुमार हैं, और यह उन तमाम क्षेत्र के धावकों का सर्वश्रेष्ठ चेहरा बन गए हैं। उन्होंने गांव के रास्तों और कच्ची सड़क की दौड़ को सबसे मजबूत मेहनत साबित कर दिया है। उन्होंने गांव के रास्तों को दौड़ के ट्रैक पर सफल साबित किया है।।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

मैं खेलूंगा | महान सचिन तेंदुलकर का उदय

हाल ही में वानखेड़े स्टेडियम मुंबई के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की एक प्रतिमा को अनावरित किया गया। सचिन तेंदुलकर स्वयं इसे उन तमाम सहयोगियों अपने साथी क्रिकेटरों के साथ होने का फल बताते हैं। वहीं भारत इस प्रतिमा को भारतीय क्रिकेट का एक समग्र स्वरूप के रूप में देख रहा है।

सचिन तेंदुलकर की क्रिकेट की वह तमाम ऐतिहासिक परियां जाने कितनी बार भारतीयों के लिए गर्व करने का एक चेहरा बने श्री सचिन तेंदुलकर। उनका वह आरंभिक समय भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना, वह एक मैच जिसकी चर्चा करना आज भी एक महान प्रेरणा है। वह मैच बताता है, कि क्यों सचिन तेंदुलकर महान सचिन तेंदुलकर हैं।

केवल पंद्रह साल का एक बालक भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा एक मैच के दरमियान जब मैदान पर उतरता है, तो सामने विपक्षी खिलाड़ियों के तो पहले ही हौसले ऊंचाई पर थे। इसके दो कारण थे, एक तो केवल 24 रनों पर भारतीय टीम के चार बल्लेबाज वापस लौट गए थे। और दूसरा अब जो क्रीज पर खड़ा था, एक बालक केवल पंद्रह वर्ष का।

गेंदबाजी पाकिस्तान के हाथों में थी, बेहद तेज गेंदबाज लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार और बड़े-बड़े नाम वकार यूनुस, इमरान खान और वसीम अकरम जैसे गेंदबाज।

पहली गेंद जो उस बालक के सामने से यूं जाकर निकली जैसे गेंद हो ही न केवल हवा का झोंका हो। सामने दूसरे छोर पर नवजोत सिंह सिद्धू जो खड़े थे, जाकर पूछते हैं तो बालक ने कहा मैं ठीक हूं।

अगली गेंद एक बाउंसर थी, और उस बालक के हेलमेट से नाक पर जा लगी, यह बहुत तेज था। वहां खून बहने लगा एक पंद्रह वर्ष का बालक भारतीय टीम के लिए खेलता हुआ। दर्शकों कि जहां पूर्व से ही एक पंद्रह वर्षीय बालक को लेकर सहानुभूति थी, इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों के सामने वह किसी भी प्रकार से सक्षम नहीं दिख रहा था। दर्शकों का तो साफ मानना था, कि इतनी कम उम्र के बालक को इतने बड़े मैच में कैसे खेलने दिया गया है। 

वहां खिलाड़ी और डॉक्टर खड़े हुए और अब उस बालक को मैदान छोड़ने को कहा गया वह जाए और कुछ समय आराम करे।लेकिन उस बालक ने इन तमाम बातों को नकार दिया। अपने आत्मविश्वास और मजबूत इरादे को जाहिर किया। दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की।

वह बोला और जो बोला वह आज तक नये बल्लेबाजों के लिए महान प्रेरणा है। वह बालक कहता है “मैं खेलूंगा”

यह कोई और नहीं सचिन तेंदुलकर थे। और यहां इस मैदान में भारतीय क्रिकेट का एक सितारा पैदा हुआ। वह खेला और ऐसा खेला की भारत ही नहीं दुनिया क्रिकेट से उसे नहीं पहचानती बल्कि उसके चेहरे से क्रिकेट को पहचानती हैं।।

बिग बॉस विनर एलविश यादव के खिलाफ FIR

एलविश यादव पर कुछ आरोप लगाए गए हैं। FIR दर्ज हुई है। सांपों की तस्करी से जुड़ा मामला है, और लगभग छः के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की गई है। उनमें एक एलविश यादव हैं। अब यह हममें से तो कई लोगों के लिए बिल्कुल नया है कि सांपों के जहर को पार्टियों में प्रयोग किया जाता है।

बताया गया है, कि यह गैर कानूनी कार्य के लिए इस आरोप के चलते वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 39, 48ए, 49, 50 और 51 के अंतर्गत केस दर्ज किया गया है। एलविश यादव इस आरोप में बड़ा चेहरा है। कई नौजवान उन्हें बेहद उत्साह से अनुसरण करते हैं। बिग बॉस के विजेता बनने के बाद तो वह खूब चर्चित रहे। देश भर में उन्हें देखा गया और लोगों ने खूब पसंद भी किया। जाहिर सी बात है कि इससे उनकी प्रसिद्धि में इजाफा हुआ है।

आप उन्हें जानते ही होंगे फोन पर आपने कभी तो उन्हें देखा ही होगा। मुझे एक बात उनकी याद आती है, बिग बॉस के शो पर उस दरमियां उन्होंने वहां आए किन्हीं पंडित जी जो हाथ की लकीरें पढ़ सकते थे, उनसे बहुत सी बातें जानने के बाद एलविश यादव ने कहा पंडित जी आप देखकर बताइए मैं नेता कब बनूंगा। मैं पॉलिटिक्स में कब आऊंगा।

हालांकि इस मामले पर एलविश यादव की प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है, किसी न्यूज़ चैनल को उन्होंने बताया कि यह सब आरोप फेक हैं। वह एक आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं। और इस बात का परिचय एलविश यादव ने बिग बॉस विजित कर दिया। लेकिन इस प्रकार के आरोपों में उनका नाम आश्चर्यजनक है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें युवा एक बड़ी संख्या में चाहते हैं। आपको बड़ी संख्या में अनुसरणकर्ता प्राप्त होने के बाद आपकी जिम्मेदारियां बेहद बढ़ जाती हैं। क्योंकि आपका हर कदम केवल आपका व्यक्तिगत नहीं रह जाता, बल्कि वह कई लोगों को प्रभावित कर रहा होता है।।

दुनिया एक सफर में और जीवन चक्र | विशेष लेख

जीने के लिए प्लायन एक अहम क्रिया है?



आज से हजारों साल पहले मानव ने अफ्रीका से दुनिया भर में पलायन आरंभ किया। हर कोने को जानना और अपने लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में सफर जारी है। आज भी यह जारी है, और सच तो यह है, कि यह सफर दुनिया में चल रहे हजारों प्राणी जातियों के सफर में एक है। वह सब सफर कर रहे हैं, अपने जीवन के लिए कोई अपने भोजन के लिए और कोई बदलते समय, मौसम और जलवायु के लिए।

कुल मिलाकर दुनिया एक सफर में है। कोई धीमी चाल में और कोई तीव्र। कोई हर समय सफर में ही है, कोई मौसम के साथ सफर में है, कोई साल में एक बार तो कोई जीवन में एक बार सफर में है।

यह सफर धरती पर बसे केवल प्राणी जगत के लिए नहीं है। यह सफर तो स्वयं इस धरती के लिए भी है, वह भी सफर में है। हमारी धरती सूरज का चक्कर लगा रही है, यह मौसम परिवर्तन का कारण है। धरती अपने अक्ष पर भी घूम रही है, और यह रात दिन के लिए कारण है। सूरज के सामने जो हिस्सा होगा वहां दिन होगा और यह 12 घंटे के समय के लिए है। धरती 23.5 डिग्री झुकी हुई भी है और यह ध्रुव पर एक महत्वपूर्ण घटना को जन्म देता है। छः माह दिन और छः माह रात, और यह यहां के जीवन को बहुत विशेष बना देता है।

यह किसी प्राणी की अनुकूलन क्षमता पर निर्भर है कि वह वहां जी रहा है। अन्य प्राणी जगत वहां से पलायन करें। छः माह की धूप में पिघलती बर्फ ध्रुव पर सभी जीवो को जल में ले आती है। वह अब केवल तैरेंगे। हालांकि वहां धूप इतनी गरम नहीं, किंतु यह है, और बर्फ को पिघलती है। क्योंकि तापमान शून्य से कुछ अधिक पहुंचता है।

  तेज धूप और गर्म कालाहारी रेगिस्तान में पलायन के लिए जंगली भैंसें तैयार हैं। वह दूर कहीं जल की तलाश में सफर आरंभ कर रहे हैं। यह अफ्रीका का विशाल झुंड बनकर अपने जीवन के लिए सफर आरंभ करता है। इनका यह सफर अन्य जीवों के लिए भी भोजन का जरिया है। वहां राह में शेरों के लिए यह शिकार है। वे इस सफर का इंतजार करते हैं।

यही है, कि एक सफर से जीवन चक्र संभव है।

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

गेंदबाजों का क्रिकेट | भारत Vs श्रीलंका

भारतीय क्रिकेट टीम का आज पूरी तरह से उत्साह पूर्ण प्रदर्शन रहा। यह निडर प्रदर्शन श्रीलंका के खिलाफ होना, भारतीय टीम के आत्मविश्वास का प्रदर्शन है। हालांकि भारत की ओर से स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी गई थी। लेकिन यह इतना भी दबाव पैदा नहीं करता है, कि श्रीलंका जैसी बड़ी टीम को इस स्थिति में ले आए। यहां भारतीय गेंदबाजी की बड़ी तारीफ करनी होगी। खास कर तेज गेंदबाज जो लगातार शानदार प्रदर्शन दे रहे हैं।

  इस खेल में आज सिर्फ बॉल विकेट के लिए फेंकी जा रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था। बल्ले ने भारत के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कहा। यह श्रीलंका जैसी टीम के लिए बड़ी निराशा है। यह कुछ ऐसा ही था, जैसे तमाम अब तक हुए मैचों को जीत आने के बाद भारतीय टीम ने अपना वह सब अनुभव आज के मैच में उतार दिया हो। यह बड़ी जीत है। यह भारतीय टीम के मजबूत विजन को दर्शाता है। बैटिंग के शानदार प्रदर्शन के बाद गेंदबाजी में यह कर दिखाना पूरी तरह से एक तरफा मैच की स्थिति पैदा करने वाला रहा।

  वहां जब से मोहम्मद शमी को खेलने को मैदान पर लाया गया है, उन्होंने अपनी जगह को पूरी तरह से निश्चित कर लिया है। हर मैच में अपना पूर्ण देकर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह फटा पोस्टर निकला हीरो जैसा है।

  यह प्रदर्शन जहां केवल बल्लेबाज मैच जीतने वाले हीरो की तरह सामने नहीं है, बल्कि भारतीय गेंदबाजों ने भी कुछ ऐसा दर्शाया है, कि यदि वह लय में हैं, तो किसी टीम को बेहद कम रनों पर रोक सकते हैं, और यहां तो टीम भी श्रीलंका है।

  यह टीम आज के प्रदर्शन से कई बड़ी टीम है। हम सभी जानते हैं कि श्रीलंका क्रिकेट टीम बेहद शानदार है। उनकी गेंदबाजी ने भी अच्छा काम किया। हालांकि इस सब में भारतीय टीम ने स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी, लेकिन यह अजेय लक्ष्य नहीं था। लेकिन अंतिम रूप से जहां श्रीलंका की बैटिंग जो अच्छी मानी जाती है, यदि पूरी तरह से नाकाम रही, तो यह भारतीय गेंदबाजों को श्रेय जाता है। और आज भले ही तीन भारतीय बैट्समैन शतक से बिल्कुल करीब तक गए हो और बेहद शानदार प्रदर्शन किया हो लेकिन अंतिम रूप से भारतीय तेज गेंदबाजों ने इस शाम को अपने नाम कर दिया।।

श्रेयश अय्यर श्रीलंका के खिलाफ शानदार

इस वर्ल्ड कप में खिलाड़ियों का शानदार देखा गया। आज इसी लय में श्रेयश अय्यर ने भारतीय क्रिकेट टीम में अपने होने का प्रदर्शन किया। एक शानदार प्रदर्शन। यूं तो सुभमन गिल और विराट कोहली की भी एक लंबी शानदार पारी रही, लेकिन श्रेयश अय्यर आज के मैच में खास हैं। यह इसलिए भी क्योंकि इस वर्ल्ड कप में खेल प्रेमियों के साथ स्वयं श्रेयश अय्यर भी अपना सर्वश्रेष्ठ ढूंढ रहे थे।

 भारतीय टीम का हिस्सा इस वर्ल्ड कप में श्रेयश अय्यर अब तक अपना खास नहीं दे पाए थे। पूर्व में एक मैच के बाद जब उन्हें बाहर रखा गया यह कहकर की फिटनेस संबंधी समस्या है, और ईशान किशन को उनकी जगह पर लाया गया तो उनकी ओर से एक निराशा प्रतिक्रिया प्रकट की गई, कि उन्हें यह सब का पता भी नहीं चला कि उन्हें कैसे प्लेइंग इलेवन से बाहर रखा जा रहा है।

यह भारतीय क्रिकेट टीम कप्तान और मैनेजमेंट के लिए बड़ी विडंबना है, कि कैसे खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ का चयन हो। क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग के चलते खिलाड़ियों का एक शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है। वही खिलाड़ी देश की टीम के लिए खेलने की योग्यता भी रखते हैं। हालांकि वहां खेल रहे खिलाड़ी खेल प्रेमियों के सामने एक हीरो की छवि तो हासिल कर ही लेते हैं। उनके अपने-अपने चाहने वाले भी होते हैं, जो उनके लिए केवल उनके लिए मैदान में दर्शक बन बैठे होते हैं। इसमें जब खिलाड़ियों का भारतीय टीम के लिए चयन किया जाता है, तो खेल प्रेमियों की इच्छा और खेल मैनेजमेंट के द्वारा चयन किए गए खिलाड़ियों में गतिरोध बनना तय होता है। लेकिन फिर भी जिन भी खिलाड़ियों का चयन किया जाता है, वह श्रेष्ठ ही होते हैं।

आज श्रेयश अय्यर ने यही दर्शाया की काफी समय से इस टूर्नामेंट में शांत उनका बल्ला समय पर अपनी उपस्थिति दिखा सकता है। आज उनके बल्ले ने जिन छक्कों की झड़ी लगाई गई, वह उनके शानदार खिलाड़ी होने की पहचान है। खेल में एक रौनक बांध कर रखी थी, श्रेयस अय्यर ने।

उनके बल्ले से निकले छह छक्कों में एक इस टूर्नामेंट का सबसे लंबा छक्का है, जो 106 मी का है। श्रेयश अय्यर आज की शाम के हीरो बनकर भारत के लिए एक शानदार पारी को जमाते हैं।।

होमी जहांगीर भाभा और भारत का परमाणु परीक्षण

1966 में वियना जा रहे एक वायुयान के क्रेश हो जाने की घटना ने भारत के न्यूक्लियर रिसर्च की ओर बढ़ती आशाओं को धीमा कर दिया। इस विमान में होमी जहांगीर भाभा भी थे। वह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की एक कांफ्रेंस के लिए वियना जा रहे थे। भारत को पहले एटॉमिक बम बनाने का वादा करने वाले होमी जहांगीर भाभा, भारतीय एटॉमिक रिसर्च के फादर कहे जाते हैं। 

यह उनकी मेहनत का ही फल था, कि उनकी मृत्यु के 8 वर्षों पश्चात भारत ने पहले एटॉमिक प्रशिक्षण में सफलता हासिल की।

अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे इंजीनियरिंग के लिए कैंब्रिज गये। उनके पिता भी यही चाहते थे, कि वह इंजीनियरिंग करें और इसी में अपना भविष्य देखें। किंतु कैंब्रिज में कुछ लोगों से उनकी मुलाकात के कारण उनका झुकाव धीरे-धीरे मैथ्स और थियोरेटिकल फिजिक्स की ओर चला गया। उन्होंने कैंब्रिज में अपनी इंजीनियरिंग पूरी की। लेकिन इसी दरमियान उन्होंने अपने पिताजी को इस संदर्भ में खबर दी की वह अपने भविष्य में इंजीनियरिंग को लेकर इतने रुचिकर नहीं हैं। उन्होंने कैंब्रिज में ही न्यूक्लियर फिजिक्स में अपनी पीएचडी भी पूरी की। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जो की 1939 में शुरू हो गया था वे वापस इंग्लैंड ना जा सके। इस दरमियान वे भारत अपनी छुट्टियों के लिए आए हुए थे। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बेंगलुरु से जुड़ने का फैसला किया। इस संस्थान का संचालन उस समय पर डॉक्टर सी० वी० रमन कर रहे थे। यहीं होमी जहांगीर भाभा की विक्रम साराभाई से भी मुलाकात होती है। 

विक्रम साराभाई जो इस समय पर कैंब्रिज में विद्यार्थी थे, और वही कारण की द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वे भी अब भारत लौट आए थे। भाभा जो की कॉस्मिक रेज के माध्यम से परमाणु के कणों का अध्ययन करना चाहते थे। वहीं विक्रम साराभाई इन्हीं कॉस्मिक रेस की सहायता से बाह्य अंतरिक्ष के अध्ययन में रुचिकर थे। 

एक बार सी०वी० रमन ने होमी जहांगीर भाभा को लिओनार्दो दा विंची के समक्ष बताया था। लगभग पांच सालों तक इस संस्थान में कार्य करने के बाद 1943 में होमी जहांगीर भाभा ने जे०आर०डी० टाटा को फंडामेंटल फिजिक्स के लिए भारत में एक रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलने को कहा, और 1945 में इसे स्थापित किया गया।

भारत की आजादी के बाद जब पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने 1948 में ही होमी जहांगीर भाभा ने पं० नेहरू को एक पत्र लिखकर भारत में न्यूक्लियर एनर्जी पर शोध की जरूरत को जाहिर किया और उन्होंने नेहरू जी से इस बात को भी कहा की एक एटॉमिक एनर्जी कमिशन बनाया जाएगा, जो न्यूक्लियर एनर्जी से संबंधित शोध की रिपोर्ट को सीधे प्राइम मिनिस्टर से साझा करेगा। इसके बाद ही पंडित नेहरू ने 1948 में एटॉमिक रिसर्च कमिशन को स्थापित किया।

इसके पहले अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा बने। एस०एस० भटनागर और के०एस० कृष्णन इस कमीशन के अन्य सदस्य थे। पं० नेहरू से होमी जहांगीर भाभा की गहरी मित्रता थी। कहते हैं, कि पं० नेहरू को केवल दो लोग भाई कह सकते थे, एक जयप्रकाश नारायण और दूसरे होमी जहांगीर भाभा।

अब जब 1954 में मुंबई में एटॉमिक रिसर्च सेंटर बनाने की शुरुआत हुई। इसी के साथ भारत में एटॉमिक रिसर्च प्रोग्राम को भी तीव्र गति प्राप्त हुई। इसी समय इंडियन गवर्नमेंट ने भी एटॉमिक रिसर्च को लेकर बजट में वृद्धि की। अब तक होमी जहांगीर भाभा एटॉमिक एनर्जी को लेकर दुनिया भर में पहचान प्राप्त कर रहे थे। 1950 तक भाभा इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी में भारत का नेतृत्व करने लगे थे। और इसी के चलते यूनाइटेड नेशन में 1955 में उन्हें एक कांफ्रेंस का प्रेसिडेंट बनाया गया, जो एटॉमिक एनर्जी के शांतिप्रिय प्रयोग को बढ़ावा देती थी। यह कॉन्फ्रेंस जेनेवा स्विट्जरलैंड में आयोजित की गई थी।

इसके बाद इन्हीं कुछ प्रयासों के चलते और दुनिया भर में एटॉमिक रिसर्च को लेकर प्रसिद्धि पा रहे होमी जे भाभा के कारण भारत को इससे लाभ हुआ। 1955 में शांतिप्रिय एटॉमिक एनर्जी के प्रयोग के वादे के चलते कनाडा ने भारत को एटॉमिक रिएक्टर दिए। अमेरिका ने भी भारत को भारी जल उपलब्ध कराने का वादा किया।

इसके बाद तो भारत ने भी 1956 में अपना पहला न्यूक्लियर रिएक्टर विकसित किया। जिसे अप्सरा कहा गया, और यह एशिया के सबसे पुरानी रिसर्च रिएक्टर के तौर पर जाना जाता है। इन्हीं सब उपलब्धियां के बाद अब भाभा के लिए एटॉमिक बम बनाने के द्वारा खुल गए थे। लेकिन अब तक भारतीय नेता इस स्थिति में नहीं थे। वह इस विचार के पक्ष में भी नहीं थे। दूसरी ओर भारत आजादी के बाद से अब तक गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी से जकड़ा हुआ था। इन सब के बीच केवल होमी जहांगीर भाभा ही थे, जो भारत के लिए न्यूक्लियर रिसर्च की दिशा में एक दूर दृष्टि को लिए हुए थे।

1962 में भारत और चीन के युद्ध और इस समय पर भारत को हुए नुकसान में एटॉमिक एनर्जी की दिशा में भारत को बढ़ने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि 1964 तक चीन ने अपने एटॉमिक बम का सफल परीक्षण कर दिया था, और यह भारत के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने थी। इसी समय पर होमी जहांगीर भाभा ने यह बात कही थी, कि वह इस स्थिति में हैं, कि 18 महीने के भीतर में भारत को उसका अपना न्यूक्लियर बम दे सकते हैं।

लेकिन तमाम कारणों दुनिया भर के दबाव के चलते यह कार्यवाही आगे ना बढ़ सकी। उधर नए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अब पदासीन हो चुके थे। इसके बाद 1965 में जब एक बार फिर भारत और पाकिस्तान युद्ध हुआ तो एक बार फिर स्थिति पैदा हुई कि न्यूक्लियर एनर्जी की दिशा में प्रयास किए जाएं। लेकिन उससे पहले की भाभा इस पर काम करते 1966 में उनकी मृत्यु हो गई, और इसी के साथ अब एटॉमिक रिसर्च सेंटर को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर नाम दिया गया। नए अध्यक्ष के तौर पर विक्रम साराभाई को चुना गया। विक्रम साराभाई जो इस समय पर इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन को विकसित करने में लगे हुए थे।

1967 तक नई प्रधानमंत्री के तौर पर श्रीमती इंदिरा गांधी पदासीन हो चुकी थी। क्योंकि साराभाई पूर्व से ही एटॉमिक बम बनाने की दिशा में सहमत नहीं थे। लेकिन इंदिरा गांधी के बार-बार कहने के कारण उन्होंने इस कार्य के लिए सहमति दी।

1971 की लड़ाई के बाद जब इंदिरा गांधी की प्रसिद्ध में वृद्धि हुई, तो उन्होंने 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से न्यूक्लियर बम के परीक्षण को लेकर बात कही। इसे स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया। 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजस्थान के पोखरण में यह सफल परीक्षण किया गया। इसी के साथ होमी जहांगीर भाभा का स्वप्न भी पूरा हो गया।।

मुख्य रूप से होमी सेठना और राजा रमना दो महत्वपूर्ण नाम, इस कार्य के लिए पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। 75 से कम लोगों ने इस प्रोजेक्ट में काम किया, बात यही थी कि दुनिया भर को इस संदर्भ में कोई खबर नहीं होनी चाहिए। विक्रम साराभाई इस पूरे प्रोजेक्ट को संचालित कर रहे थे। यह इतना गोपनीय था कि भारत के रक्षा मंत्री को भारतीय सेना को इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏