सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

मानव का क्रमिक विकास | पूर्व ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल | Evolution of human from stone age to metal age in hindi

मानव का क्रमिक विकास | पूर्व पाषाण काल, उत्तर पाषाण काल, धातु काल-

मानव का क्रमिक विकास

    मानव का विकास कर्मिक है। विद्वानों के मतानुसार प्रारंभ में मानव अज्ञानी और बर्बरता के अंधकार में डूबा हुआ था। वह सभ्यता की ओर धीरे-धीरे आया है। किंतु यह भी सत्य है, कि सभ्यता का फल चख लेने पर वह नियत  ढंग से इसके विकास में स्वयं को संलग्न रखता आया है।

  ईश्वर ने मानव को बुद्धि बल, सोच विचारने की शक्ति दी है। और मानव ने अपने जीवन को उन्नत बनाने के क्रम में इसका भरपूर प्रयोग किया।

   भारतीय सभ्यता के लगभग 3500 ई०पू० से पहले के काल को पूर्व ऐतिहासिक काल की सभ्यता और 3500 ई०पू० के बाद के काल को ऐतिहासिक काल की सभ्यता के नाम से पुकारा गया है। ऐतिहासिक काल की सभ्यता का पता लगाना कुछ बहुत अधिक कठिन नहीं है। क्योंकि हमें उस काल के ग्रंथ, मुद्रा, लेख, अभिलेख, बर्तन, औजार, स्मारक आदि प्राप्त होते हैं।

  ऐतिहासिक काल को दो भागों में विभक्त किया गया है। पाषाण काल को लेकर विद्वानों का मत है कि पूर्व मानव पत्थर के औजार बनाता था। किंतु यदि बहुत अधिक जंगली और असभ्य था, तब उस काल को पाषाण काल के एक खंड में पूर्व पाषाण काल कहा गया, और जब मनुष्य औजार निर्माण में पत्थर का प्रयोग तो करता था, किंतु कुछ सभ्य हो चला था, उसे उत्तर पाषाण काल कहा गया।

  भारतीय सभ्यता के विकास में धातु का वह काल है। भले ही वह जब से प्रारंभ हुआ हो, किंतु मानव सभ्यता के विकास में इसका प्रयोग लगातार हो रहा है। मानव का उत्थान उसकी सभ्यता के उत्थान से आंकलित होने लगा, और वास्तव में मानव उत्थान से तात्पर्य मानव सभ्यता के उत्थान से ही है।

  उत्तर भारत में धातु काल का क्रम ताम्रकाल तथा तत्पश्चात लौहकाल होने का ज्ञान है। किंतु दक्षिण भारत में ताम्रकाल का स्थान नहीं है। विश्व के इतिहास में ताम्रकाल के बाद कांस्यकाल का ज्ञान होता है, किंतु भारतीय इतिहास में इसका स्थान नहीं है।

  पाषाण काल में पत्थरों के हथियार का प्रयोग था। हड्डियों का प्रयोग करते थे। किंतु सभ्यता के कुछ विकास के बाद  भारतीय सभ्यता के विकास के मानव  ने सर्वप्रथम तांबा धातु का प्रयोग किया था। क्योंकि धातु को   गलाया जा सकता है, उसे रुप दिया जा सकता है, और उसके हथियार कुछ हल्के होते थे, पत्थर के हथियारों से तो सहज जरूर होते थे। और मानव उन्हें प्रयोग में लाने लगा। अतः भारतीय सभ्यता का क्रमिक विकास पूर्व पाषाण काल, उत्तर पाषाण काल, ताम्रकाल और लौहकाल से होकर आता है।

  विद्वानों के अनुसार पूर्व पाषाण काल का व्यक्ति नंगा रहता था। वह असभ्य था। किंतु बाद में  पत्तों, वृक्षों के छाल का, पशुओं की खाल को वस्त्रों के रूप में प्रयोग करने लगा। वह गुफाओं में और वृक्षों पर रहता था। जलाशय के पास ही रहता जो जल की सुविधा रहे। वह खानाबदोश था। वह प्रकृतिक जीवी थे, अपने परिश्रम से किसी चीज को पैदा नहीं करते थे।

   वही उत्तर पाषाण काल का मानव सभ्य हो गया था। वह पत्थर के औजार जरूर प्रयोग करता था। किंतु उन्हें रूप दे रहा था। वह पत्थर के सुंदर मकान बनाने लगा था। वह सहयोग और मेलजोल को समझने लगे। और आपस में मिलकर रहने लगे थे। गांव बसने लगे। अब वह कृषि की ओर बढ़ने लगा, और ग्राम समुदाय का स्थाई निवासी हो गया। कृषि के लिए लकड़ी के चीजों की आवश्यकता रही होगी, तो कुछ लोग बढई का काम करने लगे और कुछ बर्तन तब गांव में कुम्हारों का भी  एक समुदाय रहने लगा।

इस युग में मानव पशुओं को मांस के लिए ही नहीं बल्कि जान गया था कि कुछ पशु अन्य प्रकार से भी उपयोगी हैं। अतः वह भैंस, गाय, भेड़, घोड़ा, बैल को पालने लगा।

जब कभी वर्षा से फसल खराब हो जाती थी। उनकी झोपड़ियां आंधियों में उड़ जाती थी। तब उनका विश्वास दैवी शक्ति पर होने लगा और वह चेतना जन्म लेने लगी। और वे प्रकृति में जल, वायु, अग्नि को देवता मानने लगे उनकी पूजा होने लगी।

   ताम्रकाल में विद्वानों के मतानुसार तांबे का औजारों और अन्य आवश्यकता की चीजों के लिए प्रयोग होने लगा। पशुओं का उपयोग बोझा ढोने के लिए होने लगा। पशु-गाड़ियों का प्रयोग हुआ। पकी ईंटों का प्रयोग होने लगा। प्राकृतिक शक्तियों पर दृढ़ विश्वास होने लगा और वे उसे प्रसन्न करने के लिए पूजा करने लगे।।

   धातु काल का अगला युग लौह काल है। इसमें लोहे का प्रयोग होने लगा।

  आधुनिक विद्वानों ने  कुछ उपलब्ध हुए साक्ष्यों में ही पुरा-इतिहास का अनुमान किया है। और इसे गढने में सफल रहे हैं।

कालांतर में सभ्यता में संशोधन तथा परिवर्तन होता रहा है। और यह आज तक चलायमान है। 

रविवार, 10 अक्टूबर 2021

भारत की भौगोलिक व्याख्या | दक्षिणापथ, आर्यावर्त भौगोलिक विविधता

भारतीय भौगोलिक परिस्थितियां / भूगोल का भारत वासियों पर प्रभाव-

भूगोल का भारतवासियों पर प्रभाव

    भारत के भूगोल का भारतवासियों पर प्रभाव गौरतलब है। स्थल असमानता भारतवासियों को भिन्न करती है। उनके संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक रूचि और जीवन का कारण है।

 ■  हिमालय की पर्वत माला ने जिस प्रकार हिंदुस्तान को पोषित किया है। उसका संरक्षण किया है, वह किसी से छिपा नहीं है। उत्तर की शीत हवाओं से संरक्षण, मानसूनी हवाओं का अवरोध और उत्तर की भूमि की समृद्धि, आक्रमणकारियों के लिए अभेद्य अवरोध बना रहा है द ग्रेट हिमालय। हिंदुस्तानियों के लिए वास्तव में ग्रेट है। हिंदुस्तान का कभी सोने की चिड़िया होना हिमालय के संरक्षण की देन है।

ऋषियों ने प्राचीन काल से अब तक हिमालय की भागों में चिंतन के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किए। इस की गोद की पवित्रता में प्रकृति के साधक रहें। यह भारतवासियों की धार्मिक जीवन पर भी प्रभावी रहा। हिमालय की इन सब महत्ता से ही हिमालय भारत का मुकुट है।

 ■  उत्तर का विशाल मैदान अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन की उर्वरता भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक जीवन को प्रभावित करती रही है। अतीत के पृष्ठो में बड़े-बड़े साम्राज्य का उदय और पतन इसी मैदान में हुए। महाभारत का महान युद्ध इसी भूमी पर लड़ा गया। मौर्य, गुप्त वंश के यशस्वी शासन इसी भूमि की उपज रहे। दिल्ली सल्तनत का उदय, मुगल साम्राज्य इसी मैदान पर घटित हुआ है। बंगाल भूमि से अंग्रेजों ने अपनी विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की, और स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल भी इसी भाग में पहली बार सन 1857 में उदघोष हुआ। 

   इस भाग में धार्मिक उदय, कला, व्यापार, चिंतन की ओर मानव को प्रेरित किया। यह भूमि उर्वरक और समृद्ध है। अतः अवकाश का समय अधिक होने से उत्तर भारत के लोग जीवन यापन के लिए श्रम के अतिरिक्त स्वयं को रचनात्मक कलाओं में पारंगत करते रहे। उन्हें कला में सृजन के लिए पर्याप्त समय मिला। वेद, शास्त्र ग्रंथ, स्मृति, पुराण, बौद्ध, जैन धर्म आदि विचारों ने यहीं जन्म लिया। इस प्रदेश के समृद्धि पर आक्रमणकारियों की सदैव से दृष्टि रही। राजस्थान के मरुस्थलीय भाग में राजपूतों ने जैसे हिंदू संस्कृति को जीवित रखा वह अविस्मरणीय है। राजपूत वीरांगनाओं ने कैसे जोहर अपनाया यह अदम्य साहस की मिसाल सदैव जुबान में रहेगी। स्वतंत्र भाव से जीने के लिए राजपूतों का संघर्ष उन्हें अरावली की श्रेणियों में शरण लेने के लिए विवश कर गया, किंतु यह वही भूमि है, जिससे पोषित राजपूतों ने आन की रक्षा, शूर-वीरता, शत्रु को पीठ न दिखाना जैसे गुणों को जीवित रखा।

 ■  दक्षिण का पठारी प्रदेश वह भूभाग है। जहां कभी राजनीतिक एकता प्राप्त ही ना हुई। वे सदैव से अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील रहे। यह भूभाग उर्वरक न होने से कठिन परिश्रमी लोगों का देश रहा है। और यहीं मराठों का जन्म होता है। जिन्होंने छापामार रणनीति को अपनाया, अपनी वीरता से मुसलमानों से भी भीषण संघर्ष किया। वह भारत में हिंदवी स्वराज्य स्थापित करना चाहते थे। शिवाजी, बालाजी, बाजीराव, नाना फड़नीस आदि सदैव याद रहेंगे।

■   उत्तर भारत और दक्षिण भारत में गहरी भिन्नता है। सतपुड़ा और विंध्याचल के उस पार हो जाने से उन्होंने अपनी अलग जीवन शैली का विकास किया है। उत्तर भारत में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र चार वर्ण है। जबकि दक्षिण भारत में ब्राह्मण और शूद्र दो ही वर्ण हैं। उनके खान-पान, वेशभूषा, रीति-रिवाज व्यवसाय में गहरी भिन्नता है।

   उत्तर भारत में संस्कृत भाषा आर्यों के द्वारा प्रचलन में आई, और तत्पश्चात संस्कृत से ही जन्मी अनेकों भाषाएं उदित हुई। वहीं दक्षिण में तमिल, तेलुगू , कन्नड़, मलयालम भाषा बिलकुल भिन्न है।

■  किंतु दक्कन के तटीय भागों का भारत के व्यापारिक इतिहास में वृहद स्थान रहा है। दरअसल यहां मसालों के उत्पादन में यूरोपियों को व्यापार के लिए आकृष्ट किया। और यहीं से वे अपनी छोटी-छोटी व्यापारिक संस्थाओं को जन्म देकर सारे भारत में अपना अधिपत्य स्थापित करने को प्रयत्नशील हुए।

  भारत की संस्कृति प्राचीन है। और इस संस्कृति और सभ्यता के उदय में भारत की प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थितियों का भी योगदान है। इसीलिए भारत में भौगोलिक विविधता के साथ सांस्कृतिक भिन्नता प्राप्त है।

शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

भारत के ऐतिहासिक प्रदेश | भौगोलिक एवं ऐतिहासिक व्याख्या

भारत के ऐतिहासिक प्रदेश, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक व्याख्या-

भारत के ऐतिहासिक प्रदेश

    मानव की खींची सीमाओं के  अतिरिक्त भी भारत की  प्राकृतिक तौर से स्वयं सीमा तय हुई है। यह प्रतीत होता है। भारत स्वयं में एक प्रायद्वीप है। वह भाग जो तीन ओर से जल से घिरा हो।

    भारतखंड अथवा भारतवर्ष विश्व के मानचित्र में सर्वाधिक अनोखी आकृति लिए है। इसकी सीमाएं पश्चिम-दक्षिण से और दक्षिण-पूर्व तक इसके प्रायद्वीप होने का कारण है। अर्थात क्रमशः अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी हैं। यही इसकी प्राकृतिक सीमा है। और पश्चिम-उत्तर दिशा में हिंदू कुश और सुलेमान की पर्वतमाला इसकी सीमा को तय करती हैं। उत्तर का विशाल मैदान जिस की देन है, वह हिमालय भारत भूमि पर सदैव से रक्षक रहा है। और सदैव रहेगा।

     ● सिंध और पश्चिम पंजाब का हिस्सा जो अब पाकिस्तान में है। शेष पंजाब का पूर्वी कुछ हिस्सा भारत का भाग है। यह भूमि हालांकि पंजाब और हरियाणा में दो भाग में वर्तमान में प्राप्त है। सिंधु तथा उसकी पांच सहायक नदियां इसी प्रदेश में बहती है। यही भूमि गुरु नानक की है, जिन्होंने सिख धर्म चलाया था। गेहूं की पैदावार अच्छी होने से यह भूमि समृद्ध है।

  ● उत्तर प्रदेश का यह राज्य जो वृहद ऐतिहासिक महत्व रखता है। संयुक्त प्रांत के नाम का खंडन तब हुआ जब उत्तर प्रदेश का विखंडन होता है। यह देश में कई बार बड़े-बड़े युद्धों का निपटारा करने वाली भूमि है। आगरा इसी भूमि पर है। आगरा को भारत की राजधानी का गौरव भी प्राप्त है। रामायण और महाभारत भी इसी भूमि पर लिखे गए। काशी, मथुरा इसी भूमि पर तीर्थ है। राम और कृष्ण इसी भूमि की देन हैं। यह भूमि उपजाऊ भूमि है। 

  ● उत्तर प्रदेश से पूर्व की ओर बिहार की भूमि है। राजा जनक, महर्षि याज्ञवल्क्य, गार्गी, मां सीता, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी इसी भूमि के हैं। मगध जैसी ऐतिहासिक भूमि के उत्थान और पतन का चक्र इसी भूमि पर है। शिक्षा का महान केंद्र नालंदा का विश्वविद्यालय जिसमें प्राचीन काल में भी दस हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे, बिहार की धरा पर ही है। बौद्ध और जैन धर्म का प्रादुर्भाव इसी भूमि पर है।

  ● बिहार के पूर्व में बंगाल प्रदेश है। यह अच्छी बौद्धिक सामर्थ्य युक्त लोगों का प्रदेश है। जगदीश चंद्र बसु, शरदचंद्र, अरविंदो, रविंद्र नाथ टैगोर जैसे आधुनिक विभूतियां इसी प्रदेश की देन हैं। यहां वर्षा अधिक होती है। यहां के लोगों का मुख्य भोजन मछली और चावल है। 

  ● पंजाब के दक्षिण में राजस्थान की भूमि राजपूतों की है। अथवा यह मरुस्थल राजपूतों का है। राजपूतों के राज्यों में मेवाड़ जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी। बहुत ऊंचा स्थान रखता है। राणा कुंभा, राणा सांगा, और महाराणा प्रताप इसी भूमि की उपज हैं। राजस्थान के दक्षिण में गुजरात और मालवा का प्रदेश है। जो उपजाऊ प्रदेश है। 

 ● भारत में ठीक मध्य में मध्य प्रदेश भी एक उपजाऊ भूमि है। जहां पर चावल और गेहूं की अच्छी पैदावार है। इस प्रदेश में मुख्य व्यवसायिक नगर नागपुर है।

    दक्षिण के प्रदेश अर्थात दक्षिणापथ यह पठारी प्रदेश है यह उपजाऊ योग्य भूमि नहीं है। यहां के लोग अधिक मेहनती होते हैं, अपनी आजीविका के लिए।

  ● मुख्य प्रदेशों में यहां महाराष्ट्र है। जहां के लोग मराठे हैं। यह मेहनती होते हैं। शिवाजी का प्रदेश यही है। वीर शिवाजी जो हिंदू धर्म के रक्षक हुए हैं, और एक महान क्रांतिकारी योद्धा भी। मुंबई से प्रदेश की चकाचोंद है। जो संपूर्ण देश के मध्य व्यापारिक केंद्र में एक मुख्य स्थान रखता है। भारत में इसी दक्षिण भाग में तमिलनाडु प्रदेश है। जिसके विषय में नारियलों का जिक्र आता है। यह चावल और इमारती लकड़ी का भी अच्छा उत्पादन  है।

  ● मैसूर में दक्षिण भारत का मुख्य ऐतिहासिक प्रदेश है। कर्नाटक के नाम से जाना जाता है। यहां के लोग चाय काफी का प्रयोग अधिक करते हैं। यहां प्रदेश सोने की खानों को लेकर प्रसिद्ध हैं। 

     यह कुछ राज्यों का संक्षिप्त परिचय हैं। अथवा भारत का संक्षिप्त परिचय है। भारत कई अनेकताओं को लिए है। भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक किन्तु इन सब में यही नारा की “अनेकता में एकता” हमें बांधती हैं।

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

भारत के प्राचीन नाम | भारत के विभिन्न नाम | India old name in hindi

भारत के विभिन्न नाम / भारत के प्राचीन नाम / आर्यवर्त, भारतवर्ष, हिंदुस्तान, इंडिया-

भारत के विभिन्न नाम

    वैदिक काल से पूर्व भारत को किस नाम से पुकारा जाता था, यह तो ज्ञान नहीं है। किंतु प्रारंभ में जहां आर्य रहते थे, उस देश को सप्तसिंधु कहा गया। सप्तसिंधु का तात्पर्य है, सप्त- सात, सिंधु- नदी अर्थात सात नदियों का देश सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज, सरस्वती यह नदियां थी। यह वही प्रदेश है, जो अब पंजाब नाम से जाना जाता है, धीरे-धीरे आर्य पूर्व की ओर बढ़ने लगे तो देश के अन्य भागों को अन्य नाम जैसे ब्रह्मऋषि देश, मध्य देश के नाम से पुकारने लगे। देश के उत्तर के उस संपूर्ण भूभाग जिसमें आर्य घूमते रहे, उसे आर्यवर्त नाम से पुकारा गया। आर्य जो एक जाती है, और आवर्त जिसका तात्पर्य चक्कर लगाना है। अर्थात वह भूभाग जहां आर्य चक्कर लगाते रहे।

  विंध्याचल और सतपुड़ा की श्रेणियों के उस पार दक्षिण हिस्से में द्रविड़ निवास करते थे। जिसे द्रविड़ देश या दक्षिणा पथ कहते थे। यह अलग ही सभ्यता और संस्कृति जो आर्यों से बिल्कुल भिन्न थी। यह लोग तेलुगू,तमिल, मलयालम जैसी भाषाओं का प्रयोग करते थे। किंतु इन सब में उस समय तक संपूर्ण भारत को एक नाम नहीं दिया गया था, जिससे उसे पुकारा जा सके। 

 ◆ भारतवर्ष- 

यह नाम प्राचीनतम वह नाम है, जो संपूर्ण देश पर लागू होता है। शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत जिसका यश संपूर्ण भारत में फैल गया। उसके नाम पर ही भारत या भारतवर्ष कहा जाने लगा। भारत भरत के नाम से है। और वर्ष का अर्थ है, खंड अथवा टुकड़ा प्राचीन काल में विद्वानों को धरा को नौ खंडों में बांटा है। जिसमें एक जंबूद्वीप है। इसी जंबूद्वीप में भारत है। अतः भारत जंबूद्वीप का खंड है। यही भारतवर्ष है।

  ◆ हिंदुस्तान-

 यह नाम पारसियों की देन है। फारसी में सिंधू को हिंदू कहा जाता है। अतः वे लोग जो सिंधु प्रदेश के निवासी हैं, उन्हें हिंदू कहा गया। हिंदू का स्थान हिंदुस्थान के नाम से जाना गया। और उसे हिंदुस्तान भी कहा गया। मध्यकाल में मुस्लिम शासक इसे हिंदुस्तान कहते रहे हैं। 

 ◆ इंडिया- 

यह नाम यूनानीयों की देन है। सिंधु नदी को क्योंकि यूनानी इंडस कहते थे। यह यूनानी भाषा में है। इंडस से यह “इंडीज” हो गया था। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग भारत खंड के लिए किया था। कालांतर में यह बदलकर अथवा बिगड़कर इंडिया हो गया है। अंग्रेजों ने भारत को यही नाम से पहचाना और पुकारा।

     संविधान के साथ ही यह भूखंड “भारत संघ” हो गया है। हालांकि अन्य नामों का प्रयोग होता है। क्योंकि यह सब ऐतिहासिक  अर्थ बयां करते हैं। भारत के इतिहास को बयां करते हैं।

इतिहास क्या है | What is history

इतिहास क्या है / इतिहास किसे कहते हैं / इतिहास की परिभाषा एवं व्याख्या-

इतिहास क्या है

    वर्तमान और भविष्य की जड़ें इतिहास में है। आज भी हम जो फल प्राप्त कर पा रहे हैं, जो परिणाम सम्मुख हैं, वह अतीत के ही हैं। या यूं कहें कि हमारे पूर्वजों का किया हम ही तो भोगते हैं।

  ● इतिहास “जो निश्चित रूप से ऐसा ही था” शाब्दिक अर्थ लिए है। उससे ज्ञान है की, मनुष्य का हमेशा से उद्देश्य जीवन को सुखी बनाना रहा है। इतिहास हमें बताता है, कि सहयोग से मानव उन्नति होती है। 

  ● वर्तमान में जो प्राप्त है, वह इतिहास का फल है। और भविष्य पर कोई स्पष्ट विदित तथ्यात्मक पुस्तक लिखी नहीं जा सकती। किंतु यह भी है, कि इतिहास की जानकारी से भविष्य का अनुमान जरूर लगा पाने में हम स्वयं को कुछ हद तक सही पाते हैं। इतिहास तो एक विज्ञान है जो मानव के हर कदम को प्रयोग मानकर उस पर लिखा गया है।

  ● साथ ही इतिहास केवल दिवंगत राजाओं की कृत्यों की सूचना मात्र नहीं है। वरन यह एक विज्ञान है, जो बुद्धि का विकास में आवश्यक है। उपयोगी है। साथ ही हम सदैव से लकीर के फकीर नहीं हैं। हमने अतीत से आज तक स्वयं को परिवर्तित पाया है। हमने जीवन मूल्य में अंतर पाया है। जिन धार्मिक युद्धों का मध्य काल में आमंत्रण था, वह आज भत्सना के पात्र हैं। अतीत मैं जिस स्वतंत्रता के लिए हमने हिंसा का सहारा लिया उसी से सीख ले कर मानव बुद्धि में अहिंसा से स्वतंत्रता प्राप्ति की राह को इजाद किया। क्योंकि मानव जान रहा है, कि मानव ही धरा पर इन सब को चलाएमान रखे हैं। उसके ना होने पर यह सब शून्य है। और उसके समृद्धि ही इन्हें जीवित रखेगी। क्योंकि भूखा मानव अन्न और धर्म में पहले अन्न प्राप्ति के प्रयास में होगा।  इतिहास गवाह है।

   ◆ अतः इतिहास वर्तमान के मानव का शिक्षक है। मानव की उन्नति का डाटा है।

बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

रावण के किरदार अरविंद त्रिवेदी जी नहीं रहे | ramanand sagar ramayana

ramanand sagar ramayana-arvind trivedi ji


8 नवंबर 1938 को इंदौर में जन्मे अरविंद त्रिवेदी की 90 के दशक के लोकप्रिय रामानंद सागर जी की रामायण के मशहूर कलाकारों में एक रहे। अरविंद त्रिवेदी जी ने रावण का किरदार निभाया। उनके पिताजी मूल रूप से गुजरात के थे। 300 से अधिक हिंदी गुजराती फिल्मों में अभिनय करने वाले अरविंद त्रिवेदी जी का निधन 83 वर्ष की उम्र में हो गया है। दुनिया भर में रामायण में रावण के किरदार के कारण उनको बेहद लोकप्रिय मिली। 90 के दशक में रामायण धारावाहिक की इतनी लोकप्रियता रही, कि 52 एपिसोड को एक्सटेंड कर 78 एपिसोड की शूटिंग की गई। रामायण धारावाहिक लगभग डेढ़ साल कि लंबे समय में तैयार हो सका। लगभग 55 देशों में रामायण धारावाहिक का टेलीकास्ट दुनिया भर में किया गया। जिससे 650 मिलियन से ज्यादा लोगों ने इसे देखा। इसी धारावाहिक का हिस्सा रावण के किरदार मैं अरविंद जी को लोगों ने बहुत सराहा। 1987 में जब रामायण दूरदर्शन पर प्रकाशित होने लगा, तो टीवी देखने वाले हर व्यक्ति में रामायण को देखने की अलग उत्सुकता थी। जो आस्था और विश्वास का जीवंत अभिनय था, यहां तक कि लोग धार्मिक आस्था के चलते टीवी की आरती उतारा करते थे। अरविंद जी ने एक इंटरव्यू में बताया, कि पहले तो जब वे शूटिंग के लिए जाते थे, तो ट्रेन में खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती थी। किंतु बाद में लोग उन्हें पहचानने लगे, उनका अभिवादन होने लगा। रामायण में रावण के किरदार को विश्व भर से ढेर सारी लोकप्रियता मिली। 2020 के लॉकडाउन के दौरान धारावाहिक रामायण ने टीआरपी के मामले में 5 साल के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। रामायण के तकरीबन सभी एपिसोड गुजरात के पास उमरगांव में फिल्माए गए थे। अरविंद जी ने ना केवल रामायण में बल्कि विक्रम और बेताल नाम के धारावाहिक में पहले ही दर्शकों का बेहद प्रेम हासिल किया था।

अरविंद त्रिवेदी जी की गहरी धार्मिक आस्था-

ramanand sagar ramayana-arvind trivedi ji

 अरविंद त्रिवेदी जी एक इंटरव्यू में कहते हैं, कि रावण का रोल उन्हें भगवान श्री राम की कृपा से प्राप्त हुआ है। असल जीवन में अरविंद जी बेहद सरल स्वभाव के रहे। उनका कहना है, कि वे असल जिंदगी में भी शिवभक्त रहे, और रावण भी शिव का भक्त था। रामायण की शूटिंग के दौरान अरविंद जी अपनी दैनिक दिनचर्या में पूजा पाठ के दौरान हाथ जोड़कर माफी मांगते थे, कि मैं रावण का किरदार करूंगा, हे ईश्वर मेरे मुंह से कुछ अपशब्द निकलेगा, मुझे उसके लिए माफ करना, मैं मात्र उस किरदार को निभा रहा हूं, असल तो मैं आपका भक्त हूं। अरविंद त्रिवेदी जी भगवान भोलेनाथ के बड़े भक्त रहे, उन्हें मंचों पर शिव तांडव का वाचन करते हुए देखा जा सकता है।

रामायण में किरदार कैसे मिला-

1987 में जब रामानंद सागर जी ने धारावाहिक रामायण बनाने का निर्णय किया, और यह बात अरविंद त्रिवेदी जी को मालूम हुई, साथ ही वह यह भी जाने कि रामायण में कई दिग्गज कलाकार काम करने वाले हैं। अरविंद जी रामायण में रोल पाने के लिए मुंबई की ओर बढ़ चले। बड़ी संख्या में लोग रामायण में किरदार पाने के लिए ऑडिशन दे रहे थे। अरविंद जी के मन में स्वयं के रावण जैसे शक्तिशाली किरदार या किसी अन्य पसंद के किरदार को निभाने को लेकर पहले से कोई मन इच्छा नहीं थी। या यूं कहें कि वह तो रामायण धारावाहिक में किसी भी किरदार को पाने के लिए ऑडिशन देने पहुंचे थे। वह केवट के लिए ऑडिशन दिए थे। जब उनका ऑडिशन हुआ उस समय तक श्री राम के किरदार के लिए अरुण गोविल जी का निर्णय हो चुका था, और रावण के किरदार को लेकर अरुण जी ने जिस नाम को आगे किया था, वह बॉलीवुड के मशहूर विलेन अमरीश पुरी जी थे। किंतु अमरीश पुरी जी ने इस रोल को मनाही कर दी। इसका कारण यह हो सकता है, क्योंकि उस समय अमरीश पुरी जी फिल्मी दुनिया में एक सफल विलन के रूप में पहचाने जाने लगे थे। वे धारावाहिक टीवी शो में नहीं बंधना चाहते थे। इसके बाद रावण को लेकर एक ऐसा कलाकार जो बुद्धिमान भी दिखता हो और शक्तिशाली भी की खोज जारी रही। जब अरविंद त्रिवेदी जी ने रामानंद सागर जी के सामने अपना ऑडिशन स्क्रिप्ट पढ़ी तो उन्हें लगा कि रामानंद जी को उनका ऑडिशन पसंद नहीं आया। किंतु रामानंद जी ने उन्हें रोककर कहा, कि तुम हमारी रामायण में रावण का रोल करोगे, और इस तरह अरविंद त्रिवेदी जी को उनके जीवन का एक सबसे मशहूर किरदार प्राप्त हुआ।

फिल्मी कैरियर-

300 से ज्यादा हिंदी गुजराती फिल्में अपने कैरियर में अरविंद त्रिवेदी जी ने दी। हिंदी फिल्मों में जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर जैसे अनेक लोकप्रिय कलाकारों के साथ त्रिवेदी जी काम कर चुके हैं। शाहरुख खान की फिल्म त्रिमूर्ति में मुख्य विलेन के किरदार में अरविंद त्रिवेदी जी को देखा जा सकता है।

राजनीतिक जीवन-

अरविंद त्रिवेदी जी फिल्मी दुनिया में महान योगदान के साथ राजनीति के भी हिस्सा रहे। 1991 से 96 तक बीजेपी पार्टी से सांसद चुने गए। गुजरात में साबरकांडा क्षेत्र से इन्हें संसद के लिए चुना गया। अटल जी की सरकार के दौरान 2002 में अरविंद जी को सीबीएफसी अर्थात सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का चेयरमैन बनाया गया था।

कुछ मशहूर किस्से-

रावण के किरदार को या यूं कहें कि अरविंद त्रिवेदी जी को रावण के अभिनय के लिए तैयार होने में लगभग 5 घंटों का समय लगता था। 10 किलो का मुकुट हुआ करता था। और शरीर पर कई अन्य आभूषण हार हुआ करते। जब एक बार रावण हनुमान अंगद को फेंककर अपने से दूर फेंक देते हैं, तब जामवंत उन पर वार करते हैं। रामानंद सागर जी की रामायण में जामवंत के किरदार राजशेखर उपाध्याय जी बताते हैं, कि जब मैंने रावण का किरदार निभा रहे अरविंद त्रिवेदी जी पर वार किया, तो उनकी कमर पर इतनी जोर से लग गई, कि वह सचमुच मूर्छित हो गए।
ऐसे ही जब एक बार अरविंद त्रिवेदी जी कुछ आम घर के लिए रख गए, और शूटिंग में व्यस्त हो गए तो वानरों की सेना का किरदार निभा रहे कलाकारों ने आम की सारी पेटी खाली कर दी। इस बात पर अरविंद जी ने हंसकर कहा कोई बात नहीं।

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021

उत्तराखंड राजनीति चुनावी पहल आजकल | Uttrakhand politics

उत्तराखंड राजनीति चुनावी पहल | भाजपा के चुनावी कदम-

उत्तराखंड राजनीति चुनावी पहल आजकल

भाजपा के चुनावी कदम विपक्ष के बोल-

उत्तराखंड में 2022 के चुनाव को लेकर हर दिन पक्ष विपक्ष, राजनीतिक दल अपने आप को आम जनमानस में सबसे मजबूत समर्थ और योग्य जताने की कोशिश में कार्यक्रमों का आयोजन कर रहें हैं। आज उत्तराखंड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी का आगमन उत्तराखंड में भाजपा की जीत के लिए प्रयोग किए जाने वाले बड़े पेंचों में एक है।  2017 की भांति भाजपा ने अपनी केंद्र सरकार की उपलब्धियों से मुनाफा उत्तराखंड 2022 चुनाव में हासिल करना है, यह तो तय है। किन्तु दूसरी ओर विपक्ष राज्य में भाजपा के हर कदम पर उसे घेरने के पुख्ता इंतजाम किए हुए है। पीठसैंण में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी के दौरे से पूर्व ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी ने उनकी पुरानी घोषणा सैनिक स्कूल को लेकर कहा की उन्हें पीटसैंण की जनता से इस वादे को ना निभा पाने पर माफी मांगनी चाहिए, साथ ही उन्हें ऐसी घोषणा करनी चाहिए जिन्हें तीन माह में उत्तराखंड भाजपा सरकार पूरा कर सके। भाजपा के केंद्रीय  नेताओं का उत्तराखंड दौरा आम जनमानस पर अधिक प्रभावी न हो सके इसके लिए कांग्रेस भरसक प्रयत्न में है।
यह प्रयत्न स्पष्ट तौर से कार्यक्रमों में उत्तराखंड में वर्तमान भाजपा सरकार को उसकी पूरी न की जा सके वादों को याद दिलाने में दिख रहा है।
मुख्यमंत्रियों का एक के बाद एक बदलते जाना, बदले गए मुख्यमंत्रियों के कार्यों और घोषणाओं पर सीधे तौर से सवाल खड़ा करता है। किंतु नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी की घोषणाएं और कार्य जनता में कितना विश्वास जगा पाते हैं, यह देखने का विषय है।
2017 में आई भाजपा सरकार ने अपने घोषणा पत्र में 100 दिन के भीतर भीतर उत्तराखंड को मजबूत लोकायुक्त मिलेगा की घोषणा की थी, जहां भाजपा सरकार लगभग 80% वादों को पूरा हुआ दर्शाती है, और जो शेष वादे जो रह गए हैं, उन्हें शेष समय में पूरा करने का विश्वास दिलाती है, वही लोकायुक्त को लेकर विपक्ष जनता में भाजपा की खामी दर्शाएगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक जी का कहना है, कि उनकी सरकार साढे चार साल उत्तराखंड में भ्रष्टाचार मुक्त रही है, वे उत्तराखंड में भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की संकल्पना पर वास्तविक शासन किए हैं। उनका कहना है, कि वे ऐसी सरकार चलाना चाहते हैं, कि उन्हें लोकायुक्त की आवश्यकता ही ना हो। आपको बता दें कि विधानसभा में यह बिल आया, पक्ष और विपक्ष दोनों धड़े एकमुस्त बिल के समर्थन में रहे, किंतु सत्तापक्ष की ओर से यह बिल प्रवर समिति के हाथों में सौंपा गया, और तब से यह अब तक समिति का ही होकर रह गया।

सरकार बनेगी तो यह होंगे कांग्रेस के पहले कदम-

वहीं कांग्रेस भी अपने भविष्य में उत्तराखंड में बनी सरकार को लेकर अपनी योजनाओं की घोषणा कर रही है। कांग्रेस गढ़वाल मीडिया प्रभारी गरिमा दसौनी का कहना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार बनने के पश्चात वह गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाएंगे, और देवस्थानम बोर्ड को रद्द करने का कदम उठाएंगे, पुरानी पेंशन बहाली को लेकर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने का काम करेंगे।

उत्तरकाशी में विधानसभा सीटें-

उत्तरकाशी में 3 विधानसभा सीटें हैं। पुरोला, यमुनोत्री और गंगोत्री इन 3 विधानसभा सीटों में वर्तमान में केवल एक सीट पर विधायक की मौजूदगी है। गंगोत्री के विधायक पांच माह पूर्व अकस्मात असमय मृत्यु हो गई, जिससे गंगोत्री की सीट रिक्त है। पुरोला की सीट के प्रतिनिधि विधायक राजकुमार जी का पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी का हाथ थामना और अब पुरोला सीट विधायक पद से इस्तीफा दे देना पुरोला सीट पर विधायक का पद रिक्त कर देता है। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल जी ने इस्तीफा स्वीकार किया।
दरअसल इस्तीफा देने की वजह यह रही कि राजकुमार जी जिन्होंने 2017 में कांग्रेस स्वीकारी थी, अब बीजेपी में शामिल हो जाने पर कांग्रेस ने दल-बदल कानून के तहत कार्यवाही और अगले चुनाव को लेकर विधायक राजकुमार जी को अयोग्य घोषित करने की मांग की। इससे पूर्व की कोई कार्यवाही होती विधायक राजकुमार जी ने अपने पद से इस्तीफा सौंप दिया।
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल जी का कहना है, की स्वेच्छा से विधायक का दिया इस्तीफा और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकारे जाने के पश्चात दल-बदल कानून लागू नहीं होता। इस प्रकार से उत्तरकाशी की विधानसभा सीटें रिक्त हुई है।

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