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Showing posts from October, 2022

जब पहली बार- EIC Vs भारत की केंद्रीय शक्ति

EIC Vs भारत की केंद्रीय शक्ति जॉब चार्नाक वह व्यक्ति था, जो औरंगजेब से सुलह करता है। वह अंग्रेजों का प्रतिनिधि था। 1680 में औरंगजेब ने जजिया कर लगाया था। वह कर जिसमें गैर मुस्लिमों पर 1.5% कर लगाया गया था। इस कर कि प्रथा में भारत में हिंदू समुदाय के अलावा यूरोपियों के प्रवेश से भारत में एक अन्य समुदाय अथवा ईसाई समुदाय को भी परेशान किया। इसी समय में बंगाल में जहां अंग्रेजों ने भी 1680 तक हुगली, कासिम बाजार आदि क्षेत्रों में अपनी कंपनियां स्थापित कर ली थी। वह अपने आप के कार्यों को सुरक्षित होने के लिए के लिए किले बना देते थे, और यही उनका बंगाल में भी अगला प्रयास रहा होगा। जैसे उन्होंने मद्रास में किया था, या जैसा अन्य यूरोपियों ने जैसे डचों ने पुलिकट में गोलड्रिया किला बनाया हुआ था। बंगाल में कंपनी के द्वारा कई स्थानों पर मुगल सैनिकों से झड़प की गई, उनके ठिकानों पर लूटपाट की गई, जो अब तक केंद्रीय मुगल बादशाह से सीधे किसी यूरोपीय व्यापारिक संस्था का भारत में भिड़ना था। जिसने अंग्रेजो की ओर से इस झड़प का मुख्य प्रतिनिधित्व किया, उसका नाम जॉन चाइल्ड आता है।  औरंगजेब ने 1686 म...

भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1

भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1 भारतीय संविधान का अनुच्छेद -1 बताता है- “India that is Bharat shall be a union of state.” अर्थात “इंडिया जो कि भारत राज्यों का संघ होगा” भारतीय संविधान का पहला अनुच्छेद मूल रूप से दो बातें स्पष्ट करता है। एक राष्ट्र का नाम और दूसरा राष्ट्र का स्वरूप। राष्ट्र के नाम के रूप में इंडिया और भारत कहा गया है। यह ध्यान रखने योग्य विषय है, कि इंडिया का अर्थ भारत नहीं है। अर्थात इंडिया अंग्रेजी शब्द और भारत उसका हिंदी अनुवाद हो ऐसा नहीं है, बल्कि इंडिया और भारत दो अलग-अलग नाम है। इंडिया का हिंदी और अंग्रेजी दोनों इंडिया ही है। और भारत का हिंदी और अंग्रेजी दोनों भारत ही है। अर्थात इस अनुच्छेद के माध्यम से हम संविधान में राष्ट्र के लोगों द्वारा अपनाए गए दो नाम इंडिया और भारत जानते हैं। साथ ही यह अनुच्छेद राष्ट्र के स्वरूप को भी दर्शाता है, कि भारत राज्यों का संघ होगा। अर्थात भारत राज्यों का एक संघ है, जहां संघ द्वारा राज्यों को शक्तियां दी गई है। इसे आप विशिष्टता से पढ़ें और ध्यान में रखें कि भारत में संघ द्वारा राज्यों को शक्तियां दी गई। भारत विनाशी राज्यों का अवि...

Union of state & Federation of state में अंतर?

भारत के संविधान का मूल लेखन अनुच्छेद -1 में “राज्यों के संघ” को अंग्रेजी में “Union of state” लिखता है। “Federation of state” नहीं। जबकि अमेरिका दुनिया का सबसे पहला लिखित संविधान अमेरिका को “Federation of state” बताता है। “फेडरेशन” और “यूनियन” इन दोनों में जिन का हिंदी अनुवाद “संघ” ही है में अंतर भारत और अमेरिका के संघ में अंतर से स्पष्ट किया जा सकता है। अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद 13 राज्यों ने मिलकर एक संघ का निर्माण किया। यहां राज्यों ने संघ का निर्माण किया है। अर्थात 13 राज्य आपस में संगठित हुए और अपनी कुछ शक्तियां सौंपकर एक संघ का निर्माण किया जो अमेरिका हुआ। आप अमेरिका के राज्यों की स्वायत्ता से अनुमान कर सकते हैं, क्योंकि वहां पर दोहरी नागरिकता होती है, अर्थात हर राज्य की अलग नागरिकता होती है, और देश की नागरिकता तो होती ही है। साथ ही वहां हर राज्य अपने अपने झंडे रखता है, इत्यादि। अमेरिका संघ को शक्ति नहीं है, कि वह राज्यों का विनाश या पुनर्गठन कर सके। इसलिए अमेरिका को “अविनाशी राज्यो...

ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापार नहीं किया?

ईस्ट इंडिया कंपनी: VICTORIA MEMORIAL 1600 में महारानी एलिजाबेथ की आज्ञा पत्र के साथ अंग्रेजों का भारत आगमन होता है। इनकी आरंभ में जो नीती थी वह अब तक के यूरोपीय व्यापारियों की अपेक्षा कुछ अलग थी। अब तक पुर्तगाली और डचों का भारत में प्रवेश हो चुका था। पुर्तगालियों ने 1498 में ही भारत में प्रवेश कर लिया था और अपनी एक व्यापारी कंपनी “एस्तादो द इंडिया” के नाम से भारत से व्यापार के लिए स्थापित कर ली थी। वही डचों का भी 1595-96 में भारत में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में विशेष इंडोनेशिया में प्रवेश हुआ। डचों का हस्तक्षेप इंडोनेशिया के द्वीपों में आरंभ हो गया था। उन्होंने युद्ध नीति अपनाई और डचों ने पुर्तगालियों से इंडोनेशिया में 1602 में वाण्टम जीत लिया। उसके बाद 1605 में अम्बयाना, 1613 में जकार्ता, 1641 में मलक्का पर अधिकार किया। भारत में उन्होंने 1605 में मसूलीपट्टनम में अपनी कोठी बनाई जो आंध्रप्रदेश के तट पर था। डचों का भारत आगमन तो 1695-96 में ही हो गया था। लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी “Veerengde Oost Indische Compagnie” (VOC) या डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1602 में की थी। यह भी ...

भारत में समाजवाद | कांग्रेस vs भाजपा

भारत में समाजवाद समाजवाद किसी भी राष्ट्र का अपने नागरिकों के लिए अंतिम लक्ष्य है। जिसका तात्पर्य नागरिकों में समानता लाने से है। समाजवाद को आप इस आलेख [ समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद   ]  में समझ सकते हैं। मोटे तौर पर समाजवाद वंचितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का सिद्धांत है। भारत में समाजवाद की दिशा में कई कार्य आजादी के बाद से ही आरंभ किए गए जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जमींदार प्रथा के अंत के लिए कानून, भूमि सुधार कानून जिसमें जो जमीन के बड़े भाग जमीदारों ने अपने कब्जे में किए थे। वह बड़ी जमीन के भाग उनकी संपत्ति हो गई थी, जिसके चलते जो अन्य लोग थे, वे जमीदारों के यहां केवल मजदूर के रूप में कार्य करते थे और इससे बेगारी, मजदूरी और भीषण गरीबी, असमानता और अन्याय की संभावना बनी रहती थी।  आजादी के बाद सबसे पहले यही कार्य किया गया। उन जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई, और जमीदारी प्रथा का भी अंत कर दिया गया। यह समाजवादी विचार के अंतर्गत किया गया कार्य है। जहां संसाधन को समाज के हर व्यक्ति में बराबर बांट दिया गया और जमीदार वर्ग...

साम्यवाद का विचार | मार्क्सवाद

समाजवाद की चरमता साम्यवाद है। या ऐसा कह सकते हैं, कि समाजवाद के विचार को जब अधिक विकसित किया गया तो साम्यवाद विचार का जन्म हुआ, और जो कि मार्क्सवाद है। जब समाजवादी विचार लोकप्रिय होने लगा तो इस विचार को चरमता तक पहुंचाने के लिए साम्यवादी विचार का जन्म हुआ।  यदि ऐसा कहा जाए, कि जहां समाजवाद में समाज में संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण की बात की गई है, और व्यक्तिवाद का विरोध किया गया है। तो साम्यवाद कुछ अन्य मूल्यों को समाज के लोगों के लिए होने की पैरवी करता है। हालांकि साम्यवाद भी समाजवाद की भांति पूर्ण तो परिभाषित नहीं किया जा सकता। जैसे समाजवाद को पूंजीवाद के स्वरूप और परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार का हो सकता है और अलग-अलग ढंग से परिभाषित और प्रयोग किया गया है।  मार्क्स तथा एंगेल्स  द्वारा साम्यवाद विचार को जन्म दिया गया। “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र” जिसे वैज्ञानिक कम्यूनिज्म का मूल कहा जाता है। इसी में मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचार की विवेचना की गई है। इसे कॉल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था। जहां समाजवाद व्यक्तिवाद का विरोध ...

समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद

समाजवाद समाज में समानता के लक्ष्य का सिद्धांत है। इसे पूर्ण रूप से परिभाषित तो नहीं लेकिन समाजवाद मजदूर वर्ग को अपना आधार मानकर समाज में बराबरी के लिए एक संघर्ष का आंदोलन रहा है। क्योंकि समाजवाद मजदूर वर्ग को वंचित वर्ग मानता है। समाजवाद का अंतिम लक्ष्य समाज को वर्ग रहित करना है। इसलिए मार्क्स ने कहा “दुनिया के मजदूर एक हो जाओ” समाजवाद की राजनीतिक विचारधारा 19वीं सदी में यूरोप के देशों में विशेषकर इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में लोकप्रिय होने लगी। समाजवाद दरअसल वहां के समाज और उन देशों में औद्योगिकरण की तेज विकास गति का परिणाम था। पूंजीपतियों के जन्म ने समाज में अन्य वर्गों को बहुत नीचे गिरा दिया और उनमें समाजवाद का विचार लोकप्रिय हो गया। समाज जो पूर्व से व्यक्तिवाद पर चल रहा था। अर्थात हर व्यक्ति अपने उत्थान के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्राप्त कर सकता है, और आगे बढ़ता है। किंतु औद्योगिकीकरण के बाद यह बड़े अंतर का कारण हो गया। समाज में एक वर्ग पूंजीपतियों का बहुत ऊंचा तैयार हो गया तथा एक अन्य वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाया या वंचित वर्ग।  समाजवादियों ने मजदूर वर्ग को वं...

लोकतांत्रिक समाजवाद | भारत में समाजवाद का स्वरूप

समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद वह विचार है। जिसमें समाजवादी विचार का अनुसरण तो है ही, किंतु साथ ही पूंजीवादी विचार को भी स्थान प्राप्त है। अर्थात समाज में धनवान वर्ग को भी स्थान दिया गया है। जबकि समाजवाद इसका विरोध करता है। उसका अंतिम लक्ष्य समाज को वर्ग रहित बनाना है जहां सभी बराबर हो। लेकिन भारत में समाजवाद का स्वरूप यही है। जहां पूंजीपतियों को उन्नति का अवसर प्राप्त है। और सरकार भी अपनी संस्थाओं को जिन पर उसका नियंत्रण है, आगे बढ़ाती है। और यह सरकार और पूंजीपतियों के प्रयास से और कार्यों में उनके सामन्जस्य से प्राप्त समाजवाद की धारणा पर विश्वास करता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा जिसे मिनी कॉन्स्टिट्यूशन कहा जाता है, समाजवाद शब्द जोड़ा गया था। भारत का समाजवाद सदैव विशेष स्वरुप को लिए रहा। जहां भारत में समाजवादी विचार के तहत वंचित वर्ग को महत्व दिया गया। वहीं पूंजीवादी वर्ग को भी उनकी उन्नति से वंचित नहीं किया गया। वंचित को बराबरी तक लाने के प्रयास आरंभ हुए किंतु यह पूंजीपतियों का विनाश कर ऐसा नहीं किया गया, बल्कि दोनों को स्वतंत्र र...

धैर्य की उपयोगिता Aug 1965 | Shantikunj Haridwar

   कोई भी काम करने में धैर्य की नितांत आवश्यकता है। जो धैर्यवान है, वह कर्म करने से पहले उसके शुभ अशुभ परिणाम पर विचार कर सकता है। उसको सफल बनाने के लिए मार्ग निर्धारित कर सकता है। अपने कर्म के सत्-असत एवं उपयोगिता-अनुपयोगिता पर सोच सकता है। इसके विपरीत जो अधैर्यवान है, आवेश अथवा उद्वेगपूर्ण है, वह ना तो कर्म की इन आवश्यक भूमिकाओं पर विचार कर सकता है और न दक्षता प्राप्त कर सकता है। वह तो अस्त-व्यस्त क्रियाकलाप की तरह एक निरर्थक श्रम ही होता है।     अधैर्य मनुष्य का बहुत बड़ा दुर्गुण है। अधीर व्यक्ति में अपेक्षित गंभीरता का अभाव ही रहता है, जिससे वह चपलता के कारण समाज में उपहास, उपेक्षा और निंदा का पात्र बनता है। अधिक व्यक्ति के मन बुद्धि स्थिर नहीं रहते। वह न किसी विषय में ठीक से सोच सकता है और ना कर्तव्य का निर्णय कर सकता है। अधैर्यवान व्यक्ति अदक्षता, अस्त-व्यस्तता, अनिर्णयात्मकता एवं अक्षमता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल होकर दुख भोगता है इसके विपरीत जो धैर्यवान है, वह जिस कार्य को पकड़ता है, उसे पूर्ण मनोयोग, विवेक, बुद्धि और समग्र शक्ति लगाकर पूरा किए बिना...

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2

इससे पूर्व  ( गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन part -1 ) में हम जान चुके हैं। अब आगे… इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला। कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है। शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ...

गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -1

चित्र में- शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा शांतिकुंज से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम याद आ जाता है। आपने इनका नाम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जो गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के सौजन्य से करवाई जाती है, के कारण जरूर सुना होगा। पूरे देश में इनकी शाखाएं और कई कार्यकर्ता होते हैं। और यह परीक्षा उन्हीं के द्वारा पूरे देश में संचालित होती है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा की किताब जो हर छात्र को विद्यालय स्तर तक और सभी अन्य पर होने वाली इस परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। विद्यालय स्तर से अन्य सभी स्तरों पर विजेताओं को प्रथम द्वितीय और तृतीय स्तर के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। उद्देश्य एक ही है, भारतीय प्राचीन संस्कृति के ज्ञान से नई पीढ़ी को अवगत करवाना। चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे प्रवेश के लिए एक द्वार शांतिकुंज एक आश्रम एक धर्मशाला जहां कई लोग निशुल्क रुकते हैं, हरिद्वार में यह धार्मिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में यहां इस आलेख से पता च...

भारत में पुर्तगाली | खंड -3

भारत में पुर्तगालियों ने अपनी कई कोठियां जो अधिकतर पश्चिम तट पर स्थापित की। जिनमें कोचीन से आरंभ कर गोवा, दमन, दीव, कन्नूर के क्षेत्र में थी। इससे पूर्व की घटनाएं हम खंड पुर्तगालियो का भारत आगमन | खंड 2 में जान चुके हैं।  दो अन्य पुर्तगाली गवर्नर जिनके नाम किन्ही कारणों से आते हैं। एक 1929 में पुर्तगाली गवर्नर बनकर भारत आए नीनो डी कुन्हा। जिसने 1530 में अपना मुख्यालय कोचीन से बदलकर गोवा कर दिया। और गोवा पुर्तगालियों का लंबे समय तक आजादी के बाद तक भी अड्डा बना रहा। 1535 में दीव और 1559 में दमन पर पुर्तगालियों ने कब्जा कर लिया। आप देखेंगे कि पुर्तगालियों ने सूरत की ओर अधिक आकर्षण नहीं दिखाया। जबकि बाद में हम जानेंगे, कि डच और ब्रिटिश भारत आते हैं। तो वह सूरत में अपनी कोठियों को स्थापित करते हैं। वहां से सूती वस्त्रों का व्यापार बहुत उन्नत स्थिति में होता था। यह लोग जब किसी स्थान पर कोठियां बनाते थे। कोठियां जो बंदरगाह पर होती थी। या समुद्र तटों पर किन्हीं स्थानों में यह बसने का प्रयास करते थे। जैसे मुंबई क्षेत्र बंदरगाह था ही नहीं। लेकिन अंग्रेजों ने वहां उस क्षेत्र को बसाया। व...

पुर्तगालियो का भारत आगमन | खंड 2

वास्कोडिगामा मालाबार तट पर कलीकट नामक स्थान पर पहुंचता है। जिस का वर्तमान नाम कोझीकोड है। यहां का शासक जमोरिन या सामुरी था। इससे पूर्व की घटनाएं हम खंड -1 यूरोपियों की भारत खोज और पुर्तगाली अभियान -1 में जान चुके हैं।  जमोरिन वास्कोडिगामा का स्वागत करता है। इसलिए भी कि अब तक भारत में व्यापार पर अरब के लोगों का एकाधिकार था। व्यापार में एकाधिकार हो, तो भारत के लोगों को लाभ कम होता था। क्योंकि माल जिसे बेचना है, यदि कोई अन्य विकल्प ही ना हो, तो माल खरीदने वाला अपनी ही मनमानी से मोलभाव करता है। इसलिए पुर्तगाली व्यापारी जमोरिन को एक विकल्प के रूप में दिखा। जिससे अरबों और पुर्तगालियों में माल खरीदने की प्रतिस्पर्धा होगी और इससे भारत को लाभ होगा। वास्कोडिगामा साठ गुना लाभ के साथ पुर्तगाल लौटता है। और उसने वहां के अन्य व्यापारियों को भी प्रेरित किया। 1500 में एक अन्य जहाजी अभियान पेट्रो अल्वारेज के नेतृत्व में भारत आया। यह तेरह जहाजों का बेड़ा था। अब पुर्तगालियों का उद्देश्य यह भी था। कि अरब के लोगों जो अरब सागर, हिंद महासागर में अपना वर्चस्व बनाए हैं। इनका वर्चस्व तोड़ा जाए। इसलिए वह बड़...

2 oct | आजादी में गांधीजी | आज अप्रासंगिक क्यों?

गांधीजी की राजनीतिक सक्रियता के चलते हम कभी उनके व्यक्तिगत जीवन की ओर की दृष्टि नहीं डालते हैं। और यह आज भी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय नेताओं का व्यक्तिगत जीवन जैसे शून्य हो गया हो। गांधीजी ने भारत में किसी व्यक्ति की लोकप्रियता का सबसे ऊंचा आयाम उस जमाने में हासिल किया। तब कोई इंटरनेट का जमाना तो नहीं था। घर घर जाकर आवाज पहुंचाई जाती थी। उस जमाने में गांधी जी भारत के हर व्यक्ति की समूची शक्ति का प्रतीक बन गये। भारत में लोकप्रियता का वास्तविक अर्थ गांधीजी ने दुनिया को बताया जहां प्रेम करने वाले भी भारतीय थे,और प्रेम पाने वाला भी भारतीय, यही नहीं पूरी दुनिया जिनका सम्मान करती थी। जिनकी एक आवाज पर करोड़ों भरतीय ने सड़कों पर लाठियां खाना स्वीकार किया। ऐसा समर्थन युक्त आवाज का नेता अब तक नहीं जन्मा था। अंग्रेज तो हिंसा चाहते थे, वह चाहते थे, कि भारत के लोग की तरफ से यह हो, और उसके बाद वे दमन का क्रूर चक्र चलाएं। जिसमें दुनिया को दर्शाया जाए की अपराधियों को सजा दी गई है, और भारतीय आम लोगों को दमन और सजा के एक भयानक चक्र की मिसाल देकर आंदोलन से दूर रखा जाए। जिससे भ...

यूरोपियों की भारत खोज और पुर्तगाली अभियान -1

यूरोपियों को भारत के लिए किसी वैक्लपिक राह की तलाश थी। वे प्रयास कर रहे थे। पूर्व तक भारत से यूरोप तक के लिए स्थल और समुद्र दोनों मार्ग थे। किंतु मध्यकालीन इतिहास में हम जानते हैं, कि कैसे पूर्वी रोमन साम्राज्य के साथ ही व्यापार में एशिया और यूरोप के समीकरण भी बदल जाते हैं।  अब तक भारत से यूरोप का स्थल मार्ग अफगान से ईरान, इराक और तुर्की से होता हुआ यूरोप के देशों में जाता था। तुर्की जहां समाप्त होता और यूरोप से जुड़ता है, यहां पर काला सागर और मरमरा सागर को एक जलसंधि बासपोरस जोड़ती है। इस जलसंधी से यूरोप आरंभ हो जाता है। जहां कुस्तुनतुनिया आधुनिक नाम इस्तांबुल से यूरोप आरंभ होता है। जबकि यह तुर्की का ही शहर है। जब यह पूर्वी रोमन साम्राज्य का भाग था, इसका नाम कैंन्सटैनटिनोपल था। यही पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी थी।  तुर्की में उभरे उस्मानिया साम्राज्य ने 1453 में पूर्वी रोमन साम्राज्य का अंत कर दिया। और कुस्तुनतुनिया पर उनका अधिकार हो गया। अरब के लोग इसे कुस्तुनतुनिया नाम से कहते थे। उस्मानिया साम्राज्य के नियंत्रण से अब इस मार्ग से यूरोप जाने वाले माल पर कर अधिक लगा...