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गौतम बुद्ध का संपूर्ण जीवन वृतांत | बौद्ध धर्म का प्रचार | Gautam buddha Mahabhiniskarman, Sambodhi, Mahaparinirwan

   यह वही युग था, जब भारत भूमि पर आम जनमानस मोक्ष की प्राप्ति में सरल राह की तलाश में था, तब भगवान बुद्ध का जन्म एक क्रांति ही थी।    जब एक समय महामाया देवी अथवा माया देवी अपने मायके जा रही थी, तो राह में एक वन लुंबिनी में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, यह क्षेत्र नेपाल के तराई भाग में है, किंतु महामाया देवी का प्रसव पीड़ा से परलोक वास हो जाता है। निसंतान माता-पिता के लिए यह बेहद खुशी का विषय था, इस वजह से कि जैसे किसी कामना की सिद्धि या पूर्ति हो गई हो, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया, किंतु बालक सिद्धार्थ अपनी माता के प्रेम से वंचित रह गया।    सिद्धार्थ के पिता का नाम शुद्धोधन था। वह सूर्यवंश के शाक्य जाती के क्षत्रिय थे, और कपिलवस्तु नामक एक छोटे से गणराज्य के प्रधान थे। सिद्धार्थ का बचपन से ही उनकी विमाता गौतमी देवी ने पोषण किया उन्हें हर राजसी सुख राजकुमारोचित दिए गए। संभवत गौतमी के नाम पर या सिद्धार्थ का गौतम गोत्र होने के कारण उन्हें गौतम के नाम से पुकारा गया है।    सिद्धार्थ बाल्यकाल से ही चिंतनशील थे। चिंतन में इतना मग्न रहते कि सब...

Molnupiravir Oral antiviral drug | Corona के उपचार के लिए पहली दवा

    यह दवा Covid-19 के उपचार में प्रयोग हो सकने योग्य पहली दवा के रूप में सामने आई है। जिसे यूके की मेडिसिन एंड हेल्थ केयर प्रोडक्ट रेगुलेटरी एजेंसी (एम०एच०आर०ए०) द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है।  एम०एच०आर०ए० के अनुसार यह दवा कोरोना के लक्षण को कम करने में कारगर है और इसके किसी प्रकार के कोई नकारात्मक परिणाम भी देखने को नहीं मिले हैं। यह दवा कोरोना के शुरुआती समय में काफी कारगर साबित होगी।    ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद का कहना है, कि ब्रिटेन का यह एक ऐतिहासिक दिन है, ब्रिटेन दुनिया भर में वह पहला देश है, जिसने इस दवा को मंजूरी दी है, यह दवा कोरोना महामारी में एक गेम चेंजर साबित होगी। इस दवा को लोग अपने घर में भी प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार यूके विश्व का पहला राष्ट्र है। जिसने कोरोना की पहली दवा को अधिकृत किया है।     इस दवा के विषय में जानकारी है, कि यह शुरुआती और मध्यम कोरोना के उपचार में सहायक होगी। यह दवा उन एंजाइम को टारगेट करती है, जिनके उपयोग से Corona का वायरस अपनी संख्या में वृद्धि करता है, और कोरोना के फैलने की दर को कम कर दे...

Jainism in hindi | जैन धर्म एक परिचय | जैन धर्म की मान्यताएं

  जैन धर्म को मानने वाले लोगों को जैनी कहा जाता है। कालांतर में जैनी लोग दो संप्रदाय में विभक्त हो गए, पहला श्वेताम्बर और दूसरा दिगंबर। श्वेताम्बर लोग उदार और सुधारवादी होते हैं। यह श्वेत वस्त्र पहनते हैं। तथा अपनी मूर्तियों को भी सफेद वस्त्र पहनाते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियमों को कुछ ढीला करने के पक्ष में है। दूसरी और दिगंबर होते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियम को पालन करते हैं। यह बेहद कट्टरपंथी लोग होते हैं। यह लोग नंगे रहते हैं। और अपनी मूर्तियों को भी नंगा रखते हैं।    जैन धर्म एक क्रांतिकारी धर्म रहा जिसने वैदिक धर्म को चुनौती दी। जैन धर्म के सिद्धांत बिल्कुल अलग हैं, जिनमें सृष्टि की नित्यता पर विश्वास अर्थात सृष्टि का ना तो आदी है ना अंत, इसे किसी ने नहीं बनाया है, और ना ही कोई इसका विनाश कर सकता है।  जैनी लोगों का मानना है, कि ईश्वर ने सृष्टि को नहीं बनाया है, किंतु सृष्टि को बनाया किसने है?  इस सवाल के जवाब में जैनी लोगों का मानना है, कि सृष्टि जीव तथा अजीव इन दो तत्वों के संयोग से बनी है, और यह दो तत्व सतत हैं, इनका नाश नहीं हो सकता और ठीक इसी प्...

वर्धमान से महावीर स्वामी होने की यात्रा | महावीर स्वामी जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर mahaveer swami (vardhaman)

  धार्मिक क्रांति का युग छठी सदी ईसा पूर्व में वह प्रभावी क्रांति का दौर रहा जिसमें भारतीय हर मानव को स्वयं से जोड़ा। उसके जीवन के हर आयामों को प्रभावित किया। जैन धर्म उसी सदी का प्रकाश है। जैन धर्म यूं तो बहुत प्राचीन धर्म है। क्योंकि महावीर स्वामी से पूर्व 23 तीर्थंकर जैन धर्म के हो चले थे। किंतु महावीर स्वामी 24 वे तीर्थंकर के रूप में जैन धर्म को श्रेष्ठ प्रसिद्धि तक ले गए, और उन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहा गया।    वह बालक वर्धमान नाम का 599 ईसा पूर्व विदेह राज्य की राजधानी वैशाली के निकट कुंड ग्राम में जन्मा था। वे कश्यप गोत्र के क्षत्रिय राजकुमार थे। पिता का नाम सिद्धार्थ था। वे ज्ञात्रिक गण के नेता थे। इनकी माता का नाम त्रिशला था जो मगध राजा श्वसुर चेटक की बहन थी। जो लिच्छवी वंश के क्षत्रिय राजकुमार थे।    जैन ग्रंथों के अध्ययन में महावीर स्वामी के संपूर्ण जीवन का परिचय प्राप्त होता है। वर्धमान के जन्म पर उत्सव हुआ। कैदियों को कारावास मुक्त किया गया। बाल्यकाल से ही उन्हें राजसी सुख में डूबोने का प्रयत्न रहा। किंतु वे चिंतक प्रवृत्ति, मोह...

बौद्ध और जैन धर्म के उदय का कारण | वैदिक धर्म की जटिलताएं | धार्मिक क्रांति के युग का आरंभ | Buddha, jain, bhagwat dharmo ka उदय

वैदिक काल के धर्म के स्थान पर धार्मिक क्रांति के युग में नव धर्मों का उदय हुआ। जो वैदिक काल के धर्म ग्रंथों की जटिलता ही रही होगी, जो मानव ने अन्य धर्मों को अपनाया। वैदिक काल के धर्म ग्रंथ संस्कृत में थे, उनकी भाषा जटिलता, सामान्य मानव उससे अछूता ही रहा, वह उसे समझ पाने में असमर्थ ही था। तब वह एक ऐसे सरल मार्ग जो मोक्ष प्राप्ति को मिल सके उसे अपनाने को तैयार था। वह उसके स्वागत में था।      वैदिक धर्म में यज्ञों को एकमात्र मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया है। किन्तु समय के साथ यह महंगे होते गए तब इसे जनसाधारण करवा पाने में असमर्थ हो गया।    मानव में चेतना का नव अध्याय पल्लवित हो रहा था। तो यज्ञ में पशुओं की बलि देवी देवताओं को प्रसन्न करती है, यह ना होकर लोगों के मन में वैदिक धर्म को हिंसा धर्म होने की बात आने लगी। क्यों बेजुबानों की बलि दी जाए। चेतना का नवयुग बेजुबान के दर्द का एहसास कर पा रहा था। वह मानव चेतना का नया-नया नभ चूम रहा था।    वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी  किंतु कालांतर में वह जाति प्रथा का रूप धारण कर भेदभाव ऊंच...

महाकाव्य काल उल्लेख | Ramayan and mahabharat period in hindi

  प्राचीन काल में हमारे देश में दो बड़े महाकाव्य की रचना हुई, और रचना जिस काल में हुई वह महाकाव्य काल हुआ। महाकाव्य कब लिखे गए, जिन घटनाओं पर यह लिखे गए हैं, वह कब हुई?    यह प्रश्न भी अनेक विद्वानों के विभिन्न मतों में उलझे हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार महाभारत का युद्ध 1800 से 1400 ईसा पूर्व काल में हुआ था। और महाकाव्य काल 1400 से 1000 ईसा पूर्व होने का मत है। हालांकि यह स्पष्ट तथ्य नहीं है।    जिन महाकाव्यों का लेखन इस काल में हुआ वह रामायण और महाभारत है। रामायण में श्री रामचंद्र की जीवन लीला का वर्णन है। और महाभारत कौरव और पांडवों के युद्ध का वर्णन है। इनकी एक महत्वपूर्ण उपयोगिता यह भी है, कि इनका गहनता से अध्ययन करने पर तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दशा का ज्ञान होता है।    रामायण की कथा में राजा दशरथ कौशल राज्य के राजा हैं। इनकी तीन रानियां हैं। और इन तीन रानियों से चार पुत्र हैं, कौशल्या के पुत्र राम, सुमित्रा के दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा कैकई का एक पुत्र भरत। इनमें राम सबसे बड़े थे। सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या उनकी रा...

वैदिक सभ्यता विशेष | Arya in india | Vedic sabhyata | आर्यों की देन

वैदिक सभ्यता के जितने तथ्यों को समेटा जाए, वह वास्तव में आर्यों की कितनी बड़ी छाप आज के भारत पर है, जिनमें से कुछ चाह कर भी हम छोड़ नहीं सकते। वे आज भी जीवित हैं। ये अतीत के उन पृष्ठों का गहन दर्शन है जिसे आज तक भारत स्वयं में समेटे है, और उसे प्रमाणित करता है।    वसुदेव कुटुंबकम संपूर्ण पृथ्वी को कुटुम्ब मान देना यह सिद्धांत का प्रतिपादन, सर्वव्यापक चिंतन वैदिक काल के आर्यों की संपूर्ण विश्व के कल्याण की चिंता को दर्शाता है। जीवन के ऊंचे ऊंचे आदर्शों का सृजन किया। वे आर्य थे वे इस संसार के सभी सांसारिक सुखों को नाशवान समझते थे। वे परलौकिक सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति का पाठ पढ़ाते थे। यह चेतना कि वह लौ है, जो आज तक भारतीयों के मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़े है।    उनका प्रमुख व्यवसाय हालांकि कृषि था। वह सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों जैसे व्यवसाय प्रधान सभ्यता न थी। किंतु वह वस्तु विनियम से चीजों की अदला बदली से व्यापार करते थे। यह भी मालूम हुआ है, कि उन लोगों ने “निष्क” नामक एक मुद्रा का प्रचलन भी किया था।    वे राजा को राज्य का एक अंग मात्र मानते थे। उन लोग...