गुरुवार, 30 सितंबर 2021

अफगान घटनाक्रम 30 सितंबर 2021 तक | Afganistan news

अफगानिस्तान घटनाक्रम / तालिबान के फरमान /  पाकिस्तान के बयान-

अफगान घटनाक्रम

अफगानिस्तान में महिलाएं-

तालिबान विश्व स्तर पर अपना अस्तित्व तलाश रहा है। वह मान्यता के लिए और दुनिया में अफगान को प्रस्तुत करने के लिए बेचैन है। किंतु अफगान समाचारों में मानव अधिकार के हनन की खबरें जारी हैं। महिलाओं पर दमन चक्र और अत्याचार पर आवाजें उठ रही हैं। महिलाओं के शिक्षा पर प्रतिबंध का इंतजाम किया जा रहा है। महिलाओं की राजनीति में प्रवेश वर्जित है। इन सब ने दुनिया भर से अफगानी हितों में आवाज उठ रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमन राइट्स तथा वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन अगेंस्ट टॉर्चर ने अफगानिस्तान में तालिबानियों के द्वारा मानव अधिकार के लिए काम करने वाले या स्वर ऊंचा करने वालों को घर-घर जाकर दमन करने पर चिंता जाहिर की है।
वहीं अफगान में तालिबान सरकार की महिलाओं पर अत्याचार के विरोध में विभिन्न राष्ट्रों की महिलाओं ने न्यूयॉर्क यूएन मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। हजारों की संख्या में महिलाओं ने इस विरोध में उपस्थिति दर्ज की।

पाकिस्तान के बयान-

आजकल अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान खबरों में बना हुआ है। तालिबान की मान्यता पर पाकिस्तान लगातार अपना बयान दे रहा है। वह वैश्विक स्तर पर अफगान की पैरवी करता है। पाकिस्तान विदेश मंत्री महमूद कुरैशी का बयान है, कि तालिबान अफगान में हकीकत है। हमें उसे स्वीकारना होगा। वही अफगान का हित है। तालिबान के नेताओं से आमने-सामने बैठकर वार्ता की जानी चाहिए। आफगान में तालिबान के अलावा अब कोई भी विकल्प नहीं है। उन्होंने साथ यह भी कहा यदि अफगान दुनिया की जरूरतों को पूरा करेगा, तो निश्चित ही उसे स्वीकार्यता प्राप्त होगी। कुरैशी ने कहा अफगान में तालिबानी सरकार के चलते वह जमीन आतंकी घटनाओं का केंद्र न बन सकें, इसके लिए पाकिस्तान दुनिया के साथ है। किंतु वैश्विक राष्ट्रों को अफगान में तालिबान सरकार की मान्यता पर ठीक कदम उठाना होगा।
पाकिस्तान के आतंक के खिलाफ विश्व के साथ होने के इन सभी तर्कों के बीच हाल ही में एक आतंकी को भारत ने सीमा से घुसपैठ की कोशिश को नाकाम कर हिरासत में लिया है। घुसपैठी स्वयं को पाकिस्तानी बता रहा है। सेना के कैंप में उसकी ट्रेनिंग हुई है। उसने स्पष्ट शब्दों में भारतीय सेना को बतायाहै। पाकिस्तान के बयानों में और कृतियों में कितना अंतर है, यह स्पष्ट हो जाता है।
पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक हुसैन हक्कानी के मुताबिक पाकिस्तान सदस्य धर्मनिरपेक्ष लोगों को देशद्रोह और विश्वासघाती के तौर पर देखता रहा है।
अतः पाकिस्तान की नीति में धर्मनिरपेक्षता का कोई स्थान नहीं है, धार्मिक कट्टरता का प्रयोग उसकी नीति है।

अफगान आर्थिक दशा-

अफगान आर्थिक संकट के चरम दौर से गुजर रहा है। बेरोजगारी अकाल और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध अफगान में आर्थिक दशा को लेकर तालिबानी सरकार की सबसे बड़ी चिंता बना हुआ है। दरअसल अफगान में तालिबानी डर से केंद्रीय बैंकों के प्रमुख और अन्य अधिकारी तो पहले ही देश छोड़ चुके हैं। अब अहम फैसले कैसे और कौन लेगा एक और समस्या है। तालिबान सरकार के प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफी ने केंद्रीय बैंकों के अधिकारियों से बैठक में कहा कि बैंकिंग की व्यवस्था को उसकी समस्या को एक संबंधित कानून से हल किया जाना सुनिश्चित है।
विश्व बैंक की माने तो अफगान में आर्थिक पिछड़ापन को एंडेमिक बताया है। जिसका तात्पर्य कभी न खत्म होने वाला है। अफगान में विश्व बैंक के मुताबिक 90 फ़ीसदी आवाम $2 प्रतिदिन में गुजारा करने को मजबूर है। आपको बताएं कि 4.2 अरब डालर की मदद विश्वभर से अफगानिस्तान को 2019 में प्राप्त हुई थी। किंतु इस समय हालात कुछ इस प्रकार के हैं, कि यह मदद मिल पाना मुश्किल प्रतीत होता है।

अफगान से कुछ अन्य खबरें-

अफगान ने हाल ही में यूएन में उच्च स्तरीय आम चर्चा में भाग लेने के लिए एक नाम गुलाम एम इसकजाई को लेकर एक पत्र यूएन को दिया था। कि वे उनका प्रतिनिधित्व करेंगे, किंतु यूएन के एक शीर्ष अधिकारी ने इस बात पर जानकारी दी, कि अफगान और साथ ही म्यामार इस समय यूएन के इस सत्र की उच्च स्तरीय आम चर्चा की सूची में नहीं है।
वही अफगान में तालिबान सरकार का शरिया कानून से संबंधित फरमान पर जोर है। सैलून में धार्मिक गीत नहीं बजेंगे, या अन्य प्रकार के संगीत न बजें यह तय किया गया है। खबर हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्करगाह की है। जहां हज्जामों के प्रतिनिधियों से बैठक में यह फरमान जारी है, कि स्टाइलिश हेयरकट और दाढ़ी न बनाने के प्रतिबंध को माने और यह न करें।
शरिया कानून की कई फरमान जारी के साथ अब तालिबान अपने रंग में दिखे लगा है। महिलाओं का दमन, हाथ पैर काटने की सजा और अब दाढ़ी ना कटे का प्रतिबंध गौरतलब है।
इसी दरमियान अबू धाबी से खबर प्रेषित होती है, कि अफगान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी का फेसबुक खाते को हैक कर दिया गया है। उनका कहना है, कि उनके फेसबुक अकाउंट से तालिबान को मान्यता दी जाए, को लेकर एक पोस्ट किया गया है। जो उनका नहीं है।
साथ ही आपको यह भी जानना चाहिए, कि ट्विटर ने भी अफगान के मंत्रालयों के खातों से वेरीफाइड बैज ब्लूटिक को हटा दिया है। विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय राष्ट्रपति आवास के अकाउंट से ब्लू ब्याज हटा दिया गया है।

रविवार, 26 सितंबर 2021

world pharmacist day in hindi | फार्मेसी क्या है फार्मेसी के जनक

वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे | फार्मेसी क्या है | 25 septenber-

वर्ल्ड फार्मेसी डे

 विश्व फार्मासिस्ट डे प्रत्येक वर्ष 25 सितंबर को मनाया जाना सुनिश्चित है। यह फार्मासिस्टों द्वारा अनेकों लोगों को उनके स्वास्थ्य में सुधार के लिए किए प्रयत्नों को उजागर करने और उनके योगदान को बढ़ावा देने का दिवस है।

मनाने की शुरुआत-

2009 में तुर्की ( इंस्ताबुल ) से एक अंतरराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल फेडरेशन (IFP) परिषद ने सर्वप्रथम इस दिन को यह महत्व देने की शुरुआत की थी। वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की शुरुआत करने वाला तुर्की से अंतरराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल फेडरेशन (IFP) का स्थापना वर्ष 1912 दिवस 25 सितंबर है। क्योंकि 25 सितंबर ही IFP का स्थापना दिनांक है, इसलिए भी तुर्की के IFP सदस्यों ने इस दिवस को ही आने वाले वर्षों में वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे के तौर पर मनाए जाने की मांग की।

इस वर्ष की थीम-

वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे मेहता उन फर्म स्टॉकिंग तमाम योगदान को देखते हुए हर साल एक नई थीम को इस दिवस पर निर्धारित किया जाता है 2020 में इस दिवस पर वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की थीम “Transforming global health” रखी गई थी। इस वर्ष 2021 में इस दिवस पर वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की थीम “Pharmacy: always trusted for your health” रखी गई है।

फार्मेसी क्या है-

फार्मेसी को मेडिकल की शिक्षा से संबंधित है। यदि आप इंटरमीडिएट की परीक्षा विषय भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान से करते हैं, तो यह आपके उच्च शिक्षा का एक ऑप्शन हो सकता है। भारत में फार्मेसी एक्ट 1948 के अधीन PCI को 4 मार्च 1948 को गठित किया गया था। क्योंकि फार्मेसी एक प्रोफेशनल कोर्स है। PCI ( फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ) भारत में फार्मेसी प्रोफेशन को सुचारू रखता है।
एक फार्मेसिस्ट जिसे आप केमिस्ट भी कह सकते हैं। जो दवाइयों को तैयार करने और साथ ही उन्हें वितरित करने की योग्यता रखता है। फार्मेसी मेडिकल में ज्ञान की यही शाखा है, जो फार्मेसिस्ट को तैयार करती है।
एक फार्मासिस्ट किसी औषधालय में तथा क्लीनिक में लोगों को सेवा देते हैं। एक अध्ययन की मानें तो 78% फार्मेसी टेक्निशियन फीमेल है। और फार्मेसिस्ट लोगों के स्वास्थ्य देखभाल में सर्वाधिक योग्य, कारगर और सुलभ हैं। आंकड़ा कहता है कि दुनिया में 4 मिलियन फार्मेसिस्ट लोगों को सेवा दे रहे हैं।

भारत में फार्मेसी का जनक-

महादेव लाल श्राफ को भारत में फार्मेसी के जनक का श्रेय प्राप्त है। उनका फार्मेसी के क्षेत्र में भारत में योगदान विशेष  है। उन्होंने अपने इंजीनियरिंग कोर्स की पढ़ाई हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ बनारस से हासिल की थी।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

अफगान समाचार | अफगान के सार्क संगठन में सम्मिलित होने के लिए कोशिश | Afganistan news

अफगान समाचार

सार्क संगठन में सदस्यता के लिए कोशिश-

सार्क दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में तालिबान के प्रवेश होकर सदस्य बनने के लिए पाकिस्तान की पुरजोर कोशिश नाकाम हो गई है। पाकिस्तान सार्क की बैठक में उपस्थित सदस्य राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के समूह से इस विषय को लिए अगुवाई कर रहा था, कि तालिबान सार्क संगठन का सदस्य होना चाहिए। न्यूयॉर्क में हुई इस बैठक में सार्क संगठन के सदस्यों ने पाकिस्तान की कोशिश जो कि तालिबान की अगुवाई करते हुए सार्क में शामिल करने की थी, नकार दी और इस मसले पर आम सहमति न बन पाने से उस दिवस की बैठक ही रद्द कर दी गई।

संगठन के सात राष्ट्र सदस्यों में से पाकिस्तान के अलावा तालिबान को मान्यता देने वाला कोई राष्ट्र नहीं है।

यूएन में तालिबान की भाषण के लिए कोशिश-

अफगान कि तालिबान सरकार को अब तक मान्यता यूएन से प्राप्त न होने के चलते भी तालिबान अपने प्रतिनिधि का नाम संयुक्त राष्ट्र को प्रेषित कर चुका है। जिसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में तालिबान का प्रतिनिधित्व के लिए सुहैल साहीन का नाम संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस को भेज, 76वें सत्र में अपनी बात रखने के लिए इजाजत की मांग की है। तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने लिखा कि गनी की सरकार के काल में स्थाई राजदूत गुलाम इसाकजाई देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। अतः तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र में भाषण को अपने नए राजदूत सुहेल शाहीन के लिए अनुमति की मांग की है।

पाकिस्तान और तालिबान सरकार नोकझोंक-

जहां पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार की मान्यता के लिए विश्व भर में बोल रहा है। यूं कहें कि तालिबान के चलते अफगानिस्तान में हुए बदलावों के बाद तालिबानी सरकार के साथ खड़ा होकर अफगान को पटरी पर लाने की पुरजोर कोशिश भी करता है। ऐसी प्रवृत्ति के चलते कुछ किस्से भी खबरों में शामिल हुए हैं-

1. पाकिस्तान झंडे को हटाने पर तालिबान नाराजगी व्यक्त करता है और सीमा के रक्षक जवानों में चार को गिरफ्तार करता है तालिबानी सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि तोरखम सीमा पर 17 ट्रक पाकिस्तान से मदद सामग्री लिए तालिबान में प्रवेश करने पर सीमा रक्षक दल में से कुछ ने पाकिस्तान के झंडे को जबरन हटा दिया। जिसका वीडियो फुटेज उपलब्ध हुआ है। तालिबान इस व्यवहार की निंदा करता है। इस पर कार्यवाही करते हुए तालिबानी सीमा के 4 जवानों को गिरफ्तार किया गया।

2. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान ने तालिबान को नसीहत दी है, कि “तालिबान सरकार में सभी गुटों को ले नहीं तो गृह युद्ध झेलना पड़ेगा” अब इस नसीहत पर तालिबान जो विश्व में अफगान में अपनी सरकार के हो जाने के पश्चात एकल समृद्ध राष्ट्र की छवि को टटोल रहा है। वह अपनी एक मजबूती को प्रस्तुत करने के लिए, पाकिस्तान को फटकार लगाने से भी ना थमा।

तालिबान प्रवक्ता और अफगान सूचना मंत्री जबीउल्लाह मुजादीन  ने डेली टाइम्स में कहा कि “पाकिस्तान या कोई अन्य देश यह न बताएं कि आसमान में सरकार कैसी हो”।

कतर ने की अपील-

अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने कतर की ओर से प्रतिनिधित्व कर संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक नेताओं से अफगान कि तालिबान सरकार के प्रति बहिष्कार ना हो की अपील की है। वे कहते हैं, कि बहिष्कार से मात्र ध्रुवीकरण होता है।

उनका कहना है, कि तालिबान के कैबिनेट महिलाओं के बिना सदस्य वाली हैं। किंतु वह भविष्य में एक समावेशी कैबिनेट की ओर जरूर कदम रखेंगे। उनका कहना है, कि दुनिया में इस वक्त अफगान की स्थिति के चलते मानवीय मदद की पहल जारी रखनी चाहिए। राजनीतिक मतभेदों को अलग ही रहने देना चाहिए।

वही उज्बेकिस्तान ने अफगान को तेल और बिजली की आपूर्ति अपनी ओर से प्रारंभ कर दी है।

23 september अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस | वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ

अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस

अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस-

23 सितंबर को संपूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह दिवस विश्व में भाषा के उस प्रकार के महत्व को प्रकाश में लाता है, जो हम आज भी भाषा के इतने विकास हो जाने के पश्चात प्रयोग कर ही देते हैं।
उदाहरण के लिए हम संकेत कर अपने दोस्त को दर्शाते हैं, कि गाड़ी उस और गई है,  तुम्हारी पेन उस डेस्क में है, तुम्हारी सीट वह है आदि।

भाषा हमारे आचार विचारों को व्यक्त करने का माध्यम है, और सांकेतिक भाषा संकेतों की भाषा है, जहां हम अपने भावों विचारों को संकेतों के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
यह दिवस विश्व भर में सांकेतिक भाषा के उत्थान की ओर कदम है।
इस वर्ष 2021 सांकेतिक दिवस की थीम “वी साइन फॉर ह्यूमन राइट्स” रखा गया है।

वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ ( world federation of the deaf ) –

अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस की अवधारणा सर्वप्रथम वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ ( WFD ) द्वारा की गई। WFD स्थापना वर्ष 1957 दिवस 23 सितंबर है, जो कि विश्व भर में 135 राष्ट्रों के बधिर लोगों के हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी गणना है, कि दुनिया भर में लगभग 70 मिलियन लोग बधिर हैं। जिनके लिए आवश्यक है, कि संकेतिक भाषा विकसित हो और प्रचलित भी  हालांकि संकेतिक भाषा का भी व्याकरण है। आपने कई टीवी समाचारों में सांकेतिक भाषा के जानकार को एक ओर से संकेतों में समाचार व्यक्त करते हुए देखा होगा। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ बधिर लोगों की मानव अधिकार को इस भाषा के उत्थान से संरक्षण होने की वकालत करते हैं।
क्योंकि वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ 23 सितंबर के दिन स्थापित हुई थी। अतः इस दिवस की ऐतिहासिक महत्व ही यूएन द्वारा 23 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के तौर पर घोषित करने का कारण है।

संकेतिक भाषा का ऐतिहासिक प्रमाण-

संकेतिक भाषा का प्रथम ऐतिहासिक प्रमाण प्लेटो की क्रेटिलस से मिलता है। जिसमें सुकरात कहते हैं, यदि हमारे पास आवाज या जुबान नहीं होती, तो हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति में अपने हाथ, सिर और शरीर के अन्य अंगों का प्रयोग करते, और उनसे संकेत करने का प्रयत्न करते।

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

आयुष्मान योजना को 3 वर्ष पूरे | प्रदेश में अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना

आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना को 3 वर्ष पूरे

आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना-

23 सितंबर को आयुष्मान भारत योजना को 3 वर्ष पूरे हुए हैं। उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का कहना है, कि इस योजना के अंतर्गत अब तक 4 अरब रुपए तक खर्च किए जा चुके हैं, 44 लाख से अधिक आयुष्मान कार्ड प्रदेश में अब तक बनाए जा चुके हैं। अलग-अलग स्तरों पर आम जनमानस के आयुष्मान कार्ड बनाए जाने के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं। तहसील, ब्लॉक स्तर पर शिविर लगाकर आम लोगों के अयुष्मान कार्ड बनाने की कार्ययोजना जारी है।

आयुष्मान योजना अपने 3 वर्ष पूरे कर चुकी है। जिसे लेकर मंथन 3.0 का आयोजन हुआ। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने इस उपलक्ष में योजना की राज्य में समीक्षा के परिपेक्ष में बैठक की।

क्या है आयुष्मान भारत योजना-

3 वर्ष पूर्व प्रारंभ की गई यह योजना केंद्र सरकार की योजना है। जिसे 3 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। यह योजना भारत वर्ष में 10 करोड परिवारों को निशुल्क स्वास्थ्य सेवा देने की है। जिसमें प्रति परिवार प्रतिवर्ष चिकित्सा सुविधा के तौर पर ₹5 लाख तक का निशुल्क उपचार देने की घोषणा है।

आयुष्मान योजना से उत्तराखंड को लाभ-

देशभर में 10 करोड़ परिवारों को निशुल्क स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने वाली आयुष्मान योजना में उत्तराखंड के 5 लाख 32 हजार परिवारों को लाभ प्राप्त होगा। इन परिवारों को ₹5 लाख प्रति वर्ष प्रति परिवार निशुल्क स्वास्थ्य सेवा देने की योजना है। आयुष्मान योजना के अधीन उत्तराखंड में 213 अस्पताल जिनमें 111 प्राइवेट तथा 102 सरकारी अस्पताल सूचीबद्ध हैं। वहीं राज्य से बाहर 27 हजार अस्पतालों में 1600 प्रकार के रोग दशाओं में आयुष्मान कार्ड निशुल्क स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है। कोरोना महामारी के दौरान राज्य में इलाज के लिए सरकार ने 26 करोड से अधिक धनराशि खर्च की जिससे सूचीबद्ध चिन्हित अस्पतालों में कोरोनावायरस के 2700 से अधिक लोगों का उपचार हुआ।

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना-

प्रदेश में अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना केंद्र सरकार की योजना आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना का ही स्वरूप है। प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का कहना है, कि यह योजना केंद्र सरकार की योजना से ही प्रेरित होकर प्रारंभ की गई है। अटल आयुष्मान योजना उत्तराखंड के 23 लाख सभी परिवारों को स्वास्थ्य सुविधा के तौर पर निशुल्क उपचार ₹5 लाख प्रति परिवार तक देने की घोषणा करती है। राज्य की इस योजना में नए आंकड़ों की माने तो 6 माह में 5150 कार्डधारक लाभार्थियों ने स्वास्थ्य निशुल्क सेवा का लाभ उठाया है।

राशन कार्ड के आवेदन में आवश्यक दस्तावेजों का विवरण | नया राशन कार्ड बनवाने के लिए क्या करें

नवीनीकरण / नया राशन कार्ड के लिए आवेदन में आवश्यक दस्तावेजों का विवरण-

1. मुखिया की एक पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ- 

राशन कार्ड के आवेदन के लिए घर के उस परिवार के मुखिया की पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ जो नए राशन कार्ड के लिए आवेदन कर रहे हैं।

2. पुराना राशन कार्ड यदि / राशन कार्ड के निरस्तीकरण प्रमाण पत्र / नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट

3. मुखिया से संबंधित निम्न कागजों की फोटोकॉपी-

● बैंक में खाते की बुक के पहले और आखिरी पेज की फोटो कॉपी लानी होती है।

● गैस बुक की प्रथम पृष्ठ की फोटो कॉपी लानी होती है

4. सभी सदस्य जो राशन कार्ड में होंगे के संबंधित दस्तावेज-

उस परिवार के सभी सदस्य के आधार कार्ड की फोटो कॉपी आवश्यक है।  अर्थात राशन कार्ड पर जिन सदस्यों का नाम दर्ज होगा, उन सभी के आधार कार्ड की फोटोकॉपी आवश्यक है।

5. आय प्रमाण पत्र संबंधित किसी एक दस्तावेज की फोटो कॉपी-

● नौकरी होने पर या तो सैलरी स्लिप की फोटोकॉपी।

या

● इनकम टैक्स द्वारा वापस दी गई रिसिप्ट की फोटोकॉपी।

या

● आय प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी।

6. निवास स्थान एड्रेस के सत्यापन के लिए निम्न में से किसी एक दस्तावेज की फोटो कॉपी-

● हाल ही में आया बिजली का बिल नवीनतम-

 हो सकता है कि बिजली का बिल घर के मुखिया के नाम पर हो और मुखिया का पुत्र अपनी पत्नी और बच्चों को लिए पिता (मुखिया) के साथ ही एक घर में रहता हो तो बिजली का बिल वही घर का मुखिया के नाम का प्रयोग में होगा।

या

● नवीनतम पानी का बिल-

घर में आए पानी के बिल की एक फोटो कॉपी।

या

● हाउस टैक्स से संबंधित कागज की फोटो कॉपी।

या

● किरायानामा की फोटो कॉपी।

नोट- यह सभी जानकारियां जिला पूर्ति कार्यालय देहरादून उत्तराखंड से दिनांक 23 सितंबर 2021 को इकट्ठी की गई है। राशन कार्ड के आवेदन से संबंधित सभी दस्तावेजों को पूर्ण कर खाद्य पूर्ति कार्यालय तहसील में जमा करवाया जा सकता है।

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

मेधावी छात्र से बैडमैन तक का सफर | गुलशन ग्रोवर जन्मदिन विशेष

गुलशन ग्रोवर

बचपन

गुलशन ग्रोवर जी स्कूल के दिनों में बड़े मेधावी छात्र हुआ करते थे। विद्यालय में अच्छे अंको से पास होना, और एक अच्छे विद्यार्थी की तरह शालीन स्वभाव से पर्दे पर बैडमैन हो जाने तक का सफर कैसे तय हुआ।

वे दिल्ली में पले बड़े, दिल्ली के ही स्कूल में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की परिवार की स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, जब गुलशन ग्रोवर जी कहते हैं, कि मैं बचपन में स्कूल की ड्रेस को अपने साथ लिए सुबह डिटर्जेंट और साबुन, फिनायल इत्यादि को बेचने घर-घर जाया करता था। आप की अदालत मैं गुलशन ग्रोवर का अपने बचपन के विषय में कहना है, कि जो लोग उन्हें बचपन में जानते थे, आज पर्दे पर उन्हें देखकर जरूर सोचते हैं, कि यह इतना अच्छा लड़का ऐसे रोल कैसे कर सकता है, यह तो ऐसा लड़का है ही नहीं।

गुलशन ग्रोवर असल जिंदगी में कभी बैडमैन रहे ही नहीं उनकी बहनों से सुने तो बचपन में गुलशन उन्हें पढ़ाया करते थे। स्कूल समय से ही झगड़े लड़ाइयों से दूर रहे गुलशन स्क्रीन पर एक अलग ही रंग में दिखते हैं। बचपन से ही कलाकारी का एक अलग शौक गुलशन साहब को रहा। उन्होंने बचपन में रामलीला से स्कूल कॉलेजों में ड्रामा के मंचों तक गुलशन ग्रोवर अपनी अदाकारी की धार पेनी करते रहे। वह श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स दिल्ली से ग्रेजुएट हुए।

सफल कलाकार बनने का सफर

गुलशन ग्रोवर ग्रेजुएशन के बाद मुंबई को रवाना हो गए। उन्होंने वहां प्रो० रोशन तनेजा के एक एक्टिंग स्कूल में एडमिशन ले लिया, और वहां जिन सहपाठी से उनकी मुलाकात हुई। जिनमें एक और सफल कलाकार अनिल कपूर, मदन खान, मदन जैन, सुरेंद्र पाल इत्यादि।

जब गुलशन ग्रोवर एक्टिंग स्कूल लास्ट ईयर पास आउट हुए। एक निरीक्षक के तौर पर छात्रों को प्रोत्साहित करने और उनकी उन्नति को आंकने अनिल कपूर साहब के पिता सुरेंद्र कपूर जी वहां उपस्थित हुए, और उन्होंने गुलशन ग्रोवर को सर्वाधिक अंक दिए, विश्वास दिलाया कि जो आवश्यकता हो मुझे जरूर बताना, मैं तुम्हें मदद देने की पूरी कोशिश करूंगा, और जिस मदद का वादा सुरेंद्र कपूर जी ने गुलशन ग्रोवर से किया था, उसमें पहली सबसे बड़ा साथ जो दिया उन्होंने अपनी फिल्म “हम पांच” में काम देकर।

अपनी एक्टिंग कोर्स पूरा हो जाने के बाद अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आवश्यकताओं पर खर्चा को लेकर गुलशन ग्रोवर साहब ने उसी एक्टिंग स्कूल में एक्टिंग टीचर के तौर पर नौकरी कर ली और अपनी एक्टिंग टीचर की नौकरी के साथ-साथ हुए फिल्म मेकर से मुलाकात के लिए दौड़ भी करते रहे। इसी दौरान प्रोफेसर रोशन तनेजा से संजय दत्त एक्टिंग कोर्स लेने आए इस तरह से गुलशन ग्रोवर भी उनके टीचर रहे।

पहली फिल्म

गुलशन ग्रोवर की पहली फिल्म को लेकर संजय दत्त साहब के पिता सुनील दत्त जी कहते हैं, कि उन दिनों में संजय दत्त की ट्रेनिंग के दौरान गुलशन ग्रोवर संजय दत्त को मिला करते रहे। एक दिन संजय दत्त ने अपनी पिता सुनील दत्त जी से कहा कि पिताजी यह गुलशन हैं और यह बहुत अच्छी कॉमेडी कर लेता है। जब सुनील दत्त जी ने उन्हें देखा तो उन्होंने गुलशन में एक अच्छा एक्टर पाया। उन्होंने सलाह दी कि तुम विलेन के रोल में काम किया करो। उन्हीं दिनों सुनील दत्त जी रॉकी फिल्म को फिल्माने की तैयारी में थे। वहीं से गुलशन ग्रोवर का पहला रोल निकल कर आया।

रॉकी फिल्म कामयाब फिल्म रही, किंतु गुलशन ग्रोवर साहब को बहुत पहचान तो नहीं मिली थी, उन्हें इस फिल्म में काम से फिलहाल तक तो उस स्तर पर नोटिस नहीं किया गया।

अनिल कपूर जी के पिता सुरेंद्र कपूर जी ने भी गुलशन ग्रोवर जी को अपनी फिल्म हम पांच में काम करने का मौका दिया। “हम पांच” फिल्म में काम कर रहे गुलशन ग्रोवर साहब कि उसी दौरान मुलाकात शबाना आजमी जी से होती है, और उन्हें गुलशन ग्रोवर की मेहनत उनका समर्पण बेहद पसंद आया और उन्होंने मोहन कुमार जी से “अवतार” फिल्म के लिए गुलशन ग्रोवर का जिक्र किया उनकी तस्वीरों को उन तक पहुंचाया। इसी पहल के चलते मोहन कुमार साहब ने गुलशन ग्रोवर जी को फिल्म अवतार में काम दिया। इसके बाद गुलशन ग्रोवर के करियर में अनेकों कामयाब फिल्मों का झरोखा बह चला।

बॉलीवुड का बैडमैन

गुलशन ग्रोवर साहब के चाहने वाले बेडमैन के नाम से जानते हैं। इसे लेकर सुभाष घई की फिल्म राम-लखन में गुलशन ग्रोवर को मिला रोल का जिक्र आता है। उस फिल्म के रिलीज होने के बाद गुलशन ग्रोवर का जादू दर्शकों के जुबान पर साफ दिख रहा था। दर्शक फिल्म देख कर बाहर निकले तो केवल बैडमैन, बैडमैन ही कह रहे थे, और उस फिल्म की सफलता के साथ ही गुलशन ग्रोवर साहब बैडमैन के नाम से मशहूर हो गए।

हॉलीवुड का किस्सा

हॉलीवुड को लेकर गुलशन ग्रोवर साहब का एक किस्सा कुछ इस प्रकार से है, कि किसी डायरेक्टर की नजर जब रेस्टोरेंट मैं बैठे गुलशन ग्रोवर पर पड़ी तो उसने उनसे सवाल किया क्या तुम मेरी फिल्म में काम करोगे। वह यह नहीं जानता था, कि गुलशन ग्रोवर बॉलीवुड में पहले ही एक सफल कलाकार हैं। गुलशन ग्रोवर हॉलीवुड की भी कई फिल्मों में काम कर चुके हैं।

सोमवार, 20 सितंबर 2021

अफगान घटनाक्रम | अफगान में महिलाएं | तालिबान को लेकर दुनिया

अफगान घटनाक्रम-

 तालिबान में महिलाएं-

तालिबानी महिलाओं को लेकर कैसी मनः स्थिति में है, और समय के साथ कितना परिवर्तन स्वयं में ला पाने में वह सफल हो सका है, यह सब तालिबान से आने वाली खबरों में साफ हो रहा है, महिलाओं का सड़कों पर प्रदर्शन अपनी आजादी और खुली सांस की लड़ाई।

तालिबान मानसिकता में जीवन के समस्त अधिकारों को वे खो नहीं देना चाहती। वे उन जंजीरों में बंध कर खुद को कैदी महसूस कर रही हैं। वह दुनिया में खुद को उन महिलाओं में गिनना चाहती हैं, जो हर विषय पर कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की राह में सेवा दे सकती हैं।

ऐसे में तालिबानी बुर्खा, हिजाब उन्हें तो जरूर ढक लेगा, किंतु उनके आक्रोश की ज्वाला, हक को लड़ने की मानसिकता को नहीं ढक सकता है, तालिबान से महिलाओं को लेकर सर्वाधिक पिछड़े फैसलों की अपडेट मिल रही हैं, किंतु अफगानी महिलाओं ने अपने अपने स्तर से इस मानसिकता के खिलाफ जंग को जारी रखने की मुहिम छोड़ी नहीं है। सोशल मीडिया पर रंग बिरंगे वस्त्रों में अपनी तस्वीरों को वह पोस्ट कर रही हैं। वे लिखती हैं, कि वह रंग बिरंगी पोशाक हमारी संस्कृति हैं, तालिबान हमारी पहचान तय नहीं करेगा। इस प्रकार से विरोध लगातार जारी है।

वही अफगान से 32 महिला फुटबॉल खिलाड़ी अपने परिवार को लिए लाहौर पहुंच गए हैं। यह सब तालिबान की नजरों से बचकर हुआ है। तालिबानी लोग इन्हें धमका रहे थे। क्योंकि ये महिला होते हुए खेल से जुड़ी हैं। तालिबान को यह मंजूर नहीं। यह महिला खिलाड़ी 2022 में कतर में होने वाले विश्व कप में शामिल होंगे। इन महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा को देखते हुए इन्हें पाकिस्तान ले जाने का कदम ब्रिटेन के एक एनजीओ ने उठाया।

इन सब घटनाओं से स्पष्ट हो रहा है, कि तालिबान महिला प्रतिभा और उनकी अहमियत को कितना आंकता है, इसलिए उन्हें बांध कर रखने का प्रयत्न करता है।

तालिबान को लेकर दुनिया में-

तालिबान के कारनामों पर समर्थन देने वाले और आशंकित और विरोधी रुख लिए राष्ट्रों के नाम धीरे-धीरे साफ हो रहे हैं। खाड़ी देशों के एक वरिष्ठ अफसर की माने तो अफगान के विषय पर जहां चीन और पाक एक तरफ हैं, तो भारत, रूस और ईरान एक ओर होंगे। उनका कहना यह भी है, कि ईरान की नज़दीकियां भारत और रूस से अधिक है, वे अपनी ओर से अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की मिलीभगत पर कहते रहेंगे।

दुनिया में पाकिस्तान अपने तालिबानी समर्थन स्टैंड के चलते घेरे में तो आया है, और यदि ऐसा नहीं है तो क्यों खबरों में है, की काबुल की सड़कों पर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। इस पर सोचने का विषय है कि काबुल की सड़कों पर विरोधी क्यों तालिबान के बजाय पाकिस्तान के खिलाफ स्वर ऊंचा करते हैं।

अफगानिस्तान बिगड़ते हालात-

पिछले दिनों की खबरों से यह मालूम हुआ, कि लोग अफगान में इस स्थिति में आ गए हैं, कि खाने को कुछ नहीं काम के जरिए समाप्त हो गए हैं। बैंकों से रुपए मिल पाना बेहद मुश्किल हो रहा है, वहां लंबी कतारें हैं। लोग यहां तक कि अपने घरों का सामान बेचने को सड़कों पर बैठे हैं। यूएन ने फिर अफगान के बिगड़ते हालातों पर चिंता व्यक्त की है। अफगान में मानवीय स्थिति बत्तर हालातों में आ चुकी है। वहां लोगों के पास भोजन, दवा, घर जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं है। 

वहीं अफगान के मानव अधिकार आयोग ने कहा कि तालिबान उनके दफ्तर को अपने अधिकार में ले चुका है। तालिबान मानव अधिकार आयोग के कामकाज में दखलंदाजी करता है। उनके कंप्यूटर, कार सभी तालिबान अपने इस्तेमाल के लिए प्रयोग में ला रहा है। उन्हें अपनी स्वतंत्र कार्यकारिणी को लेकर चिंता है।

रविवार, 19 सितंबर 2021

पंजाब के नए मुख्यमंत्री | चरणजीत सिंह चन्नी

 पंजाब ने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी-

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी

सुखविंदर सिंह रंधावा का नाम पंजाब मुख्यमंत्री पद को लेकर सबसे आगे था। उनके पश्चात अमृता सोनी के सी एम बनने को लेकर के इनकार ने सुनील जाखड़ और साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी रेस में शामिल रहा। नवजोत सिंह सिद्धू को इस वक्त मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस हाईकमान नई मुसीबत गले नहीं लेना चाहती। चुनाव निकट है। जहां सुनील जाखड़ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आने लगा था, तब सिद्धू पक्षी नेता दल ने उनका विरोध दर्शाया।
अंत में आकर चरणजीत सिंह चन्नी नाम पंजाब के नए सीएम के पद को हासिल होगा। पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत जी ने ट्वीट कर यह जानकारी साझा की।

चरणजीत सिंह चन्नी-

पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक वर्तमान में है। वह पंजाब विधानसभा में 2015 से 16 तक विपक्ष के नेता के तौर पर प्रमुख रहे। वे दलित समाज के अंग है, और पंजाब में पहले मुख्यमंत्री होंगे जो दलित सिख हैं।

चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में रोचक प्रसंग-

एक बेहद रोचक विवरण पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में है। 2018 में उनके विषय में एक वीडियो देखने में आया था। जिसमें कि वह लेक्चरर होने के लिए दो उम्मीदवारों के मध्य सिक्का उछालते दिखाए गए। इन तस्वीरों पर तब मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जी ने कहा था, कि यह सुझाव उन दो उम्मीदवारों का ही था, क्योंकि वे दोनों बराबर पर थे, इसलिए सिक्का उछाल कर तय करने पर मंजूरी बनी।
सीएम चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में यह भी जानने को मिला कि ज्योतिष के मशवरे से उन्होंने एक अवैध सड़क का निर्माण भी करवा लिया था, यह पूरा मामला क्या रहा होगा, किंतु सरकार ने इस अवैध सड़क को समाप्त कर दिया। उन्होंने अपनी ज्योतिष की सलाह पर एक हाथी की सवारी अपने ही घर में की थी। यह कुछ रोचक तथ्य पंजाब के होने जा रहे नए मुख्यमंत्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में है।
एक समय पर उन पर आम आदमी पार्टी के नेता सुखपाल खैरा जी ने अवैध खनन को लेकर आरोप लगाए थे। किंतु उन्होंने स्पष्ट करते हुए इसमें अपना कोई हाथ नहीं होना बताया था।
यह सब उनकी राजनीतिक जीवन और सामान्य जीवन संबंधी प्रसंग है। यह तो राजनेताओं का एक पहलू है।
58 वर्ष के चरणजीत सिंह चन्नी जी अब पंजाब के नए मुख्यमंत्री होंगें। और नवजोत सिंह सिद्धू जरूरी है, कि नई सरकार में मंत्री होंगे। उन्होंने अमरिंदर सरकार पर स्पष्ट आरोप लगाया था, कि 2017 चुनाव वादों को निभाने में विफल रही है। नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोधियों में देखा जाता है। वे उन नेताओं में हैं, जिन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाया था।

Captain amrinder singh | राजनीतिक जीवन और उपलब्धियां

कैप्टन अमरिंदर सिंह जी-

पंजाब के हाल तक और इस्तीफा सौंप चुके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जी का 52 वर्ष का राजनीतिक जीवन हो चुका है। वह 9 वर्ष तक पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। उनका जन्म 1942 में हुआ था। वह राष्ट्रीय डिफेंस अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक के बाद भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। 1963 से 1966 तक वे भारतीय सेना में सेवारत रहे। 1965 की इंडो पाक युद्ध में भी वे भारतीय सेना का हिस्सा थे।

राजनीतिक जीवन-

वे स्कूल समय से ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के अच्छे मित्र रहे, और राजनीति में प्रवेश इसी मित्रता के साथ हो गया। कांग्रेस पार्टी से उनका परिचय राजीव गांधी जी के द्वारा ही हुआ। वे 1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। किंतु ऑपरेशन ब्लू स्टार के विषय में उन्होंने 1984 में संसद को इस्तीफा दे दिया, तथा कांग्रेस छोड़ दी, उन्होंने शिरोमणि अकाली दल में शामिल होना स्वीकार किया, और राज्य विधानमंडल में तलवंडी सबो से चुने गए। वे राज्य सरकार में कृषि तथा वन मंत्री भी रहे।
अमरिंदर सिंह जी ने सन 1992 में पार्टी अकाली दल से अपने आप को हटा लिया, और एक नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम से गठित की। यह पार्टी 1998 में कांग्रेस में विलय हो गई। वे लंबे समय तक पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे, वे तीन बार 1999 से 2002,   2010 से 2013,   2015 से 2017 तक कांग्रेस प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष रहे, वे 2002 से 2007 तक पंजाब मुख्यमंत्री पद पर भी आसीन रहे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह जी ने 2014 आम चुनाव में वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण जेटली जी को एक लाख से अधिक वोटों से करारी हार दी थी। वह पटियाला तथा तलवंडी साबो की सीटों से सम्मिलित रूप से 5 बार पंजाब विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह जी को 2014 में 2017 के चुनाव को लेकर पंजाब राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था, और 2017 में कांग्रेस पार्टी को राज्य विधानसभा का चुनाव जीत लेने के बाद पंजाब राजभवन चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें शपथ दिलाई गई।
18 सितंबर 2021 को पार्टी द्वारा अपमानित होने का कारण देकर कैप्टन अमरिंदर सिंह जी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

अमरिंदर सिंह जी द्वारा लिखी किताबें-

कैप्टन अमरिंदर सिंह जी ने अपने जीवन के अनुभव तथा संस्मरण को अपनी लिखी किताबों के माध्यम से सार्वजनिक किया है। उनकी लिखी किताब लेस्ट वी फॉरगेट, द लास्ट सनसेट: राइज एंड फॉल ऑफ लाहौर दरबार और द सिख इन ब्रिटेन,

इंडियाज मिलिट्री कंट्रीब्यूशन टू द ग्रेट वॉर ऑफ 1914 से 1918,
द मानसून वॉर: यंग ऑफिसर्स रिमिनीस:1965 भारत पाक युद्ध।

लेखक खुशवंत जी ने एक पुस्तक जो कि एक जीवनी है सार्वजनिक की है, जिसका नाम कैप्टन अमरिंदर सिंह: द पिपुल्स महाराजा इन 2017

पंजाब मुख्यमंत्री का इस्तीफा | कैप्टन अमरिंदर सिंह का सिद्धू को लेकर बयान

 कैप्टन अमरिंदर सिंह जी का इस्तीफा-

 नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के मध्य कि रार चुनाव से कुछ ही समय पहले रंग दिखा गई, और साफ कर गई की आखिर यह रार कितनी गहरी थी। कांग्रेस हाईकमान हमेशा से बचाव में लगी रही वह कई मुलाकात पूर्व में पंजाब में पार्टी की गुटबाजी के लिए कर चुके, कभी नवजोत सिंह सिद्धू की राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात हो, या कैप्टन अमरिंदर सिंह जी की पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात हो, किंतु हर कोशिश नाकाम रही और मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा आखिर पंजाब के राजनैतिक रार का फल हुआ।

कांग्रेस हाईकमान का ही फैसला होगा, कि आखिर मुख्यमंत्री पद को कौन पंजाब में होगा, यह कैप्टन का कहना है। किंतु उन्होंने साफ बोल में नवजोत सिंह सिद्धू को अयोग्य बताया है। उन्होंने कहा है, कि सिद्धू पाकिस्तान परस्त हैं, वह इमरान और भाजपा के साथ हैं, यदि वह मुख्यमंत्री बनता है, तो यह देश हित में नहीं है, वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे।

दूसरी ओर उन्होंने यह भी कहा कि सिद्धू का यह सब करना उसकी मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा ही है। अब कांग्रेस हाईकमान इन सब हालातों में कैसे राज्य में स्थायित्व ला सकेगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान जो सिद्धू को पूर्णता कटघरे में खड़ा करते हैं, कांग्रेस को सिद्धू को मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित करने से पूर्व जरूर गहरा सोचने को मजबूर करेगी। वहीं यदि सिद्धू मुख्यमंत्री होते हैं, तो यह भी तकरीबन तय  है, कि कैप्टन पार्टी को छोड़ दें। वे पहले से ही स्वयं को पार्टी से अपमानित समझते हैं। जब उनसे पूछा गया कि आगे क्या कदम होगा, तो उनका जवाब था कि वे अपने साथी नेताओं से विषय पर वार्ता करेंगे तब अंतिम फैसले पर पहुंचेंगे।

यह भी तय है, कि कैप्टन और सिद्धू को एक ही पार्टी में रहना है, तो इसका मतलब है, कि सिद्धू का मुख्यमंत्री ना बनना। क्योंकि कैप्टन को यह स्वीकार ही नहीं कि सिद्धू मुख्यमंत्री बने, यदि कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयानों के बावजूद भी कांग्रेस हाईकमान सिद्धू को मुख्यमंत्री पद सौंपती है, तो कांग्रेस पार्टी को कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध में जाने का खामियाजा पंजाब में भुगतना होगा। यह कैप्टन अमरिंदर सिंह जी की पार्टी छोड़ना भी हो सकता है। और सीधा-सीधा इसका फायदा पंजाब में आम आदमी पार्टी और भाजपा को होने वाला है।

यह तो स्पष्ट है, की कैप्टन के बयानों ने सिद्धू कि पंजाब में मुख्यमंत्री पद प्राप्ति की राह को बेहद कठिन कर दिया है।

शनिवार, 18 सितंबर 2021

उत्तराखंड में भाजपा की उभरती समस्याएं

भाजपा की उभरती समस्याएं-

पार्टी का नेतृत्व खेमा बड़ा होने से अब भाजपा की उत्तराखंड में चुनौती भी बड़ी है, कि वे सभी बागी हुए तथा योग्य, बुजुर्ग सभी नेताओं को मनोवांछित सीटों पर टिकट दे, जीत हो तो मंत्रिमंडल में जगह दे, मुख्यमंत्री का पद दें। वही भाजपा पार्टी के उत्तराखंड में पहले से ही दिग्गज नेता अपनी भक्ति, लंबे समय से पार्टी में होने के फल में अपने ही विचार को पार्टी का विचार मानने की मनः स्थिति में आ चुके हैं।
2016 में एक ओर पहले से ही कांग्रेस से बागी नेता अपनी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए अधीर हुए हैं। भाजपा उन्हें भी अपनी पार्टी में ग्रहण कर पूर्णतः पकाने का काम कर रही हैं। किंतु वह बागी नेता तो राजनीति में अरसे से हैं, अतः अब इंतजार करना उन्हें लाजमी नहीं, और राजनीति में लंबे समय से होने के कारण अधिक अनुभव के कायदे से यूं तो उन्हें ही मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होना चाहिए, किंतु भाजपा के लिए तो वे इतने पुराने नहीं जितने कि वे राजनीति में पुराने हो चुके हैं।
खैर एक ओर जहां नेताओं का भाजपा का दामन थामना हो रहा है। वही सीट पर यह समस्या होगी, कि टिकट दे किन्हें।
पुरोला की ही सीट का हाल देखें कि विधायक राजकुमार मुख्यमंत्री, घोषणाओं के बदला बदली के दौर में खुद भी एक कदम और बदल लिए हैं, क्षेत्र में राजनीति का दायरा और तीव्रता कम नहीं होती है, इस पर विपक्षी व्यक्ति का अपनी ही पार्टी का विधायक हो जाना और उस समय पर जब चुनाव 2022 दरवाजे पर हैं, तब वर्तमान पुरोला विधायक राजकुमार जी का यह कदम पूर्व विधायक पुरोला मालचंद जी को भविष्य में भाजपा का पुरोला सीट पर टिकट को लेकर समीकरण स्पष्ट दिख रहे हैं। और यही कारण है कि वह इस विषय पर बोले।
दरअसल पुरोला क्षेत्र में चर्चाएं यह भी होने लगी कि विधायक मालचंद जी कांग्रेस में शामिल होंगे, किंतु विधायक मालचंद जी ने यह तथ्य पूर्णता असत्य दर्शाए। उनका यह भी कहना है, कि पुरोला सीट पर 2022 भाजपा से टिकट उन्हें ही मिलने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि वह भाजपा पार्टी के एजेंडे पर सदैव से कार्य करने को नियत रहे हैं। जबकि कुछ लोगों ने भाजपा पार्टी को छोड़ दिया था। अतः स्पष्ट है, कि पुरोला सीट पर भाजपा के लिए टिकट को लेकर समस्या जरूर है, और उम्मीदवारों में से किसी का टिकट ही प्राप्त करना अपने आप में एक बड़ी जीत है।
टिकट वितरण में संतोष असंतोष और अपनी ही पार्टी के सदस्य का आकर विरोधी हो जाना राजनीति का पहलू है, और हो भी क्यों नहीं 5 साल में एक बार तो यह पर्व होता है, और 5 वर्षों तक अपने आप को साधना में रखें उम्मीदवार को टिकट हाथ ना लगे, तो वह स्पष्टतः निराश ही होगा।
2016 से कांग्रेस से बागी नेताओं की मुख्यमंत्री पद की चाह अब तक भाजपा भी पूर्ण नहीं कर सकी है। अब वह किसी दिशा में दल बदलें। वे राज्य में शीर्षस्थ नेता रहे हैं। यदि अब दलों की दिशा बदलते हैं, तो दिशाहीन कहलाएंगे।
कुल मिलाकर राजनीति में बड़ा परिवार होने पर और एक ही सीट की इच्छा रखने वाले काबिल कई उम्मीदवार हो जाना पार्टी में असंतोष पैदा करता है। और पुरोला वर्तमान विधायक राजकुमार जी का भाजपा में शामिल होना तथा पुरोला के पूर्व विधायक मालचंद जी का इस पर बयान कि 2022 में पुरोला सीट से टिकट उन्हें ही मिलने वाला है, यह तय है कि कहीं ना कहीं टिकट वितरण एक खेमे में असंतोष जरूर पैदा करेगा।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

पुरोला विधायक राजकुमार जी | उत्तराखंड सियासत | भाजपा कैसे बनाएगी आंकड़े दुरुस्त

उत्तराखंड सियासत-

 मुख्यमंत्री जी की कई योजनाओं की घोषणा में अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन, स्फूर्ति का परिचय और रोजगार पर पहल का पिछले 4 साल की गणित को धुंधला करने का पुरजोर प्रयत्न है। 

वही 1 सप्ताह के भीतर भीतर जिन विधायकों ने भाजपा पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। पहले यमुनोत्री के विधायक प्रीतम सिंह पंवार जी का भाजपा में हित टटोलते दामन थामना और अब पुरोला विधायक राजकुमार जी की दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करना भाजपा की चुनावी रणनीति को साफ कर रहा है।

भाजपा के द्वार खुले हैं। उत्तराखंड में नाखुश विधायक पूर्व में कुछ का स्थानांतरण कांग्रेस पार्टी ने 2016 में देखा है। हालांकि उनको अब तक भाजपा में भी अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं हो पाई है। यह माननीय हरक सिंह रावत जी ने एक टीवी इंटरव्यू में स्पष्ट कर दिया है। हरक सिंह रावत जी का कहना है, कि उन्होंने 2016 में बगावत मंत्री बनने के लिए नहीं की थी, बल्कि वे तो मुख्यमंत्री होने के लिए बागी हुए थे।

भाजपा सरकार के निर्माण के लिए नेताओं का और मुख्यधारा के सबल नेताओं का दल परिवर्तन कर भाजपा का दामन थामना एक मुख्य कारक रहा है। और इस समय भी भाजपा रणनीति का मुख्य बिंदु वही है, और इसे सफल बनाती है, उत्तराखंड में नेताओं की प्रवृत्ति।

उत्तराखंड में अक्सर नेताओं का है, कि कहां जाएं जो खूब पाएं, नहीं तो जो पूर्व से है उसे तो बचा पाए।

निर्दलीय विधायक यमुनोत्री प्रीतम सिंह पंवार जी का अपना जनप्रियता का आयाम मोदी लहर में उनकी निर्दलीय जीत से प्रस्तुत होता है। वे अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। वहीं पुरोला विधायक राजकुमार जी का बीजेपी के पक्ष में हो जाना भाजपा की नीति को और विधायक द्वारा लगाई अनुमानित विजय लहर के झोंक को दर्शाता है।


पुरोला विधायक राजकुमार जी-

वर्तमान पुरोला विधायक राजकुमार जी का राजनीतिक जीवन दल, निर्दल, जीत, हार सभी पखवाड़ो से होकर इस बिंदु पर पहुंचा है। वर्ष 2002 में वे भाजपा प्रदेश सचिव रहे। वर्ष 2007 के चुनाव में वह विधायक पद के लिए सहसपुर विधानसभा से लड़े और जीत हासिल की। 2012 के चुनाव में अपने पसंद की विधानसभा सीट पुरोला से टिकट हासिल न कर पाने के चलते निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हांलांकि वे जीत हासिल न कर सके। किन्तु यह कर वे भाजपा से बागी जरुर हो गए। वर्ष 2017 में वे कांग्रेस पार्टी की ओर से पुरोला सीट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की।

खबरों में यह भी मुख्य रूप से रहा, कि पुरोला के विधायक राजकुमार जी अपने कार्यकर्ता कांग्रेसियों से ठीक तालमेल बिठा पाने में असफल है, और यह असफलता इतनी प्रबल है, कि हाल ही में की गई एक कांग्रेस कार्यकर्ता मीटिंग में उन्हें टिकट न देने तक की अपील की गई। उनके विरोध में कांग्रेस कार्यक्रमों के बैठकों में स्वर उठते रहे हैं। स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी ने कहा कि विधायक राजकुमार हमारी कमजोर कड़ी थे, जो वक्त से पहले टूट गए हैं।

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

अफगानी फैसले | तालिबान afganistan latest

छात्राओं के लिए शिक्षा की शर्तें-

विश्वविद्यालय में लड़कियों के पढने पर कई शर्तें तय कर दी गई हैं, जैसे अब कक्षा में लड़का लड़की एक साथ उपस्थित नहीं होंगे, सभी छात्रों वाली एक साथ चलने वाली कक्षाओं का चलन खत्म होगा। लड़कियों के लिए अलग क्लासरूम तय होगी। इसके अतिरिक्त उन्हें इस्लामी वस्त्र में आना अनिवार्य होगा। यह तालिबान शिक्षा मंत्री अब्दुल बाकी हक्कानी का एक टीवी इंटरव्यू में कहना है।
1996 की तालिबान से कुछ बदलाव इस बार तो रहा है तब तो महिलाओं को शिक्षा और अन्य किसी भी सामाजिक सरोकार से शामिल होने पर पूर्ण पाबंदी थी। वहां उस पर कुछ परिवर्तन कर उसे ऐसा कर दिया गया है। हालांकि तालिबानी सरकार में तो महिलाओं को इस बार भी नहीं लिया है। हाल ही के एक तालिबानी नेता के बयान में यह था, की तालिबान कैबिनेट को महिलाओं की कोई आवश्यकता नहीं है। आतः महिलाओं के प्रति अपनी दृष्टि को तालिबानी स्पष्ट कर चुका है। संगीत और अन्य कला पर सख्त रोक की खबरें हैं। यह भी तय किया जाएगा कि लड़कियों को पढ़ाने का काम शिक्षिकाएं ही करें।
सरिया कानून के लिए शपथ दिलाई गई-
 
खबरों में यह भी है, कि तालिबानी झंडे को लिए 300 युवतियों को सरिया कानून की शपथ कराई गई वह बुर्के में उपस्थित हुई। यह काबुल यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। जिसमें नेताओं ने शरिया कानून पर व्याख्यान दी
वहीं छात्रों ने अपने भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त की है। जहां सरकार ने सभी छात्रों की एक साथ चल रही शिक्षा को गलत ठहरा दिया है। इसमें छात्र आने वाली शिक्षा पद्धति और शिक्षा संदेश पर भी चिंतित होंगे। आखिर वह शिक्षा में क्या ग्रहण करेंगे। शिक्षा मंत्री का कहना है, कि वह 20 वर्ष तो पीछे नहीं जाएंगे मगर जो है, उसमें देश को हम ठीक सुधार में लाएंगे।
इन सब में तालिबान ने छात्रों को यह कहकर भी आकर्षण में लाने का प्रयत्न किया कि वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का कार्यक्रम भी प्रारंभ कर रहे हैं। किंतु तालिबान विचारधारा में अपने छात्रों को विदेश भेजने में यह ढूंढ रहे होंगे, कि शिक्षा किन देशों में सरिया पर आधारित है। किन देशों की शिक्षा शरिया कानून का उल्लंघन करना नहीं सिखाती, वहीं वे छात्रों को अध्ययन के लिए अनुमति देंगे ऐसा संभव है।
तालिबान आम नागरिकों का संघर्ष जारी-
 
तालिबान के अफगान को अधिकार मिले रहने के पश्चात से ही महिलाओं ने मोर्चा छोड़ा नहीं है, यह भी दृश्य में है, कि कई शहरों में महिलाओं ने तालिबान के खिलाफ मोर्चे को जारी रखा है। यह भी खबरों में है, कि उन पर उत्पीड़न कर बर्बरता से उनके प्रदर्शन को दमन करने में तालिबान पुरजोर कोशिश से लगा है।
दूसरी और अफगान भूख से भी तड़प रहा है। कहीं घर का सामान तक सड़कों पर उतार कर बेचने का सिलसिला दृश्य में आया है। लोग परिवार का पेट पालने के लिए घर का सामान बेच रहे हैं। उनका कहना है कि बैंकों में जमा पूंजी प्राप्त नहीं हो पा रही है। एटीएम में पैसों की सुविधा नहीं रही है, ऐसे में वह क्या खाएं, और सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था इतनी चरमरा गई गई है, कि संघर्ष के दौर में काम धंधा और कमाई की राह का पतन हो चुका है। वह लोग सड़कों पर अपना घर का एक-एक सामान बेचने को बैठे हैं।
यूएन तालिबान पर-
यूएन ने तालिबान पर टिप्पणी की, कि वह मानव अधिकार की रक्षा नहीं करता है। वह छात्राओं को घरों में रखा जाए ऐसी व्यवस्था की पूर्ण रूप से तैयारी कर रहा है। ऐसा गठजोड़ कर रहा है, कि युवतियों को कैद कर दिया जाए। वहीं यह भी कहा गया, कि तालिबान पुराने अफगान सैनिकों को ढूंढ कर हत्या कर रहा है, इस पर तालिबान को संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकार के नियमों के बाहर कदम रखने वाला दर्शाया और उपरोक्त टिप्पणी दी।
वही यूएन ने कहा कि इस वर्ष अफगान की इस आपात स्थिति में उन्हें $600000000 की आवश्यकता होगी दुनिया भर के दानदाताओं से इस पर अपील भी की है, किंतु यह बेहद जटिल समस्या है, लोकतंत्र सरकार को समाप्त करने वाले तालिबान को कई राष्ट्र सहयोग देने को तैयार नहीं है। किंतु विषय अफगान कि भूखे जनमानस का है, यही यूएन की चिंता है। सभी राष्ट्र विश्व के बड़े दानदाता तालिबान को मौका नहीं देना चाहते हैं, हां वे अफगान के आम जनमानस की भूख को जरूर मिटाना चाहते हैं।

रविवार, 12 सितंबर 2021

उत्तराखंड विधायक प्रीतम सिंह पंवार | उत्तराखंड राजनीति

 उत्तराखंड समाचार-

 किसानआंदोलन के चलते उत्तराखंड में भी आने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के विरोध में प्रदर्शनकारी किसानों ने राज्य में भी भाजपा सरकार के विरोध में आवाज ऊंची कर दी है। यह स्वर मुजफ्फरनगर में हाल ही में आयोजित संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायत में देखने को मिले।

उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी-

वहीं नई दिल्ली से उत्तराखंड सहित अन्य पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए गठित टीमों को घोषित कर दिया गया है। उत्तराखंड की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी जी को सौंपी गई है। वह उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी होंगे।

उत्तराखंड राजनीति में विधायक प्रीतम सिंह पंवार-

 उत्तराखंड की राजनीति में श्री प्रीतम सिंह पंवार वर्तमान धनोल्टी के निर्दलीय विधायक भाजपा में शामिल होकर दिल्ली के एक कार्यक्रम में उन्हें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई। पंवार ने भाजपा को राज्य के श्रेष्ठ पार्टी बताया। विधायक प्रीतम सिंह पंवार की राजनीतिक क्षमता का अनुमान इस प्रकार लगाया जा सकता है, कि वे 2017 विधानसभा चुनाव में तब जीत दर्ज कीए हैं, जब जिले में कुल 6 विधानसभा सीटों में से 5 पर भाजपा ने अपना तीव्र मोदी लहर से वर्चस्व स्थापित किया।

किंतु मोदी लहर के चलते भी धनोल्टी से निर्दलीय प्रत्याशी रहे श्री प्रीतम सिंह पंवार ने इस सीट पर जीत दर्ज की, और विपक्षी प्रतिद्वंदी रहे पूर्व राज्य मंत्री नारायण सिंह राणा जी को हराकर अपना परिचय दिया।

प्रीतम सिंह पंवार के राजनीतिक कैरियर के विषय में जाने तो 2002 में उत्तराखंड राज्य निर्माण के पश्चात वे यमुनोत्री से उत्तराखंड क्रांति दल पार्टी से विधायक रहे। तो 2007  तक वे इस सीट पर चुनाव हार गए। 2012 में उन्होने चुनाव में जीत हासिल की, किंतु अब की बार निर्दलीय विधायक रहे, और कांग्रेस की सरकार में वह बतौर कैबिनेट मंत्री भी रहे। श्री प्रीतम सिंह पंवार 2017 में अब तक की अपनी विधानसभा सीट रही यमुनोत्री को छोड़कर धनोल्टी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में रहे, और जीत दर्ज की।
यही कारण है कि भाजपा भी उनके अपने पाले में आ जाने के पश्चात राज्य में उनके चलते अपना हित साधने की निगाह रखती है।
श्री प्रीतम सिंह पंवार को अपनी सामर्थ्य और क्षमता का प्रदर्शन के लिए एक फलीभूत पार्टी की आवश्यकता थी, वह भाजपा ने उन्हें अपने पाले में लाकर पूरी कर दी।

शनिवार, 11 सितंबर 2021

अफगान घटनाचक्र latest | afganistan crisis | 11 sep 2021

 अफगान घटनाक्रम आज तक

हाल ही की खबर है, कि पाकिस्तान एक वर्चुअल मीटिंग में अफगानिस्तान की हाली स्थितियों पर बैठक करेगा। जिसने अफगान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री उपस्थित होंगे। जिन देशों के विदेश मंत्रियों ने इस बैठक में उपस्थित होना है, चीन, ईरान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान हैं। इस बैठक में अफगान की ताजा स्थिति और आने वाले समय में चुनौतियों और उससे उबरने के लिए समाधान पर चर्चा होगी।


वही 15 अगस्त को काबुल को कब्जा लेने के बाद तालिबानियों ने अंतरिम सरकार घोषित की, 33 सदस्यों की कैबिनेट बनाई गई। वहीं पंजशीर के संघर्ष के दौरान अफगान पूर्व उपराष्ट्रपति अम्रुल्लाह सालेह के भाई को पकड़ लिया गया था। खबर है कि उनकी हत्या कर दी गई। यह खबर भी अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर रही। वहीं यह भी खबर है, कि अफगान पूर्व उपराष्ट्रपति अम्रुल्लाह साले ने प्लायन कर लिया है, और वह तजाकिस्तान पहुंच चुके हैं। किंतु इस खबर को झूठलाया भी जा रहा है। कि उन्होंने देश छोड़ दिया है।


वहीं दूसरी ओर अफगान से प्लायन करने वालों में अधिकतर संख्या महिलाओं की देखी जा रही है। जो सफल हो सके हैं, वह अफगान कि हालिया स्थिति पर अपने निर्णय को ठीक ही कहेंगे। एक महिला ने कहा कि तालिबान राज में वह 20 वर्ष पीछे हो गई है, उनकी पहचान अब बुर्के में छिप जाएगी। इस तथ्य को सत्य साबित कर रहा तालिबान के प्रवक्ता सैयद जैखराउल्लाहा हाशिम ने कहा कि महिलाएं मंत्री पद नहीं संभाल सकती हैं। काबुल में जो महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं उनकी आवाज सारे अफगान की महिलाओं की आवाज नहीं है। कैबिनेट को महिलाओं की जरूरत नहीं है।

अफगान पर भारत-

यूएन में भारतीय राजदूत पीएस तिरुमूर्ति ने बयान दिया कि तालिबान को यह सुनिश्चित करना है, कि उसकी जमीन को आतंकवाद के प्रसार के लिए प्रयोग न किया जाए। पाक में पल रहे आतंकी संगठन लश्कर और जैश अफगान की जमीन को आतंक के प्रसार के लिए प्रयोग में ना ले सकें। ठीक यही बयान भारत में एनएसए चीफ अजीत डोभाल जी ने भी दिया की अफगान की  जमीन का प्रयोग आतंक प्रसार के लिए हो सकता है।

वहीं तालिबान का पुनः उजागर होना सत्ता में होना पहले से ही भारत के लिए चिंता का विषय है। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने ऑस्ट्रेलिया शिक्षा मंत्री से हाल ही में की वार्ता में कहा कि तालिबान का उदय भारत के लिए शिक्षा में चिंता का सबसे बड़ा विषय है।

यूएनडीपी

इन सभी बयानो से इतर यदि संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे (यूएनडीपी) की माने तो अफगानिस्तान संकट में है। और वह गरीबी की तीव्र चोटी पर खड़ा है। यदि अर्थव्यवस्था को सुधारने  में ध्यान ना दिया जाए, तो तय है कि अफगान अगले साल के मध्य तक गरीबी दर में 98 फीसद हासिल कर लेगा। तालिबान के कब्जे से पहले तक 20 वर्षों में जो भी अर्थव्यवस्था का ढांचा तैयार हो सका था। वह बेहतर स्थिति में नहीं है। वह डगमगा गया है, और आगे के लिए यह अफगानिस्तान में सबसे बड़ी भीतरी चुनौती है।

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी | Uttrakhand new Governer | Lt. Gen. Gurmeet singh ji

 उत्तराखंड के नए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह-

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी उत्तराखंड राज्य के नए राज्यपाल का पद ग्रहण करेंगे। यह तकरीबन तय है, कि आने वाले तारीख 15 सितंबर को वे शपथ लेंगे। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान उत्तराखंड के नए राज्यपाल को उनके पद ग्रहण और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।

उत्तराखंड कि अब तक रह चुके राज्यपाल-

उत्तराखंड के राज्यपालों का आज तक का क्रम जाने तो उत्तराखंड के पहले राज्यपाल 9 नवंबर 2000 को सुरजीत बरनाला जी हुए। जो 7 जनवरी 2003 तक इस पद पर रहे इन के पश्चात सुदर्शन अग्रवाल जी 8 जनवरी 2003 से 28 अक्टूबर 2007 तक तत्पश्चात श्री बीएल जोशी जी  29 अक्टूबर 2007 से 5 अगस्त 2009 तक पश्चात मार्गेट अल्वा जी 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तत्पश्चात अजीत कुरैशी जी 15 मई 2012 से 7 जनवरी 2015 तक पश्चात कृष्णकांत पॉल जी 8 जनवरी 2015 से 25 अगस्त 2018 तक पश्चात बेबी रानी मौर्य जी 26 अगस्त 2018 से 8 सितंबर 2021 तक पद पर रहे।

बेबी रानी मौर्य जी-

उत्तराखंड राज्यपाल पद पर अब तक दो महिला राज्यपाल हुई है। जिनमें बेबी रानी मौर्य जी दूसरी हैं, बेबी रानी मौर्य जी  आगरा से हैं। वे आगरा की महापौर रह चुकी है खबरों में यह भी है कि हो सकता है कि बेबी रानी मौर्य जी को उत्तर प्रदेश आने वाले विधानसभा चुनाव में सक्रिय राजनीति में उतारा जाए। उनका आगरा में महापौर के दौर से ही अच्छा प्रभाव है। बीते 26 अगस्त को उनके उत्तराखंड राज्यपाल के पद पर 3 साल पूरे हुए। इसी दरमियान उनका इस्तीफा जिसे राष्ट्रपति जी द्वारा स्वीकार कर लिया गया। पहले खबरों नहीं होता कि हिमाचल राज्य के राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आलेंकर जी को उत्तराखंड राज्य की नए राज्यपाल के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी जाएगी किंतु अब उत्तराखंड के नए राज्यपाल के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी के नाम को स्पष्ट कर दिया गया है

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी-

लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी टीवी डिबेट में डिफेंस एक्सपर्ट के तौर पर दिखते रहे हैं वे डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, कॉर्प्स कमांडर (श्रीनगर) सेना में अपनी सेवा के दौरान रहे। लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी को चीन मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। 2016 में सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए हैं। वे उत्तराखंड के नए राज्यपाल होंगे।

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

शहीद मनदीप सिंह नेगी | भारतीय सेना शौर्य और बलिदान | विशेष लेख

भावपूर्ण श्रद्धांजलि
 शहीद मनदीप सिंह नेगी
 गांव बुरासी, ब्लॉक- पाबौ, 
पौड़ गढ़वाल उत्तराखंड

2017 में गढ़वाल राइफल सेना में भर्ती भारत के लाल जवान मनदीप सिंह नेगी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

   यह तो मालूम है। कि मृत्यु का समय हममें कोई तय नहीं करता, ना कोई जानता है। यह अज्ञात है। किंतु जब कारवां आसमानी हो, जीवन लय में हो, तो मृत्यु के विषय में कोई क्यों सोचे।

   जिसके हर कदम राष्ट्र को समर्पित हैं, जीत राष्ट्र को समर्पित है, जुबान जोशीले नारों से राष्ट्र को बयां करती हो, और यह  भक्ति भाव जब उसे सरहद पर मजबूती से खड़ा करती है, तब उनके शरीर पर आई एक कोई खरोंच केवल उसकी ना रहे। उसकी थकान, उसकी भूख, उसकी प्यास राष्ट्र के 130 करोड़ लोगों में बंट  जाए।

   उसकी राष्ट्रभक्ति उसका समर्पण का भाव उसे इतनी शक्ति दे कि उसका साहस कभी फीका ना पड़े। इस राष्ट्र के संपूर्ण यश में उसका योगदान अगणनीय है, वह उस यश की किरणों का स्रोत है। वह इस राष्ट्र का सूरज है।

   उसकी राष्ट्रभक्ति का भाव तो पूरी दुनिया में पूजनीय है। वह भक्ति इतनी प्रबल है, कि प्राणों का संकट भी उसे अडिग रखे है।

   वह हर आंसू जो आज फूट पड़ा है, हर चेहरा जो मायूस है। मन निराश है, यह क्या है, यह वह तपस्या है, यह उस इंतजार की तपस्या है, वह आंसू, वह मायूसी, वह निराशा बलिदान को बयां कर रही है।
और इस तपस्या से हांसिले जिंदगी क्या है, जो है वह इस दुनिया के सुखों से ऊपर है। और इस संसार के किसी अन्य तप का फल नहीं है।

   यह दुनिया का सबसे बड़ा शोक है। मां भारती की रक्षा हमारा धर्म है। और यह धर्म सदियों से निभाया जा रहा है। बस वह सदैव इस धर्म को निभाते बलिदान हुए ने जो छोड़ा है, यह दुख, आंसू, निराशा, इन्हें सहने की शक्ति दे।

   भारत का तिरंगा सबसे ऊंचा लहरा रहा है यह गगन चूम रहा है। यह उस बलिदान का परिणाम है, वह हर पीढ़ी का बलिदान समेटे हैं, वह युगों तक लहराता रहेगा, और हमारी जुबान पर युगों तक उनके बलिदान के गीत रहेंगे।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

Boxer Jaideep Rawat | Step which made him

Boxer Jaideep Rawat

मुझे नहीं मालूम था, कि हमारे यहां से भी कोई लड़का मुक्केबाजी में खुद को आंकता होगा। अपना भविष्य एक मुक्केबाज होने में देखता होगा। तब जब वह इस खेल को जिसमें अपने करियर बनाने के लिए पहली दफा चयन प्रक्रिया में खड़ा था, मुझे तब यह मालूम नहीं था कि वह एक दिन इस खेल से दुनिया के सामने एक चेहरा प्रस्तुत होगा।

   हम क्रिकेट खेल से चयन की आश में थे, और आप भी। यदि आप जयदीप के निवास क्षेत्र से होते तो आप भी क्रिकेट खेल में ही स्वयं को चयनित होने की लाइन में रखते। किंतु जयदीप ने ऐसा नहीं किया, उसने मुक्केबाजी को चुना। मुझे नहीं मालूम यह कैसे हुआ। एक पहाड़ी लड़का जो हम सब के साथ पल-बड़ा हो रहा हो, एक परिवेश, एक विद्यालय, एक से लोग, किंतु कैरियर के संबंध में जब खेल जहन में आया तो जिस खेल को चुना वह मुक्केबाजी। जयदीप जिस क्षेत्र से आते हैं, मैं निश्चित हूं यह कहने में, जयदीप ने यह खेल पहले कभी नहीं खेला था। हां टेलीविजन सुविधाओं के चलते देखा जरूर होगा।

   दरअसल बात है 2014-15 की बैच की भर्ती के लिए महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज देहरादून में आठवीं और नौवीं कक्षा में छात्रों के लिए चयन प्रक्रिया घोषित की जो प्रतिवर्ष होता रहा है। आज भी निरंतर है। मैं उस दिन को उसी दिन में जा कर लिख रहा हूं। आप उस दिन में होकर के पढ़ें।

पौड़ी कंडोलिया का मैदान है। बहुत धूप है। तकरीबन सौ लड़के तो होगें जो महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में भर्ती के इच्छुक हैं। सर्वाधिक बेहतरी जिन छात्रों मैं है, वह मुख्य बाजार पौड़ी के छात्र हैं। किंतु उनमें भी किसी का खेल चयन मुक्केबाजी तो नहीं है।

   सर्वाधिक छात्रों ने फुटबॉल की ओर अपना रुझान दर्शाया, और दूसरे नंबर पर जिस खेल के लिए चयनित होने की इच्छा कंडोलिया मैदान में छात्रों में रही, वह क्रिकेट है।
खेल चयन में वॉलीबॉल, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, एथलीट का भी विकल्प है। किंतु विशेष संख्या में छात्रों की वहां उन खेलों में रुचि नहीं है। और आप को सबसे रोचक बात मैं बताऊं, फुटबॉल जिसमें सर्वाधिक छात्रों ने चयन होने में रुचि दिखाई, एक भी खिलाड़ी चयनित नहीं हुआ। जबकि उनमें भी अच्छे प्लेयर हैं।
खैर यह वृत्तान्त जयदीप रावत को केंद्र में रख कर लिख रहा हूं। उस दिन हुई खेल चयन के लिए प्रक्रियाओं में सभी ने अपना खेल दिखाया इन सब में दो लड़के अपना खेल दिखाने के बाद आते हैं, उनमें से एक जयदीप है, दोनों बताते हैं कि हमारा चयन हो गया है, और हमें देहरादून बुलाया है, एक और चयन प्रक्रिया जो हमारी वहां होनी है, उन दोनों का खेल बॉक्सिंग है।
क्योंकि जयदीप हमारे क्षेत्र से है, तो स्वाभाविक तौर से हम दोनों एक दूसरे का हाल जानने को रुके। मुझे आज भी याद है, उसने कहा “मुझे तो यह स्टेप करवाया है”। वह साथ खड़े दूसरे मुक्केबाजी में चयनित हो चुके लड़के को बॉक्सिंग से संबंधित वही फुटवर्क करके दिखाता है, जो उसे चयन के दौरान करना पड़ा। जहां तक मेरी जानकारी में है, बॉक्सिंग खेल में कंडोलिया में दो ही छात्रों ने रुचि दिखाई थी, और वे दोनों चयनित हुए।आज वह समय उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हो रहा है। वह अपनी लगन और मेहनत से उस खेल में महारथी हो
रहा है। पूरे भारत देश का मान बढ़ाता है, और दुनिया में बॉक्सिंग का एक चेहरा हो गया है।
मुझे लगा कि इससे स्वर्णिम अवसर क्या होगा, इस लेख को सार्वजनिक होने का जब, वह पल जब जयदीप ने मुक्केबाजी की ओर पहला कदम बढ़ाया था, फल दे रहा हो।

   यह केवल जयदीप की सफलता का बखान नहीं है, बल्कि यह वे शब्द हैं, जो उन्हें जो इन शब्दों पर विचरण कर रहे हैं, यह बयां करेंगे कि कैसे एक कदम जीवन को किस ओर ले जाता है, वह कौन सा कदम है।

   सर्वाधिक महत्वपूर्ण जयदीप भारतीय सेना के जवान हैं। राष्ट्र के प्रति समर्पण के भाव का इससे महान और क्या परिचय हो सकता है। और अपनी मेहनत और लगन से राष्ट्र का गौरव हो जाना एक अलग अनुभूति है। यदि जयदीप यह मौका पाए हैं, यह सौभाग्य है।

   मुझे याद है, घर लौटते वक्त जयदीप के पिताजी मेरे पिताजी से इस विषय पर कह रहे थे कि “वह स्पोर्ट्स कॉलेज निकल तो गया है, किंतु खर्चा बहुत हुआ है, वहां हॉस्टल में होने रहने खाने के लिए वह हर सामान को जुटा रहे हैं।
यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है, जो जयदीप को इस दिशा में लाया है। जयदीप के पिता का वह साहस अपने पुत्र पर पूर्ण विश्वास और पूंजी का अधिकांश भाग उसकी बेहतरी के लिए लगाना, यह आज के युग में विरला संयोग होगा कि पुत्र उस विश्वास को निभा सके। यह मेहनत और भाग्य का बेहतरीन संयोग है।
   मूल निवास पैठाणी, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के जयदीप रावत अब लोगों में चैंपियन मुक्केबाज जयदीप रावत हो चुके हैं। मध्यम वर्ग का परिवार जिसमें जयदीप अपने पिताजी की उनके पुत्र के भविष्य के प्रति एक अलग सोच का नतीजा है, कि वह आज मुक्केबाज जयदीप हुए हैं। उनकी मेहनत के समांतर इसी लय में उन्हें सफलताएं मिलती रहें, भविष्य के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।

   यह लेख जयदीप का जयघोष मात्र नहीं है, बल्कि यह लेख पाठकों में भी अपना अगला कदम तय करने की प्रेरणा बन सकेगा।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏