Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2021

Metaverse explain in hindi आसान भाषा में समझे | facebook metaverse explanation

    फेसबुक ने नाम बदल लिया है। यह Meta हो गया है। फेसबुक ने अपना और उसकी अन्य सभी कंपनियों को मिलाकर एक पेरेंट ब्रेंड को जन्म दिया है। इस से तात्पर्य है कि, अब फेसबुक, व्हाट्सएप और इनस्टाग्राम आदि  सभी कंपनियां Meta के अंतर्गत आती हैं। कुछ ऐसे जैसे ब्रिटिश क्रॉउन कई औपनिवेशिक राष्ट्रों पर नियंत्रण रखता था।    किंतु सबसे अहम चर्चा का विषय है, कि नया नाम क्यों। नाम Meta हो गया है, इस नाम बदलने में और नाम Meta हो जाने मे Metaverse चर्चा में आ गया है। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकवर्ग का कहना है, कि इंटरनेट का भविष्य Metaverse है, आज या कल यह सत्य होने वाला है।   अब यह जानना आवश्यक है, कि Metaverse क्या है, Metaverse में क्या कुछ ला पाना संभव है, इस पर साफ-साफ कह पाना तो फिलहाल संभव नहीं, किंतु यह वास्तविक दुनिया के समानांतर चलने वाली दुनिया होगी। यूं कहें कि आपके सामने साक्षात वह माहौल तैयार हो जाना, जहां आप होना चाहते हैं।     यूं तो यह शब्द Metaverse सर्वप्रथम एक नोबल Snow crash में छपा है, 1992 में नील स्टीफेनसन नाम के लेखक ने इस पुस्तक को प्र...

काला पानी| | देवानंद फिल्म 1958 | Kala Pani movie 1958 | Dev Anand movie

Kala Pani डायरेक्टर-    राज खोसला प्रोड्यूसर-    देवानंद गीत-    आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी कलाकार-    देवानंद, मधुबाला, नलिनी, सप्रु, नासिर हुसैन, Johnnie Walker, मुमताज बेगम, जयवत साहू, Samson, Ravikant   1958 की फिल्म काला पानी एक आपराधिक मामले की दास्तां है। माला एक तवायफ का नाम है।  नाच- गाने के शौकीन और विलासी जीवन यापन करने वाले लोग कोठे पर शिरकत देते हैं। माला का कत्ल हुए 15 साल बीत चुके हैं, और अदालत के द्वारा कातिल शंकरलाल नाम के व्यक्ति को ठहराया गया है। यह फिल्म जिस मुख्य पात्र के ऊपर बनी है। वह शंकरलाल का पुत्र है, जिसका नाम करण है। करण 15 वर्ष तक इस झूठ के साथ जीता है, कि उसके पिता मर चुके हैं। किंतु 1 दिन उसे यह मालूम चल जाता है, कि उसके पिता जीवित है, और हैदराबाद की जेल में सजा काट रहे हैं। वह अपने पिता से मिलने के लिए उत्सुक हो उठता है, यह  सच्चाई जानने के लिए कि क्या वास्तव में उसके पिता कातिल है, और हैदराबाद जाने का मन बना लेता है।    उसकी मां उसे समझाती है, ऐसा भी कहती है, कि उसके पिता ने उसकी मां का त्य...

आर्यों का जीवन | ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वन प्रस्थानम, सन्यास | Area's life

      वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था प्रचलन में थी। आश्रम शब्द संस्कृत के श्रम शब्द से निर्मित है, जिसका तात्पर्य परिश्रम से है। वैदिक काल की सभ्यता में जीवन का पहला चरण ब्रम्हचर्य से प्रारंभ होता है, जो कि आश्रम में बीतता था।  छात्र यज्ञोपवीत के बाद आश्रम जाता था। विद्या  के अर्जन के लिए जब ब्रह्मचर्य का जीवन आश्रम में बिता कर घर लौटता तो गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता जहां उसकी शादी होती और वह जीवन के भौतिक सुखों को प्राप्त करता एक समय पर वह जीवन के तीसरे चरण वनप्रस्थान को प्राप्त कर लेता, जिसमें वह अपने घर परिवार को छोड़कर वन की ओर निकल पड़ता। जहां वह लगातार एकांतवास में चिंतन करता।  वनप्रस्थान के पश्चात जीवन का अंतिम चरण जिसमें वह प्रवेश करता है, वह सन्यासी है। सन्यासी व्यक्ति घूम घूम कर अपने जीवन के चिंतन का प्रचार प्रसार करता। अतः वैदिक काल में जीवन के चार चरण हुए ब्रह्मचर्य , गृहस्थ ,  वनप्र स्थान तथा सन्यासी ।    जीवन के इन चार चरणों का मूल आर्यों के चार ऋणों तथा चार पुरुषार्थों पर विश्वास होना भी प्राप्त होता है। क्योंकि आर्यों के...

वैदिक काल का जीवन | जाति प्रथा का उदय | vedic period and the rise of caste system in hindi

वैदिक काल की सभ्यता कैसी रही होगी। इतिहास जो कुछ माध्यमों से सूचित करा पाता है, उससे एक लेख इस विषय पर तैयार कर रहा हूं। वैदिक काल में वेदों की रचना तत्पश्चात उनकी व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रंथों की रचना और अंत में सूत्रों की रचना की गई। जो वैदिक काल की व्यवस्था का भी वर्णन करते हैं।    उस काल में आर्य कुटुंब, कुल की इकाई में रहते थे। गृह का प्रधान पिता होता था। कई गृह से ग्राम जिसका प्रधान ग्रामीण होता था। कई ग्राम मिलकर विश बनाते थे, जिसका प्रधान विशपति होता तथा कई विशों से जन, जिसका प्रधान गोप होता था, जो राजा स्वयं होता था।  ऋगवैदिक काल में आर्यों के छोटे-छोटे राज्य थे। किन्तु अनार्यों पर विजय होने पर वे राज्य विस्तार करते रहे। विजय के उपलक्ष में राजसूया, अश्वमेध यज्ञ करने लगे।    वैदिक काल में राज्य का प्रधान राजन था। वह अनुवांशिक था, किंतु निरंकुश नहीं होता था। परामर्श हेतु उसके लिए एक समिति तथा सभा होती थी। सभा के सदस्य बड़े बड़े तथा उच्च वंश के लोग थे। किंतु समिति के सदस्य राज्य के सभी लोग थे। ऋगवैदिक काल में पुरोहित, सेनानी तथा ग्रामणी राज्य के प्रमुख...

Arya in india explain in hindi | आर्यों को जानने की साधन | vedas, upnishad, brahmin, sutra, etc in hindi

आर्यों का विस्तार- सप्त सिंधु, मध्य देश, आर्यव्रत और दक्षिणाव्रत ● उत्तर भारत में आर्य- आर्य भारत में धीरे-धीरे आगे बढ़े भले ही वह मूल किसी भी प्रदेश के हों। किंतु भारतीय आर्य प्रारंभ में सप्त सिंधु में ही निवास करते थे। वह सात नदियां का देश जो सिंधु (सिन्ध), झेलम (वित्स्ता),  चुनाव (अस्कनी), रावी (परुषणो), व्यास (पिषाका), सतलज (शतुद्री), सरस्वती। आर्य जैसे जैसे आगे बढ़े। भारतीय प्रदेशों के नाम देते रहें। कुरुक्षेत्र के निकट के भागों में अधिकार करने से उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मा व्रत रखा। मुख्य विषय यह है, कि उन्हें भीषण संघर्ष अनार्य से करना पड़ा होगा। जब वह और आगे बढ़े और गंगा यमुना दोआब और उसके निकट के प्रदेश पर अधिकार प्राप्त किया, उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मर्षि देश रखा जब उन्होंने आगे बढ़कर हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य के भाग को अधिकार में लिया और स्वयं को प्रसारित किया तो इस प्रदेश को उन्होंने मध्य देश नाम दिया। जब उन्होंने वर्तमान बंगाल और बिहार के क्षेत्रों को भी अधिकार में लिया तो संपूर्ण उत्तर भारत को आर्यवर्त पुकारा। ● आर्यों का दक्षिण भारत में प्रवेश-...

आर्य कौन थे | आर्यों का मूल स्थान | यूरोपीय सिद्धांत, मध्य एशिया सिद्धांत, भारतीय सिद्धांत व्याख्या | Who were aryas

आर्य   कौन थे? इनका मूल स्थान क्या था?      यह बेहद विवादपस्त प्रश्न है। स्मिथ लिखते हैं कि,  “ आर्यों के मूल निवास के संबंध में जानबूझकर विवेचना नहीं की गई है, क्योंकि इस संबंध में कोई विचार निश्चित नहीं हो सका है”।  आर्य का अर्थ है, श्रेष्ठ और वे अनार्य (अश्रेष्ठ) उन्हें कहते हैं, जिनसे वे अपने भारत भूमि भ्रमण में संघर्ष किए। सर्वप्रथम आर्य शब्द वेदों में प्रयुक्त है, व्यापक तौर से यह एक प्रजाति है। जिनकी शारीरिक रचना विशिष्ट है। जिनके शरीर लंबे डील-डौल, हृष्ट-पुष्ट, गोरा रंग, लंबी नाक वाले तथा वीर साहसी होते हैं। भारत, ईरान और यूरोपीय प्रदेश के कई देशों के लोगों का इन्हीं के संतान होने का मत है। यह लोग प्रारंभ से ही पर्यटनशील होते हैं। और इसी प्रवृत्ति से यह लोग संपूर्ण विश्व में फैलने लगे। और इन लोगों ने विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप अलग अलग संस्कृति का विकास किया।   1.  आर्यों का मूल स्थान को लेकर विद्वानों का एकमत होना बहुत कठिन है। क्योंकि विद्वान अलग-अलग ढंग से आर्यों के मूल स्थान की विवेचना करते हैं। इ...

सिंधु घाटी सभ्यता | मिश्र, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता की तुलना | Indus valley civilization

    सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में यह दूसरा लेख है। वे लोग उस काल में भी व्यापार करते थे। विद्वानों का मत है, कि वह वैदिक सभ्यता के मुकाबले अधिक नगरीय तथा व्यापार प्रधान थे। उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि आधारित ही नहीं था, बल्कि व्यापार भी था। खुदाई में ऐसे बीज मिले हैं, जो उनकी भूमि की उपज नहीं हैं।  साथ ही वहां किसी राज प्रासाद का साक्ष्य नहीं मिला है। हां कई सभा भवन के खंडहर जरूर मिलें हैं। इससे उनके लोकतांत्रिक शासन के होने का अनुमान होता है।    भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के उदय के दौर में ही विश्व के अन्य भागों में भी मानव उत्कृष्ट सभ्यता का जन्म हो रहा था। जो ज्ञात हैं वह, मिस्र की सभ्यता और मेसोपोटामिया की सभ्यता हैं। तीनों में उभयनिष्ठ है, कि वे नदी घाटी में उदित हुई। सिंधु नदी घाटी सभ्यता सिंधु नदी की घाटी में, मिस्र की सभ्यता नील नदी की घाटी में, और मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात नदी की घाटी में  प्राप्त हुई हैं।    तीनों से सभ्यताएं उत्तर पाषाण काल के बाद की हैं। वह धातु काल की सभ्यताएं हैं। वह कांश्य तथा तांबे का प्रयोग करते थे। ...

सिंधु घाटी सभ्यता | सभ्यता क्या है | Indus valley civilization in hindi

     सभ्यता से तात्पर्य लोगों का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक जीवन कैसा रहा होगा, इससे है। सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम भारतीय सभ्यता के रूप में पुरातत्व की सबसे महत्वपूर्ण खोज है, जो अतीत के लिए विश्व को एक विशेष नजरिया देती है। यह विशाल भूमि पर फैला था। सिंधु नदी की घाटी में इसका विस्तार प्राप्त हुआ है, अतः इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं। घाटी वह भूमि है, जो उस नदी से पोषित होती है। सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, पूर्वी बलूचिस्तान, कठियावाड़ और अन्य स्थानों पर ज्ञात हुआ है। विद्वानों का मत है, कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जो क्रम से वर्तमान में पंजाब के जिला माउंटगोमरी (पाकिस्तान) और सिंध के लरकाना जिले (पाकिस्तान) में है, इनका सात बार विनाश और सात बार निर्माण हुआ था। क्योंकि खुदाई में सात परतें मिली हैं। ◆   विद्वानों के मतानुसार सिंधु घाटी सभ्यता में भवन निर्माण एक निश्चित योजना से होते थे। नगर के निर्माण एक योजना का परिणाम रहा होगा। सड़कें आपस में जहां काटती वहां समकोण अंतरित करती। वे बहुत चौड़ी होती थी। मुख्य सड़को...

भारतीय सभ्यता के जनक | आदिम निवासी, द्रविड, आर्य, शक, कुषाण, हूण, मुगल, यूरोपियन का भारतीय सभ्यता पर प्रभाव | Development of Indian civilization in hindi

      भारतीय सभ्यता के आरंभिक सूत्रपात कर्ता भारत के आदमी निवासी थे, और उन्हीं की सभ्यता को आर्य और द्रविड़ो ने रूप दिया। तत्पश्चात कालांतर में यूनानी, शक, कुषाण, हूण, मुसलमान और यूरोपियों ने भारतीय सभ्यता को प्रभावित किया, किंतु अनेकों आक्रमणों के बावजूद भी भारत वासियों ने अपनी संस्कृति को अब तक स्वयं में जीवित रखा है। { भारतीय सभ्यता के सूत्रधार } ◆    आदिम निवासी भारतीय सभ्यता के सूत्रधार हैं। वह किरात, कोल, संथाल, मुंड जाति के थे। किरात जाति के लोग असम, सिक्किम और उत्तर पूर्वी हिमालय क्षेत्रों के निवासी करते हैं। और संथाल तथा कोल जाति के लोग छत्तीसगढ़, छोटानागपुर तथा खासी-जयंतिया की पहाड़ी इलाकों में निवासी हैं। यह लोग प्रारंभ में जंगली थे। विद्वानों का मत है कि पाषाण काल की सभ्यता के प्रवर्तक भी आदिम निवासी ही थे। ◆    दक्कन में द्रविड़ अधिक सभ्य थे। वे आदिम निवासियों से अधिक सभ्य थे। वह काले रंग के मझोले कद और चौड़ी नाक के होते हैं। यह लोग तमिल, तेलुगू ,मलयालम, कन्नड़ भाषा का प्रयोग करते हैं।  मिट्टी के बर्तनों पर सुंदर चित्रकारी, स...

मानव का क्रमिक विकास | पूर्व ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल | Evolution of human from stone age to metal age in hindi

     मानव का विकास कर्मिक है। विद्वानों के मतानुसार प्रारंभ में मानव अज्ञानी और बर्बरता के अंधकार में डूबा हुआ था। वह सभ्यता की ओर धीरे-धीरे आया है। किंतु यह भी सत्य है, कि सभ्यता का फल चख लेने पर वह नियत  ढंग से इसके विकास में स्वयं को संलग्न रखता आया है।   ईश्वर ने मानव को बुद्धि बल, सोच विचारने की शक्ति दी है। और मानव ने अपने जीवन को उन्नत बनाने के क्रम में इसका भरपूर प्रयोग किया।    भारतीय सभ्यता के लगभग 3500 ई०पू० से पहले के काल को पूर्व ऐतिहासिक काल की सभ्यता और 3500 ई०पू० के बाद के काल को ऐतिहासिक काल की सभ्यता के नाम से पुकारा गया है। ऐतिहासिक काल की सभ्यता का पता लगाना कुछ बहुत अधिक कठिन नहीं है। क्योंकि हमें उस काल के ग्रंथ, मुद्रा, लेख, अभिलेख, बर्तन, औजार, स्मारक आदि प्राप्त होते हैं।   ऐतिहासिक काल को दो भागों में विभक्त किया गया है। पाषाण काल को लेकर विद्वानों का मत है कि पूर्व मानव पत्थर के औजार बनाता था। किंतु यदि बहुत अधिक जंगली और असभ्य था, तब उस काल को पाषाण काल के एक खंड में पूर्व पाषाण काल कहा गया, और जब मनुष्य औजार निर्मा...

भारत की भौगोलिक व्याख्या | दक्षिणापथ, आर्यावर्त भौगोलिक विविधता

     भारत के भूगोल का भारतवासियों पर प्रभाव गौरतलब है। स्थल असमानता भारतवासियों को भिन्न करती है। उनके संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक रूचि और जीवन का कारण है।  ■  हिमालय की पर्वत माला ने जिस प्रकार हिंदुस्तान को पोषित किया है। उसका संरक्षण किया है, वह किसी से छिपा नहीं है। उत्तर की शीत हवाओं से संरक्षण, मानसूनी हवाओं का अवरोध और उत्तर की भूमि की समृद्धि, आक्रमणकारियों के लिए अभेद्य अवरोध बना रहा है द ग्रेट हिमालय। हिंदुस्तानियों के लिए वास्तव में ग्रेट है। हिंदुस्तान का कभी सोने की चिड़िया होना हिमालय के संरक्षण की देन है। ऋषियों ने प्राचीन काल से अब तक हिमालय की भागों में चिंतन के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किए। इस की गोद की पवित्रता में प्रकृति के साधक रहें। यह भारतवासियों की धार्मिक जीवन पर भी प्रभावी रहा। हिमालय की इन सब महत्ता से ही हिमालय भारत का मुकुट है।  ■  उत्तर का विशाल मैदान अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन की उर्वरता भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक जीवन को प्रभावित करती रही है। अतीत के पृष्ठो में बड़े-बड़े साम्रा...

भारत के ऐतिहासिक प्रदेश | भौगोलिक एवं ऐतिहासिक व्याख्या

    मानव की खींची सीमाओं के  अतिरिक्त भी भारत की  प्राकृतिक तौर से स्वयं सीमा तय हुई है। यह प्रतीत होता है। भारत स्वयं में एक प्रायद्वीप है। वह भाग जो तीन ओर से जल से घिरा हो।     भारतखंड अथवा भारतवर्ष विश्व के मानचित्र में सर्वाधिक अनोखी आकृति लिए है। इसकी सीमाएं पश्चिम-दक्षिण से और दक्षिण-पूर्व तक इसके प्रायद्वीप होने का कारण है। अर्थात क्रमशः अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी हैं। यही इसकी प्राकृतिक सीमा है। और पश्चिम-उत्तर दिशा में हिंदू कुश और सुलेमान की पर्वतमाला इसकी सीमा को तय करती हैं। उत्तर का विशाल मैदान जिस की देन है, वह हिमालय भारत भूमि पर सदैव से रक्षक रहा है। और सदैव रहेगा।      ● सिंध और पश्चिम पंजाब का हिस्सा जो अब पाकिस्तान में है। शेष पंजाब का पूर्वी कुछ हिस्सा भारत का भाग है। यह भूमि हालांकि पंजाब और हरियाणा में दो भाग में वर्तमान में प्राप्त है। सिंधु तथा उसकी पांच सहायक नदियां इसी प्रदेश में बहती है। यही भूमि गुरु नानक की है, जिन्होंने सिख धर्म चलाया था। गेहूं की पैदावार अच्छी होने से यह भूमि समृद्ध है।   ●...

भारत के प्राचीन नाम | भारत के विभिन्न नाम | India old name in hindi

    वैदिक काल से पूर्व भारत को किस नाम से पुकारा जाता था, यह तो ज्ञान नहीं है। किंतु प्रारंभ में जहां आर्य रहते थे, उस देश को सप्तसिंधु कहा गया। सप्तसिंधु का तात्पर्य है, सप्त- सात, सिंधु- नदी अर्थात सात नदियों का देश सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज, सरस्वती यह नदियां थी। यह वही प्रदेश है, जो अब पंजाब नाम से जाना जाता है, धीरे-धीरे आर्य पूर्व की ओर बढ़ने लगे तो देश के अन्य भागों को अन्य नाम जैसे ब्रह्मऋषि देश, मध्य देश के नाम से पुकारने लगे। देश के उत्तर के उस संपूर्ण भूभाग जिसमें आर्य घूमते रहे, उसे आर्यवर्त नाम से पुकारा गया। आर्य जो एक जाती है, और आवर्त जिसका तात्पर्य चक्कर लगाना है। अर्थात वह भूभाग जहां आर्य चक्कर लगाते रहे।   विंध्याचल और सतपुड़ा की श्रेणियों के उस पार दक्षिण हिस्से में द्रविड़ निवास करते थे। जिसे द्रविड़ देश या दक्षिणा पथ कहते थे। यह अलग ही सभ्यता और संस्कृति जो आर्यों से बिल्कुल भिन्न थी। यह लोग तेलुगू,तमिल, मलयालम जैसी भाषाओं का प्रयोग करते थे। किंतु इन सब में उस समय तक संपूर्ण भारत को एक नाम नहीं दिया गया था, जिससे उसे पुकारा जा सके।...

इतिहास क्या है | What is history

     वर्तमान और भविष्य की जड़ें इतिहास में है। आज भी हम जो फल प्राप्त कर पा रहे हैं, जो परिणाम सम्मुख हैं, वह अतीत के ही हैं। या यूं कहें कि हमारे पूर्वजों का किया हम ही तो भोगते हैं।   ● इतिहास “जो निश्चित रूप से ऐसा ही था” शाब्दिक अर्थ लिए है। उससे ज्ञान है की, मनुष्य का हमेशा से उद्देश्य जीवन को सुखी बनाना रहा है। इतिहास हमें बताता है, कि सहयोग से मानव उन्नति होती है।    ● वर्तमान में जो प्राप्त है, वह इतिहास का फल है। और भविष्य पर कोई स्पष्ट विदित तथ्यात्मक पुस्तक लिखी नहीं जा सकती। किंतु यह भी है, कि इतिहास की जानकारी से भविष्य का अनुमान जरूर लगा पाने में हम स्वयं को कुछ हद तक सही पाते हैं। इतिहास तो एक विज्ञान है जो मानव के हर कदम को प्रयोग मानकर उस पर लिखा गया है।   ● साथ ही इतिहास केवल दिवंगत राजाओं की कृत्यों की सूचना मात्र नहीं है। वरन यह एक विज्ञान है, जो बुद्धि का विकास में आवश्यक है। उपयोगी है। साथ ही हम सदैव से लकीर के फकीर नहीं हैं। हमने अतीत से आज तक स्वयं को परिवर्तित पाया है। हमने जीवन मूल्य में अंतर पाया है। जिन धार्मिक युद्धों का मध...

रावण के किरदार अरविंद त्रिवेदी जी नहीं रहे | ramanand sagar ramayana

ramanand sagar ramayana-arvind trivedi ji 8 नवंबर 1938 को इंदौर में जन्मे अरविंद त्रिवेदी की 90 के दशक के लोकप्रिय रामानंद सागर जी की रामायण के मशहूर कलाकारों में एक रहे। अरविंद त्रिवेदी जी ने रावण का किरदार निभाया। उनके पिताजी मूल रूप से गुजरात के थे। 300 से अधिक हिंदी गुजराती फिल्मों में अभिनय करने वाले अरविंद त्रिवेदी जी का निधन 83 वर्ष की उम्र में हो गया है। दुनिया भर में रामायण में रावण के किरदार के कारण उनको बेहद लोकप्रिय मिली। 90 के दशक में रामायण धारावाहिक की इतनी लोकप्रियता रही, कि 52 एपिसोड को एक्सटेंड कर 78 एपिसोड की शूटिंग की गई। रामायण धारावाहिक लगभग डेढ़ साल कि लंबे समय में तैयार हो सका। लगभग 55 देशों में रामायण धारावाहिक का टेलीकास्ट दुनिया भर में किया गया। जिससे 650 मिलियन से ज्यादा लोगों ने इसे देखा। इसी धारावाहिक का हिस्सा रावण के किरदार मैं अरविंद जी को लोगों ने बहुत सराहा। 1987 में जब रामायण दूरदर्शन पर प्रकाशित होने लगा, तो टीवी देखने वाले हर व्यक्ति में रामायण को देखने की अलग उत्सुकता थी। जो आस्था और विश्वास का जीवंत अभिनय था, यहां तक कि लोग धार्मिक आस्था के चलत...

उत्तराखंड राजनीति चुनावी पहल आजकल | Uttrakhand politics

उत्तराखंड में 2022 के चुनाव को लेकर हर दिन पक्ष विपक्ष, राजनीतिक दल अपने आप को आम जनमानस में सबसे मजबूत समर्थ और योग्य जताने की कोशिश में कार्यक्रमों का आयोजन कर रहें हैं। आज उत्तराखंड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी का आगमन उत्तराखंड में भाजपा की जीत के लिए प्रयोग किए जाने वाले बड़े पेंचों में एक है।  2017 की भांति भाजपा ने अपनी केंद्र सरकार की उपलब्धियों से मुनाफा उत्तराखंड 2022 चुनाव में हासिल करना है, यह तो तय है। किन्तु दूसरी ओर विपक्ष राज्य में भाजपा के हर कदम पर उसे घेरने के पुख्ता इंतजाम किए हुए है। पीठसैंण में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी के दौरे से पूर्व ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी ने उनकी पुरानी घोषणा सैनिक स्कूल को लेकर कहा की उन्हें पीटसैंण की जनता से इस वादे को ना निभा पाने पर माफी मांगनी चाहिए, साथ ही उन्हें ऐसी घोषणा करनी चाहिए जिन्हें तीन माह में उत्तराखंड भाजपा सरकार पूरा कर सके। भाजपा के केंद्रीय  नेताओं का उत्तराखंड दौरा आम जनमानस पर अधिक प्रभावी न हो सके इसके लिए कांग्रेस भरसक प्रय...