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Showing posts from November, 2021

अर्थशास्त्र और इंडिका से मौर्य वंश का शासन प्रबंध

पश्चिम में हिंदू कुश पर्वत से पूर्व में बंगाल तक उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कृष्णा नदी तक हिंदुस्तान का विशाल भाग किसी एक शक्तिशाली राजा द्वारा केंद्र से शासित हो रहा था। इतने बड़े साम्राज्य में शासन की निश्चित कड़ियां थी, जो शासन को सुचारू रखती थी।     चंद्रगुप्त मौर्य के काल में शासन प्रबंध को समझने के लिए जो साधन उपलब्ध हैं, वह उस दौर की विद्धान राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा लिखा “ अर्थशास्त्र ” और चंद्रगुप्त के शासन में एक यूनानी राजदूत जोकि सेल्यूकस का राजदूत था, मेगस्थनीज। उसने चंद्रगुप्त के साम्राज्य में जो कुछ देखा सुना वह सब कुछ अपनी पुस्तक “ इंडिका ” में लिखा। मेगास्थनीज के विवरण में चंद्रगुप्त के स्थानीय स्वशासन का काफी विवरण मिलता है।    अध्यन के अंतर्गत चंद्रगुप्त के शासन को समझने के लिए उसे तीन भागों में वितरित किया जा सकता है। केंद्रीय शासन, प्रांतीय शासन और स्थानीय शासन।    जो भी हो किंतु व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का सर्वोच्च प्रधान राजा होता था, वह केंद्रीय सकती थी, और वह स्वेच्छाचारी भी हो सकता था, और निरंकु...

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल | साम्राज्य का प्रसार तथा विजित प्रदेश | Maurya dinesty Chandragupt

Chandragupta maurya   संपूर्ण उत्तर भारत में जिसका साम्राज्य स्थापित हो चुका था, वह दक्षिण की ओर बढ़ता है, और सौराष्ट्र की भूमि पर भी अपना अधिकार स्थापित करता है, इतना ही नहीं वह मालवा को भी अपने अधिकार में करता है, कुछ विद्वानों का मत है, कि उस क्रांतिकारियों के नेता चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य मैसूर राज्य की सीमा तक प्रसारिता था।     चंद्रगुप्त की विजय का आरंभ पंजाब की भूमि से होता है। सिकंदर के भारत से लौट जाने के पश्चात पंजाब की भूमि में यूनानीयों के विरोध में एक बड़ी क्रांति ने जन्म लिया। चंद्रगुप्त मौर्य क्रांतिकारियों का नेता हो गया उसने यूनानीयों को भारत भूमि से मार भगाया और पंजाब पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।    चंद्रगुप्त मौर्य अब अपने लक्ष्यों के प्राप्ति के उदीयमान पृष्ठों को लिख रहा था। यह वही मगध का साम्राज्य था, जिस पर आक्रमण का साहस सिकंदर न कर सका, किंतु दृढ़ संकल्पित चंद्रगुप्त मौर्य पंजाब पर अपने अधिपत्य के पश्चात मगध के विशाल साम्राज्य पर विजय के मंसूबे को साकार करता है। ब्राह्मण चाणक्य साथ हैं। 321 ईसा पूर्व में चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य ...

मौर्य वंश के उदय की कहानी | चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय | Maurya Dynasty Chandragupt मौर्य का संघर्ष

    भारत में सिकंदर की एक तीव्र यात्रा के ही दौर में जिस साम्राज्य के पूरे उत्तर भारत में स्थापित होने का पथ प्रशस्त हो रहा था।  वह मोर्य साम्राज्य था। मगध की गद्दी पर नया वंश आसीन होता है। जिस राजवंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य हुआ।     चंद्रगुप्त मौर्य किस कुल का था या उनका वंश क्या था, यह ज्ञान निश्चित नहीं है। कुछ विद्वानों के विचार में एक नाइन जिसका नाम मुरा था, चंद्रगुप्त मौर्य उसका पुत्र था। और वह नंदराज की एक शूद्रा पत्नी थी। इस विचार के अनुरूप चंद्रगुप्त मौर्य एक शूद्र कुल का था। किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय वंश का था। उनके मतानुसार नेपाल की तराई में पिप्पलिवन नामक एक छोटा सा प्रजातंत्र राज्य था। जिस पर चंद्रगुप्त मौर्य के पिता जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे, और मोरिय जाति के राज शासक थे।    दुर्भाग्यवश एक सबल राजा ने चंद्रगुप्त मौर्य के पिता जो कि नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित एक प्रजातांत्रिक राज्य के प्रधान थे, उनकी हत्या कर दी, और उनसे राज्य छीन लिया। विद्वानों के मतानुसार उस वक्त पर चंद्रगुप्त ...

Alexander की भारत यात्रा का प्रभाव | सिकंदर | भारत पर यूनानी प्रभाव

सिकंदर(Alexander) सिकंदर(Alexander) के आक्रमण का प्रभाव भारत में इतिहासकारों में मतभेद दिखाने वाला एक और विषय है। कुछ विद्वानों का मानना है, कि सिकंदर (Alexander)  का आक्रमण एक तूफान की तरह था, जिसने थोड़ी देर के लिए भारतीयों को झकझोर जरूर दिया था, और फिर पानी के बुलबुले की तरह वह समाप्त भी हो गया। कुछ विद्वानों के विचार में यह बेहद क्षणिक था और भारत के छोटे से क्षेत्र में यह होने पर पूरे भारत पर इसके प्रभाव को गहनता से भी नहीं देखते हैं। उनका मत है कि यह केवल एक सैन्य विजय थी, और यूनानी लोग कुछ ही दिनों के बाद भारत से निकल गए थे, अतः यहां भारत में यूनानीयों का कोई स्थाई प्रभाव ना हो सका। वे तो स्वयं बर्बर और लुटेरे थे, लुटेरे यूनानी सैनिकों से भारत की सभ्यता जो स्वयं में इतनी ऊंची थी, कभी कुछ नहीं सीख सकती थी। इस विषय में स्मिथ महोदय ने लिखा है “यूनानी प्रभाव कभी अंतः स्थल तक प्रविष्ट नहीं हो सका भारतीय राजसंस्था और समाज का संगठन जो जाति व्यवस्था पर आधारित था, वस्तुतः अपरिवर्तित हुआ रहा और सैन्य शास्त्र में भारतवासी सिकंदर(Alexander)  की तीक्ष्ण करवाल द्वारा सिखाई हुई शि...

Alexander in india झेलम का युद्ध in hindi विस्तृत वर्णन | सिकन्दर का भारत पर आक्रमण तथा वापस लौटने का कारण

     327 ईसा पूर्व में सिकंदर ने हिंदूकुश पर्वत को पार कर वह काबुल में आ डटा था, वहां पर उसने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया, जिसमें एक सेना का संचालन उसने अपने विश्वस्त सेनापति को दिया जो खैबर के दर्रे से आगे बढ़ी। और दूसरी सेना को अपने नियंत्रण में रखकर वह काबुल की घाटी में प्रवेश करता है, अनेक छोटे-छोटे राजाओं को  जीतते हुए वह आगे बढ़ता है। और अंततः यह दोनों सेनाएं ओहिंद नामक स्थान पर पुनः मिलती हैं, वहां से ये आसानी से सिंधु नदी को पार कर जाते हैं।    सिंध नदी के पार उस समय पर अर्थात सिधु नदी के पूर्व में उस समय पर मुख्य तौर से दो सबल शासक थे, आंभी तथा पुरु या पोरस। किंतु उन दोनों के मध्य में सहयोग का संबंध न था, वे एक दूसरे के प्रतिद्वंदी बने रहे। और यह सिकंदर के पक्ष में था। इससे पहले कि सिकंदर आक्रमण करता आंभी ने सिकंदर को अपने राज्य में आने का निमंत्रण दे दिया। दरअसल वह सिकंदर के माध्यम से पोरस को नीचा दिखाना चाहता था। यदि पोरस और आंभी साथ मिलकर सिकंदर का सामना करते तो शायद वे जरूर जीत जाते।    326 ईसा पूर्व में आंभी की राजधानी ...

सिकंदर का परिचय | सिकंदर भारत की सीमा तक | sikandar की विजय यात्रा

    उस समय में यूनान के छोटे से राज्य मकदूनिया पर फिलिप नामक शासक का शासन था। फीलिप के पुत्र सिकंदर हुए। यह वही सिकंदर है, जिसे दुनिया के सबसे महान विजेताओं की पंक्ति में स्थान प्राप्त है। सिकंदर विश्व का महान विजेता।    336 ईसा पूर्व में फिलिप की मृत्यु हो जाने के कारण अब सिंहासन सिकंदर को मिला। हालांकि उस समय पर सिकंदर की आयु महज 20 वर्ष थी, किंतु सिकंदर उस वक्त के सबसे महान विद्वान और दार्शनिक अरस्तु के शिष्य रहे, जिसके प्रभाव से सिकंदर बड़े सभ्य व्यक्ति बना, वह बेहद कुशल शासक अपने आप को साबित कर पाने में सफल रहा। शासन पर आरूढ़ हो जाने के पश्चात उसने दो प्रमुख ध्येय स्वयं को सदैव दिए रखें। पहला अपने साम्राज्य का विस्तार और दूसरा अपने देश की सभ्यता और संस्कृति का प्रसार।     सिकंदर ने विजय यात्राओं का चक्र प्रारंभ किया। वह अपने आसपास के पड़ोसी छोटे-छोटे राज्यों को जीत हासिल कर फारस के जर्जर साम्राज्य को रौंदता हुआ भारत की सीमा पर आ पहुंचा।     उस समय तक उत्तर भारत के पूर्वी भाग में मगध का विशाल साम्राज्य स्थापित हो चुका था। किंतु अभी उत्तर भारत...

बौद्ध कालीन भारत |16 महाजनपदों की विस्तृत व्याख्या | Boddh period india explaination

बौद्ध कालीन भारत जब भगवान बुद्ध के द्वारा बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हो रहा था। उस समय पर भारत किस प्रकार से था, इसकी दशा क्या थी। इस विषय में बौद्ध धर्म ग्रंथों से कुछ जानकारी प्राप्त होती हैं। उन दिनों उत्तरी भारत में कोई ऐसा सशक्त साम्राज्य ना था, जो कि केंद्र में रहकर एक शक्तिशाली शासन पूरे उत्तर भारत में स्थापित कर सकें, ऐसा ना हो कर उन दिनों उत्तरी भारत 16 छोटे-बड़े राज्यों में बंटा हुआ था, इन राज्यों को महाजनपद कहा जाता था।    ● अंग (पूर्वी बिहार) राजधानी चंपा, ● मगध (दक्षिणी बिहार) राजधानी गिरिब्रज, ● काशी (वाराणसी) राजधानी काशी, ● कौशल (अवध) राजधानी श्रावस्ती, ● वज्जी (उत्तरी बिहार) राजधानी वैशाली, ●.मल्ल (देवरिया, गोरखपुर) राजधानी कुसिनारा तथा पावा, ● चेदी  (बुंदेलखंड) राजधानी सुक्तिमती, ● वत्स (प्रयाग) राजधानी कौशांबी, ● कुरु (दिल्ली मेरठ) राजधानी इंद्रप्रस्थ तथा हस्तिनापुर, ● पांचाल (रोहिलखंड) राजधानी अहिक्षेत्र तथा कम्पिल्य, ● मत्स्य (जयपुर) राजधानी विराटनगर, ● शूरसेन (मथुरा) राजधानी मथुरा, ● अवंती (पश्चिमी मालवा) राजधानी उज्जैन, ● गांधार (पूर्वी अफ़गानिस्ता...

बौद्ध और जैन धर्म की भारत को देन | Indian history | Boddh and jain dharma

बौद्ध और जैन धर्म ने भारत भूमि को हिंसा के महत्वपूर्ण पाठ से अवगत कराया। प्राणी मात्र पर दया की शिक्षा दी। यह वही अहिंसा है, जिसका अनुसरण कर महात्मा गांधी जी ने भारत में स्वतंत्रता के आंदोलन में अभूतपूर्व योगदान दिया। आम जनमानस से स्वतंत्रता के आंदोलन को इसी मार्ग से जोड़ सकने में समर्थ रहे।    ऊंच नीच जात पात भेदभाव को ना मानकर एक लोकतांत्रिक समझ का संदेश दिया। मानव के सत्कर्म और सदाचार पर अधिक बल देकर देशवासियों की नैतिक स्तर को ऊंचा किया।    उत्तर वैदिक काल में आते-आते यज्ञ और बलिदान के विरोध में हिंदुओं में प्रबल विचारधारा जन्म ले चुकी थी और यही विचारधारा “भागवत धर्म” के तौर पर सम्मुख आई। जिसके प्रवर्तक श्री कृष्ण थे। उनका कहना था, कि देवी-देवताओं के ऊपर भी भगवान है, जिसे प्रसन्न करने के लिए न यज्ञों की आवश्यकता है, न जंगल में जाकर चिंतन करने की, न तपस्या करने की जरूरत है। बल्कि उपासना और भक्ति के मार्ग मात्र से ही मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। और यह मार्ग उतना ही सरल था जितना कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का था।       बौद्ध और जैन धर्म की ...

बौद्ध धर्म के पतन के प्रमुख कारण | बौद्ध धर्म का अपनी ही भूमि पर न्यून अनुयायी | Boddh dharma

    बौद्ध धर्म ने जिस तीव्रता के साथ उन्नति की उसके पतन की कहानी भी उतनी ही तीव्र रही। बौद्ध धर्म का अपनी ही जन्मभूमि में जैसे उन्मूलन सा हो गया। हालांकि विश्व के अनेक राष्ट्रों में आज भी बौद्ध धर्म विद्यमान है।     बौद्ध धर्म के उन्नति के कारणों का ज्ञान होने के पश्चात इस के पतन के कारणों का भी अनुमान लगाया जा सकता है। उन्नति में जिन कारणों ने साथ दिया था, उनका अभाव कालांतर में हो जाने पर बौद्ध धर्म का पतन हुआ।     बुद्ध जी के पश्चात बौद्ध धर्म के अनेक शाखाओं ने जन्म लिया, मतों में भेद होने लगा। प्रारंभ में बौद्ध संघों में जो भिक्षुक-भिक्षुणियां रहते थे। उनका जीवन बहुत श्रेष्ठ था, वह बहुत पवित्र और आदर्शमय थे। किंतु कालांतर में उनका चारित्रिक पतन हो गया, जिससे वे लोगों में घृणा के पात्र हो गए। जब बौद्ध धर्म ने उन्नति करना प्रारंभ किया तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के दोषों को जांचना प्रारंभ किया। उन्होंने तेजी से इसमें सुधार के प्रयत्न प्रारंभ किए। शंकराचार्य आदि जैसे बड़े सुधारक आचार्य हुए, जिन्होंने बौद्ध धर्म का खंडन किया और ब्राह्मण धर्म के प...

बौद्ध धर्म की उन्नति के प्रमुख कारण | boddh dhrma in hindi | ancient india

बौद्ध धर्म ने देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचलन के श्रेष्ठ स्तर को प्राप्त किया। नेपाल, चीन, कंबोडिया, जापान, तिब्बत, सुमात्रा, जावा, वर्मा, लंका, मध्य एशिया में अपनी जड़ों को मजबूत करने में बौद्ध धर्म बेहद सफल रहा। इसके कई कारण देखे जा सकते हैं, जो बौद्ध धर्म के उन्नति के प्रमुख कारक है, सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि उस वक्त तक वैदिक सभ्यता का धर्म दोषपूर्ण हो चुका था। लोग यज्ञ तथा बली से तंग आ चुके थे, और यज्ञ में सरलता समाप्त हो जाने के कारण साधारण लोगों की पहुंच से ये बाहर हो गए थे।     भगवान बुद्ध के बेहद आकर्षक रूप और उपदेशों के कारण बौद्ध धर्म में तीव्र उन्नति की। मोनियर विलियम्स ने लिखा की “व्यक्तिगत चरित्र का प्रभाव उनके उपदेशों के अद्भुत आकर्षण से मिलकर अचूक हो जाता था”।    भगवान बुद्ध अपने उपदेशों में पाली भाषा का प्रयोग करते थे। यह साधारण बोलचाल की भाषा थी। लोग इसे बेहद आसानी से समझ पाते थे। यह कारण भी वैदिक सभ्यता की जटिल संस्कृत भाषा में ज्ञान का विकल्प बौद्ध धर्म को जनसाधारण में दिखा पाने में सफल रहा।    भगवान बुद्ध ने कभी जातिवा...

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं विस्तृत व्याख्या | boudh dharma Mahayan & heenyaan

बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म के प्रचार में भगवान बुद्ध ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, और यही कारण रहा कि मात्र भारत में नहीं बल्कि बौद्ध धर्म ने विदेशों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर ली। मध्य एशिया, जापान, चीन, तिब्बत, सुमात्रा, जावा, कंबोडिया, वर्मा, लंका आदि देशों में बौद्ध धर्म बेहद प्रचलित हुआ। हालांकि आज हमारे देश में यह न्यून स्थिति में है, किंतु विदेशों में इसका प्रचार अब भी सुदृढ़ है।    जब भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई तो वे वहां से सर्वप्रथम सारनाथ में अपने उन साथियों को जो उन्हें छोड़कर चले आए थे। अपने ज्ञान से उन्हें अपने जीवन का पहला उपदेश दिया। तत्पश्चात वाराणसी और वहां से राजगृह चले गए। यहां पर उन्हें अपने धर्म के प्रचार में बेहद सफलता मिली। इसके बाद वे अपनी मातृभूमि गए जहां पर उन्होंने शाक्यों को अपने धर्म से दीक्षित किया। तत्पश्चात सारे मगध, कौशल, लिच्छवी के अपने धर्म के प्रचार को बेहद सफलता से किया, और सारे उत्तर भारत में बौद्ध धर्म को एक जागृत धर्म के तौर पर प्रचलित किया, हालांकि आज बौद्ध धर्म दो संप्रदाय में महायान और हीनयान में वितरित है। महाया...

गौतम बुद्ध का संपूर्ण जीवन वृतांत | बौद्ध धर्म का प्रचार | Gautam buddha Mahabhiniskarman, Sambodhi, Mahaparinirwan

   यह वही युग था, जब भारत भूमि पर आम जनमानस मोक्ष की प्राप्ति में सरल राह की तलाश में था, तब भगवान बुद्ध का जन्म एक क्रांति ही थी।    जब एक समय महामाया देवी अथवा माया देवी अपने मायके जा रही थी, तो राह में एक वन लुंबिनी में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, यह क्षेत्र नेपाल के तराई भाग में है, किंतु महामाया देवी का प्रसव पीड़ा से परलोक वास हो जाता है। निसंतान माता-पिता के लिए यह बेहद खुशी का विषय था, इस वजह से कि जैसे किसी कामना की सिद्धि या पूर्ति हो गई हो, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया, किंतु बालक सिद्धार्थ अपनी माता के प्रेम से वंचित रह गया।    सिद्धार्थ के पिता का नाम शुद्धोधन था। वह सूर्यवंश के शाक्य जाती के क्षत्रिय थे, और कपिलवस्तु नामक एक छोटे से गणराज्य के प्रधान थे। सिद्धार्थ का बचपन से ही उनकी विमाता गौतमी देवी ने पोषण किया उन्हें हर राजसी सुख राजकुमारोचित दिए गए। संभवत गौतमी के नाम पर या सिद्धार्थ का गौतम गोत्र होने के कारण उन्हें गौतम के नाम से पुकारा गया है।    सिद्धार्थ बाल्यकाल से ही चिंतनशील थे। चिंतन में इतना मग्न रहते कि सब...

Molnupiravir Oral antiviral drug | Corona के उपचार के लिए पहली दवा

    यह दवा Covid-19 के उपचार में प्रयोग हो सकने योग्य पहली दवा के रूप में सामने आई है। जिसे यूके की मेडिसिन एंड हेल्थ केयर प्रोडक्ट रेगुलेटरी एजेंसी (एम०एच०आर०ए०) द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है।  एम०एच०आर०ए० के अनुसार यह दवा कोरोना के लक्षण को कम करने में कारगर है और इसके किसी प्रकार के कोई नकारात्मक परिणाम भी देखने को नहीं मिले हैं। यह दवा कोरोना के शुरुआती समय में काफी कारगर साबित होगी।    ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद का कहना है, कि ब्रिटेन का यह एक ऐतिहासिक दिन है, ब्रिटेन दुनिया भर में वह पहला देश है, जिसने इस दवा को मंजूरी दी है, यह दवा कोरोना महामारी में एक गेम चेंजर साबित होगी। इस दवा को लोग अपने घर में भी प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार यूके विश्व का पहला राष्ट्र है। जिसने कोरोना की पहली दवा को अधिकृत किया है।     इस दवा के विषय में जानकारी है, कि यह शुरुआती और मध्यम कोरोना के उपचार में सहायक होगी। यह दवा उन एंजाइम को टारगेट करती है, जिनके उपयोग से Corona का वायरस अपनी संख्या में वृद्धि करता है, और कोरोना के फैलने की दर को कम कर दे...

Jainism in hindi | जैन धर्म एक परिचय | जैन धर्म की मान्यताएं

  जैन धर्म को मानने वाले लोगों को जैनी कहा जाता है। कालांतर में जैनी लोग दो संप्रदाय में विभक्त हो गए, पहला श्वेताम्बर और दूसरा दिगंबर। श्वेताम्बर लोग उदार और सुधारवादी होते हैं। यह श्वेत वस्त्र पहनते हैं। तथा अपनी मूर्तियों को भी सफेद वस्त्र पहनाते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियमों को कुछ ढीला करने के पक्ष में है। दूसरी और दिगंबर होते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियम को पालन करते हैं। यह बेहद कट्टरपंथी लोग होते हैं। यह लोग नंगे रहते हैं। और अपनी मूर्तियों को भी नंगा रखते हैं।    जैन धर्म एक क्रांतिकारी धर्म रहा जिसने वैदिक धर्म को चुनौती दी। जैन धर्म के सिद्धांत बिल्कुल अलग हैं, जिनमें सृष्टि की नित्यता पर विश्वास अर्थात सृष्टि का ना तो आदी है ना अंत, इसे किसी ने नहीं बनाया है, और ना ही कोई इसका विनाश कर सकता है।  जैनी लोगों का मानना है, कि ईश्वर ने सृष्टि को नहीं बनाया है, किंतु सृष्टि को बनाया किसने है?  इस सवाल के जवाब में जैनी लोगों का मानना है, कि सृष्टि जीव तथा अजीव इन दो तत्वों के संयोग से बनी है, और यह दो तत्व सतत हैं, इनका नाश नहीं हो सकता और ठीक इसी प्...

वर्धमान से महावीर स्वामी होने की यात्रा | महावीर स्वामी जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर mahaveer swami (vardhaman)

  धार्मिक क्रांति का युग छठी सदी ईसा पूर्व में वह प्रभावी क्रांति का दौर रहा जिसमें भारतीय हर मानव को स्वयं से जोड़ा। उसके जीवन के हर आयामों को प्रभावित किया। जैन धर्म उसी सदी का प्रकाश है। जैन धर्म यूं तो बहुत प्राचीन धर्म है। क्योंकि महावीर स्वामी से पूर्व 23 तीर्थंकर जैन धर्म के हो चले थे। किंतु महावीर स्वामी 24 वे तीर्थंकर के रूप में जैन धर्म को श्रेष्ठ प्रसिद्धि तक ले गए, और उन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहा गया।    वह बालक वर्धमान नाम का 599 ईसा पूर्व विदेह राज्य की राजधानी वैशाली के निकट कुंड ग्राम में जन्मा था। वे कश्यप गोत्र के क्षत्रिय राजकुमार थे। पिता का नाम सिद्धार्थ था। वे ज्ञात्रिक गण के नेता थे। इनकी माता का नाम त्रिशला था जो मगध राजा श्वसुर चेटक की बहन थी। जो लिच्छवी वंश के क्षत्रिय राजकुमार थे।    जैन ग्रंथों के अध्ययन में महावीर स्वामी के संपूर्ण जीवन का परिचय प्राप्त होता है। वर्धमान के जन्म पर उत्सव हुआ। कैदियों को कारावास मुक्त किया गया। बाल्यकाल से ही उन्हें राजसी सुख में डूबोने का प्रयत्न रहा। किंतु वे चिंतक प्रवृत्ति, मोह...

बौद्ध और जैन धर्म के उदय का कारण | वैदिक धर्म की जटिलताएं | धार्मिक क्रांति के युग का आरंभ | Buddha, jain, bhagwat dharmo ka उदय

वैदिक काल के धर्म के स्थान पर धार्मिक क्रांति के युग में नव धर्मों का उदय हुआ। जो वैदिक काल के धर्म ग्रंथों की जटिलता ही रही होगी, जो मानव ने अन्य धर्मों को अपनाया। वैदिक काल के धर्म ग्रंथ संस्कृत में थे, उनकी भाषा जटिलता, सामान्य मानव उससे अछूता ही रहा, वह उसे समझ पाने में असमर्थ ही था। तब वह एक ऐसे सरल मार्ग जो मोक्ष प्राप्ति को मिल सके उसे अपनाने को तैयार था। वह उसके स्वागत में था।      वैदिक धर्म में यज्ञों को एकमात्र मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया है। किन्तु समय के साथ यह महंगे होते गए तब इसे जनसाधारण करवा पाने में असमर्थ हो गया।    मानव में चेतना का नव अध्याय पल्लवित हो रहा था। तो यज्ञ में पशुओं की बलि देवी देवताओं को प्रसन्न करती है, यह ना होकर लोगों के मन में वैदिक धर्म को हिंसा धर्म होने की बात आने लगी। क्यों बेजुबानों की बलि दी जाए। चेतना का नवयुग बेजुबान के दर्द का एहसास कर पा रहा था। वह मानव चेतना का नया-नया नभ चूम रहा था।    वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी  किंतु कालांतर में वह जाति प्रथा का रूप धारण कर भेदभाव ऊंच...

महाकाव्य काल उल्लेख | Ramayan and mahabharat period in hindi

  प्राचीन काल में हमारे देश में दो बड़े महाकाव्य की रचना हुई, और रचना जिस काल में हुई वह महाकाव्य काल हुआ। महाकाव्य कब लिखे गए, जिन घटनाओं पर यह लिखे गए हैं, वह कब हुई?    यह प्रश्न भी अनेक विद्वानों के विभिन्न मतों में उलझे हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार महाभारत का युद्ध 1800 से 1400 ईसा पूर्व काल में हुआ था। और महाकाव्य काल 1400 से 1000 ईसा पूर्व होने का मत है। हालांकि यह स्पष्ट तथ्य नहीं है।    जिन महाकाव्यों का लेखन इस काल में हुआ वह रामायण और महाभारत है। रामायण में श्री रामचंद्र की जीवन लीला का वर्णन है। और महाभारत कौरव और पांडवों के युद्ध का वर्णन है। इनकी एक महत्वपूर्ण उपयोगिता यह भी है, कि इनका गहनता से अध्ययन करने पर तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दशा का ज्ञान होता है।    रामायण की कथा में राजा दशरथ कौशल राज्य के राजा हैं। इनकी तीन रानियां हैं। और इन तीन रानियों से चार पुत्र हैं, कौशल्या के पुत्र राम, सुमित्रा के दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा कैकई का एक पुत्र भरत। इनमें राम सबसे बड़े थे। सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या उनकी रा...

वैदिक सभ्यता विशेष | Arya in india | Vedic sabhyata | आर्यों की देन

वैदिक सभ्यता के जितने तथ्यों को समेटा जाए, वह वास्तव में आर्यों की कितनी बड़ी छाप आज के भारत पर है, जिनमें से कुछ चाह कर भी हम छोड़ नहीं सकते। वे आज भी जीवित हैं। ये अतीत के उन पृष्ठों का गहन दर्शन है जिसे आज तक भारत स्वयं में समेटे है, और उसे प्रमाणित करता है।    वसुदेव कुटुंबकम संपूर्ण पृथ्वी को कुटुम्ब मान देना यह सिद्धांत का प्रतिपादन, सर्वव्यापक चिंतन वैदिक काल के आर्यों की संपूर्ण विश्व के कल्याण की चिंता को दर्शाता है। जीवन के ऊंचे ऊंचे आदर्शों का सृजन किया। वे आर्य थे वे इस संसार के सभी सांसारिक सुखों को नाशवान समझते थे। वे परलौकिक सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति का पाठ पढ़ाते थे। यह चेतना कि वह लौ है, जो आज तक भारतीयों के मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़े है।    उनका प्रमुख व्यवसाय हालांकि कृषि था। वह सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों जैसे व्यवसाय प्रधान सभ्यता न थी। किंतु वह वस्तु विनियम से चीजों की अदला बदली से व्यापार करते थे। यह भी मालूम हुआ है, कि उन लोगों ने “निष्क” नामक एक मुद्रा का प्रचलन भी किया था।    वे राजा को राज्य का एक अंग मात्र मानते थे। उन लोग...